ईश्वर की कृपा कैसे प्राप्त करें? - eeshvar kee krpa kaise praapt karen?

हम लोग गुरु का सान्निध्य पाने पर खुद में कुछ बदलाव महसूस करते हैं। इसे गुरु कृपा भी कहा जाता है। लेकिन क्या गुरु से दूर होने पर भी गुरु-कृपा महसूस की जा सकती है?

कैसे जानेंगे हमारे उपर कृपा है?

हम लोग गुरु का सान्निध्य पाने पर खुद में कुछ बदलाव महसूस करते हैं। इसे गुरु कृपा भी कहा जाता है। लेकिन क्या गुरु से दूर होने पर भी गुरु-कृपा महसूस की जा सकती है?

प्रश्‍न:

यह हम कैसे जान सकते हैं कि गुरु की कृपा हम पर है?

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सद्‌गुरु:

कभी आपने गौर किया है कि जब आप किसी होटल की लॉबी में जाते हैं तो वहां एक संगीत बज रहा होता है, लेकिन कुछ देर बाद आपको उसका अहसास होना ही बंद हो जाता है। उसके बाद आपको उसके होने के अहसास तभी होता है, जब आपको अपनी बातचीत में वह संगीत बाधा लगता है।

दरअसल, एक बार आप मेरे साथ बैठ गए या मेरे सानिध्य में आ गए तो फिर आपके जीवन में एक पल के लिए निजता या प्राइवेसी जैसी चीज नहीं रहती।

वर्ना तो संगीत वहां हमेशा चल रहा होता है, लेकिन कुछ देर बाद आप उस पर गौर करना बंद कर देते हैं। इसी तरह से मान लीजिए कि आपके घर में कोई मशीन हमेशा ही आवाज करती है, लेकिन आपको उसकी आवाज का अहसास तभी होता है, जब आप घर में प्रवेश करते हैं। आपको तो इसका भी अहसास नहीं होता कि आपकी सांस चल रही है, लेकिन जैसे ही यह एक मिनट के लिए बंद होगी, आपको तुरंत ही इसका अहसास हो जाएगा। यही वो एकमात्र वजह है कि आपको पता ही नहीं चल पाता कि दैवीय कृपा का हाथ हमेशा आप पर बना रहता है।

सवाल उठता है कि अगर कोई चीज लगातार हो रही है और आपको उसका पता नहीं चल पा रहा है तो उसमें परेशानी क्या है? दरअसल, जीवन तो तब भी घटित होता रहेगा, लेकिन कृपा में बने रहने का जो आनंद है, उससे आप पूरी तरह से वंचित रह जाते हैं। कृपा कोई आने जाने वाली अथवा मिलने या रुकने वाली चीज नहीं हैं, यह हमेशा बनी रहती है। न ही यह कोई ऐसी चीज है, जिसके लिए आप हर सप्ताहांत या हफ्ते परेशान हों। यह तो लगातार बनी रहने वाली चीज है। बस आपको इसके प्रति सजग होना पड़ेगा, ताकि आप कृपा में बने रहने का आनंद उठा सकें।

जब मैं कहता हूं कि कृपा में बने रहने का आनंद तो आपको इसे समझना पड़ेगा। मैंने इसे कई बार कई तरह से समझाया है, लेकिन मुझे विश्वास है कि आपमें से ज्यादातर लोगों ने इसकी अनदेखी करना ही बेहतर समझा। दरअसल, एक बार आप मेरे साथ बैठ गए या मेरे सानिध्य में आ गए तो फिर आपके जीवन में एक पल के लिए निजता या प्राइवेसी जैसी चीज नहीं रहती।

कृपा का मतलब यह हर्गिज नहीं कि यह आपकी तुच्छ योजनाएं और इच्छा पूरी करे। वैसे भी आपकी योजनाएं लगातार बदलती रहती हैं। आपके जीवन के विभिन्न स्तरों पर आप सोचते हैं कि ‘यह होना चाहिए’, लेकिन अगले ही पल आप अपने निर्णय या इच्छाओं को बदल देते हैं। आप छुट्टी पर जाना चाहते हैं तो आप कहते हैं- ‘सद्‌गुरु, आप इसमें मेरी मदद क्यों नहीं करते?’ आए दिन आप यह सवाल मत कीजिए कि ‘मुझ पर कृपा है या नहीं?’ गुरु की कृपा आपकी योजनाओं को पूरा करने के लिए नहीं होती, बल्कि यह आपके जीवन की योजना को पूरा करने के लिए होती है। यह आपको जीवन का एक हिस्सा बनाने के लिए होती है, इसे अपनी पूर्णता पर पहुंचने दीजिए।

गरुड़ पुराण में इस तरह के कई संकेतों के बारे में बताया गया है जो हमें बताते हैं कि ईश्वर की हम पर विशेष कृपा है. यहां जानिए ऐसे 8 संकेतों के बारे में, जो हमें परमेश्वर के अत्यंत खुश होने का संकेत देते हैं.

जीवन में कभी-कभी कुछ ऐसी चीजें हो जाती हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है कि मानों हम पर कोई दैवीय कृपा बरस रही हो. ऐसे में सारे काम निर्विघ्न होकर पूरे होते जाते हैं. व्यक्ति हर वक्त खुश रहता है और उसके आसपास एक सकारात्मक वातावरण महसूस होता है. भविष्य की कोई फिक्र उसे नहीं सताती क्योंकि उसमें इतना आत्मविश्वास भर चुका होता है कि उसे लगता है कि भविष्य में भी वो कुछ भी कर सकता है.

गरुड़ पुराण में भी इस तरह के संकेतों के बारे में बताया है जो बताते हैं कि ईश्वर की हम पर विशेष कृपा है. ज्योतिष विशेषज्ञों की मानें तो जो लोग देवी-देवताओं की पूजा-पाठ करते हैं, मंत्रों का जाप करते हैं और अच्छे कर्म करते हैं. उनसे देवी देवता अत्यंत प्रसन्न रहते हैं और अपनी कृपा बरसाते हैं. जानिए ऐसे संकेतों के बारे में जो बताते हैं कि आपसे देव अत्यंत प्रसन्न हैं.

1. जिन लोगों पर भगवान की कृपा होती हैं, उन्हें तमाम स्थितियों के बारे में पहले से ही आभास होने लगता है. ऐसे में वे कई घटनाओं का इशारा होने से पहले ही समझ लेते हैं.

2. अगर आप अपनी शिक्षा का सही प्रयोग करके उससे परिवार चला पा रहे हैं तो ये ईश्वरीय कृपा से ही संभव है. दुनिया में तमाम ऐसे लोग हैं जो शिक्षित होने के बावजूद शिक्षा का सही प्रयोग नहीं कर पाते.

3. जिन लोगों की सेहत अच्छी रहती है, उन पर भी परमेश्वर की विशेष कृपा है. सेहत खराब होने से सिर्फ आपके शरीर पर ही असर नहीं पड़ता, ​बल्कि काफी आर्थिक नुकसान भी होता है. इसलिए निरोगी काया प्राप्त किए लोगों को खुद को भाग्यवान मानना चाहिए.

4. यदि आपको जीवन में सुयोग्य जीवन साथी मिला है, तो ये भी परमेश्वर की कृपा से ही संभव है. एक अच्छा जीवनसाथी आपके पूरे जीवन को खुशहाल बना सकता है, लेकिन अगर जीवनसाथी खराब मिल जाए, तो पूरी लाइफ झगड़े और क्लेश के बीच गुजरती है.

5. अगर किसी व्यक्ति की संतान आज्ञाकारी है तो ये भी परमेश्वर की ही कृपा है, वर्ना आज के युग में ज्यादातर लोग अपनी संतान की वजह से ही दुखी हैं.

6. सही-गलत के बीच अंतर करने की क्षमता जिन लोगों के पास है, उन पर उनके इष्टदेव का आशीर्वाद होता है.

7. भगवान के दर्शन सपने में करने वाले लोगों पर भी देवी-देवताओं की कृपा होती है, वर्ना परमेश्वर को देख पाना हर किसी के लिए संभव नहीं होता.

8. जिस व्यक्ति का क्रोध पर वश है, जिसका मन शांत रहता है, जो हर परिस्थिति से सामान्य रहकर निपटना जानता है, ऐसे लोगों पर ईश्वर का हाथ होता है. तभी ये संभव हो पाता है.

(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

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ईश्वर को प्राप्त करने के लिए क्या करना चाहिए?

उन्होंने कहा कि ईश्वर को प्राप्त करने का सबसे उत्तम और सरल उपाय प्रेम ही है। प्रेम भक्ति का प्राण भी होता है। प्रेम के बिना इंसान चाहे कितना ही जप, तप, दान कर ले, ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता है। दुनिया का कोई भी साधन प्रेम के बिना जीव को ईश्वर का साक्षात नहीं करा सकता है।

भगवान को कैसे महसूस किया जा सकता है?

इसी तरह ईश्वर की उपस्थिति को दिल के द्वारा ही महसूस किया जा सकता है। भगवान इंद्रियों की विषय वस्तु नहीं बल्कि भावनाओं की भावना हैं, उपस्थिति की उपस्थिति है, चुप्पी की आवाज हैं, जीवन के प्रकाश हैं, दुनिया का सार हैं और परमानंद के स्वाद हैं।

भगवान की कृपा कैसे प्राप्त होती है?

भगवान की कृपा प्राप्त करने का आसान तरीका है- भक्त की कृपा को प्राप्त करना। भगवान हमारे हृदय में विराजमान हैं। जब हमारे हृदय में उन्हें प्राप्त करने की चाह होगी तो वे हमें सद्गुरु अथवा प्रामाणिक भक्त की ओर मोड़ देंगे या उससे मिला देंगे। इसके लिए जरूरी होगा कि हम अपने हृदय में हरिनाम की ज्योति जलाए रखें।

ईश्वर की आराधना कैसे करनी चाहिए?

जब हम ईश्वर को अपना पुरे मन से समय दे सकें। प्रातः स्नान करने के बाद, संध्या होने के पश्चात और सोने के पहले सही समय हो सकता है। ईश्वर को हम यदि इष्ट माने तब जब भी हमें पाने कार्यस से फुरसत मिले हम आराधना कर सकते हैं, ईश्वर हमारे कसीस काम के बीच में नहीं आने चहिये तभी तो हम मानिसक रूपसे उनपे ध्यान कर सकेंगे।