किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक विकास में पोषक तत्व की क्या आवश्यकता एवं भूमिका है वर्णन करें? - kishoraavastha mein hone vaale shaareerik vikaas mein poshak tatv kee kya aavashyakata evan bhoomika hai varnan karen?

भारत 25.30 करोड़ किशोर-किशोरियों (10 से 19 वर्षों तक) का घर है।हम एक चौराहे पर खड़े हैं जहाँ दोनों संभावनाएँ है - हम एक पूरी पीढ़ी की क्षमता खो सकते है,या उनको पोषित करके समाज में बदलाव ला सकते हैं।जैसे-जैसे किशोर बड़े होते हैं, उनके आस-पासकावातावरण भी बदलता है और हम सबकोमिलकर किशोरावस्था की उम्र में अवसरोंकोसुनिश्चित करने की जरूरत है ।

किशोरावस्था पोषण की दृष्टि से एक संवेदनशीलसमय होता है, जब तेज शारीरिक विकास के कारण पौष्टिक आहार की माँग में वृद्धि होती है। किशोरावस्था के दौरान लिए गए आहार सम्बन्धीआचरणपोषणसम्बन्धीसमस्याओं में योगदान कर सकते हैं, जिसका स्वास्थ्य एवं शारीरिक क्षमता पर आजीवन असर रहता है।

भारत में किशोरों का एक बड़ा भाग, 40% लड़कियाँ और 18% लड़के,एनीमिया (रक्त की कमी) से पीड़ित है। किशोरों में एनीमिया,उनके विकास, संक्रमणों के विरुद्ध प्रतिरोध-शक्ति तथा ज्ञानात्मक विकास और कार्य की उत्पादकता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है।

इस समस्या की प्रतिक्रिया में, केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (एमओएचएफडब्लू) ने जनवरी 2013 में एक राष्ट्रव्यापी साप्ताहिक आयरन एवं फोलिक एसिड आपूर्ति (वीकली आयरन एवं फॉलिक एसिड सप्लिमेंटेशन(डब्लूआईएफएस)) कार्यक्रम की शुरुआत की थी। यह कार्यक्रम विभिन्न भारतीय राज्यों में किशोरियों में एनीमिया का समाधान करने के लिए यूनिसेफ द्वारा आयरन एवं फोलिक एसिड (आईएफए) की साप्ताहिक आपूर्ति पर मार्गदर्शी (पायलट) और कई चरणों वाली योजनाओं में वृद्धि के माध्यम से 13 वर्षों के प्रमाणिक अनुसंधान को आगे बढ़ाता है। इस योजना के अंतर्गत, प्रदान की जाने वाली सेवाओं में सम्मिलित हैं — सप्ताह में एक बार आयरनएवं फोलिक एसिड की आपूर्ति करना, वर्ष में दो बार पेट के कीड़ों (कृमि) की दवाई देना और पोषण के बारे में परामर्श देना — जैसे कि आहार को कैसे सुधारा जाये, एनीमिया की रोकथाम करना तथा आईएफए सप्लिमेंटेशन और कृमि-निवारण औषधियों के संभावित दुष्प्रभावों को कम करना।

यूनिसेफ इंडिया, भारत के 14 मुख्य राज्यों में; जिसमें कुल मिलाकर भारत की 88% किशोरियाँ निवास करती हैं, साप्ताहिक आयरन और फोलिक एसिड आपूर्ति कार्यक्रम को लागू करने मेंसहयोग के लिएपसंदीदासाझेदार रहा है।  इन क्षेत्रों के केंद्रबिंदु हैं —सम्मिलित योजना और विकास के लिए प्रोटोकॉलों का क्रियान्वन, प्रशिक्षण के साधनों का विकास, क्षेत्र में काम करने वालों (फील्ड वर्कर्स) की क्षमताओं का निर्माण, क्षेत्र विशेष में निरीक्षण को विकसित करना, तथा समीक्षा यांत्रिकियों के जानकारी तंत्र, प्रसार युक्तियों को विकसित करना और बड़े स्तर पर जागरूकता के लिए सामग्रियाँ तैयार करना।

पोषण अभियान 2018-20 की राष्ट्रव्यापी शुरुआत से वर्ष 2018 में किशोरों के पोषण के प्रति राजनैतिक एवं कार्यक्रमसम्बन्धी नई शक्ति का संचार हुआ।

भारत में, 10-19 वर्ष की आयु के किशोर और युवा कुल जनसँख्या का लगभग एक चौथाईहिस्सा हैं।  उन पर सर्वाधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है क्यूंकि वह गरीबी, अन्याय और अभाव केचक्रों को तोड़ने की क्षमता रखते हैं।                          

ग्रामीण क्षेत्रों और कम आय वाले परिवारों के अशिक्षित या अकुशलमाता-पिताओं वाले बड़े परिवारों में अपर्याप्त पोषण अधिक पाया जाता है। विशेष रूप से शहरी निवासियों और धनवान परिवारों में,बदलते आहार के आचरणएवं शारीरिक गतिविधि के स्तरकेकारण अधिक वजन और मोटापा भी उभरती हुई समस्याएँ हैं। चिकनाई और चीनी से भरपूर प्रोसेस्ड भोजन का उपयोग बढ़ रहा है और किशोरवय एवं वयस्क दिन-प्रतिदिन आलसीहोते जा रहे हैं।  किशोरवय लड़कियों में अधिक वजन और मोटापा व्यस्क महिलाओं में होने वाले मोटापे से जुड़ा होता है, और यह मधुमेह, रक्तचाप शिशुओं में अधिक वजन और मोटापे के खतरों में वृद्धि करता है।

किशोरावस्था पोषण सम्बन्धी कमियों, जो संभवतः प्रारंभिक जीवन में घटित होती है, को ठीक करने एवं विकास को पूरा करने और आहार सम्बन्धीअच्छेव्यवहारों को स्थापित करने का एक अवसर प्रदान करती है।

यूनिसेफ, स्कूल के अन्दर एवं बाहर, किशोरों की पोषण सम्बन्धी स्थितियों को सुधारने के लिए नीतियों और कार्यक्रमों को स्थापित करने और क्रियान्वित करने के लिए पूरे भारत में कार्य करता है। हम किशोरों को स्वास्थयप्रद भोजन और पेय पदार्थों को चुनने, शारीरिक गतिविधि को प्रोत्साहित करने और एनीमिया की रोकथाम एवं उपचार को बढ़ावा देने में सहायता करने के लिए किए जा रहे क्रियाकलापों को समर्थन देते हैं।  हम कुपोषण के मूल कारणों से निपटने के लिए शिक्षा, सामाजिक नीति, जल एवं स्वच्छता जैसे अन्य क्षेत्रों में भी कार्य करते हैं।

आयरन, फोलिक एसिड, विटामिन ए और आयोडीन सहित, विटामिन और खनिज की कमियों को रोकने के लिए भोजन का सुदृढ़ीकरण एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

भारत में यूनिसेफ आयरनएवं फोलिक एसिड की गोलियों के सेवन के स्तर को सुधारने और सामान्यतः उपेक्षित लोगों तक पहुँच बनाने के लिए राज्य विशेष की प्रसार नीतियों के विकास को समर्थन देता है । इस क्षेत्र में दो नए परिवर्तन जारी हैं।  इनमें से पहला है, झारखण्ड के खूँटी जनपद में डब्लूआईएफएस के अनुपालन को सुधारने के लिए उल्लंघन सम्बंधित घटनाओं पर एक सकारात्मक वार्तालाप का निर्माण करना।  दूसरा, असम में स्वयं में निहित और निजी रूप से व्यवस्थित चाय के बागानों में एनीमिया और सामाजिक प्रथाओंका समाधान करने के लिए लड़कियों के समूहों को प्रेरित करना है।

यूनिसेफ ने एनीमिया मुक्त भारत के विकास के लिए संचालनीय दिशानिर्देशों औरसम्बंधितसामग्रियों जैसे  रिपोर्टिंग डैशबोर्ड (https://anemiamuktbharat.info/dashboard/#/) तथा संचार सामग्रियों की अवधारणा का निर्माण करने और उनका संयोजन करने में एमओएचएफडब्लू को अपना समर्थन दिया है।

यह प्रयास (अनीमिया-मुक्त भारत) डिनोमिनेटर - आधारित एचएमआईएस रिर्पोटिंग,आयरन एवं फॉलिक एसिड आपूर्ति की पूर्व तैयारी रखने,अनीमिया के लिए राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर उत्कृष्टता और उन्नत अनुसंधान केंद्र स्थापित करने पर ज़ोर देता है।

तीन राज्यों (बिहार, ओडिशा और छत्तीसगढ़) में कठोर असमानताओं और अत्यधिक गरीबी से प्रभावित पाँच प्रखंडों में लड़कियों और महिलाओं पर पोषण के प्रभाव के मूल्यांकन (स्वाभिमान) कोअब 14 प्रखंडों में बढ़ाया गया है। इस पहल ने एक राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किया है और अब इसका स्तर पूरे देश में पोषण अभियान के लिए एक राष्ट्रीय ग्रामीण जीविका मिशन योगदान के रूप में चरणबद्ध तरीके से बढ़ाया जा रहा है। इसके लिए, लेडी इरविन कॉलेज में एक राष्ट्रीय महिला सामूहिक केंद्र (नेशनल सेन्टर ऑफ विमेन कलेक्टिव्स) स्थापित किया गया है ।

किशोरावस्था में होने वाले शारीरिक विकास में पोषण तत्व की क्या आवश्यकता एवं भूमिका है वर्णन करें?

जैसवार ने बताया कि किशोरियों को प्रोटीन, आयरन, फाइबर, कैल्शियमयुक्त खाद्य पदार्थ और पानी का उचित मात्रा में सेवन करना चाहिए। प्रोटीन मांसपेशियों को बनाने और ऊतकों की मरम्मत का काम करता है। दालों, अंकुरित चने, अंडे, पनीर, दूध और दूध से बने पदार्थों में प्रोटीन मिलता है। वहीं, कैल्शियम हड्डियों को मजबूत बनाता है।

किशोरावस्था की आवश्यकता क्या है?

किशोरावस्था प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का महत्त्वपूर्ण काल है, जो बाल्यावस्था के अन्त में प्रारम्भ होता है और प्रौढ़ावस्था के आरम्भ में समाप्त होता है। इस अवस्था में किशोर में बहुत तीव्रगति से शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक और सामाजिक परिवर्तन होते हैं, जिनका प्रभाव उसकी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं पर पड़ता है।

किशोरावस्था में विकास कार्य क्या है?

किशोरों के कुछ विकासात्मक कार्य हैं- सहपाठियों के साथ नए व परिपक्व संबंध प्राप्त करना, उपर्युक्त पौरूष, स्त्रित्व सामाजिक भूमिका प्राप्त करना तथा भावनात्मक स्वतंत्रता प्राप्त करना आदि । शारीरिक परिवर्तनों के अतिरिक्त कुछ मनोवैज्ञानिक परिवर्तन जैसे संवेगात्मक विकास, संज्ञानात्मक तथा नैतिक विकास भी प्रारंभ होते हैं ।

किशोरावस्था क्या है in Hindi?

किशोरावस्था मनुष्य के जीवन का बसंतकाल माना गया है। यह काल बारह से उन्नीस वर्ष तक रहता है, परंतु किसी किसी व्यक्ति में यह बाईस वर्ष तक चला जाता है। यह काल भी सभी प्रकार की मानसिक शक्तियों के विकास का समय है। भावों के विकास के साथ साथ बालक की कल्पना का विकास होता है।