भाव स्पष्ट कीजिए - Show इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं|| देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना|| इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं|| देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना|| प्रसंग - प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस से ली गई हैं। उक्त पंक्तियों में लक्ष्मण जी द्वारा परशुराम जी के बोले हुए अपशब्दों का प्रतिउत्तर दिया गया है। भाव- भाव यह है कि लक्ष्मण जी अपनी वीरता और अभिमान का परिचय देते हुए कहते हैं कि हम भी कोई कुम्हड़बतिया नहीं है जो किसी की भी तर्जनी देखकर मुरझा जाएँ। मैंने फरसे और धनुष-बाण को अच्छी तरह से देख लिया है। इसलिए ये सब आपसे अभिमान सहित कह रहा हूँ। अर्थात् हम कोमल पुष्पों की भाँति नहीं हैं जो ज़रा से छूने मात्र से ही मुरझा जाते हैं। हम बालक अवश्य हैं परन्तु फरसे और धनुष-बाण हमने भी बहुत देखे हैं इसलिए हमें नादान बालक समझने का प्रयास न करें। Concept: पद्य (Poetry) (Class 10 A) Is there an error in this question or solution? कुम्हड बतिया कोउ नाहीं जे तर्जनी देखि मरि जाहीं इस पंक्ति में कौन किससे कह रहा है?उक्त पंक्तियों में लक्ष्मण जी द्वारा परशुराम जी के बोले हुए अपशब्दों का प्रतिउत्तर दिया गया है। भाव- भाव यह है कि लक्ष्मण जी अपनी वीरता और अभिमान का परिचय देते हुए कहते हैं कि हम भी कोई कुम्हड़बतिया नहीं है जो किसी की भी तर्जनी देखकर मुरझा जाएँ।
इहां कुम्हड़बतिया कोउ नाही यह उक्ति पंक्ति का क्या अर्थ है?देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।। Solution : इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं।
इहा कुम्हड़ बतिया कोउ नाहि ऐसा लक्ष्मण परशुराम को क्या संकेत देते है *?कवि ने परशुराम के झूठे अभिमान को काव्य रूढ़ि के माध्यम से स्पष्ट किया है। समाज में पुरानी उक्ति है कि कुम्हड़े के छोटे कच्चे फल की ओर तर्जनी का संकेत करने से वह मर जाता है। लक्ष्मण कुम्हड़े के कच्चे फल जैसे कमजोर नहीं थे जो परशुराम की धमकी मात्र से भयभीत हो जाते।
तर्जनी देख कर कौन मर जाता है?होइहि केउ एक दास तुम्हारा ।। आयेसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही ।। सेवकु सो जो करै सेवकाई।
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