इक्कीसवीं सदी का लड़का किस कहानीकार की कृति है - ikkeesaveen sadee ka ladaka kis kahaaneekaar kee krti hai

किताब: नवागत पीढ़ी: 21वीं शती की कहानियां
संपादन: पुष्पपाल सिंह
प्रकाशक: हार्पर कॉलिंस पब्लिशर्स इंडिया
मूल्य: 250 रुपये

'राजनीति में कोई किसी का दुश्मन नहीं होता भइया, चुप मार के बैठ जाओ. जो है सो कि ई नौगांवां में पहिला हादसा है, देखतो रहो अभी क्या-क्या होता है. अब नेता और शहर के बनिए राज करेंगे यहां. जिन्दा रहना है तो जैसे खेत बेचा, खुद को बेचना सीख लो. अभी तो उजड़ने-बसने का सिलसिला शुरू हुआ है.' अगर आप समाज के हर मुद्दे पर लिखी गई बुराई पर चोट करने वाली कहानियां ऐसी भदेस पृष्ठभूमि के साथ पढ़ना चाहते हैं तो पुष्पपाल सिंह द्वारा संपादित 'नवागत पीढ़ी 21 वीं सदी की कहानियां' पढ़ें.

इस किताब में छपी लगभग सारी कहानियां अपने समय की परिस्थिति और हालात को ध्यान में रखकर लिखे गए थे. इन कहानियों के माध्यम से आप बाजारवाद, जातिवाद, सांप्रदायिकता और उदारीकरण के सामाजिक प्रभाव को समझ सकते हैं. कहानियों के संकलन में बड़े नाम का ख्याल न रखकर, लेखनी का ख्याल रखा गया है. इसमें कई ऐसे लेखकों की कहानी शामिल है, जिनसे हिंदी का पाठक वर्ग ज्यादा परिचित नहीं है. इस किताब में कुल 19 कहानियों का संकलन किया गया है.

किताब की पहली कहानी है 'न्याय- कथा', जिसे अजय नावरिया ने लिखा है, वह सामाजिक व्यवस्था के जातिगत ढांचे पर चोट करती है. इस कहानी का नायक रविदास जो एक दलित है, अदालत में कहता है 'जब तक हमारी पहचान नहीं खुलती तब तक ही हम योग्य, स्वच्छ और स्वीकार्य होते हैं. इस कहानी के माध्यम से नावरिया ने दलित के उस दर्द को लिखा है जो आधुनिकता के लबादे के सामने प्राय: छुप जाता है.'

वहीं, दलित साहित्य के चिंतक और लेखक ओमप्रकाश वाल्मीकि की कहानी 'बँधुआ लोकतंत्र' , इस तंत्र की उन खामियों को सामने लाता है जिसमें दलितों को कागजी अधिकार तो मिल गए हैं लेकिन सामाजिक रूप से उसे वे अभी भी काफी पिछड़े हुए हैं. इस किताब की लगभग सारी कहानियां वर्तमान व्यव्स्था के साथ प्रासंगिक बनी हुई है क्योंकि इन कहानियों में मौजूद दर्द और पीड़ा को अभी भी भारतीय जनता महसूस कर रही है.

इन कहानियों की भाषा और कथा शिल्प बीसवीं शती के कहानियों से बहुत अलग है. इसमें कल्पनाओं से ज्यादा जमीनी हकीकत का ख्याल रखा गया है. उमाशंकर चौधरी की कहानी 'ललमुनिया मक्खी की छोटी सी कहानी' में लेखक ने मक्खी को भूमंडलीकरण और बाजारवाद का शिकार बनाकर देश की आम जनता की स्थिति की तरफ इशारा किया है. वहीं, सुभाषचन्द्र कुशवाहा की 'रात के अंधियारे में' कहानी ने देश में विकास परियोजनाओं में हो रहे घोटाले की पोल खोल कर रख दी है. इस कहानी में एक साथ ही कई बातों को गंभीरता के साथ उठाया गया है.

हाल के समय में जिस तरह से धार्मिक कारणों से लोगों को बांटा जा रहा है, ऐसे में इस किताब में छपी मो. आरिफ की 'तार' और शशिभूषण द्विवेदी की 'शिल्पहीन' बहुत ही प्रासंगिक मालूम होती है. दोनों लेखकों ने बड़े ही सूक्ष्म ढंग से राजनीतिक गतिरोध को अपनी कहानियों में जगह दिया है.

क्यों पढ़ें: इस किताब की ज्यादातर कहानियों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि उन्हें कल्पनाओं के आकाश में नहीं बुना गया है, बल्कि समाज में घटित होने वाले यथार्थ को लिखा गया है. आप ऐसी कहानी पढ़कर समाज में घटित हो रहे या घटित हुए हालातों के बारे में वाकिफ होते हैं. भले ही इस किताब की कहानी का विषय गंभीर है मगर शब्द और लिखने के तरीके से आप काफी आनंद भी उठा सकते हैं.

क्यों न पढ़ें: अगर आप की दिलचस्पी समाज, देश में घटित हो रही चीजों में नहीं है तो यह किताब आपके लिए नहीं है. इसकी हर कहानी पढ़ने के बाद भी सोचने के लिए आपका थोड़ा सा समय लेती है.