क्या तलाक के बाद पत्नी को गुजारा भत्ता मिल सकता है? - kya talaak ke baad patnee ko gujaara bhatta mil sakata hai?

महिलाओं के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि यदि किसी महिला ने एकतरफा तलाक लिया है तो भी वो पति से गुजारा भत्ता ले सकती है। अगर तलाकशुदा पत्नी अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है तो वो गुजारा भत्ता यानी मेंटीनेंस की हकदार है।

यहाँ तक कि एकतरफा तलाक़ देने वाली पत्नी भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने भरण-पोषण के लिए मांग कर सकती है। मामला रेहाना खातून वर्सेस जार्गिस हुसैन, मुर्शिदाबाद, कोलकाता का है।

यहाँ एक तरफा तलाक लेने वाली रेहाना खातून ने गुजारे भत्ते के लिए याचिका डाली थी। लेकिन अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, 5वीं अदालत ने महिला की याचिका खारिज कर दी। सेशन कोर्ट ने इस याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि याची ने खुद ही अपने पति से एकतरफा तलाक लिया है।

अत: उसे भरण-पोषण के लिए बेसहारा नहीं माना जा सकता। उसने अपने पति की खुद उपेक्षा की थी। इसलिए याची का भरण पोषण के लिए किया गया दावा गलत है।

जज ने कहा कि हमें ऐसा भी कोइ सबूत नहीं मिला कि याची के साथ उसके पति द्वारा कोइ हिंसा या अत्याचार किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में कई तथ्यों पर विचार करते हुए कहा कि कानून कहता है कि यदि पत्नी अपनी गुजर बसर करने में असमर्थ है तो वह गुजारे भत्ते की हकदार है। वह तब तक गुजारे भत्ते की हकदार है जब तक उसका पुनर्विवाह नहीं हो जाता।

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क्या तलाक के बाद पत्नी को गुजारा भत्ता मिल सकता है? - kya talaak ke baad patnee ko gujaara bhatta mil sakata hai?

क्या कहती है भारतीय दंड संहिता (CRPC), धारा 125

CRPC की धारा 125 पत्नी, संतान और माता-पिता के भरण पोषण यानी गुजारा भत्ता के अधिकार के बारे में बताती है। धारा 125 में ये भी बताया गया है कि किन परिस्थितियों में गुजारा भत्ता दिया जाना है या नहीं। इसे अंग्रेजी में मेंटीनेंस, हिन्दी में भरण पोषण और आम भाषा में गुजारा भत्ता कहते हैं।

ज्यादातर इस धारा का प्रयोग तलाक के केस में होता है। धारा 125 के तहत पत्नी अपने पति से गुजारे भत्ते की मांग कर सकती है। यदि पत्नी अपना भरण पोषण करने में असमर्थ है तो वह इस धारा के तहत केस करके गुजारा भत्ता मांगती है।  

धारा 125 के तहत बताया गया है कि यदि कोइ पर्याप्त साधन वाला व्यक्ति है तो उसे अपने आश्रित, माता-पिता, संतान या पत्नी (तलाकशुदा) को गुजारा भत्ता देना होगा। ऐसे सक्षम व्यक्ति को मजिस्ट्रेट गुजारा भत्ता देने के लिए आदेश देते हैं। गुजारा भत्ता कितना होगा यह मजिस्ट्रेट के विवेकाधिकार और गुजारा भत्ता माँगने वाले की जरूरत के अनुसार निर्धारित किया जा सकता है।   

कौन है हकदार

गुजारा भत्ता किन परिस्थतियों में और किन को मिल सकता है इसके बारे में भी 125 में विस्तार से बताया गया है।

  • ऐसी पत्नी या संतान जो अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हो।
  • ऐसी संतान जो अवयस्क हो (चाहे विवाहित या अविवाहित) लेकिन इसमे समर्थ विवाहित पुत्री नहीं आती।
  • ऐसी व्यस्क पुत्री जिसका पति पर्याप्त ना कमाता हो या अक्षम हो।
  • ऐसी संतान जो व्यस्क तो है लेकिन किसी कारण से विकलांग है, या हो गया है, मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम है।

किसे नहीं मिल सकता गुजारा भत्ता

  • ऐसी पत्नी जिसने तलाक के बाद पुनर्विवाह कर लिया हो।
  • ऐसी पत्नी जो आपसी सहमती से अलग रहती हो।
  • ऐसी पत्नी जो जारता यानी अवैध सम्बन्ध में हो।
  • ऐसी पत्नी जो बिना पर्याप्त कारण के पति के साथ रहने से इनकार करती हो।   

व्याख्या

लेकिन इस केस में कोर्ट ने ये फैसला दिया कि ऐसी पत्नी भी गुजारे भत्ते की अधिकारी है जिसने अपने पति को एकतरफा तलाक दिया हो। ऐसे में लोअर कोर्ट का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने इसलिए खारिज किया कयोंकि एकतरफ़ा तलाक के भी कुछ आधार होते हैं। एकतरफा तलाक तभी संभव हुआ होगा जब उन आधारों को कोर्ट ने न्यायसंगत माना होगा। इन आधारों पर तलाक होने के बाद निराश्रित पत्नी गुजारे भत्ते की अधिकारी है।

क्या तलाक के बाद पत्नी को गुजारा भत्ता मिल सकता है? - kya talaak ke baad patnee ko gujaara bhatta mil sakata hai?

एैसी महिलाएं भरण-पोेषण प्राप्त करने की हकदार नहीं हैं

(भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए अयोग्ताएं)

क्या तलाक के बाद पत्नी को गुजारा भत्ता मिल सकता है? - kya talaak ke baad patnee ko gujaara bhatta mil sakata hai?

पत्नी के लिए भरण-पोषण न देने वाले निर्णय और सूचनाओं को ढूंढ रहे व्यक्ति कानून के तहत भरण-पोषण दिये जाने वाले प्रावधान के एक मूलभूत कारण को भूल जाते हैं । विभिन्न वैवाहिक एवं अन्य कृत्यों में भरण-पोषण का प्रावधान जनसंख्या के एक बड़े हिस्से के बीच योनी और विनाश को रोकना है । हांलांकि, समय बीतने के साथ-साथ यह भरण-पोषण के मामले, बेईमान महिलाओं के हाथ मेें जबरन वसूली करने का हथयार बन चुके हैं। मैनें पहले एक लेख लिखा था कि भारतीय (हिन्दू) महिलाओं के लिए भरण-पोषण का प्रावधान स्वर्ग के समान है । शुक्र है कि विधान-सभा ने अपने बुद्धि का प्रयोग करते हुए एैसे सुरक्षा के प्रावधान भी प्रदान किये हैं जो कि बेईमान महिलाओं को भरण-पोषण प्रदान करने के प्रावधान को रोकते हैं ।

हमें यह समझना होगा कि भरण-पोषण प्रदान करने के लिए मुख्यतः निम्नलिखित कारक कार्य करते हैंः –

  • महिला एक शादीशुदा पत्नी होनी चाहिए या तलाकशुदा पत्नी जिसने दोबारा विवाह नहीं किया हो ।
  • उसके पास दूर रहने और भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए वैध कारण मौजूद हो ।
  • पति के द्वारा उसको कम भरण-पोषण की राशि देने या राशि देने में आनाकानी करने या राशि देने से मना किया गया हो ।
  • यदि परिस्थितियों में बदलाव होता है तो किसी भी प्रकार का प्रदान किया गया भरण-पोषण न्यायालय के द्वारा बदला या रद्य किया जा सकता है ।
  • तलाकशुदा महिला की शादी के अधिकार समाप्त किये गये हों ।

इसलिए उपरोक्त तथ्यों को बुनियाद मानते हुए निम्नलिखित श्रेणी की महिलाएं भरण-पोषण की राशि का दावा नहीं कर सकती हैं । बेशक इस लिस्ट में उन महिलाओं को शामिल नहीं किया गया है जो कि स्वयं के भरण-पोषण करने के लिए पर्र्याप्त आय प्राप्त कर रही हों ।

क्या तलाक के बाद पत्नी को गुजारा भत्ता मिल सकता है? - kya talaak ke baad patnee ko gujaara bhatta mil sakata hai?

महिला जो कि जारता की दशा में रह रही होंः सी.आर.पी.सी. की धारा 125 की उपधारा 4 के तहत कोई भी महिला अपने पति से भरण-पोषण की राशि या भत्ता प्राप्त करने की हकदार नहीं होगी जो कि जारता की दशा में रह रही हों । इसका अर्थ यह है कि पत्नी अपने पति से भरण-पोषण की राशि का दावा करने का अधिकार खो बैठंगी जो कि बावजूद इसके कि चाहे वह स्वयं के लिए पर्याप्त आय अर्जित कर रही हो या फिर जारता की दशा में रह रही हों । हालांकि जारता की दशा में रहने को एकान्त में रहने या जारता में रहने की दशा के छिटपुट उदाहरण हो । जारता की दशा में रहना जारता के आचरण की निरंतर प्रक्रिया है । बोम्बे और गोहवाटी के उच्च न्यायालयों ने जारता मंे रहने की दशा को वर्तमान काल के समय को दर्शाता है और धारा 125(4) वर्तमान काल को दर्शाता है । जबकि मद्रास एवं अन्य उच्च न्यायालयों ने यह माना है कि पत्नी यदि किसी एैसे आदमी के साथ भरण-पोषण की याचिका दाखिल करने के कुछ समय पहले या बाद में अस्थाई रूप से रह रही थी तो तब उसका भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार समाप्त हो जायेगा । यह धारा तब भी लागू होगी जब तलाक की डिक्री का अवार्ड प्राप्त करने के पश्चात महिला किसी और के साथ जारता की दशा में रहना शुरू करती है तो तब इस सम्बन्ध में सबूत दाखिल करने के बाद ही एैसे भरण-पोषण प्रदान करने के अवार्ड को रद्य कर दिया जायेगा ।

महिला जो कि दूसरा विवाह करती हैः यदि महिला दूसरा विवाह करती है तो तब यह तर्कपूर्ण हो जाता है कि इससे वह भरण-पोषण प्राप्त करने के अधिकार से वंचित हो जायेगी । इसे निरंतर जारता भी माना जायेगा जब यह पहली शादी के अस्तित्व में रहते हुए किया गया हो।

महिला जिसने अपनी मर्जी से पति के साथ रहने से मना कर दिया होः महिला के द्वारा अपनी मर्जी से अपने पति के साथ रहने से मना करने का अर्थ यह माना जायेगा कि उस पत्नी को कोई भरण-पोषण की राशि अदा नहीं की जायेगी । हालांकि, पति के साथ अलगाव में रहने या उसके साथ रहने से मना करने को साबित किया जायेगा ।

महिला जिसने अपनी मर्जी से पति के साथ रहने से मना कर दिया होःमहिला के द्वारा अपनी मर्जी से अपने पति के साथ रहने से मना करने का अर्थ यह माना जायेगा कि उस पत्नी को कोई भरण-पोषण की राशि अदा नहीं की जायेगी । हालांकि, पति के साथ अलगाव में रहने या उसके साथ रहने से मना करने को साबित किया जायेगा । न्यायालय के समक्ष एैसे कई मामले आये हैं जिसमें पत्नी अपने पति पर उसके माता-पिता से अलग रहने पर दबाव डालती है, पत्नी अपने माता-पिता के साथ उनकी कृषि भूमि की देखरेख करती है, पत्नी अपने सास-ससुर के साथ रहने से इन्कार करती है । पत्नी के द्वारा अपने पति से अलग रहने के लिए उसको अनावश्यक परिस्थिति में डालना और पति से अलग रहने के लिए निरर्थक एवं नीरस बहाने बनाना, यह पर्याप्त कारण है उस महिला को भरण-पोषण देने से इन्कार करने का ।

महिला जिसके पक्ष में बहाली की डिक्री पारित की गई होः

उपरोक्त के फलस्वरूप, वैवाहिक अधिकारों की बहाली की डिक्री पारित करना इस बात का प्रमाण है कि पत्नी के द्वारा बिना किसी उचित कारण के वह वापिस आना चाहती है वह भी बिना किसी उचित बहाने के और इसे उसके द्वारा पति से अलग स्वेच्छा से रहना माना जायेगा। हालांकि इस विषय पर न्यायालयांे का मत विभाजित है कि क्या वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एकतरफा डिक्री पारित करना पर्याप्त है । इन मामलों में न्यायालय पत्नी के आचरण पर विचार करती है कि क्या उसको नोटिस की तामील हुई, क्या उसके द्वारा डिक्री को चुनोती दी गई है या नहीं । न्यायालय के द्वारा डिक्री पारित होने के बाद पति के आचरण को भी देखा गया है । यदि अपने पक्ष में पारित हुई डिक्री के बाद भी वह अपनी पत्नी को उसको अपने साथ रखने की अनुमति नहीं देता है तो तब पत्नी को उसका भरण-पोषण दिया जायेगा ।

महिला जिसकी भरण-पोषण याचिका सक्षम न्यायालय के द्वारा खारिज कर दी गई होः

वर्तमान कानूनी स्थिति के अनुसार, यह मजिस्ट्रेट का दायित्व है कि वह भरण-पोषण भत्ता देने के सम्बन्ध में सक्षम दीवानी न्यायालय के निर्णय की पालना करे ।  इसका अर्थ यह कि यदि दीवानी न्यायालय के पास आपराधिक न्यायालय द्वारा पारित कोई आदेश आता है तो तब मजिस्ट्रेट का यह दायित्व होगा कि वह भरण-पोषण भत्ते को सी.आर.पी.सी की धारा 125 के तहत रद्य कर दे । हालांकि यहां यह समझना आवश्यक है कि हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत पारित आदेश पर विचार नहीं करना है क्योंकि यह केवल भरण-पोषण से संबंधित है । केवल दीवानी न्यायालय का अंतिम आदेश ही मान्य होगा । दीवानी न्यायालय के द्वारा हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 25 और हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम के तहत पारित आदेश का पालन किया जायेगा । यदि महिला को बिना भरण-पोषण के तलाक दिया जाता है तो तब मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी सकती है क्योंकि यह अनिवार्य होगा कि के पास अपने पति से अलग रहने का कोई कारण नहीं है और उसका आचरण एैसा था कि वह भरण-पोषण प्राप्त करने की हकदार नहीं है । इस कानूनी स्थिति को विशेषकर विभिन्न न्यायालयों के समक्ष एक ही तथ्य को साबित करने से बचने के लिए तैयार किया गया है ।

जहां महिला अलग से रह रही हो और उसके द्वारा भरण-पोषण का त्याग कर दिया गया होः

हालांकि नवीनतम निर्णयों के अवलोकन से, इस तथ्य पर कुछ आशंका है । हालांकि आम सहमति यह है कि यदि महिला ने स्वेच्छा से भरण-पोषण प्राप्त करने के अपने हक को त्याग दिया हो या एकमुश्त भरण-पोषण की राशि प्राप्त कर ली हो या फिर वह भविष्य में कभी भी भरण-पोषण राशि का दावा नहीं करेगी । यह कहा जाता है कि भरण-पोषण का अधिकार सार्वजनिक नीति के खिलाफ है इसलिए यह निरस्त है और इसलिए इसे त्याग करने के बावजूद यदि परिस्थितियों में कोई बदलाव आता है तो, यदि वह स्वयं का रखरखाव नहींं कर पा रही होे, तब वह भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए दावा कर सकती है । लेकिन एैसी परिस्थितियों में न्यायालय परिस्थितियों मे आये भीषण बदलाव पर ज़ोर देता है ।

जहां महिला के विरूद्ध उसकी स्वयं की गलती के लिए तलाक पारित किया गया हो:

हालांकि तलाकशुदा पत्नी भरण-पोषण प्राप्त करने का दावा कर सकती है जहां प्रारंभ मंे वह स्वयं की गलती या अपराध के कारण अपने पति से अलग रही हो जो की भरण-पोषण प्राप्त करने पर भारी पड़ता हो, जो न्यायालय के द्वारा स्वीकृत किया जायेगा । हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत न्यायालय के द्वारा स्थाई भरण-पोषण का निर्णय करते वक्त पक्षकारों का आचरण एक निर्णायक कारक होता है । उच्च न्यायालयों के द्वारा एैसे कई निर्णय पारित किये गये हैं जहां महिला को जारता, क्रूरता और अलगाव के कारण तलाक दिया गया हो,  जहां पर न्यायालय ने या तो न्यूनतम भरण-पोषण राशि के लिए इन्कार किया हो या स्वीकृती दी हो ।

मेरे द्वारा उपरोक्त में मेरे समक्ष आये ज्यादातर प्रश्नों के सम्बन्ध में स्पष्टीकरण दिया गया है। यदि आपको कोई अन्य प्रश्न के बारे में जानना हो जो कि उपरोक्त में वर्णित नहीं की गई हो तो आप इसके बारे में कमैन्ट सैक्शन में या मेरी EMAIL – पर पूछ सकते हैं ।

यदि आप भरण-पोषण के मामलों में आदमी के हक में पारित नवीनतम निर्णय के बारे में जानना चाहते हैं तो मैं आपको यह सलाह दूंगा कि आप इस पेज को पढें

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क्या पति भारत में पत्नी से गुजारा भत्ता का दावा कर सकता है?

मतलब साफ है कि पति साथ न रहने की परिस्थितियां बनाए तो पत्नी गुजारा-भत्ते का दावा कर सकती है. अदालत ने कहा कि न्यायाधीशों को निश्चित परिस्थितियों में पत्नियों के भरण-पोषण से संबंधित दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के पीछे के उद्देश्य को भी ध्यान में रखना चाहिए.

पति पत्नी के झगड़े में कौन सी धारा लगती है?

- सीआरपीसी धारा 227: अगर पत्नी दहेज प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए आईपीसी धारा 498A के तहत झूठा केस करती है, तो पति सीआरपीसी की धारा 227 के तहत अपनी पत्नी के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकता है कि उसकी पत्नी ने उसके खिलाफ झूठा केस किया है.

पत्नी के क्या अधिकार है?

पत्नी के अधिकार क्या-क्या हैं?.
स्त्रीधन का अधिकार ... .
पति के घर में रहने का अधिकार ... .
जीवनस्तर के रख-रखाव का अधिकार ... .
पति से रिश्ते का अधिकार ... .
गरिमा के साथ जीने का अधिकार ... .
सरनेम यथावत रखने का अधिकार ... .
शादी कंज्युमेट न होने पर उसे निरस्त करने का अधिकार ... .
पति की रिहायशी संपत्ति में अधिकार.

दूसरे की पत्नी को क्या माना जाता है?

दूसरी पत्नी, जिसका पति के साथ विवाह कानून के नज़रिए से अवैध माना जाता है, आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1974 की धारा 125 के तहत अपने पति से भरण-पोषण के अधिकार का लाभ नहीं ले सकती है।