कन्नौज का युद्ध कब लड़ा गया था? - kannauj ka yuddh kab lada gaya tha?

चौसा का युद्ध (Battle of Chausa) भारत में मुग़ल सम्राट हुमायूँ और सूरी साम्राज्य के संस्थापक शेर शाह सूरी के बीच हुआ एक युद्ध था। यह 29 जून 1539 को आधुनिक बिहार राज्य के बक्सर ज़िले में स्थित चौसा गाँव के पास लड़ा गया। इसमें शेर शाह सूरी की विजय हुई और हुमायूँ अपनी जान बचाने के लिए रणभूमि से भाग गया।[1][2]

हुमायूँ के सेनापति हिन्दूबेग चाहते थे कि वह गंगा के उत्तरी तट से जौनपुर तक अफगानों को वहाँ से खदेड़ दे, परन्तु हुमायूँ ने अफगानो की गतिविधियों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। शेर खाँ ने एक अफगान को दूत बनाकर भेजा जिससे उसकी सेना की दुर्व्यवस्था की सूचना मिल गई। फलस्वरुप 1539 में उसने अचानक रात में हमला कर दिया। बहुत से मुगल सैनिक गंगा में कूद पड़े और डूब गये या अफगानों के तीरों के शिकार हो गये। हुमायूँ स्वयं डूबते-डूबते बच गया। इस प्रकार [[चौसा जिला बक्सर] का युद्ध में अफगानों को विजयश्री मिली।

इस समय अफगान अमीरों ने शेर खाँ से सम्राट पद स्वीकार करने का प्रस्ताव किया। शेर खाँ ने सर्वप्रथम अपना राज्याअभिषेक कराया। बंगाल के राजाओं के छत्र उसके सिर के ऊपर लाया गया और उसने 'शेरशाह आलम सुल्तान उल आदित्य' की उपाधि धारण की। इसके बाद शेरशाह ने अपने बेटे जलाल खाँ को बंगाल पर अधिकार करने के लिए भेजा जहाँ जहाँगीर कुली की मृत्यु एवं पराजय के बाद खिज्र खाँ बंगाल का हाकिम नियुक्‍त किया गया। बिहार में शुजात खाँ को शासन का भार सौंप दिया और रोहतासगढ़ को सुपुर्द कर दिया, फिर लखनऊ, बनारस, जौनपुर होते हुए और शासन की व्यवस्था करता हुआ कन्नौज पहुँचा।

चौसा के युद्ध में पराजित होने के बाद हुमायूँ कालपी होता हुआ आगरा पहुँचा, वहाँ मुगल परिवार के लोगो ने शेर खाँ को पराजित करने का निर्णय लिया। शेरशाह तेजी से दिल्ली की और बढ़ रहा था फलतः मुगल बिना तैयारी के कन्‍नौज में आकर भिड़ गये। तुरन्त आक्रमण के लिए दोनों में से कोई तैयार नहीं था। शेरशाह ख्वास खाँ के आने की प्रतीक्षा में था। हुमायूँ की सेना हतोत्साहित होने लगी। मुहम्मद सुल्तान मिर्जा और उसका शत्रु रणस्थल से भाग खड़े हुए। कामरान के ३ हजार से अधिक सैनिक भी भाग खड़े हुए फलतः ख्वास खाँ, शेरशाह से मिल गया। शेरशाह ने ५ भागों में सेना को विभक्‍त करके मुगलों पर आक्रमण कर दिया।

जिस रणनीति को अपनाकर पानीपत के प्रथम युद्ध में अफगान की शक्‍ति को समाप्त कर दिया उसी नीति को अपनाकर शेरशाह ने हुमायूँ की शक्‍ति को नष्ट कर दिया। मुगलों की सेना चारों ओर से घिर गयी और पूर्ण पराजय हो गयी। हुमायूँ और उसके सेनापति आगरा भाग गये। इस युद्ध में शेरशाह के साथ ख्वास खाँ, हेबत खाँ, नियाजी खाँ, ईसा खाँ, केन्द्र में स्वयं शेरशाह, पार्श्‍व में बेटे जलाल खाँ और जालू दूसरे पार्श्‍व में राजकुमार आद्रित खाँ, कुत्बु खाँ, बुवेत हुसेन खाँ, जालवानी आदि एवं कोतल सेना थी। दूसरी और हुमायूँ के साथ उसका भाई हिन्दाल व अस्करी तथा हैदर मिर्जा दगलात, यादगार नसरी और कासिम हुसैन सुल्तान थे।

अपनी वेबसाइट पर हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर अनुभव प्रदान कर सकें, वेबसाइट के ट्रैफिक का विश्लेषण कर सकें, कॉन्टेंट व्यक्तिगत तरीके से पेश कर सकें और हमारे पार्टनर्स, जैसे की Google, और सोशल मीडिया साइट्स, जैसे की Facebook, के साथ लक्षित विज्ञापन पेश करने के लिए उपयोग कर सकें। साथ ही, अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।

Agree

अपनी वेबसाइट पर हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर अनुभव प्रदान कर सकें, वेबसाइट के ट्रैफिक का विश्लेषण कर सकें, कॉन्टेंट व्यक्तिगत तरीके से पेश कर सकें और हमारे पार्टनर्स, जैसे की Google, और सोशल मीडिया साइट्स, जैसे की Facebook, के साथ लक्षित विज्ञापन पेश करने के लिए उपयोग कर सकें। साथ ही, अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें।

Agree

कहानी भारत की इस अंक में हम आपको कन्नौज के युद्ध के बारे में बताने वाले हैं। कन्नौज के युद्ध को बिलग्राम का युद्ध भी कहा जाता है, जो मुगल सम्राट हुमायूं और अफगान शासक शेरशाह सूरी के बीच लड़ा गया था। 1540 ईस्वी में हुए इस युद्ध में क्या कुछ हुआ, किस तरह से मुगलों के सामने पठानों ने अपनी बाजी चली और मुगलिया सल्तनत की मजबूत दीवार पर अफ़गानों ने अपनी एक छाप छोड़ दी, उसके बारे में इस अंक में हम चर्चा करेंगे। हम आपको बताएंगे कि क्या है कन्नौज की लड़ाई की कहानी।

मुख्य बिन्दु-

       # युद्ध : हुमायूँ बनाम शेरशाह सूरी

       # वर्ष : मई 1540

       # परिणाम : हुमायूँ बुरी तरह से पराजित, अफगान विजयी

मुगल बादशाह बाबर ने एक के बाद एक कई लड़ाइयां जीतकर भारत में एक मजबूत मुगल सल्तनत की नींव रखी थी। बाबर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र हुमायूं गद्दी पर बैठा। हुमायूं एक असफल शासक था और वह ज्यादातर समय भोग विलास में डूबा रहता था। इसका फायदा ना सिर्फ दुश्मन बल्कि उनके खुद के राज्य के महत्वाकांक्षी लोग उठाया करते थे या उठाना चाहते थे।

चौसा के युद्ध में अफगान शासक शेरशाह सूरी से बुरी तरह से हारने के बाद जैसे तैसे हुमायूं अपनी जान बचाकर भाग खड़ा होता है। उसके परिवार के कई महत्वपूर्ण लोग मारे जाते हैं। उसकी सेना नष्ट कर दी जाती है। दिल्ली की गद्दी पर शेरशाह सूरी की पकड़ मजबूत बनती है। लेकिन हार से बौखलाए हुमायूं को यह बात तनिक भी बर्दाश्त नहीं होता। युद्ध करने को उतावला हुआ हुमायूं फिर से शेरशाह सूरी से युद्ध करने के लिए आ धमकता है। हालांकि हुमायूँ को यह बात अच्छी तरह से मालूम थी कि शेरशाह की सेना मुगल सेना के मुकाबले बहुत ज्यादा मजबूत और बड़ी है। इसलिए इस युद्ध को जीतने के लिए हुमायूं ने अपने भाइयों से मदद मांगी। कन्नौज की लड़ाई से पहले हुमायूं अपने भाइयों को मिलाने का प्रयास करता है। लेकिन जैसा कि आपको बताया गया खुद उसके राज्य के महत्वाकांक्षी लोग भी हुमायूं की हारता देखना चाहते थे। इसलिए बजाय हुमायूं की मदद करने के उसके भाई उल्टा उसके युद्ध की रणनीति में रुकावट डालने लगे।

शेरशाह सूरी को इसी मौके का इंतजार था। सही समय देखकर अचानक शेरशाह ने हुमायूं पर हमला बोल दिया। गंगा के दोनों किनारे हुमायूं और शेरशाह की सेना लगभग 1 साल तक युद्ध की तैयारियों का मंथन करती रही। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि शेरशाह एक संगठित सेना के साथ युद्ध को तैयार था, जबकि हुमायूं की सेना दिन प्रतिदिन की खंडित हो रही थी और हुमायूं का साथ छोड़ कर जा रही थी। चौसा की लड़ाई बुरी तरीके से हारने के बाद हुमायूं की सेना को भी अपने शासक पर ज्यादा भरोसा नहीं रहा था। शेरशाह की शक्ति के सामने उन्हें अपनी हार प्रत्यक्ष दिखाई दे रही थी। इसलिए हुमायूं की सेना लगातार उसका साथ छोड़ रही थी। अपनी सेना को टूटते हुए देख कर हुमायूँ ने जल्द से जल्द ही युद्ध करने का फैसला किया था, ताकि कहीं बची हुई सेना भी उसे छोड़कर ना चली जाए।

युद्ध प्रारंभ करना हुमायूँ की मजबूरी थी। उसने आनन-फानन में युद्ध की घोषणा कर दी। गंगा किनारे हुए कन्नौज के युद्ध में शेरशाह सूरी की सेना ने मुगल सेना को बेहद बुरी तरीके से और आसानी से हराया। मई 1540 को हुमायूं की सेना बुरी तरीके से पराजित हुई। जान बचाकर सेना भाग खड़ी हुई। नदी पार करने के दौरान कई सैनिक मारे गए और कई गंगा नदी में डूब गए। अफगान की ताकत दिल्ली तक पहुंच गई और हुमायूं बिना राज्य के राजा बना रहा।

दिल्ली पर शेरशाह सूरी का अधिकार हुआ। हुमायूं जान बचाकर भाग खड़ा हुआ। इस तरह से बाबर की बसाई गई मुगलिया सल्तनत पर कब्जा करते हुए उसके साम्राज्य को अफ़गानों ने अंशतः ही सही पर अपने कदमों तले रौंद दिया और अगले कुछ वर्षों तक मुगल सल्तनत अफगानों के अधीन रहा। इस तरह से भारत में अफगान साम्राज्य का दूसरा चरण प्रारंभ हुआ, जिसे फिर लोदी वंश के नाम से जाना जाता है। अकबर के सत्ता संभालने के बाद फिर से मुगल सल्तनत की नींव पड़ी और मुगल साम्राज्य आगे बढ़ा, इसके बारे में हम आगे चर्चा करेंगे।

कन्नौज का युद्ध कब हुआ था और किसके बीच हुआ था?

Bilgram War 1540: मुगल बादशाह हुमायूं और सूर साम्राज्य के संस्थापक शेरशाह के मध्य कन्नौज में हुआ भीषण युद्ध इतिहास में बिलग्राम युद्ध के नाम से दर्ज है। यह युद्ध वर्ष 1540 ई. में लड़ा गया था। इस युद्ध में शेरशाह सूरी ने हुमायूं को बुरी तरह से पराजित किया और शेरशाह ने हुमायूं को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया।

कन्नौज का युद्ध कौन जीता?

Detailed Solution. शेरशाह ने 17 मई 1540 को कन्नौज का युद्ध जीता। शेरशाह और हुमायूँ के बीच युद्ध हुआ। शेरशाह की जीत के बाद, दिल्ली और आगरा उसके कब्जे में थे।

1540 में कौन सा युद्ध हुआ था?

बिलग्राम का युद्ध हुमायूं और सूर साम्राज्य के संस्थापक शेरशाह के बीच हुआ था. यह युद्ध 1540 ई. में लड़ा गया. बिलग्राम का युद्ध जीतने के बाद शेरशाह ने हुमायूं को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया था.

कन्नौज में हुमायूं से युद्ध कब हुआ था?

Detailed Solution. सही उत्तर 1540 है। कन्नौज का युद्ध 1540 में शेरशाह सूरी और हुमायूँ के बीच लड़ा गया था