जरासंध की कहानी| जरासंध वध (Jarasandh Vadh) ka Itihaas – Historyमानो या न मानो परन्तु महाभारत कहानी है चंद्रवंशी रवानी राजाओ और क्षत्रियो की। जरासंध, चंद्रवंशी और महाभारत इतिहास के पन्नो पर आपको इर्द गिर्द घूमता हुआ नजर आएगा. बात है पुराणी परन्तु है हमारी | हमारी संस्कृति , हमारी पहचान | Show
यहाँ तक की कौरव और पांडव भी चंद्रवंशी थे| प्राचीन भारतीय महाकाव्य महाभारत में चंद्रवंशी राजाओं की वंशावली मिलती है। जरासंध मगध (वर्तमान बिहार) का राजा था। वह अन्य राजाओं को हराकर अपने पहाड़ी किले में बंदी बना लेता था। जरासंध बहुत ही क्रूर था, वह बंदी राजाओं का वध कर चक्रवर्ती राजा बनना चाहता था। भीम ने 13 दिन तक कुश्ती लड़ने के बाद जरासंध को पराजित कर उसका वध किया था। चंद्रवंशी खुद में एक इतिहास है जिसे मिटाने में किनते राजाओ ने कोशिश की मगर अंतः बिफलता ही प्राप्त हुए| चन्द्रवंश का हरेक चंद्रवंशी अपने आप में महान और शूरवीर होता है, एक महँ योद्धा होता है | सत्य के लिए जान दे भी सकता है जान ले भी सकता है | चंद्रवंशी का इतिहास रहा है वो कभी रणभूमि छोर कर नहीं भागे और इतिहास ये भी कहता – भगवन कृष्णा चनद्रवंशी राजा जरासंध (Raja Jarasandh) के दर से द्वारका भाग कर रहने लगे थे | ) आप Deepa Chandravanshi को Google पर सर्च करे ज्यादा जानकारी के लिए। Deepa Chandravanshi.Deepa Chandravanshi Facebook https://www.facebook.com/MrsChandravansh Nishant Chandravanshi Facebook https://www.facebook.com/DigiManakoo Mahabharat mein Jarasandh kaun tha? महाभारत में जरासंध कौन था?प्राचीन भारतीय महाकाव्य महाभारत व पुराणों से मालूम चलता है कि महराज जरासंध मगध का एक बहुत शक्तिशाली सेनापति थे और बाद में वो एक महान मगध सम्राट बने जिसको हराना नामुक़ीम था| वो मगध के बारहद्रथ वंश के संस्थापक राजा बृहद्रथ का वंशज था। मगध महाराज जरासंध मथुरा के राजा कंस का ससुर एवं परम मित्र थे और वो अपने दोनों पुत्रियों आसित व प्रापित का विवाह राजा कंस से करवाया था | मगध महाराज जरासंध (Raja Jarasandh) भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त थे और कितनो सालो तक वो शिव की भक्ति में लीन रहे| Raja Jarasandh ka Itihas -राजा जरासंध का इतिहासबृहद्रथ मगधदेश के राजा थे और उनकी दो पत्नियां थीं, लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं थी और वो इसी कारन से दुखी रहा करते थे । एक दिन संतान की चाह में राजा बृहद्रथ महात्मा चण्डकौशिक के पास गए, उनकी आराधना किया, उनकी भक्ति में लीन रहे और सेवा कर उन्हें संतुष्ट किया। भक्ति और आराधना देख कर प्रसन्न हुआ | Raja Jarasandh ka Itihas – जरासंध का जन्म और जरासंध किसका पुत्र था?महात्मा चण्डकौशिक ने उन्हें एक फल दिया और कहा कि ये फल अपनी पत्नी को खिला देना, इससे तुम्हें संतान की प्राप्ति बहुत जल्द होगी गी।राजा बृहद्रथ की दो बहुत ही सुन्दर पत्नियां थीं। महराजा ने वह फल काटकर दो टुकड़ो में अपनी दोनों पत्नियों को खिला दिया। थोड़ी समय गुजरने पर दोनों रानियों के गर्भ से शिशु के शरीर का एक-एक टुकड़ा पैदा किया । रानियों बिचित्र घटना देख कर घबरा गये और रानियों ने घबराकर शिशु के दोनों जीवित टुकड़ों को बाहर जार कर कही दूर फेंक दिया। उसी समय वहां से एक जंगली राक्षसी गुजरी और उसका नाम जरा था। जब उसने जीवित शिशु के दो टुकड़ों को देखा तो बहुत दुखी हुए | उसने जल्दी से अपनी गोद में रख ली | राक्षसी दिल से बहुत अच्छी थी और माया से उन दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया और वह शिशु एक हो गया। शिशु को एक जीवन की प्राप्ति हुए | Raja Jarasandh ka Itihas – Historyएक शरीर होते ही वह शिशु जोर-जोर से रोने लगा और अपनी माँ का गुहार लगाने लगा | बालक की रोने की आवाज सुनकर दोनों रानियां बाहर निकली और उन्होंने उस बालक को गोद में ले लिया और प्यार करने लगी । उसी समय राजा बृहद्रथ भी वहां आ गए और राक्षसी को देख कर बहुत प्रश्न हुआ | उन्होंने उस राक्षसी से उसका परिचय पूछा। राक्षसी ने राजा को सारी बात सच-सच बता दी और ये सुन कर राजा बहुत खुश हुए और उन्होंने उस बालक का नाम जरासंध रख दिया क्योंकि उसे जरा नाम की राक्षसी ने संधित (जोड़ा) किया था। जिसके बाद ये बालक जरासनाध क नाम से जाना गया. जी हां राक्षसी का नाम जरा था | (Raja Jarasandh ka vadh) जरासंध का वध किसने किया ?भगवन कृष्ण ने बड़ी चतुराई से राजसूय यज्ञ की तैयारियों के तमाम पहलुओं की योजना बनाई अपने मित्र पांडवो के साथ | वह जानते थे कि अगर इस काम में सबसे बड़ी अड़चन कहीं से आ सकती है तो वह महाराज जरासंध की तरफ से आ सकती है क्यूंकि महाराज सरासन्ध बहुत ही शक्तिशाली राजा था जिसे हराना नामुमकिन था । वह समझ रहे थे कि राजसूय यज्ञ की सफलता के लिए महाराज सरासन्ध मारना होगा। लेकिन कृष्ण और पांडवो जानते थे अगर उन्होंने जरासंध के खिलाफ युद्ध छेड़ा तो दोनों ही तरफ की सेनाओं को भारी नुकसान उठाना होगा और जिससे समाज को बहुत ही हानि होगी | भगवन कृष्ण ने सोचा इसके लिए सबसे अच्छा तरीका यही होगा कि महाराज जरासंध को मल्लयुद्ध में ललकार उसे वहीं खत्म कर दिया जाए और साडी झंझट से निपटारा मिल जायेगा | जरासंध एक महान मल्ल योद्धा भी था और उसके पास मल्ल योद्धाओं की एक पूरी फ़ौज थी जिसको हराना तो दूर की बात थी शत्रु उनके निकट भी नहीं जाती थे। उस समय में मल्ल युद्ध एक ऐसी कला था, जो सिर्फ आपसी द्वंद्व या कुश्ती तक ही सीमित नहीं था, बल्कि उसमें दिव्य आध्यात्मिक संभावनाएं भी छिपी होती थीं। दिव्या शक्ति से भरपूर उनकी तीर कमान थी | महाराज जरासंध (Raja Jarasandh) ने भगवान श्रीकृष्ण से राजा कंस वध का प्रतिशोध लेने के लिए उसने 17 बार मथुरा पर चढ़ाई की, लेकिन हर बार उसे बहुत बड़ी तरह से असफल होना पड़ा भगवन कृष्ण को । जरासंध के भय से अनेक राजा अपने राज्य छोड़ कर दूसरे प्रांतो में भागना पड़ा | शिशुपाल जरासंध का सेनापति था और साथ में वो बहुत ही बुद्धिमान और पराकर्मी भी था। Raja Jarasandh ka Itihas – Historyमहाराज जरासंध भगवान शंकर का परम भक्त था। उन्होंने अपने पराक्रम से 86 राजाओं को बंदी बना लिया था और गुमनाम पहाड़ी तहखानों में बंद कर दिया थ। जरासंध 100 को बंदी बनाकर उनकी भगवन शिव को बलि देना चाहता था, जिससे कि वह चक्रवर्ती सम्राट बन सके। महराज जरासंध की ये इच्क्षा भगवन कृष्ण और पांडवो को कहलाने लगी| और ऐसी कारन से मगध महाराज जरासंध का वध करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवो के साथ मिलकर योजना बनाई। योजना के अनुसार श्रीकृष्ण, भीम व अर्जुन ब्राह्मण का वेष बनाकर जरासंध के पास छल से गए और उसे कुश्ती के लिए अखाडा में ललकारा। महाराज जरासंध समझ गया कि ये ब्राह्मण नहीं है ये बहुरुपिया भगवन कृष्णा और उनके साथी पांडवो है । महाराज जरासंध ने पहले चेतवानी दी और उनके कहने पर भगवन श्रीकृष्ण ने अपना वास्तविक परिचय दिया। Raja Jarasandh ka Itihas – Historyमहाराज जरासंध ने भीम से कुश्ती लड़ने का निश्चय किया और सत्य ये है की इस पृथ्वी पर ऐसा कोई नहीं था जो मगध महाराज जरासंध को पराजित कर सके । राजा जरासंध (Raja Jarasandh) और भीम का युद्ध कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से 13 दिन तक लगातार चलता रहा और लोगो को लगा ये कभी न ख़त्म होने वाली युद्ध है । चौदहवें दिन भीम ने श्रीकृष्ण का इशारा समझ कर जरासंध के शरीर के दो टुकड़े कर दिए और दो दिशावओ में फेक दिया| शरीर दुबरा न जुड़ने पर महाराज जरासंध की मिर्तु हो गए। जरासंध किसका पुत्र था ?जरासंध राजा बृहद्रथ के पुत्र थे| जरासंध का पुत्र कौन था?जरासंध का पुत्र का नाम सहदेव था| सहदेव की दो बहाने -अस्ती (Asti) और प्रप्ती (Prapti) थीं| जरासंध का वध किसने किया?जरासंध का वध भीम (भीमसेन) ने किया था | भीम ने 13 दिन तक कुश्ती लड़ने के बाद महाराज जरासंध का वध किया था। जरासंध की पुत्री का क्या नाम था?जरासंध की पुत्री का नाम अस्ती (Asti) और प्रप्ती (Prapti) थीं| जरासंध का कंस से क्या रिश्ता था ?जरासंध कंस के ससुर लगते थे| कंस ने (Asti) और प्रप्ती (Prapti) से शादी किया था | (Raja Jarasandh) जरासंध का अखाड़ामगध महराज जरासंध के अखाड़े की सबसे ख़ास बात है की यहां मौजूद मिट्टी, जो उजले रंग की है और ये याद दिलाती है महाभारत और चंद्रवंशी रवानी/ चंद्रवंशी क्षत्रिओं का वीरता ki कहानिया । प्राचीन भारतीय महाकाव्य महाभारत के अनुसार , भीम और और जरासंध में 18 दिनों तक भयानक युद्ध हुआ था। जिस अखाड़े में दोनों वीर के बीच युद्ध हुआ वह आज भी बिहार के के राजगीर में मौजूद है। शेष लेख पढ़ेंचंद्रवंशी समाज का इतिहास 🥇Chandravanshi Rawani kshatriya 🥇 Motivational & Inspirational Chandravanshi ki story अखिल भारतीय चंद्रवंशी क्षत्रिय महासभा 🥇इतिहास🥇 चंद्रवंशी के देवता, देवी और गोत्र Chandravanshi Kavita What is the history of Chandravanshi Caste? Ramchandra Chandravanshi Jharkhand Ka Itihaas Best Top 10 Famous Chandravanshi Politician and Businessman History of Prem Kumar Chandravanshi Chandeshwar Chandravanshi Ka Itihas History मुलनिवासी को मानने वाले लोगों का कहना है कि महाभारत रामायण एक काल्पनिक रचना हैं जिसे मुलनिवासी काल्पनिक मानता है| इसी महाभारत के एक पात्र मगध सम्राट जरासंध महाराज जी प्राचीनतम् 16 जनपदों में से एक मगध सम्रराज्य के चक्रवर्ती सम्राट जिसका राजधानी प्राचीनतम नाम वशुमती वज्रगृह वर्तमान में राजगीर है| इसका मतलब हमारे पूर्वज कुल देव अराध्य देव इष्ट देव देवो के देव महादेव भक्त सम्राट जरासंध महाराज के अस्तित्व पर मुलनिवासी के लोग प्रशन चिन्ह खङा करते दिखाई देते हैं जो हमारे और हमारे पूर्वज को नहीं मानता है उसे हम कैसे स्वीकार करे| अगर मानता है तो हमारे पूर्वज सम्राट जरासंध महाराज जी को अन्य महा पुरूषों की भांति अपना आदर्श मानते हुए अपने बैनर झंडे में स्थापित करे नहीं तो मुलनिवासी मानने वाले लोगों का सम्राट जरासंध के वंशज होने के नाते हम और हमारे बुद्धिजिवी चंद्रवँशी भाई मुलनिवासी का विरोध करता हूँअपने आप सबसे बङा बुद्धिजीवी समझ रहे हैं और पुरे समाज को अन्धा बना रहे है यह आपके लिए दुर्भाग्य है| पीला रंग शौर्य का प्रतीक होता है और हमारे पूर्वज सम्राट जरासंध महाराज जी अपने शौर्य और प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व रहा है इसी लिए चक्रवर्ती सम्राट कहलाये और मगध सम्रराज्य का ध्वज का रंग पीला था इसलिए पीला के सिवा कोई नहीं हो सकता है| मगध सम्राट जरासन्ध जी के 5222वीं जयंती पर नालन्दा के कोने कोने में जरासंध जयंती मनाई गई साथ ही राजगीर में आयोजित विराट शोभायात्रा में जिस तरह चन्द्रवंशियों का जनसैलाब दिखा वो दिन दूर नही जब हम अपने खोए हुए अस्तित्व को ज़रूर पाएंगे। चक्रवर्ती सम्राट के सपनो को साकार करने के लिये बिना रुके बिना थके चलते रहना है जबतक इस आगाज़ को हम मंज़िल तक नही पहुंचा दे। कोटि कोटि नमन है सभी चन्द्रवंश के क्रांतिकारी साथियों का और गांव गांव से मिल रहे
बुजुर्गों के आशीर्वाद,स्नेह और प्रेम का। आप सभी का ऐसे ही आशीर्वाद, सहयोग मिलते रहे तो हमारी मन्ज़िले जल्द सामने होगी। सभी चन्द्रवंशी साथियों का हार्दिक आभार और विराट शोभायात्रा को सफल बनाने के लिए हार्दिक बधाई| दिनांक 17 /11/2019दिन रविवार को हिसुआ पाँचु गढ पर मगधेश भवन मे बैठक आहुत किया गया इस बैठक की अध्यक्षता और सभा संचालक के द्वारा हुआ उपस्थित बुद्धिजीवी के द्वारा जयंती समारोह को सफल आयोजन हेतू बधाई और शुभकामनाएं दिये| प्रती वर्ष जयंती समारोह और भव्य शोभा यात्रा हो जैसा की जयंती समारोह के समय ही यह निर्णय लिया गया था की मगधेश भवन हिसुआ और मगध सम्राट जरासंध मंदिर सीतामढी को सौंदर्यकरण सरक्षण जीर्णोद्धार करने के लिए पहल हो| इस बैठक में मगधेश भवन के साथ साथ सीतामढी स्थित सम्राट जरासंध महाराज जी का माध पूर्णिमा के दिन प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी 12दिसम्बर से 14 दिसम्बर तीन दिवसीय पूजा अर्चना समारोह का आयोजन किया गया| सीतामढी समारोह को सफल बनाने के लिए रविवार 24 नवम्बर को मगधेश भवन मे बैठक रखी गई थी इस बैठक में सभी चंद्रवँशी भाईयों से निवेदन थी की बैठक उपस्थिति हो कर अपनी भागीदारी सुनिश्चित करे और समारोह को सफल बनाने के लिए चार प्रखंडों के चंद्रवँशी भाईयों ने उपस्थित होकर अपनी सहमति जताई| कार्यकारिणी सदस्य गण चंद्रवँशी भाईयों ने एक संकल्प के साथ अपनी भागीदारी सुनिश्चित किये अखिल भारतीय जरासंध अखाड़ा परिषद का निर्माण का उद्देश्य अपने पूर्वजों के धरोहर को सौंदर्यकरण सरक्षण जीर्णोद्धार करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता को लेकर संकल्पित है | मगध सम्राट जरासंध की नगरी राजगीर में यह द्वार है बिम्बिसार का जबकी राजगीर के कंण कंण में सम्राट जरासंध जी अस्तित्व दिखता है लेकिन इनके नाम से एक भी द्वार नहीं ना इनसे जुङी धरोहर को सौंदर्यकरण सरक्षण जीर्णोद्धार हो रहा है| अजादी के 70 साल बित चुका है भारत सरकार बिहार सरकार ने सम्राट जरासंध महाराज के इतिहास भूगोल को मिटाने के सिवा कुछ नहीं किया है मगध वासियों चंद्रवँशीयो ऐसे ही खामोश रहे तो आने वाले समय में अपने पूर्वजों का इतिहास के साथ साथ भूगोल भी मिट नजर आयेगा| इस लोकतंत्र में भीङ तंत्र का अहसास समय समय पर दिखाना अपना नैतिक कर्तव्य समझे और अखिल भारतीय जरासंध अखाड़ा परिषद की अवाज बनकर अपने हक हुकूक के लिए अपने मौलिक अधिकार के लिए आन्दोलन का भागीदार बने संकल्प है| अपने पूर्वजों का इतिहास वही दुहरायेगे| अजादी से अभी तक सम्राट जरासंध जी के अस्तित्व को मिटाने के लिए सभी सामंती विचारधारा के इतिहासकारों ने धूमिल किया है कुछ भारत सरकार के विफलता और निरंकुश रवैया के करण महाभारत के जैसा अभी तक छल ही होते हुए आ रहा है| इन महान योद्धा के साथ इतिहास से लेकर वर्तमान में भी छल ही छल होते रहा है| अगर ऐसा नहीं होता तो आज राजगीर में बिम्बिसार द्वार के जगह सम्राट जरासंध द्वार रहता बिम्बिसार के पहले का इतिहास को धूमिल किया जा रहा है| जरासंध के अखाड़ा है तो इसका मतलब महाभारत हुआ है आज महाभारत का जिता जागता प्रमाण अगर दिख रहे हैं तो वह सम्राट जरासंध अखाड़ा स्मारक है| आज वह भी जीर्ण शीर्ण अवस्था में है अखिल भारतीय जरासंध अखाड़ा परिषद के आन्दोलन की वज़ह से कुछ भारतीय पुरातत्व विभाग ने सौंदर्यकरण सरक्षण जीर्णोद्धार करने के लिये तात्पर्यता दिखाई है| जयंती 8 नवम्बर को था और पुरा भारत एक ही दिन मनाया लेकिन कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कारण महीनों दिन मनाते हैं| यह ठीक नहीं है हमलोग सम्राट जरासंध महाराज जी के जयंती पर अन्य महा पुरूषों की भांति की भांति राजकिय अवकाश घोषित हो| अगर अलग-अलग दिन मनाते रहेगे तो सरकार भी दिग्भ्रमित होगा कहेगा आप लोग महीनो भर मनाये तो क्या हम पुरा महीना छुट्टी दे| इस तरह आन्दोलन कारी चंद्रवन्शी भाई का माँग को कमजोर कर रहे हैं ऐसे नेता का समर्थन नहीं विरोध हो जो व्यक्तिगत राजनीतिक फायदा के लिए सम्राट जरासंध के आस्था और विश्वास पर जात के कंधो पर चढ कर अपना महत्वाकांक्षा पुर्ण करना मात्र एक मकसद रहा है और जात को बुलाते महाराज के नाम पर और जयकारे लगवाते है अपने नाम का यह दुर्भाग्यपूर्ण है| मुझे उम्मीद है कि इस गाइड ने आपको दिखाया कि जरासंध की कहानी (इतिहास) क्या है। Raja Jarasandh ka Itihas – History और अब मैं आपसे पूछना चाहता हूं। क्या आपने जरासंध की कहानी कुछ नया सीखा ? या हो सकता है कि आपका कोई सवाल हो। किसी भी तरह से, अभी नीचे एक टिप्पणी छोड़ दें। मैं इस ब्लॉग में आपके उत्तर का उल्लेख करूंगा। जय जरासंध 🙂 Deepa Chandravanshi is the founder of The Magadha Times & Chandravanshi. Deepa Chandravanshi is a writer, Social Activist & Political Commentator. जरासंध का वध किसने और क्यों किया था?जरासंध मगध (वर्तमान बिहार) का राजा था। वह अन्य राजाओं को हराकर अपने पहाड़ी किले में बंदी बना लेता था। जरासंध बहुत ही क्रूर था, वह बंदी राजाओं का वध कर चक्रवर्ती राजा बनना चाहता था। भीम ने 13 दिन तक कुश्ती लड़ने के बाद जरासंध को पराजित कर उसका वध किया था।
जरासंध कृष्ण के कौन थे?कंस का ससुर था जरासंध : भगवान कृष्ण का मामा था कंस। कंस का ससुर था जरासंध। कंस के वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण को सबसे ज्यादा यदि किसी ने परेशान किया तो वह था जरासंध। कंस ने उसकी दो पुत्रियों 'अस्ति' और 'प्राप्ति' से विवाह किया था।
जरासंध को मारने के लिए कौन गया था?इस पर श्रीकृष्ण ने घास की एक डंडी की सहायता से भीम को संकेत किया की इस बार वह उसके टुकड़े कर के दोनों टुकड़े अलग-अलग दिशा में फेंके। तब भीम ने वैसा ही किया और इस प्रकार जरासंध का वध हुआ। तब उसका वध करके उन तीनों ने उसके बंदीगृह में बंद सभी ८६ राजाओं को मुक्त किया और श्रीकृष्ण ने जरासंध के पुत्र सहदेव को राजा बनाया।
श्रीकृष्ण के साथ जरासंध का वध करने कौन कौन गए?1. कंस का वध होने के बाद श्रीकृष्ण को मारने के लिए जरासंध ने मथुरा शहर को चारों ओर से घेर लिया। बलराम और श्रीकृष्ण ने उसकी विशालकाय सेना के साथ घोर युद्ध किया और अंतत: जरासंध की परायज हुई। जरासंध को बंधक बना लिया गया लेकिन बलराम को जरासंध का वध करने के लिए श्रीकृष्ण ने रोक दिया और उस मुक्त कर छोड़ दिया।
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