गजब हो गया ऐसी बस अपने आप चलती है लेखक को यह सुनकर हैरानी क्यों हुई Class 8 - gajab ho gaya aisee bas apane aap chalatee hai lekhak ko yah sunakar hairaanee kyon huee chlass 8

“गज़ब हो गया। ऐसी बस अपने आप चलती है।”
• लेखक को यह सुनकर हैरानी क्यों हुई?


जब लेखक ने बस को जर्जर व क्षीण अवसर मे देखा तो उस यह विश्वास नहीं था कि वह सफर तय कर सकेगी। इसी कारण उसने कंपनी के हिस्सेदार से यह पूछा कि यह बस चलती भी है तो उन्होंने उत्तर दिया कि यह अपने-आप चलती है। यही लेखक की हैरानी का कारण था।

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आप अपनी किसी यात्रा के खट्टे-मीठे अनुभवों को याद करते हुए एक लेख लिखिए।


पिछले वर्ष मैं अपने विद्यालय की ओर से जयपुर घूमने गया। हम पचास बच्चे थे व पाँच अध्यापिकाएँ हमारे साथ थीं। बड़ी खुशी-खुशी हमारी बस शाम को पाँच बजे जयपुर के लिए रवाना हुई। हमें कहा गया कि सुबह पाँच बजे तक हम लीग जयपुर पहुँच जाएँगे। जैसे ही बस चली ऐसा लगा कि जैसे मनचाही मुराद पूरी होने जा रही हो। हमने खूब खेल खेलने व नाच-गाना शुरू कर दिया। अध्यापिकाएँ भी बड़े आनंद भाव से हमारा साथ दे रही थीं। हमने नौ बजे अपने-अपने खाने के डिब्बे खोले और मजे से सब अपने मनपसंद भोजन का आनंद लेने लगे। फिर अध्यापिकाओं ने कहा कि हमें थोड़ी देर आराम करना चाहिए लेकिन हमें चैन, कहाँ हमने फिर अंताक्षरी खेलनी प्रारंभ कर दी। रात के दो बज गए लेकिन किसी की आँखो में नींद न थी। लगभग तीन बजे के करीब एकदम सुनसान जंगल में भरतपुर के पास अचानक हमारी बस का टायर पंचर हो गया। न चाहते हुए भी बस रोकनी पड़ी। हम सब डर गए थे। अचानक दो लुटेरे बस मै चढ़ आए उन्होंने हम सबसे नगदी बटोर ली। हम व हमारी अध्यापिकाएँ सभी डर गए। टायर के ठीक होते ही हम सोच में पड़ गए कि क्या करें? वापिस घरों की ओर जाएँ या जयपुर। तभी हमारी अध्यापिका ने प्रधानाचार्य को फोन किया तो उन्होंने कहा कि बच्चों का उत्साह बनाए रखो और सीधा जयपुर गोल्डन होटल में ही जाकर ठहरो। शाम तक वे स्वयं वहाँ आ रही हैं। उन्होंने शाम की वहाँ पहुँचकर जैसे सबके चेहरों को मुस्कुराहट दे दी और अगले दिन सुबह से लगातार तीन दिन तक हमें घुमाती रहीं और जिस बच्चे ने जो भी पसंद किया उन्होंने इसे लेकर दिया। हम लुटेरों की बात भूल भी गए और जयपुर का मजा लेन लगे।

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“लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफर नहीं करते।”
• लोगों ने यह सलाह क्यों दी?


‘समझदार आदमी इस शाम वाली बस में सफर नहीं करते’ लोगों ने लेखक और उसके मित्रों को यह सलाह इसलिए दी क्योंकि वे जानते थे कि बस की हालत बहुत खराब है। रास्ते में बस कभी भी और कहीं भी धोखा दे सकती है।

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“मैंने उस कंपनी के हिस्सेदार की तरफ पहली बार श्रद्धाभाव से देखा।”
• लेखक के मन में हिस्सेदार साहब के लिए श्रद्धा क्यों जग गई?


पुलिया के ऊपर बस का टायर पंचर (फिस्स) हो गया। जिससे बस जोर से हिलकर रुक गई। अगर यह बस तेज गति से चल रही होती तो अवश्य ही उछलकर नाले में गिर जाती। ऐसे में लेखक ने कंपनी के हिस्सेदार की ओर श्रद्धाभाव से देखा। यह श्रद्धा इसलिए जागी क्योंकि हिस्सेदार केवल अपने स्वार्थ हेतु लाचार था। वह जानता था कि बस के टायर खराब हैं और कभी भी लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है। फिर भी निरंतर बस को सड़क पर दौड़ा रहा था। यात्रियों की चिंता किए बिना धन बटोरने पर लगा था।

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“ऐसा जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं।”
• लेखक को ऐसा क्यों लगा?


जब बस को चालक ने स्टार्ट किया तो सारी बस में अजीब-सी धड़कन उत्पन्न हुई। ऐसे में लेखक और उसके मित्रों को लगा कि जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के अंदर बैठ हैं। अर्थात् इंजन के स्टार्ट होने पर इंजन के पुर्जो की भाँति बस के यात्री हिल रहे थे और पूरी बस में इंजन का शोर गूँज रहा था।

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“हम पाँच मित्रों ने तय किया कि शाम चार बजे की बस से चलें। पन्ना से इसी कंपनी की बस सतना के लिए घंटे भर बाद मिलती है।”
ने, की. से आदि शब्द वाक्य के दो शब्दों के बीच संबंध स्थापित कर रहे हैं। ऐसे शब्दों को कारक कहते हैं। इसी तरह जब दो वाक्यों को एक साथ जोड़ना होता है ‘कि’ का प्रयोग होता है।
• कहानी में से दोनों प्रकार के चार वाक्यों को चुनिए।


 

कारक शब्द से निर्मित वाक्य-
1. पन्ना से इसी कंपनी की बस सतना के लिए घंटे भर बाद मिलती है।
2. यह बस पूजा के योग्य थी।
3. बस कंपनी के एक हिस्सेदार भी उसी बस में जा रहे थे।
4. नई नवेली बसों से ज्यादा विश्वसनीय है।

• कि योजक शब्द से बनने वाले वाक्य-
1 लोगों ने सलाह दी कि समझदार आदमी इस शाम वाली बस से सफर नहीं करते।
2. हमें लग रहा था कि हमारी सीट के नीचे इंजन है।
3. कभी लगता कि सीट को छोड्कर बॉडी आगे भागी जा रही है।
4. मालूम हुआ कि पेट्रोल की टंकी में छेद हुआ है।

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गजब हो गया बस अपने आप चलती है लेखक को यह सुनकर हैरानी क्यों हुई?

Solution : लेखक को यह सुनकर हैरानी इसलिए हुई कि देखने में तो बस अत्यन्त पुरानी खटारा-सी लग रही थी। उसे देखकर विश्वास नहीं हो पा रहा था कि यह सफर तय कर सकेगी। इसी कारण उसने कम्पनी के हिस्सेदार से पूछा कि यह बस चलती भी है, तब उन्होंने कहा कि यह अपने आप चलती है। यही लेखक की हैरानी का कारण था।

ऐसा जैसे सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर लेखक को ऐसा क्यों लगा?

लेखक कहता है बस के स्टार्ट होते हुए वो इतना शोर कर रहा था मानो कि उन्हें ऐसा लगा जैसे इंजन आगे नहीं अपितु पूरी बस में लगा हो, क्योंकि उसका इंजन दयनीय स्थिति में था। इससे पूरी बस हिल रही थी, इसलिए उन्हें लगा की सारी बस ही इंजन है और हम इंजन के भीतर बैठे हैं।

बस की यात्रा व्यंग्य में लेखक व उसके मित्रों को उस शाम वाली बस से यात्रा क्यों नहीं करनी चाहिए थी?

इसलिए वापसी का यही रास्ता अपनाना जरूरी था। उनके जो जानकर लोग थे उन्होंने उन्हें सलाह दी कि अगर कोई समझदार व्यक्ति होगा तो इस शाम को चलने वाली बस से यात्रा करना पसंद नहीं करेगा, क्योंकि शाम के थोड़ी देर बाद काफी अँधेरा हो जाता है और रात के समय में यात्रा करना सुरक्षित नहीं रहता।

कौन सी बस अपने आप चलती है?

उत्तर – 'गज़ब हो गया, ऐसी बस अपने आप चलती है। ' यह बात लेखक ने बस कंपनी के हिस्सेदार से बस में सवार होने से पहले कही क्योंकि बस अत्यधिक पुरानी और खटारा दिखाई दे रही थी। 'अगर इसका प्राणांत हो गया तो इस बियाबान में हमें इसकी अंत्येष्टि करनी पड़ेगी।