जाति और जनजाति में अंतर स्पष्ट कीजिए - jaati aur janajaati mein antar spasht keejie

जनजाति और जाति में अंतर 

जाति और जनजाति के मध्य निम्नलिखित अंतर हैं--

1. जनजाति का विकास एक निश्चित भू-भाग भाषा तथा संस्कृति के आधार पर होता है, जबकि जाति एक मानव निर्मित व्यवस्था है एवं मुख्यतः जन्म के आधार पर विकसित होती हैं। 

2. जनजातियों में परस्पर ऊंच-नीच की भावना या एक ही जनजाति मे जाति जैसी श्रेणियों का अभाव पाया जाता हैं, जबकि जाति प्रथा ऊंच-नीच पर आधारित हैं। 

3. अधिकांश जातियों का परंपरागत व्यवसाय होता हैं, जबकि एक ही जनजाति के लोग पृथक-पृथक व्यवसाय करते है। जनजातियों में आर्थिक स्वतंत्रता ज्यादा मात्रा में पायी जाती है। आमतौर पर एक जनजाति एक ही आर्थिक क्रिया में लगी रहती है। आर्थिक मामलों में जनजातियाँ आत्मनिर्भर है। जातियाँ आत्मनिर्भर नहीं होती हैं।

4. जनजाति में खाने-पीने तथा सहवास संबंधी कठोर निषेधों का अभाव पाया जाता हैं, जबकि प्रत्येक जाति अपने सदस्यों पर अन्य जाति के सदस्यों के साथ तथा खाने-पीने संबंधी कुछ न कुछ निषेध लगाती है। जनजातियों का एक प्रारंभिक राजनीतिक संगठन होता है एवं यह जनजातीय पंचायत द्वारा संचालित होता है, जबकि सिर्फ कुछ ही जातियों में ही जाति पंचायतों का उल्लेख मिलता हैं, लेकिन अधिकतर इनका पृथक राजनीतिक संगठन नही होता। इतना जरूर है कि कुछ राजनीतिक दल जातीय आधार पर गठित होते रहते हैं।

6. हर जनजाति स्वायत्त होती है अर्थात् वह स्वयं में पूर्ण तथा स्वतंत्र होती है। जाति एक बड़े समुदाय (हिन्दू समाज व संस्कृति) का अंग होती हैं। इसी कारण जाति को 'अंग समाज' या 'अंग संस्कृति' कहा जाता हैं।

7. मैक्स वेबर लिखते हैं कि जब कोई भारतीय जनजाति अपने प्रादेशिक महत्व को खो देती है तो वह भारतीय जाति का रूप धारण कर लेती है। इस तरह जनजाति एक स्थानीय समूह हैं जबकि जाति एक सामाजिक समूह हैं। 

8. मैक्स वेबर के अनुसार जाति में सब व्यक्तियों का वर्णन एक ही होता है। इसमें कोई विषमता या भेद नहीं होता लेकिन जनजाति मे पद तथा स्थिति के कई भेद पाये जाते हैं। 

मैक्स वेबर का यह मत सभी जातियों पर लागू नहीं होता। बहुत सी जातियों में भी पद तथा स्थिति का अंतर होता हैं। 

9. डाॅ. डी. एन. मजूमदार के अनुसार जनजाति हिन्दू कर्मकांड का अनुसरण तथा देवी-देवताओं की पूजा करते हुए भी उन्हें विदेशी तथा विधर्मी प्रथाएं समझती हैं। लेकिन जाति के ये धर्म आवश्यक अंग माने जाते हैं। मध्य भारत की हिन्दू तथा क्षत्रिय कहलाने वाली जनजातियाँ हिन्दू देवताओं की उपेक्षा अपने 'बोंगा' से अधिक परिचित हैं।

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जनजातियों के जाति में परिवर्तित होने की प्रक्रिया 

डाॅ. डी. एन. मजूमदार का कथन है कि प्रारंभिक काल से ही जनजाति से जाति के रूप में शांत परिवर्तन होता रहा है। यह परिवर्तन कई तरीकों से हुआ है तथा ऐसा विश्वास किया जाता है कि आज की अधिकतर नीची अथवा बाह्य जातियाँ जनजातियाँ ही थीं। वास्तव में हिन्दू व्यवस्था के प्रारंभिक संदर्भों में तीन आर्य जातियों का ही उल्लेख है तथा एक चौथी एवं पाँचवीं जाति शूद्र तथा चाण्डाल, काली चमड़ी और चिपकी हुई नाक वाले जनजातीय लोगों से ही बनी हैं। रिजले ने यह बताया है कि एक जनजाति निम्नलिखित प्रक्रियाओं द्वारा जाति का रूप धारण करती हैं-- 

1. जनजाति किसी प्रदेश को जीतने के बाद अपने क्षत्रिय या राजपूत होने का दावा करती हैं तथा ब्राह्मण पुरोहित उनको सूर्य एवं चंद्रवंश से जोड़ने वाली वंशावलियाँ गढ़ लेते हैं। 

2. कुछ आदिवासी किसी धार्मिक संप्रदाय को स्वीकार कर लेते हैं। 

3. समूची जनजाति कोई नया नाम धारण करके हिन्दू समाज में प्रविष्ट हो जाती हैं। 

4. अपने नाम का परित्याग न करने पर भी कोई जनजाति हिन्दू जाति बन जाती हैं। 

5. डाॅ. मजूमदार ने पाँचवीं प्रक्रिया का जनजाति द्वारा किसी विशेष जाति का गोत्र तथा नाम ग्रहण कर हिन्दू समाज में घुलमिल जाना बताया हैं। 

जनजाति जाति बन जाने पर हिन्दू रिवाजों-यज्ञोपवीत पहनना, विधवा विवाह न करना, अस्पृश्यता आदि को ग्रहण कर लेती हैं।

यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

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जाति और जनजाति के बीच अंतर | Difference between Caste and Tribe in Hindi.

इस प्रकार वर्ण-व्यवस्था पर आधारित होने के कारण जाति भी समस्त भारतवर्ष में पाई जाती है, किन्तु फिर भी वर्ण-व्यवस्था के विरुद्ध उसमें प्रादेशिक अन्तर भी देखे जा सकते हैं उदाहरण के लिये कुछ जातियाँ देश के कुछ विशेष भागों में पाई जाती हैं- जैसे- भड़ भूजा, कहार, बारोट अथवा चारण इत्यादि । इसके अतिरिक्त कुछ जातियों की सामाजिक स्थिति प्रत्येक प्रदेश में अलग-अलग है ।

वास्तव में अनेक जातियाँ प्रादेशिक व्यवस्था के रूप में काम करती हैं । हरिजन जाति व्यवस्था के ही अनिवार्य अंग है । वर्ण आदर्श में प्रत्येक वर्ण का स्थान निश्चित है किन्तु व्यवहार में जातियों का स्थान निश्चित नहीं है । भारत में अंग्रेजी शासन से पहले भी राजाओं के सामने जाति की स्थिति-विषयक झगड़े आते रहते थे और वे नई जातियों के पद निर्धारित करते थे ।

इस प्रकार जबकि वर्ण-व्यवस्था में प्रत्येक वर्ण का स्थान अटल है जाति-व्यवस्था में वह बदलता रहता है, अन्त में जाति का वर्ण आदर्श इस अर्थ में सचमुच एक सोपान है कि उसमें पुरोहित वर्ण सबसे ऊपर होता है और पद निर्धारण की कसौटी धार्मिक आधार से प्राप्त होती है ।

प्राचीन वर्ण-व्यवस्था बनाने वाले लेखकों ने प्रथम तीन वर्णों के अधिकार और कर्त्तव्य निश्चित किए जो उपनयन संस्कार के कारण द्विज कहलाते थे । इस प्रकार वर्ण-धर्म । इसमें ब्राह्मणों को र्स्वोच्च स्थान प्राप्त था । अंग्रेजी राज्यकाल में भारत में विभिन्न परिस्थितियों के फलस्वरूप वर्ण आदर्श अधिक लोकप्रिय हो गया और विभिन्न जातियाँ संस्कृतीकरण के द्वारा अपनी जाति के सुधार करने के लिए प्रयत्नशील दिखलाई पड़ती थीं ।

जाति की परिभाषा क्या है?

जाति (अंग्रेज़ी: species, स्पीशीज़) जीवों के जीववैज्ञानिक वर्गीकरण में सबसे बुनियादी और निचली श्रेणी होती है। जीववैज्ञानिक दृष्टिकोण से ऐसे जीवों के समूह को एक जाति बुलाया जाता है जो एक दुसरे के साथ सन्तान उत्पन्न करने की क्षमता रखते हो और जिनकी सन्तान स्वयं आगे सन्तान जनने की क्षमता रखती हो।

जनजाति को क्या बोलते हैं?

जनजाति (अंग्रेजी: Tribe) वह सामाजिक समुदाय है जो राज्य के विकास के पूर्व अस्तित्व में था या जो अब भी राज्य के बाहर हैंजनजाति वास्‍तव में भारत के आदिवासियों के लिए इस्‍तेमाल होने वाला एक वैधानिक पद है। भारत के संविधान में अनुसूचित जनजाति पद का प्रयोग हुआ है और इनके लिए विशेष प्रावधान लागू किये गए हैं

जनजाति से आप क्या समझते हैं इसकी विशेषता बताइए?

रवीन्द्र नाथ मुकर्जी के अनुसार- “एक जनजाति वह क्षेत्रीय समूह है, जो भू-भाग, भाषा, सामाजिक नियम और आर्थिक कार्य आदि विषयों में एक समानता के सूत्र में बंधा होता है।'' उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि “जनजाति एक ऐसा सामाजिक समूह है, जो एक निश्चित क्षेत्र में, एक निश्चित भाषा, विशिष्ट संस्कृति और सामाजिक संगठन रखता है।”