इसे सुनेंरोकेंजिन अक्षरों के साथ र की मात्रा मिश्रित है वे भी लघु ही रहते हैं जैसे कि प्र, क्र, श्र आदि । Show मात्राएं कैसे गिने?
चाँद में कितनी मात्रा होती है? इसे सुनेंरोकेंइसकी प्रत्येक पंक्ति में कुल 28 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पंक्ति के प्रथम चरण में 15 मात्राएँ होती हैं तथा द्वितीय चरण में 13 मात्राएँ होती हैं। इसे उल्लाला छंद कहते हैं। छंद रचना कैसे करें?इसे सुनेंरोकेंचरणों की रचना कुछ निश्चित वर्णों अथवा मात्राओं के आधार पर यति के नियमों के अनुसार होती है. प्रायः चार चरणों वाले छन्द चार पंक्तियों में लिखे जाते हैं, लेकिन दोहा, सोरठा और बरवै को दो पंक्तियों में ही लिखने की प्रथा है. अतः इनमें पंक्ति को ‘दल’ भी कहते है. कुछ छंदों- जैसे, छप्पय और कुंडलिया में छः चरण होते है. पढ़ना: गॉल्जी उपकरण तथा अंत द्रव्य जालिका की क्या भूमिका है? छंद कितने प्रकार होते हैं? मात्रिक छंद दोहे में मात्रा कैसे गिने? इसे सुनेंरोकेंजबकी दीर्घ स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ ओ और औ की मात्राएँ दीर्घ (ऽ) मानी जाती हैं। व्यंजनों पर लघु स्वर अ, इ, उ, ऋ आ रहे हों तो भी मात्रा लघु (।) ही रहेगी। किंतु यदि दीर्घ स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राएँ आ रही हों तो मात्रा दीर्घ (ऽ) हो जाती है। कौन से स्वर की मात्रा नहीं होती?इसे सुनेंरोकें’अ’ वर्ण की कोई मात्रा नहीं होती। सोरठा में कितने चरण होते हैं? इसे सुनेंरोकेंसोरठा छंद में चार चरण होते हैं। जिनमें 11 चरण विषम संख्या वाले चरणों में और 13 चरण सम संख्या वाले चरणों में होते हैं। विषम चरण के अंत से दूसरा अक्षर गुरु होना चाहिए और अंतिम लघु मात्रा होना चाहिए। जिस छंद में चार चरण और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएं होती हैं वह क्या कहलाता है? इसे सुनेंरोकेंहरिगीतिका चार चरणों वाला एक सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16 व 12 के विराम से 28 मात्रायें होती हैं तथा अंत में लघु गुरु आना अनिवार्य है। हरिगीतिका में 16 और 12 मात्राओं पर यति होती है। पढ़ना: पपीता कब लगाना चाहिए? कविता में कितनी मात्राएं होती हैं?इसे सुनेंरोकेंचार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 16 – 16 मात्राएं होती है। छंद कितने प्रकार के होते हैं बताइए? छंद किसे कहते हैं और कितने प्रकार के होते हैं? इसे सुनेंरोकेंछन्द के मुख्य तीन भेद हैं (क) वर्णिक, (ख) मात्रिक और (ग) मुक्तक या रबड़। वर्णिक छंद: जिनमें वर्णों की संख्या, क्रम, गणविधान तथा लघु-गुरू के आधार पर रचना होती है। मात्रिक छंद: जिनमें मात्राओं की संख्या, लघु-गुरू, यति-गति, के आधार पर पद-रचना होती है। मुक्तक छन्द: इनमें न वर्णों की गिनती होती है, न मात्राओं की। मात्रा कितने प्रकार की होती है?इसे सुनेंरोकेंमात्राएं तीन प्रकार की होती है। ह्रस्व, दीर्घ, और प्लुत। छंद के कितने अंग होते हैं? छंद के अंग निम्नलिखित हैं:
पढ़ना: जीएसटी नंबर लेने के लिए क्या करना पड़ेगा? चौपाई छंद में कितनी मात्राएं होती है? इसे सुनेंरोकेंचौपाई मात्रिक सम छन्द का एक भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के १६ मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में चौपाइ छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में १६-१६ मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है। मात्राओं की संख्या कितनी होती है?इसे सुनेंरोकेंमात्रा किसे कहते हैं? मात्रा स्वर का ही एक रूप होता है। जो स्वर का ही प्रतिनिधित्व करता है मात्राओं की संख्या ग्यारह होती है। लेकिन दृश्य रूप में मात्राओं की संख्या दश होती है। कुंडलियां कैसे लिखें? इसे सुनेंरोकेंकुंडलिया दोहा और रोला के संयोग से बना छंद है। इस छंद के ६ चरण होते हैं तथा प्रत्येकचरण में २४ मात्राएँ होती है। इसे यूँ भी कह सकते हैं कि कुंडलिया के पहले दो चरण दोहा तथा शेष चार चरण रोला से बने होते है। दोहा के प्रथम एवं तृतीय चरण में १३-१३ मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं। सुनने और बोलने (श्रवण और उच्चारण) के कारण शब्दों में कई अशुद्धियाँ (त्रुटियाँ – गलतियाँ) आ जाती हैं। हिन्दी की मात्राओं एवं व्याकरण के ज्ञान की कमी प्रायः इन शब्द और वर्तनी की अशुद्धियों का मुख्य कारण होती है। कक्षा 5,6,7,8,9 एवं 10 के विद्यार्थियों के लिए विभिन्न प्रकार की शब्द की अशुद्धियों के अशुद्धि शोधन की जानकारी निम्न लेखों में दी गई है: गति- गति का अर्थ है प्रवाह अर्थात् छंद को पढ़ते समय प्रवाह एक-सा हो। मात्रिक छंदों के लिए इसका विशेष महत्व है। तुक- पद के चरणों के अंत में जो समान स्वर आते हैं तथा साम्य में बैठाने के लिए लिये जाते हैं, उन्हें तुक कहते हैं। हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। छंद के भेद- छंद दो प्रकार के होते हैं- मात्रिक छंद- जिन काव्य रचनाओं में मात्राओं की गणना की जाती है तथा इसके आधार पर छंद का गठन किया जाता है, तो इसे मात्रिक छंद कहते हैं। हिंदी के प्रमुख मात्रिक छंद निम्नलिखित हैं- दोहा छंद- यह एक मात्रिक छंद है। इस छंद के विषम चरणों में (प्रथम और तृतीय) 13-13 मात्राएँ तथा सम चरणों (द्वितीय व चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। तुक सम चरणों में होती है। चरण के अंत में लघु होना आवश्यक है। चौपाई- यह मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। तुक पहले चरण की दूसरे चरण से और तीसरे चरण की चौथे चरण से मिलती है। इसका अंत गुरु लघु (SI) से होता है। हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए। रोला छंद- यह एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं। एक पंक्ति में दो चरण होते हैं। जिसकी प्रत्येक पंक्ति के प्रथम चरण में 11-11 व द्वितीय चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पंक्ति में कुल 24 मात्राएँ होती हैं। अंत में दो गुरु होते हैं। इसे रोला छंद कहते हैं। सोरठा छंद- यह एक मात्रिक छंद है। दोहा का उल्टा होता है। इसके पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। उल्लाला छंद- यह एक मात्रिक छंद है। इसकी प्रत्येक पंक्ति में कुल 28 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पंक्ति के प्रथम चरण में 15 मात्राएँ होती हैं तथा द्वितीय चरण में 13 मात्राएँ होती हैं। इसे उल्लाला छंद कहते हैं। हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। गीतिका छंद- यह एक मात्रिक सम छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 14 व 12 कि यति से 26 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण के अंत में लघु, गुरु होता है। हरिगीतिका छंद- यह सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16-12 की गति के साथ 28 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण का अंत लघु-गुरु से होता है। हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। कुण्डली छंद- यह एक मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। यह छंद दोहा और रोला छंद का मिश्रण होता है। जिस शब्द से इस छंद का आरंभ होता है, उसी शब्द से अंत होता है। दूसरी पंक्ति का उत्तरार्ध तीसरी पंक्ति का पूर्वार्ध्द होता है। इस प्रकार के छंद को कुण्डली छंद कहते हैं। इसमें दोहा तथा रोला कुण्डली के समान गुँथे हुए होते हैं। इसमें 6 चरण होते हैं। टीप- दोहा छंद + रोला छंद = कुंडली छंद छप्पय छंद- यह एक विषम मात्रिक छंद है। इसमें 6 चरण होते हैं। यह छंद रोला और उल्लाला छंद का मिश्रण होता है। इसके प्रथम चार चरण रोला और दो चरण उल्लाला के होते हैं। रोला के प्रत्येक चरण में 11-13 की यति पर 24 मात्राएँ और उल्लाला के हर चरण में 15-13 की यति पर 28 मात्राएँ होती हैं। टीप- रोला छंद + उल्लाला छंद = छप्पय छंद इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें। वर्णिक छंद- जिन छंदों में केवल वर्णों की गणना की जाती है तथा वर्णों की संख्या के आधार पर छंद का निर्धारण किया जाता है, उसे वर्णिक छंद कहते हैं। इसमें गण का महत्व होता है। हिंदी के प्रमुख वर्णिक छंद निम्नलिखित हैं- घनाक्षरी छंद- य एक वर्णिक छंद है। इस छंद में एक चरण में कुल 32 वर्ण होते हैं। इसमें 8-8 पर यति से 32 वर्ण होते हैं। इस छंद को घनाक्षरी छंद कहते हैं। टीप- कतिपय विद्वानों ने घनाक्षरी छंद को कवित्त भी स्वीकारा है। मंदाक्रांता छंद- यह एक वर्णिक छंद है। यह छंद मगण, भगण, नगण, दो तगण तथा दो गुरुओं की योग से बनता है। इसके प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं। चौथे, छठे और सातवें वर्ण पर यति होती है। इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें। कवित्त छंद- यह एक वर्णिक छंद है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 16 और 15 के विराम (यति) से 31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है। सवैया- 22 से लेकर 26 वर्ण तक के छंद को सवैया कहते हैं। मत्तगयंद (मालती) सवैया- यह एक वर्णिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में सात भगण और दो गुरु के क्रम में 23 वर्ण होते हैं। इसे मालती सवैया भी कहते हैं। दुर्मिल (चंद्रकला) सवैया- यह एक वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 24 वर्ण तथा आठ सगण होते हैं। इसे चंद्रकला सवैया भी कहते हैं। अतुकांत (मुक्त) छंद- कुछ पद्यांश गद्यात्मक होते हैं। उनमें संगीतात्मकता का अभाव है। इस प्रकार के पद्यांश अतुकांत अथवा मुक्त छंद कहलाते हैं। गेय पद- कुछ पद्यांश लययुक्त होते हैं। उनमें संगीतात्मकता होती है। ऐसे पद गेय पद के लाते हैं। आशा है, छंदों से संबंधित यह जानकारी परीक्षापयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी। I hope the above information will be useful and important. 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