गुरु में कौन सी मात्रा होती है? - guru mein kaun see maatra hotee hai?

इसे सुनेंरोकेंजिन अक्षरों के साथ र की मात्रा मिश्रित है वे भी लघु ही रहते हैं जैसे कि प्र, क्र, श्र आदि ।

मात्राएं कैसे गिने?

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  1. 1- अ, इ, उ की मात्राएँ लघु (।)
  2. 2- आ, ई, ऊ ,ए ,ऐ ओ और औ की मात्राएँ दीर्घ (S) मानी गयी है।
  3. 3- क से लेकर ज्ञ तक व्यंजनों को लघु मानते हुए इनकी मात्रा एक (।)
  4. 4- अनुस्वार (.) तथा स्वरहीन व्यंजन अर्थात आधे व्यंजन की आधी मात्रा मानी जाती है।

चाँद में कितनी मात्रा होती है?

इसे सुनेंरोकेंइसकी प्रत्येक पंक्ति में कुल 28 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पंक्ति के प्रथम चरण में 15 मात्राएँ होती हैं तथा द्वितीय चरण में 13 मात्राएँ होती हैं। इसे उल्लाला छंद कहते हैं।

छंद रचना कैसे करें?

इसे सुनेंरोकेंचरणों की रचना कुछ निश्चित वर्णों अथवा मात्राओं के आधार पर यति के नियमों के अनुसार होती है. प्रायः चार चरणों वाले छन्द चार पंक्तियों में लिखे जाते हैं, लेकिन दोहा, सोरठा और बरवै को दो पंक्तियों में ही लिखने की प्रथा है. अतः इनमें पंक्ति को ‘दल’ भी कहते है. कुछ छंदों- जैसे, छप्पय और कुंडलिया में छः चरण होते है.

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छंद कितने प्रकार होते हैं?

मात्रिक छंद

  • वर्णिक छंद
  • वर्णिक वृत छंद
  • मुक्त छंद
  • दोहे में मात्रा कैसे गिने?

    इसे सुनेंरोकेंजबकी दीर्घ स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ ओ और औ की मात्राएँ दीर्घ (ऽ) मानी जाती हैं। व्यंजनों पर लघु स्वर अ, इ, उ, ऋ आ रहे हों तो भी मात्रा लघु (।) ही रहेगी। किंतु यदि दीर्घ स्वर आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ की मात्राएँ आ रही हों तो मात्रा दीर्घ (ऽ) हो जाती है।

    कौन से स्वर की मात्रा नहीं होती?

    इसे सुनेंरोकें’अ’ वर्ण की कोई मात्रा नहीं होती।

    सोरठा में कितने चरण होते हैं?

    इसे सुनेंरोकेंसोरठा छंद में चार चरण होते हैं। जिनमें 11 चरण विषम संख्या वाले चरणों में और 13 चरण सम संख्या वाले चरणों में होते हैं। विषम चरण के अंत से दूसरा अक्षर गुरु होना चाहिए और अंतिम लघु मात्रा होना चाहिए।

    जिस छंद में चार चरण और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएं होती हैं वह क्या कहलाता है?

    इसे सुनेंरोकेंहरिगीतिका चार चरणों वाला एक सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16 व 12 के विराम से 28 मात्रायें होती हैं तथा अंत में लघु गुरु आना अनिवार्य है। हरिगीतिका में 16 और 12 मात्राओं पर यति होती है।

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    कविता में कितनी मात्राएं होती हैं?

    इसे सुनेंरोकेंचार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 16 – 16 मात्राएं होती है।

    छंद कितने प्रकार के होते हैं बताइए?

    छंद किसे कहते हैं और कितने प्रकार के होते हैं?

    इसे सुनेंरोकेंछन्द के मुख्य तीन भेद हैं (क) वर्णिक, (ख) मात्रिक और (ग) मुक्तक या रबड़। वर्णिक छंद: जिनमें वर्णों की संख्या, क्रम, गणविधान तथा लघु-गुरू के आधार पर रचना होती है। मात्रिक छंद: जिनमें मात्राओं की संख्या, लघु-गुरू, यति-गति, के आधार पर पद-रचना होती है। मुक्तक छन्द: इनमें न वर्णों की गिनती होती है, न मात्राओं की।

    मात्रा कितने प्रकार की होती है?

    इसे सुनेंरोकेंमात्राएं तीन प्रकार की होती है। ह्रस्व, दीर्घ, और प्लुत।

    छंद के कितने अंग होते हैं?

    छंद के अंग निम्नलिखित हैं:

    • १ पाद अथवा चरण छंद की प्रत्येक पंक्ति को पाद अथवा चरण कहते हैं।
    • २ वर्ण बे चिन्ह जो मुख से निकलने वाली ध्वनि को सूचित करने के लिए निश्चित किए गए हैं वर्ण कहलाते हैं वर्ण को अक्सर भी कहते हैं वर्ण दो प्रकार के होते हैं।
    • ३ मात्रा
    • ४ यति
    • ५ गति
    • ६ तुक
    • ७ वर्णिक गण
    • वर्णिक छंद

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    चौपाई छंद में कितनी मात्राएं होती है?

    इसे सुनेंरोकेंचौपाई मात्रिक सम छन्द का एक भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के १६ मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में चौपाइ छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में १६-१६ मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।

    मात्राओं की संख्या कितनी होती है?

    इसे सुनेंरोकेंमात्रा किसे कहते हैं? मात्रा स्वर का ही एक रूप होता है। जो स्वर का ही प्रतिनिधित्व करता है मात्राओं की संख्या ग्यारह होती है। लेकिन दृश्य रूप में मात्राओं की संख्या दश होती है।

    कुंडलियां कैसे लिखें?

    इसे सुनेंरोकेंकुंडलिया दोहा और रोला के संयोग से बना छंद है। इस छंद के ६ चरण होते हैं तथा प्रत्येकचरण में २४ मात्राएँ होती है। इसे यूँ भी कह सकते हैं कि कुंडलिया के पहले दो चरण दोहा तथा शेष चार चरण रोला से बने होते है। दोहा के प्रथम एवं तृतीय चरण में १३-१३ मात्राएँ तथा दूसरे और चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं।

    सुनने और बोलने (श्रवण और उच्चारण) के कारण शब्दों में कई अशुद्धियाँ (त्रुटियाँ – गलतियाँ) आ जाती हैं। हिन्दी की मात्राओं एवं व्याकरण के ज्ञान की कमी प्रायः इन शब्द और वर्तनी की अशुद्धियों का मुख्य कारण होती है।

    कक्षा 5,6,7,8,9 एवं 10 के विद्यार्थियों के लिए विभिन्न प्रकार की शब्द की अशुद्धियों के अशुद्धि शोधन की जानकारी निम्न लेखों में दी गई है:

    गति- गति का अर्थ है प्रवाह अर्थात् छंद को पढ़ते समय प्रवाह एक-सा हो। मात्रिक छंदों के लिए इसका विशेष महत्व है।

    तुक- पद के चरणों के अंत में जो समान स्वर आते हैं तथा साम्य में बैठाने के लिए लिये जाते हैं, उन्हें तुक कहते हैं।

    हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
    1. व्याकरण क्या है
    2. वर्ण क्या हैं वर्णोंकी संख्या
    3. वर्ण और अक्षर में अन्तर
    4. स्वर के प्रकार
    5. व्यंजनों के प्रकार-अयोगवाह एवं द्विगुण व्यंजन
    6. व्यंजनों का वर्गीकरण
    7. अंग्रेजी वर्णमाला की सूक्ष्म जानकारी

    छंद के भेद- छंद दो प्रकार के होते हैं-
    1. मात्रिक छंद
    2. वर्णिक छंद

    मात्रिक छंद- जिन काव्य रचनाओं में मात्राओं की गणना की जाती है तथा इसके आधार पर छंद का गठन किया जाता है, तो इसे मात्रिक छंद कहते हैं। हिंदी के प्रमुख मात्रिक छंद निम्नलिखित हैं-

    दोहा छंद- यह एक मात्रिक छंद है। इस छंद के विषम चरणों में (प्रथम और तृतीय) 13-13 मात्राएँ तथा सम चरणों (द्वितीय व चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। तुक सम चरणों में होती है। चरण के अंत में लघु होना आवश्यक है।
    उदाहरण- 1. मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।
    SS II SS IS SS SII SI 13+11=24
    जा तन की झाँई परे, स्याम हरित दुति होय।
    S II S SS IS SI III II SI 13+11=24
    2. उठे लखनु निसि बिगत सुनि, अरुन सिखा धुनि कान।
    IS III II III II III IS II SI 13+11=24
    गुरु ते पहिलेहि जगत्पति, जागे जानु सुजान।
    II S IISI IIII SS SI ISI 13+11=24

    चौपाई- यह मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। तुक पहले चरण की दूसरे चरण से और तीसरे चरण की चौथे चरण से मिलती है। इसका अंत गुरु लघु (SI) से होता है।
    उदाहरण- 1. ते दोउ बंधु प्रेम जनु जीते।
    S SI II SI II SS =16
    गुरु पद कमल पलोटत प्रीते।
    II II III ISII SS =16
    बार-बार मुनि आज्ञा दीन्हीं।
    SI SI II SS SS =16
    रघुबर आइ सयन सब कीन्हीं।
    IIII SI III II SS =16
    2. मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदशरथ अजर बिहारी।।
    करि प्रणाम रामहि त्रिपुरारी। हरषि सुधा सम गिरा उचारी।।

    हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।
    1. लिपियों की जानकारी
    2. शब्द क्या है
    3. रस के प्रकार और इसके अंग

    रोला छंद- यह एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं। एक पंक्ति में दो चरण होते हैं। जिसकी प्रत्येक पंक्ति के प्रथम चरण में 11-11 व द्वितीय चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पंक्ति में कुल 24 मात्राएँ होती हैं। अंत में दो गुरु होते हैं। इसे रोला छंद कहते हैं।
    उदाहरण- तरनि तनूजा तरू, तमाल तरुवर बहु छाए।
    III ISS IS, ISI III II SS 11+13=24
    झुके कूल सों जल, परसन हित मनहुँ सुहाए।
    IS SI S II, IIII II III ISI 11+13=24
    जमुना जल में लखत, उझकि सब निज-निज शोभा।
    IIS II S III, III II II II SS 11+13=24
    कै उमंगे प्रिय, प्रिया के अनगिन गोभा।
    S ISS SI, SS S IIII SS 11+13=24

    सोरठा छंद- यह एक मात्रिक छंद है। दोहा का उल्टा होता है। इसके पहले और तीसरे चरण में 11-11 मात्राएँ और दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
    उदाहरण- राधा नागरि सोय, मेरी भव बाधा हरौ।
    SS SII SI, SS II SS IS 11+13=24
    श्याम हरित दुति होय, जा तन की झाँई परे।
    SI III II SI, S II S SI IS 11+13=24

    उल्लाला छंद- यह एक मात्रिक छंद है। इसकी प्रत्येक पंक्ति में कुल 28 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पंक्ति के प्रथम चरण में 15 मात्राएँ होती हैं तथा द्वितीय चरण में 13 मात्राएँ होती हैं। इसे उल्लाला छंद कहते हैं।
    उदाहरण- करते अभिषेक पयोद हैं, बलियारी इस देश की।
    IIS IISI ISI S, IISS II SI S 15+13=28
    हे मातृभूमि! तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की।
    S SI SI S IS S, III SS ISI S 15+13=28

    हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
    1. शब्द क्या है- तत्सम एवं तद्भव शब्द
    2. देशज, विदेशी एवं संकर शब्द
    3. रूढ़, योगरूढ़ एवं यौगिकशब्द
    4. लाक्षणिक एवं व्यंग्यार्थक शब्द
    5. एकार्थक शब्द किसे कहते हैं ? इनकी सूची
    6. अनेकार्थी शब्द क्या होते हैं उनकी सूची
    7. अनेक शब्दों के लिए एक शब्द (समग्र शब्द) क्या है उदाहरण
    8. पर्यायवाची शब्द सूक्ष्म अन्तर एवं सूची

    गीतिका छंद- यह एक मात्रिक सम छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 14 व 12 कि यति से 26 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण के अंत में लघु, गुरु होता है।
    उदाहरण- साधु भक्तों में सुयोगी, संयमी बढ़ने लगे।
    SI SS S ISS, SIS IIS IS 14+12=26
    सभ्यता की सीढ़ियों पर, सूरमा चढ़ने लगे।
    ISS S SIS II, SIS IIS IS 14+12=26
    वेद मंत्रों को विवेकी, प्रेम से पढ़ने लगे।
    SI SS S ISS, SI S IIS IS 14+12=26
    वंचकों की छातियों में, शूल से गढ़ने लगे।
    SIS S SIS S, SI S IIS IS 14+12=26

    हरिगीतिका छंद- यह सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 16-12 की गति के साथ 28 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण का अंत लघु-गुरु से होता है।
    उदाहरण- वह सनेह की मूर्ति दयामति, माता तुल्य महीं है।
    II ISI S SI ISII, SS IS IS S 16+12=28
    उसके प्रति कर्त्तव्य तुम्हारा, क्या कुछ शेष नहीं है।
    IIS II IIS SSS, S II SI IS S 16+12=28
    हाथ पकड़ कर प्रथम जिन्होंने, चलना तुम्हें सिखाया।
    SI III II III ISS, IIS IS ISS 16+12=28
    भाषा सिखा हृदय का अद्भुत, रूप स्वरूप दिखाया।
    SS IS III S SI, SI ISI ISS 16+12=28

    हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।।
    1. 'ज' का अर्थ, द्विज का अर्थ
    2. भिज्ञ और अभिज्ञ में अन्तर
    3. किन्तु और परन्तु में अन्तर
    4. आरंभ और प्रारंभ में अन्तर
    5. सन्सार, सन्मेलन जैसे शब्द शुद्ध नहीं हैं क्यों
    6. उपमेय, उपमान, साधारण धर्म, वाचक शब्द क्या है.
    7. 'र' के विभिन्न रूप- रकार, ऋकार, रेफ
    8. सर्वनाम और उसके प्रकार

    कुण्डली छंद- यह एक मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। यह छंद दोहा और रोला छंद का मिश्रण होता है। जिस शब्द से इस छंद का आरंभ होता है, उसी शब्द से अंत होता है। दूसरी पंक्ति का उत्तरार्ध तीसरी पंक्ति का पूर्वार्ध्द होता है। इस प्रकार के छंद को कुण्डली छंद कहते हैं। इसमें दोहा तथा रोला कुण्डली के समान गुँथे हुए होते हैं। इसमें 6 चरण होते हैं।
    उदाहरण- बिना बिचारे जो करे, सो पाछे पछिताय।
    IS ISS S IS, S SS IISI 13+11=24
    काम बिगाडरे आपनो, जग में होत हँसाय।
    SI ISS SIS, II S SI ISI 13+12=24
    जग में होता हँसाय, चित्त में चैन न आवे।
    II S SI ISI, IS S SI I SS 13+11=24
    खानपान, सम्मान, राग, रंग, मनहिं न भावै।
    SISI ISI SI SI IIS I SS 13+11=24
    कह गिरधर कविराय, दुख कुछ टरत न टारें।
    II IIII IISI, II II III I SS 11+13=24
    खटखत है जिय माहि, कियो जो बिना विचारे।
    IIII S II SI, IS S IS ISS 11+13=24

    टीप- दोहा छंद + रोला छंद = कुंडली छंद

    छप्पय छंद- यह एक विषम मात्रिक छंद है। इसमें 6 चरण होते हैं। यह छंद रोला और उल्लाला छंद का मिश्रण होता है। इसके प्रथम चार चरण रोला और दो चरण उल्लाला के होते हैं। रोला के प्रत्येक चरण में 11-13 की यति पर 24 मात्राएँ और उल्लाला के हर चरण में 15-13 की यति पर 28 मात्राएँ होती हैं।
    उदाहरण- जहाँ स्वतंत्र विचार, न बदलें मन में मुख में।
    IS ISI ISI, I IIS II S II S
    जहाँ न बाधक बनें, सबले निबलों के सुख में।
    IS I SII IS, III IIS S II S
    सबको जहाँ समान, निजोन्नति का अवसर हो।
    IIS IS ISI, ISII IIII S
    शांतिदायिनी निशा हर्षसूचक वासर हो।
    SISIS IS, ISSII SII S
    सब भाँति सुशासित हों जहाँ, समता के सुखकर नियम।
    II SI ISII S IS, IIS S IIII III
    बस उसी स्वशासित देश में, जागें हे जगदीश हम।
    II IS ISII SI S, SS S IISI II

    टीप- रोला छंद + उल्लाला छंद = छप्पय छंद

    इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें।
    1. मित्र को पत्र कैसे लिखें?
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    4. माताजी को पत्र कैसे लिखें? पत्र का प्रारूप
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    वर्णिक छंद- जिन छंदों में केवल वर्णों की गणना की जाती है तथा वर्णों की संख्या के आधार पर छंद का निर्धारण किया जाता है, उसे वर्णिक छंद कहते हैं। इसमें गण का महत्व होता है। हिंदी के प्रमुख वर्णिक छंद निम्नलिखित हैं-

    घनाक्षरी छंद- य एक वर्णिक छंद है। इस छंद में एक चरण में कुल 32 वर्ण होते हैं। इसमें 8-8 पर यति से 32 वर्ण होते हैं। इस छंद को घनाक्षरी छंद कहते हैं।
    उदाहरण- नगर से दूर कुछ गाँव की सी बस्ती एक
    हरे भरे खेतों के समीप अति अभिराम।
    जहाँ पत्रजाल अंतराल से झपकते हैं
    लाल खपरैले श्वेत छज्जों के संवारे धाम।
    बीचों-बीच वह वृक्ष खड़ा है विशाल एक
    झूलते हैं बाल कभी जिसकी लताएँ थाम।
    चढ़ी मंजु मालती लता है जहाँ छायीं हुई
    पत्थर के पहियों की चौकियाँ पड़ी है श्याम।

    टीप- कतिपय विद्वानों ने घनाक्षरी छंद को कवित्त भी स्वीकारा है।

    मंदाक्रांता छंद- यह एक वर्णिक छंद है। यह छंद मगण, भगण, नगण, दो तगण तथा दो गुरुओं की योग से बनता है। इसके प्रत्येक चरण में 17 वर्ण होते हैं। चौथे, छठे और सातवें वर्ण पर यति होती है।
    उदाहरण- धाता द्वारा सृजित जग में हो धरा मध्य आके।
    पाके खोये विभव कित प्राणियों ने अनेकों।
    जैसा प्यारा विभव ब्रज के हाथ से आज खोया।
    पाके ऐसा विभव वसुधा में न खोया किसी ने।

    इन प्रकरणों 👇 के बारे में भी जानें।
    1. प्राथमिक शाला के विद्यार्थियों हेतु 'गाय' का निबंध लेखन
    2. निबंध- मेरी पाठशाला

    कवित्त छंद- यह एक वर्णिक छंद है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 16 और 15 के विराम (यति) से 31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।
    उदाहरण- सच्चे हो पुजारी तुम प्यारे प्रेम मंदिर के,
    उचित नहीं है तुम्हें दुख से कराहना।
    करना पड़े जो आत्म त्याग अनुराम वश,
    तो तुम सहर्ष निज भाग्य की सराहना।
    प्रीति का लगाना कुछ कठिन नहीं है, सखे,
    किंतु है कठिन नित्य नेह का निबाहना।
    चाहना जिसे है तुम्हें चाहिए सदैव उसे,
    तन मन प्राण से प्रमोद युत चाहना।

    सवैया- 22 से लेकर 26 वर्ण तक के छंद को सवैया कहते हैं।
    ये अनेक प्रकार के होते हैं- मत्तगयन्द, दुर्मिल, मदिर, चकोर, किरीट सवैया आदि।
    हिंदी के प्रमुख सवैया छंद निम्न लिखित हैं-

    मत्तगयंद (मालती) सवैया- यह एक वर्णिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में सात भगण और दो गुरु के क्रम में 23 वर्ण होते हैं। इसे मालती सवैया भी कहते हैं।
    उदाहरण- धूरि भरे अति शोभित श्यामजू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी।
    खेलत खात फिरे अँगना, पग पैंजनी बाजति पीरी कछौटी।
    वा छवि को रसखानि बिलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी।
    काग के भाग बड़े सजनी, हरि हाथ सौ ले गयौ माखन रोटी।

    दुर्मिल (चंद्रकला) सवैया- यह एक वर्णिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 24 वर्ण तथा आठ सगण होते हैं। इसे चंद्रकला सवैया भी कहते हैं।
    उदाहरण- पुर तैं निकसी रघुवीर वधू धरि-धीर दिये मग में डग द्वै।
    झलकी भरि भाल कनी जल की पुट सूखि गये मधुराधर वै।
    फिर बूझति हैं चलनौ अब केटिक पर्णकुटी करिहौ कित ह्वै।
    तिय की लखि आतुरता पिय की, अँखियाँ अति चारू चलीं जल च्वै।

    अतुकांत (मुक्त) छंद- कुछ पद्यांश गद्यात्मक होते हैं। उनमें संगीतात्मकता का अभाव है। इस प्रकार के पद्यांश अतुकांत अथवा मुक्त छंद कहलाते हैं।
    मुक्त छंद के प्रवर्तक 'सूर्यकांत त्रिपाठी निराला' हैं।
    उदाहरण- हम नदी के द्वीप हैं।
    हम नहीं कहते कि हमको छोड़कर स्त्रोतस्विनी बह जाए,
    वह हमें आकार देती है।

    गेय पद- कुछ पद्यांश लययुक्त होते हैं। उनमें संगीतात्मकता होती है। ऐसे पद गेय पद के लाते हैं।
    उदाहरण- उसकी देहरी पर अपना माथा टेककर,
    हम उन्नत होते हैं उसको देखकर।
    ऋतुओं! उसको नित नूतन परिधान दो,
    झुलस रही है धरती, सावन दान दो।

    आशा है, छंदों से संबंधित यह जानकारी परीक्षापयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
    धन्यवाद।
    RF Temre
    infosrf.com

    I hope the above information will be useful and important.
    (आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।)
    Thank you.
    R F Temre
    infosrf.com


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