जै जग मंदिर दीपक सुंदर श्रीब्रजदूलह देव सहाई इन पंक्तियों में कौन सा अलंकार है? - jai jag mandir deepak sundar shreebrajadoolah dev sahaee in panktiyon mein kaun sa alankaar hai?

निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रशनों के उत्तर दीजिये:
पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्रीब्रजदूलह ‘देव’ सहाई।।

पद में निहित अलंकार-योजना स्पष्ट कीजिए।


रूपक: 
• मुखचंद।
• मंद हंसी जुन्हाई।
• जग-मंदिर-दीपक।
अनुप्रास:
• हिये हुलसै।
• कीट किंकिनि।
• पट पीत।
• मंद हँसी मुखचंद जुन्हाई।
• जै जग-मंदिर।

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पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।


(क) अनुप्रास-
(i) कटि किंकिनि के पुनि की मधुराई
(ii) सांवरे अंग लसै पट पीत।
(iii) हिये हुलसै बनमाल सुहाई।
(iv) मंद हंसी मुखचंद जुलाई।
(v) जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर।

(ख) रूपक-
(i) मंद हंसी मुखचंद जुंहाई।
(ii) जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर।

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निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य कीजिए-
पाँयनि नूपुर मंजु बजैं, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।
साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।


देव ने श्रीकृष्ण की अपार रूप-सुंदरता का वर्णन करते हुए माना है कि उनके पाँच में पाजेब शोभा देती है जो उनके चलने पर मधुर ध्वनि उत्पन्न करती है। उनकी कमर में करघनी मधुर धुन पैदा करती है। उनके सांवले-सलोने शरीर पर पीले रंग के वस्त्र अति शोभा देते है। उनकी छाती पर फूलों की सुंदर माला शोभा देती हैं। ब्रिज भाषा में रचित पंक्तियों में तत्सम शब्दावली की अधिकता है। सवैया छंद और स्वरमैत्री लयात्मकता का आधार है। अभिधा शब्द शक्ति ने कथन को सरलता, सरसता और सहजता प्रदान की है। अनुप्रास अलंकार की स्वाभाविक शोभा प्रकट की गई है।

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कवि ने ‘श्री ब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है?


कवि ने श्री कृष्ण के लिए ‘श्री ब्रज दूलह’ का प्रयोग किया है। श्री कृष्ण ब्रह्म स्वरूप है और सृष्टि के कण-कण में समाए हुए हैं। सारी सृष्टि उन्हीं की लीला का परिणाम है। सभी सृष्टि उनकी प्रेम, करुणा और दया का परिणाम है। वे प्रत्येक प्राणी के जीवन के आधार हैं और सभी की आत्मा में उन्हीं का वास है। इसीलिए उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा गया है।

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‘ग्लोबल वार्मिंग’ के कारण ऋतुओं में क्या परिवर्तन आ रहे हैं? इस समस्या से निपटने के लिए आपकी क्या भूमिका हो सकती है?


विश्व भर में उद्योग-धंधों को बड़ी तेजी से स्थापित किया जा रहा है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद हर देश नए-नए उद्योग स्थापित करके आर्थिक उन्नति की ओर तेजी से कदम बढ़ाने का प्रयत्न कर रहा है। ऊर्जा की उत्पत्ति के लिए वे जीवाश्मी ईंधन को जलाते हैं। कोयला और पेट्रोल भूमि के गर्भ से निकाल-निकाल कर दिन-रात जलाया जा रहा है। जिससे लोगों को सुख-सुविधाएँ तो अवश्य प्राप्त हो रही हैं पर साथ ही साथ कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैसों की मात्रा वायुमंडल में बढ़ती जा रही है। ये दोनों गैसें वायु के तापमान को तेजी से बढ़ा रही हैं। इसे ही ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। इस तापमान वृद्धि का परिणाम यह हो रहा है कि ध्रुवों पर जमी बर्फ़ की परत पिघलने लगी है। जिस ग्लेशियर से गंगा नदी निकलती है, वह तेजी से पिघलने लगा है। इसका परिणाम यह हो सकता है कि आने वाले समय में धरती के वातावरण का तापमान बढ़ने के साथ-साथ जल-स्रोतों में कमी आने लगेगी। ‘ग्लोबल वार्मिग’ अर्थात् ‘वैश्विक तापन’ पूरी पृथ्वी के लिए खतरे की घंटी है जो सारे संसार के भविष्य के लिए अति खतरनाक सिद्ध होगी। इससे समुंदरों का तल बढ़ने लगेगा। इसके परिणामस्वरूप समुंदरों के तटों पर नगर डूबने लगेंगे। समुद्री द्वीप पूरी तरह समुद्र की गहराई में समा जाएंगे।

ग्लोबल वार्मिग की समस्या से निपटने के लिए कोई एक व्यक्ति या कोई एक देश कुछ नहीं कर सकता। इस समस्या से निपटने के लिए विश्व भर के देशों को एक साथ मिलकर प्रयत्न करना होगा। हमें ऐसी नीतियां बनानी और कठोरता से लागू करनी होंगी कि कोयले और पेट्रोल के दहन को नियंत्रित किया जाए। सौर ऊर्जा, जलीय ऊर्जा, पवन ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा, सागरीय ऊर्जा आदि का अधिक-से-अधिक प्रयोग किया जाए ताकि हवा में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैसें न बड़े। वाहनों के लिए सौर ऊर्जा या विद्‌युत् का प्रयोग किया जाए।

इस समस्या से निपटने के लिए हमारी भूमिका यह हो सकती है कि हम योजना बद्‌ध तरीके से जन जागृति में सहायक बनें। जिन लोगों को इस समस्या का अभी पता नहीं है, उन्हें सचेत करें। अपने स्कूल में ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करें जिनसे बच्चे-बच्चे को इस समस्या की जानकारी मिले। आज का बच्चा ही आने वाले कल के उद्‌योगपति और नेता होंगे। उचित जानकारी होने पर वे इस समस्या पर नियंत्रण पा सकेंगे।

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पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए।


देव रीतिकालीन आचार्य कवि थे, जिन के काव्य में रीतिकालीन कविता की लगभग सभी विशेषताएँ दिखाई दे जाती हैं। पठित कविताओं के आधार पर उनकी निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएँ दिखाई देती है-

1 श्रृंगारिकता- देव ने अपनी कविताओं में राधा-कृष्ण के माध्यम से अपनी श्रृंगारिक भावनाएँ प्रकट की हैं। उनकी प्रवृत्ति भी अन्य रीति कालीन कवियों की तरह संयोग श्रृंगार में अधिक रमी है। राधा की रूप माधुरी ने विशेष रूप से प्रभावित किया है। चाँदनी रात में उसका रूप ऐसा निखरा हुआ है कि चंद्रमा भी उसका बिंब मात्र दिखाई देती है-

तारा सी तरुनि तामें ठाढ़ी झिलमिली होती,
मोतिन की जोति मिल्यो मल्लिका को मकरंद।
आरसी से अंबर में आभा-सी उजारी लगै,
पारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद।

2. भक्ति- भाव-देव चाहे श्रृंगारिक कवि थे, पर भारतीय संस्कारों में बंध कर वे कभी नास्तिक नहीं रहे। उन्होंने अपनी कविता में बार-बार वैराग्य भावना और आस्तिकता को प्रकट किया है। वे वैष्णव थे। उन्होंने श्रीकृष्ण के प्रति अपने भक्ति-भाव को प्रकट किया है-
माथे किरीट बड़े दृग चंचल, मंद हंसी मुख चंद जुलाई,
जै जग-मंदिर-दीपक सुंदर, श्री बजदूलह ‘देव’ सहाई।।

3. प्रकृति-चित्रण-देव ने अपनी कविताओं में प्रकृति -चित्रण अति सुंदर ढंग से किया है। उनके काव्य में प्रकृति साध्य नहीं है बल्कि साधन है। उन्होंने प्रकृति वर्णन में ऋतु वर्णन की परंपरा का पालन किया। उनकी प्रकृति संबंधी मौलिक दृष्टि की वहां सराहना करनी पड़ती है जहाँ उन्होंने बसंत का अति भावपूर्ण चित्रण किया है। उन्होंने बसंत का परंपरागत वर्णन न कर उसे कामदेव के बालक के रूप में प्रकट किया है जिसकी सेवा में सारी प्रकृति लीन हो जाती है-

डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के,
सुमन झिंगूला सोहै तन छबि भारी दै।
पवन झूलावै, केकी-कीर बरतावैं, ‘देव’,
कोकिल हलावै-हुलसावै कर तारी दै।

4. कलापक्ष- देव ने अपने काव्य को सफल अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए शब्द शक्तियों का अच्छा प्रयोग किया। उनके अमिधा के प्रयोग में सहजता है। उन्होंने माधुर्य और प्रसाद गुण का अच्छा प्रयोग किया है। उन्हें अनुप्रास अलंकार के प्रति विशेष मोह है-
(i) पूरित पराग सों उतारो करै राई नोन
(ii) मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि
(iii) कटि किंकिनि कै पुनि की मधुराई
(iv) मोतिन की जोति मिलो मल्लिका को मकरंद
इन्होंने उपमा का प्रयोग भी अच्छा किया है। ब्रज भाषा की कोमलकांत शब्दावली का इन्होंने सार्थक और सुंदर प्रयोग किया है। इनके काव्य में तत्सम शब्दावली का अधिक प्रयोग किया है।

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जग मंदिर दीपक में कौन सा अलंकार होगा और क्यों?

इसलिए यहाँ अनुप्रास अलंकार है।

जग मंदिर दीपक में कौन सा अलंकार है?

(2) जै जग-मंदिर-दीपक-सुंदर इस पंक्ति में संसार की समानता मंदिर से की गई है। इसके कारण उपमेय में उपमान का अभेद आरोप है इसलिए यहाँ रुपक अलंकार है।

श्री कृष्ण को जग मंदिर का दीपक क्यों कहा गया है?

सबसे उजला और प्रकाशमान होता है। उसके होने से मंदिर में प्रकाश फैल जाता है। उसी प्रकार कृष्ण की उपस्थिति से ही सारे ब्रज-प्रदेश में आनन्द, उत्सव और प्रकाश फैल जाता है। इसी कारण उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक कहा गया है।

कवि ने कौन से अलंकार का प्रयोग किया है?

कविता को प्रभावी बनाने के लिए कवि विशेषणों का सायास प्रयोग करता है जैसे- अस्थिर सुख। सुख के साथ अस्थिर विशेषण के प्रयोग ने सुख के अर्थ में विशेष प्रभाव पैदा कर दिया है।