घिन तो नहीं आती है कविता का सारांश - ghin to nahin aatee hai kavita ka saaraansh

पूरी स्पीड में है ट्राम
खाती है दचके पै दचके
सटता है बदन से बदन
पसीने से लथपथ ।
छूती है निगाहों को
कत्थई दांतों की मोटी मुस्कान
बेतरतीब मूँछों की थिरकन
सच सच बतलाओ
घिन तो नहीं आती है?
जी तो नहीं कढता है?

कुली मज़दूर हैं
बोझा ढोते हैं, खींचते हैं ठेला
धूल धुआँ भाप से पड़ता है साबका
थके मांदे जहाँ तहाँ हो जाते हैं ढेर
सपने में भी सुनते हैं धरती की धड़कन
आकर ट्राम के अन्दर पिछले डब्बे मैं
बैठ गए हैं इधर उधर तुमसे सट कर
आपस मैं उनकी बतकही
सच सच बतलाओ
जी तो नहीं कढ़ता है?
घिन तो नहीं आती है?

दूध-सा धुला सादा लिबास है तुम्हारा
निकले हो शायद चौरंगी की हवा खाने
बैठना है पंखे के नीचे, अगले डिब्बे मैं
ये तो बस इसी तरह
लगाएंगे ठहाके, सुरती फाँकेंगे
भरे मुँह बातें करेंगे अपने देस कोस की
सच सच बतलाओ
अखरती तो नहीं इनकी सोहबत?
जी तो नहीं कुढता है?
घिन तो नहीं आती है?

                
                                                                                 
                            पूरी स्पीड में है ट्राम
                                                                                                
                                                     
                            
खाती है दचके पै दचके
सटता है बदन से बदन
पसीने से लथपथ ।
छूती है निगाहों को
कत्थई दांतों की मोटी मुस्कान
बेतरतीब मूँछों की थिरकन
सच सच बतलाओ
घिन तो नहीं आती है?
जी तो नहीं कढता है?

कुली मज़दूर हैं
बोझा ढोते हैं, खींचते हैं ठेला
धूल धुआँ भाप से पड़ता है साबका
थके मांदे जहाँ तहाँ हो जाते हैं ढेर
सपने में भी सुनते हैं धरती की धड़कन
आकर ट्राम के अन्दर पिछले डब्बे मैं
बैठ गए हैं इधर उधर तुमसे सट कर
आपस मैं उनकी बतकही
सच सच बतलाओ
जी तो नहीं कढ़ता है?
घिन तो नहीं आती है?

दूध-सा धुला सादा लिबास है तुम्हारा
निकले हो शायद चौरंगी की हवा खाने
बैठना है पंखे के नीचे, अगले डिब्बे मैं
ये तो बस इसी तरह
लगाएंगे ठहाके, सुरती फाँकेंगे
भरे मुँह बातें करेंगे अपने देस कोस की
सच सच बतलाओ
अखरती तो नहीं इनकी सोहबत?
जी तो नहीं कुढ़ता है?
घिन तो नहीं आती है?

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3 years ago

कविता की मूल संवेदना क्या होती है?

किसी भी वस्तु भाव और स्थिति के हृदय पर पड़े प्रभाव की प्रतिक्रिया ही संवेदना कहलाती है। नागार्जुन का काव्य संसार वैविध्यमय होने के साथ-साथ बहुत व्यापक एवं विराट हैं। इसमें प्रकृति, मनुष्य, पशु, राजनीतिक-सामाजिक जीवन, जीवन के मधुर एवं कोमल पक्ष, व्यंग्य की तीखी धार दैनन्दिन जीवन की गतिविधियाँ सब शामिल हैं।

बहुत दिनों के बाद कविता में गांव लौटने पर कवि ने क्या अनुभव किया?

Answer: कवि ने गांव लौटने पर जी भर मौलसरी के ताजे – ताजे फूलों की सुगंध को महसूस किया उसकी अनुभूति की। ... अर्थात कभी अपने गांव में वास्तविक जीवन को जीते हैं। बहुत दिनों के बाद मुझे ग्रामीण प्रकृति का रमणीय एवं मोहक रूप देखकर आनंद का अनुभव हुआ।