झरने किसका गौरव गान कर रहे हैं और कैसे - jharane kisaka gaurav gaan kar rahe hain aur kaise

Parvat Pradesh Mein Pavas CBSE Class 10 Hindi Chapter 5 Summary, Explanation and NCERT Solutions (Question Answers) from Sparsh Book

Parvat Pradesh Mein Pavas Class 10 – पर्वत प्रदेश में पावस CBSE Class 10 Hindi Lesson summary with a detailed explanation of the lesson ‘Parvat Pradesh Mein Pavas‘ by Sumitranandan Pan along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with a summary and all the exercises, Questions and Answers (Solutions) given at the back of the lesson.

 

Parvat Pradesh Mein Paavas Class 10 Hindi Chapter 5

 

झरने किसका गौरव गान कर रहे हैं और कैसे - jharane kisaka gaurav gaan kar rahe hain aur kaise
झरने किसका गौरव गान कर रहे हैं और कैसे - jharane kisaka gaurav gaan kar rahe hain aur kaise

 

  • See Video Explanation of Hindi Chapter 5 Parvat Pradesh Mein Paavas
  • पर्वत प्रदेश में पावस पाठ प्रवेश
  • पर्वत प्रदेश में पावस पाठ की व्याख्या
  • पर्वत प्रदेश में पावस पाठ सार
  • पर्वत प्रदेश में पावस Solutions to Questions

 

कवि परिचय

 

कवि – सुमित्रानंदन पंत
जन्म -20 मई 1900 ( उत्तराखंड – कौसानी अलमोड़ा )
मृत्यु – 28 दिसम्बर 1977

 

Parvat Pradesh Mein Paavas Class 10 Video Explanation

 

 
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पर्वत प्रदेश में पावस पाठ प्रदेश (Introduction)

 

झरने किसका गौरव गान कर रहे हैं और कैसे - jharane kisaka gaurav gaan kar rahe hain aur kaise
झरने किसका गौरव गान कर रहे हैं और कैसे - jharane kisaka gaurav gaan kar rahe hain aur kaise

भला ऐसा भी कोई इंसान हो सकता है जो पहाड़ों पर ना जाना चाहता हो। जिन लोगों को दूर हिमालय पर जाने का मौका नहीं मिल पाता  वो लोग अपने आसपास के पहाड़ी इलाकों में जाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। जब आप पहाड़ों को याद कर रहें हों और ऐसे में किसी कवि की कविता अगर कक्षा में बैठे बैठे ही आपको ऐसा एहसास करवा दे की आप अभी अभी पहाड़ों से घूम कर आ रहे हों तो बात ही  अलग होती है।

प्रस्तुत कविता भी इसी तरह के रोमांच और प्रकृति के सुन्दर वर्णन से भरी है जिससे आपकी आंखों और मन दोनों को आनंद आएगा। यही नहीं सुमित्रानंदन पंत की बहुत सारी कविताओं को पढ़ते हुए ऐसा लगता है जैसे आपके चारों ओर की दीवारे कहीं गायब हो गई हों और आप किसी सुन्दर पर्वतीय जगह पर पहुँच गए हों। जहाँ दूर दूर तक पहाड़ ही पहाड़ हों और झरने बह रहे हों और आप बस वहीं रहना चाह रहे हों।

महाप्राण निराला जी ने भी पंत जी के बारे में कहा था कि उनकी सबसे बड़ी प्रतिभा यह है कि वे अपनी कृतियों को अधिक से अधिक सुन्दर बना देते हैं जिसे पढ़ कर या सुन कर बहुत आनंद आता है।

 
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पर्वत प्रदेश में पावस पाठ सार (Summary)

 

झरने किसका गौरव गान कर रहे हैं और कैसे - jharane kisaka gaurav gaan kar rahe hain aur kaise
झरने किसका गौरव गान कर रहे हैं और कैसे - jharane kisaka gaurav gaan kar rahe hain aur kaise

कवि ने इस कविता में प्रकृति का ऐसा वर्णन किया है कि लग रहा है कि प्रकृति सजीव हो उठी है। कवि कहता है कि वर्षा ऋतु में प्रकृति का रूप हर पल बदल  रहा है कभी वर्षा होती है तो कभी धूप निकल आती है। पर्वतों पर उगे हजारों फूल ऐसे लग रहे है जैसे पर्वतों की आँखे हो और वो इन आँखों के सहारे अपने आपको अपने चरणों ने फैले दर्पण रूपी तालाब में देख रहे हों। पर्वतो से गिरते हुए झरने कल कल की मधुर आवाज कर रहे हैं जो नस नस को प्रसन्नता से भर रहे हैं। पर्वतों पर उगे हुए पेड़ शांत आकाश को ऐसे देख रहे हैं जैसे वो उसे छूना चाह रहे हों।  बारिश के बाद मौसम ऐसा हो गया है कि घनी धुंध के कारण लग रहा है मानो पेड़ कही उड़ गए हों अर्थात गायब हो गए हों,चारों ओर धुँआ होने के कारण लग रहा है कि तालाब में आग लग गई है। ऐसा लग रहा है कि ऐसे मौसम में इंद्र भी अपना बादल रूपी विमान ले कर इधर उधर जादू का खेल दिखता हुआ घूम रहा है।

 
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पर्वत प्रदेश में पावस पाठ की व्याख्या

 

पावस ऋतु थी ,पर्वत प्रवेश ,
पल पल परिवर्तित प्रकृति -वेश।

पावस ऋतु – वर्षा ऋतु

परिवर्तित – बदलना

प्रकृति -वेश — प्रकृति का रूप

झरने किसका गौरव गान कर रहे हैं और कैसे - jharane kisaka gaurav gaan kar rahe hain aur kaise
झरने किसका गौरव गान कर रहे हैं और कैसे - jharane kisaka gaurav gaan kar rahe hain aur kaise

प्रसंग -: प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘स्पर्श – भाग 2’ से लिया गया है। इसके कवि ‘सुमित्रानंदन पंत जी ‘हैं। इसमें कवि ने वर्षा ऋतु का सुंदर वर्णन किया है।

व्याख्या -: कवि कहता है कि पर्वतीय क्षेत्र में वर्षा ऋतु का प्रवेश हो गया है। जिसकी वजह से प्रकृति के रूप में बार बार बदलाव आ रहा है अर्थात कभी बारिश होती है तो कभी धूप निकल आती है।

उत्तर: इन पंक्तियों में कवि ने तेज बारिश का चित्रण किया है। बादलों की तुलना उसने किसी विमान से की है। ऐसा लगता है कि उन विमानों में बैठकर इंद्र भगवान कोई जादू कर रहे हों।

प्रश्न 3: गिरिवर के उर से उठ उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

उत्तर: पहाड़ के ऊपर और आस पास पेड़ भी होते हैं जो उस दृष्टिपटल की सुंदरता को बढ़ाते हैं। पर्वत के हृदय से पेड़ उठकर खड़े हुए हैं और शांत आकाश को अपलक और अचल होकर किसी गहरी चिंता में मग्न होकर बड़ी महात्वाकांक्षा से देख रहे हैं। ये हमें ऊँचा, और ऊँचा उठने की प्रेरणा दे रहे हैं।

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 5 पर्वत प्रदेश में पावस.

प्रश्न-अभ्यास

(पाठ्यपुस्तक से)

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
पावस ऋतु में प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन आते हैं? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेश में प्रकृति प्रतिपल नया वेश ग्रहण करती दिखाई देती है। इस ऋतु में प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन आते हैं- विशाल आकार वाला पर्वत तालाब के स्वच्छ जल रूपी दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखता है। — पर्वत पर असंख्य फूल खिल जाते हैं। – झरनों का पानी मोती की लड़ियों के समान सुशोभित होता है। – ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर एकटक देखते हैं। – बादलों के छा जाने से पर्वत अदृश्य हो जाता है। – ताल से उठते हुए धुएँ को देखकर लगता है, मानो आग लग गई हो। – आकाश में तेजी से इधर-उधर घूमते हुए बादल, अत्यंत आकर्षक लगते हैं।

प्रश्न 2.
‘मेखलाकार’ शब्द का क्या अर्थ है? कवि ने इस शब्द का प्रयोग यहाँ क्यों किया है? ।
उत्तर
‘मेखलाकार’ शब्द ‘मेखला + आकार’ से मिलकर बना है। मेखला अर्थात् करधनी नामक एक आभूषण जो स्त्रियों द्वारा कमर में पहनी जाती है। पर्वतों का ढलान देखकर ऐसा लगता है जैसे पृथ्वी ने इस मेखला से स्वयं को आवृत्त कर रखा हो।
यहाँ इस शब्द का प्रयोग कवि ने पहाड़ की विशालता बताने के लिए किया है जो पृथ्वी को घेरे हुए हैं।

प्रश्न 3.
‘सहग्न दृग-सुमन’ से क्या तात्पर्य है? कवि ने इस पद का प्रयोग किसके लिए किया होगा?
उत्तर
‘सहस्र दृग-सुमन’ का अर्थ है-हजारों पुष्प रूपी आँखें । कवि ने इसका प्रयोग पर्वत पर खिले फूलों के लिए किया है। वर्षा काल में पर्वतीय भाग में हजारों की संख्या में पुष्प खिले रहते हैं। कवि ने इन पुष्पों में पर्वत की आँखों की कल्पना की है। पर्वत अपने नीचे फैले तालाब रूपी दर्पण में फूल रूपी नेत्रों के माध्यम से अपने सौंदर्य को निहार रहा है। कवि इसके
माध्यम से पर्वत का मानवीकरण कर फूलों के सौंदर्य को चित्रित करना चाहता होगा।

प्रश्न 4.
कवि ने तालाब की समानता किसके साथ दिखाई है और क्यों?
उत्तर
कवि ने तालाब की समानता दर्पण के समान दिखाई है। इसका कारण यह है कि पर्वतीय प्रदेश में पर्वत के पास स्थित जल से परिपूर्ण तालाब का जल अत्यंत स्वच्छ है। इसी जल में पहाड़ का प्रतिबिंब बन रहा है जिसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। मानो तालाब दर्पण हो। पहाड़ भी इस तालाब रूपी दर्पण में अपना प्रतिबिंब निहारकर आत्ममुग्ध हो रहा है।

प्रश्न 5.
पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर क्यों देख रहे थे और वे किस बात को प्रतिबिंबित करते हैं?
उत्तर
पर्वत के हृदय से उठकर ऊँचे-ऊँचे वृक्ष आकाश की ओर देखकर उसे छूने की कोशिश कर रहे हैं मानो वे अपने किसी उच्च आकांक्षा को पाने के लिए उसे देख रहे हों। वे बिलकुल मौन रहकर स्थिर रहकर भी संदेश देते प्रतीत होते हैं कि उद्देश्य को पाने के लिए अपनी दृष्टि स्थिर करनी चाहिए और बिना किसी संदेह के चुपचाप मौन रहकर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहिए।

प्रश्न 6.
शाल के वृक्ष भयभीत होकर धरती में क्यों फँस गए?
उत्तर
पर्वतीय प्रदेश में जब वर्षा होती है तो बादल काफ़ी नीचे आ जाते हैं। कभी-कभी तो लगता है कि हम बादलों के बीच हो गए हैं। ऐसे में जब अचानक वर्षा होने लगती है बादल और कोहरा इतना घनीभूत हो जाता है कि आसपास का दृश्य दिखना बंद-सा हो जाता है। ऐसे में शाल के वृक्ष भी बादलों में बँक से जाते हैं। ऐसा लगता है कि इस मूसलाधार वर्षा से ही डरकर शाल के पेड़ धरती में धंस गए हैं।

प्रश्न 7.
झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है?
उत्तर
झरने पर्वत के गौरव का गान कर रहे हैं। कवि ने बहते हुए झरनों की तुलना मोतियों की लड़ियों से की है। पहाड़ों की छाती | पर बहने वाले झाग जैसे जल वाले झरने ऐसे मनोरम लगते हैं मानो वे झर-झर की ध्वनि करते हुए पर्वत की महानता का गुण गान कर रहे हैं। ये उत्साह और उमंग से ओत-प्रोत हो जाते हैं।

(ख) निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए

प्रश्न 1.
ये टूट पड़ा भू पर अंबर।
उत्तर
मूसलाधार वर्षा होने लगी है। बादलों ने सारे पर्वत को ढक लिया है। पर्वत अब बिलकुल दिखाई नहीं दे रहे। ऐसी लगता
है मानो आकाश ही टूटकर धरती पर आ गिरा हो। पृथ्वी और आकाश एक हो गए हैं। अब बस झरने का शोर ही शेष
रह गया है।

प्रश्न 2.
-यों जलद:यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
उत्तर
पावस ऋतु में पहाड़ी प्रदेश में प्रकृति पल-पल अपना रूप बदलती प्रतीत होती है। बादलों की सघनता के कारण पेड़-पौधों, पहाड़ झरने इससे आच्छादित होकर अदृश्य से हो जाते हैं। तालाब के पानी से धुआँ उठने लगता है। शाल के पेड़ भयभीत होकर धरती में धंसे नजर आते हैं। बादलों के साथ पहाड़ भी उड़ते प्रतीत होते हैं। इधर वर्षा के बीच बादल उड़कर इधर-उधर घूमते फिरते हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि इंद्र इन बादलों के विमान पर बैठकर इंद्रजाल अर्थात् अपनी माया की लीला दिखा रहा है।

प्रश्न 3.
गिरिवर के उर से उठ-उठकर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर है
झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
उत्तर
वृक्ष भी पर्वत के हृदय से उठ-उठकर ऊँची आकांक्षाओं के समान शांत आकाश की ओर देख रहे हैं। वे आकाश की ओर स्थिर दृष्टि से देखते हुए यह प्रतिबिंबित करते हैं कि वे आकाश की ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं। इसमें उनकी मानवीय भावनाओं को स्पष्ट किया गया है कि मनुष्य भी सदा आगे बढ़ने का भाव अपने मन में लिए रहता है। वे कुछ चिंतित
भी दिखाई पड़ते हैं।

कविता का सौंदर्य

प्रश्न 1.
इस कविता में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किस प्रकार किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कवि सुमित्रानंदन पंत ने कविता में कई स्थानों पर मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया है। पर्वत द्वारा अपने फूल रूपी
नेत्रों के माध्यम से अपना प्रतिबिंब निहारते हुए गौरव अनुभव करना, झरनों द्वारा पर्वत का यशोगान, पेड़ों द्वारा उच्च आकांक्षा से आकाश की ओर देखना, बादल का पंख फड़फड़ाना, इंद्र द्वारा बादल रूपी यान पर बैठकर जादुई खेल दिखाना,
सभी में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग है, जिन्हें कवि ने अत्यंत सुंदर ढंग से प्रयोग किया है।

प्रश्न 2.
आपकी दृष्टि में इस कविता का सौंदर्य इनमें से किस पर निर्भर करता है
(क) अनेक शब्दों की आवृत्ति पर।
(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर।
(ग) कविता की संगीतात्मकता पर।
उत्तर
कविता का सौंदर्य किसी एक कारण पर निर्भर नहीं है। वे तीनों कारण ही कविता को सुंदर बनाने में सहायक रहे हैं
(क) अनेक शब्दों की आवृत्ति पर
उदाहरण-

  1. पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश ।
  2. गिरि का गौरव गाकर झर-झर।
  3. मद में नस-नस उत्तेजित कर।
  4. गिरिवर के उर से उठ-उठ कर।
    शब्दों की आवृत्ति से कविता में गति व तीव्रता आई है।

(ख) शब्दों की चित्रमयी भाषा पर

  1. मेखलाकार पर्वत अपांर।
  2. उड़ गया, अचानक लो, भूधर।
  3. फड़का अपार पारद के पर।
  4. है टूट पड़ा भू पर अंबर।।
    इन चित्रात्मक शब्दों ने कविता में सौंदर्य उत्पन्न किया है।

(ग) कविता की संगीतात्मकता पर
-कविता में संगीत, लय का भी ध्यान रखा गया है।

प्रश्न 3.
कवि ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग करते हुए पावस ऋतु का सजीव चित्र अंकित किया है। ऐसे स्थलों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर
इस प्रकार के स्थल निम्नलिखित हैं-

-मेखलाकार पर्वत अपार ।
अपने सहग्न दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
-जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण-सा फैला है विशाल!
मोती की लड़ियों-से सुंदर
झरते हैं झाग भरे निर्झर
-गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।

Hope given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Sparsh Chapter 5 are helpful to complete your homework.

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1 झरने किसका गौरव का गान कर रहे हैं और कैसे लग रहे हैं?

Solution : झरने पर्वतों के गौरव का गान कर रहे हैं

झरने किसका गौरव गा रहे है?

Solution : झरने पर्वतों की गौरव गाथा का गान कर रहे हैं।

झरने क्या गाते हैं और किस तरह झरते हैं?

1 Answer. पर्वतों की ऊँची चोटियों से 'सर-सर करते बहते झरने देखकर ऐसा प्रतीत होता है, मानों वे पर्वतों की उच्चता व महानता की गौरव-गाथा गा रहे हों। जहाँ तक बहते हुए झरने की तुलना का संबंध है तो बहते हुए झरने की तुलना मोती रूपी लड़ियों से की गई है।

काव्यांश में कौन किसका गौरव गान कर रहे हैं *?

प्रश्न 7: झरने किसके गौरव का गान कर रहे हैं? बहते हुए झरने की तुलना किससे की गई है? उत्तर: झरने पहाड़ के गौरव का गान कर रहे हैं। कवि ने झरनों की तुलना झरते हुए मोतियों से की है।