गोवर्धन दास की जान कैसे बनी? - govardhan daas kee jaan kaise banee?

जब गोवर्धनदास को फांसी पर चढ़ाया जानेवाला था, तभी उसके गुरु महंतजी वहां पहुंच गए। गुरु ने शिष्य के कान में कुछ कहा और फिर गरु-शिष्य फांसी पर चढ़ने के लिए आपस में हुज्जत करने लगे। इससे सिपाही चकित हो गए। राजा, मंत्री और कोतवाल भी वहां पहुंच गए। पूछने पर महंत ने बताया कि उस मुहूर्त में फांसी पर चढ़नेवाला सीधा स्वर्ग जाएगा। स्वर्ग के लालच में चौपट राजा खुद फांसी पर चढ़ गया। इस प्रकार गोवर्धनदास की जान बचाने में महंत सफल हो गए।

महन्त जी अपने शिष्य गोबर्धनदास और नारायणदास के साथ एक सुन्दर नगरी में आते हैं। नारायणदास गुरु जी से कहता है कि नगरी सुन्दर तभी होगी, जब हमें सुन्दर भिक्षा मिले। गुरुजी के आदेश से नारायणदास पूर्व की ओर तथा गोबर्धनदास पश्चिम की ओर भिक्षा माँगने जाते हैं।

गोवर्धनदास कुंजड़िन से भाजी का भाव पूछता है। वह टके सेर भाजी का भाव बताती है। फिर गोबर्धनदास हलवाई से मिठाई का भाव पूछता है। मिठाई भी टके सेर ही बिकती है। गोबर्धनदास हलवाई से नगरी और राजा का नाम पूछता है। यह बताता है- अन्धेर नगरी, अनबूझ राजा।

गोबर्धनदास वाह वाह करते हुए दोहराता है-अन्धेर नगरी, अनबूझ राजा।
टके सेर भाजी, टके सेर खाजा।

गोबर्धनदास सात पैसे भिक्षा में लाकर साढ़े तीन सेर मिठाई लाता है। गोबर्धनदास गुरु जी को नगरी और राजा के विषय में बताता है। गुरु जी नगरी छोड़कर चले जाते हैं। गोबर्धनदास नहीं जाता। गुरु जी गोबर्धनदास से मुसीबत में याद कर लेने को कहते हैं।

एक दिन एक फरियादी राजा के पास आता है। उसकी बकरी बनिए की दीवार के नीचे दबकर मर गई। बनिया राजा के सामने आकर दीवार बनानेवाले कारीगर का दोष बताता है।

कारीगर आकर, चूनेवाले का दोष बताता है। चूनेवाला ज्यादा पानी डाल देने के कारण भिश्ती का दोष बताता है। भिश्ती ने कसाई का दोष बताया कि उसने बड़ी मसक बना दी। कसाई ने गड़रिए का दोष बताया कि उसने बड़ी भेड़ बेच दी। गड़रिए ने कहा कि कोतवाल का कसूर है। आपकी सवारी निकली। अधिक भीड़ होने से छोटी-बड़ी भेड़ की पहचान नहीं हो सकी। राजा ने कोतवाल को फाँसी लगाने का हुक्म दिया। कोतवाल पतला था। फाँसी का फंदा बड़ा था; अतः राजा ने किसी भी मोटे आदमी को फाँसी का हुक्म दे दिया। सिपाही गोबर्धनदास को पकड़ लाए। वह मिठाई खा-खाकर मोटा हो गया था। उसने फाँसी से बचने के लिए गुरु जी को याद किया। गुरु जी ने आकर उसके कान में कुछ कहा। गोबर्धनदास ने फौरन फाँसी चढ़ने की तैयारी की। गुरु जी ने भी स्वयं को फाँसी लगवानी चाही। पूछताछ के बाद पता चला कि यह घड़ी बहुत शुभ है। इस समय फाँसी चढ़ने वाला सीधा स्वर्ग जाएगा। अंत में राजा ने स्वयं को ही फाँसी लगवाना उचित समझा। राजा को फाँसी लगा दी गई।

20. धरती की शान (कविता)

स्वाध्याय

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में लिखिए

कवि की दृष्टि में सर्वाधिक महान कौन है ?

कवि की दृष्टि में सर्वाधिक महान मनुष्य है I

आप क्या-क्या कर सकते हैं ?

एक विद्यार्थी होने के नाते मेरे सारे काम कर सकता हूं जो मेरे कार्य क्षेत्र में आते हैं I

अन्य जीवों से मनुष्य महान कैसे हैं ?

अन्य जीव से मनुष्य महान है अन्य जीव अब भी बहुत पिछड़े हैं I जबकि मनुष्य ने जल ,थल और नभ पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है I

धरती सुधीर किसे कहा गया है ?

धरती सुधीर मनुष्य को कहा गया है I

धरती की शान कविता के रचयिता कौन हैं ?

धरती की शान कविता के रचयिता पंडित भरत व्यास है I

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सविस्तार लिखिए

कविता में कवि ने किन प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण किया है ? कैसे ?

कवि ने कविता में पहाड़, नदियां, धरती, आकाश, हवा जैसे प्राकृतिक दृश्यों का चित्रण किया है I वह कहता है कि मनुष्य चाहे तो पर्वतों को फोड़ सकता है I वह चाहे तो नदियों के प्रवाह को मोड़ सकता है I वह अगर ठान ले तो धरती और आकाश को जोड़ सकता है I मनुष्य पवन सा गतिमान है I इसलिए वह आकाश में ऊंची से ऊंची उड़ान भरने में समर्थ है I

प्रस्तुत कविता में मनुष्य के प्रति किस भाव की अभिव्यक्ति हुई है और उसमें हमें क्या प्रेरणा मिलती है ?

प्रस्तुत कविता में मनुष्य को सर्वशक्तिमान बताया गया है उसकी आत्मा परमात्मा का रूप है I इस दृष्टि से मनुष्य अजर अमर प्राणी है I इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि मनुष्य होने के कारण हमें अपने लक्ष्य ऊंचे रखने चाहिए I  हमें किसी काम को पहचान कर कठिन से कठिन कार्य करने में पीछे नहीं हटना चाहिए I

धरती की शान से कवि का क्या तात्पर्य है ? भाव स्पष्ट कीजिए I

धरती की शान से कवि का तात्पर्य मनुष्य की गौरवपूर्ण उप उपलब्धियां है I मनुष्य ने अपने बुद्धि बल से ऐसे अनेक कार्य कर दिखाएं हैं जो कभी असंभव माने जाते थे I मनुष्य ने सभ्यता और संस्कृति के उनके आदर्श कायम किए हैं I  उस ने धरती पर के सभी प्राणियों में अपने को सर्वश्रेष्ठ साबित किया है I इसलिए कभी मनुष्य को धरती की शान मानता है I

मनुष्य के लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है I काव्य के आधार पर अपने विचार प्रकट कीजिए I

मनुष्य अत्यंत समर्थ प्राणी है I वह चाहे तो पहाड़ों को फोड़ सकता है I वह चाहे तो नदियों के प्रवाह की दिशा बदल सकता है I वह मिट्टी से अमृत नहीं छोड़ सकता है I इस प्रकार मनुष्य हर असंभव कार्य को संभव बना सकता है I

धरती की शान कविता का केंद्रीय भाव स्पष्ट कीजिए ?

धरती की शान कविता में कवि ने मनुष्य को धरती का सर्वशक्तिमान प्राणी बताया है I कवि के अनुसार मनुष्य में अनेक प्रकार की शक्तियां छिपी हुई है I मनुष्य अपनी शक्तियों को नहीं पहचानता I इसलिए वहां असहाय बन जाता है I सच यह है कि मनुष्य महाकाल बन सकता है I उसकी आवाज युग बदल सकती है I वह चाहे तो ऊंची से ऊंची उड़ान भर सकता है I इस प्रकार कविता का केंद्रीय भाव मनुष्य को अपनी शक्तियों को पहचानने के लिए प्रेरित करना है I

निम्नलिखित काव्य पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए

गुरु सा मतिमान पवन सा गतिमान तेरी नजर से भी ऊंची उड़ान है रे

मनुष्य के पास बुद्धि की कमी नहीं है I उसके पास बृहसपति जैसी प्रतिभा है I वह वायु जैसी गति रखता है I वह चाहे तो आकाश से भी ऊंचा उठ सकता है I  कवि कहना चाहते हैं कि यदि मनुष्य अपने अंदर छिपी शक्तियों को जागृत कर ले तो उसके लिए असंभव कुछ भी नहीं है I

धरती की शान तू भारत की संतान तेरी मुट्ठियों में बंद तूफ़ान है रे

प्रत्येक भारतवासी महान है I उसमे अनंत शक्तियां छिपी हुई है I वह अपने आप में तूफान जैसी शक्ति रखता है I वह चाहे तो उसकी उपलब्धियां धरती का गौरव बन सकती है I

निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए :

भूचाल - भूकंप

हिमगिरी - हिमालय

वाणी - वचन

तूफानआंधी, कहर

अमृत - सुधा

धीर - धीरआयुक्त

हिम्मत - वीरता

नव - आकाश

निज - अपना

निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए

अमृत X जहर

अंबर X धरती

अमर X मृत्यु

धीर X अधीर

बीर X कायर

पाप X पुण्य

जीवन X मृत्यु


18. अंधेरी नगरी

स्वाध्याय

एक दो वाक्य में उत्तर लिखिए

महंत ने नगर की असलियत जानने पर क्या फैसला किया ?

महंत ने नगर की असलियत जानकर वहां रहने का निर्णय लिया I

अंधेरी नगरी में भाजी और खाजा किस भाव से बिकता था ?

अंधेरी नगरी में भाजी और खाजा दोनों टके सेर भाव था I

कसाई में भेड़ किससे मोड़ ली थी ?

कसाई ने भेड़ एक गडरिया से मोड़ ली थी I

महंत ने गोवर्धन दास को क्या सलाह दी थी ?

महंत ने गोवर्धन दास को उस नगर में रहने की सलाह दी थी I

राजा फांसी चढ़ने को क्यों तैयार हो गया ?

राजा फांसी चढ़ने को तैयार हो गया क्योंकि, महंत ने कहा था कि उस शुभ घड़ी में जो मरेगा वह सीधे स्वर्ग जाएगा I

पांच वाक्यों में उत्तर लिखिए

गोवर्धन दास ने खुश होकर अंधेरी नगरी में ही रहने का फैसला क्यों किया ?

गोवर्धन दास में महंत जैसी दूरदृष्टि नहीं थी I उसे बस अपना पेट भरने की चिंता रहती थी I अंधेरी नगरी में टके सेर मिठाई मिलती थी I गोवर्धन दास को मिठाई खाने का शौक था I अंधेरी नगरी में रहकर वह कम से कम पैसों में भी भरपेट मिठाई खा सकता था I इसलिए उसने अंधेरी नगरी में ही रहने का फैसला किया I

बकरी की मौत के लिए किस-किस को अपराधी ठहराया गया ? राजा ने किसे किसे और क्यों फांसी चढ़ाने का फैसला किया ?

बकरी की मौत के लिए कल्लू बनिया, दीवार बनाने वाले कारीगर, , छूने वाले कारीगर, कसाई, गडरिया और कोतवाल को अपराधी ठहराया गया I अंत में राजा ने कोतवाल को फांसी पर चढ़ाने का फैसला किया I

गोवर्धन दास पर पछताने की बारी क्यों गई ?

गुरु महंत का कहना ना मानकर गोवर्धन दास ने अंधेरी नगरी में ही रहने का निर्णय किया I उसने सोचा कि कम खर्चे में अधिक मजे के साथ वही रह सकता था I परंतु जब दुबला पतला होने के कारण कोतवाल फांसी से बच गया I तब सिपाहियों ने गोवर्धन दास को पकड़ा I सिपाहियों को न्याय अन्याय और दोषी और निर्दोष की परवाह नहीं थी I उन्हें तो फांसी पर चढ़ने लायक व्यक्ति की जरूरत थी I उनके द्वारा पकड़े जाने पर गोवर्धन दास को पछताने की बारी आई I

महंत गोवर्धन दास की जान बचाने में सफल कैसे हो गए ?

जब गोवर्धन दास को फांसी पर चढ़ाया जाने वाला था तभी उसके गुरु महंत जी वहां पहुंच गए I गुरु ने शिष्य के कान में कुछ कहा और फिर गुरु शिष्य फांसी पर चढ़ने के लिए आपस में लड़ने लगे I इस से सिपाही चकित हो गए I राजा मंत्री और कोतवाल भी वहां पहुंच गए I पूछने पर महंत ने बताया कि उस मुहूर्त में फांसी पर चढ़ने वाला सीधा स्वर्ग जाएगा I स्वर्ग के लालच में चौपट राजा खुद फांसी पर चढ़ गया I इस प्रकार महंत गोवर्धन दास की जान बचाने में सफल हो गए I

पाठ को अंधेरी नगरी शीर्षक क्यों दिया गया ?

एक दीवार गिरने के अपराध में कई सारे लोगों पर दोश लगाया जाता है पर अपने अपने बचाव में सब सफल हो जाते हैं I अंत में कोतवाल दोषी पाया जाता है I जिस का घटना से कोई संबंध नहीं है I राजा उसे फांसी देने का हुक्म देता है I कोतवाल की पतली गर्दन फांसी के बड़े फंदे के लायक नहीं है I इसलिए मोटे-ताजे गोवर्धन दास को पकड़ा जाता है I अंत में महंत की चतुराई से सारा राजा स्वयं फांसी पर चढ़ जाता है I इस प्रकार अंधेरी नगरी सचमुच अंधेरी नगरी है I  यहां सच और झूठ में कोई भेदभाव नहीं किया जाता I इसलिए पाठ को अंधेरी नगरी शीर्षक दिया गया है I

आशय स्पष्ट कीजिए

अंधेरी नगरी चौपट राजा टके सेर भाजी टके सेर खाजा

मूर्ख राजा के राज्य साधारणविशेष, उचित - अनुचित में कोई अंतर नहीं होता I ख्वाजा जैसी महंगी मिठाई भी भाजी के भाव बेची जाती है I न्याय अन्याय में भी कोई फर्क नहीं रखा जाता I राज्य में सब जगह अंधेरा ही अंधेरा दिखाई देता है I

राजा के जीते जी और कौन स्वर्ग जा सकता है ? हम को फांसी चढ़ओ, जल्दी करो I

राजा को बताया गया की फांसी पर चढ़ने की वह बहुत शुभ घड़ी है I उस समय फांसी पर चढ़ने वाला सीधा स्वर्ग जाए जा I  मूर्ख राजा स्वर्ग के लालच में गया I बुद्धि विवेक का उसमें घोर अभाव था I महंत की चाल में फंसकर वह फांसी पर चढ़ने के लिए तैयार हो गया I उसकी मूर्खता है उसका राजहठ बन गई I

सही शब्द चुनकर वाक्य पूर्ण कीजिए

क्षणभर , यथास्थान,  सवारी,  शिष्य,  स्वर्ग  

शब्द समूह के लिए एक शब्द दीजिए

न्याय मांगने वाला - फरियादी

तस्करी बेचने वाली स्त्री - कुंजड़िन

चमड़े के काल का बड़ा थैला – मशत

भेड़ बकरी चराने वाला - गडरिया

मिठाई बनाने वाला - हलवाई



गोवर्धन दास को फांसी क्यों लग रही थी?

इस पर महाराज ने सिपाहियों से हुक्म दिया कि किसी मोटे आदमी को फांसी दे दो। क्योंकि बकरी मरने के अपराध में किसी ना किसी को सजा होना जरूरी है नहीं तो न्याय नहीं होगा। उसी हुक्म को पूरा करने के लिए गोवर्धन दास को फांसी पर चढ़ाया जा रहा था क्योंकि गोवर्धन दास मिठाई खा-खा कर खूब मोटा हो गया था।

महंत गोवर्धन दास की जान बचाने में सफल कैसे हो गए?

1 Answer. जब गोवर्धनदास को फांसी पर चढ़ाया जानेवाला था, तभी उसके गुरु महंतजी वहां पहुंच गए। गुरु ने शिष्य के कान में कुछ कहा और फिर गरु-शिष्य फांसी पर चढ़ने के लिए आपस में हुज्जत करने लगे। इससे सिपाही चकित हो गए

गोवर्धन दास को भीख में कितने पैसे मिले?

गोवर्धन दास ने अब तक भीख में सात पैसे प्राप्त किए थे इसलिए वह हलवाई से साढ़े तीन सेर मिठाई खरीद लेता है ताकि वह अपने गुरु के साथ मिल कर उसे खा सके।

गोवर्धन दास के बारे में आप क्या जानते हैं?

गुरु महंत की आज्ञानुसार गोवर्धनदास पश्चिम दिशा की ओर भिक्षा माँगने जाता है। भिक्षा में उसे सात पैसे मिलते हैं। जब वह उन पैसों से खरीदारी करने लगता है तो ज्ञात होता है कि वहाँ पर सभी चीजें टके सेर से मिलती है। गोवर्धनदास वैसे ही खाने-पीने का बड़ा शौक़ीन होता है दाम सुनकर तो उसकी प्रसन्नता का ठिकाना ही नहीं रहता।