छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध प्राचीन शिव मंदिर Show
गर्भगृह में मौजूद स्वयंभू शिवलिंग भूरे रंग की है। सुरंग टीला मंदिर: सुरंग टीला मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के महासमुंद जिले में सिरपुर शहर में स्थित 7 वी शाताब्दी का एक प्राचीन शिव मंदिर है। इस पश्चिममुखी विशाल मदिर में पाँच गर्भगृह हैं जिनमें चार भिन्न प्रकार के शिवलिंग हैं – सफ़ेद, काला, लाल और पीला, और अन्य एक गर्भगृह में भगवान गणेश की प्रतिमा विराजमान है। पुर्ण पढ़ें भूतेश्वरदेव महादेव: लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर भोरमदेव मंदिर: कुलेश्वर मंदिर: पातालेश्वर/केदारेश्वर महादेव: पातालेश्वर/केदारेश्वर महादेव मंदिर बिलासपुर जिले के मल्हार में स्थूत है। बिलासपुर शहर से 32 किलोमीटर दूरी पर स्थित नगर पंचायत मल्हार एक ऐतिहासिक स्थल है। मंदिर का निर्माण कल्चुरी काल में 10वीं से 13वीं सदी में सोमराज नामक ब्राह्मण ने कराया था। पुर्ण पढ़ें छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय संरक्षित मंदिर छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय संरक्षित मंदिरों की संख्या कुल 39 है, जिनकी देखरेख केंद्रीय पुरातत्व विभाग के द्वारा किया जाता है। इन मंदिरो में सबसे अधिक 17 शिव मंदिर हैं। बाकी 22 मंदिर विष्णु, बुद्ध, दंतेश्वरी समेत अन्य देवी-देवताओं के हैं। 39 संरक्षित मंदिरों में से विभिन्ना देवी-देवताओं के 19 ऐसे ऐतिहासिक मंदिर हैं, जहां आज भी नियमित रूप से पूजा होती है, जिनमें आठ मंदिर शिवजी के हैं। राष्ट्रीय संरक्षित आठ शिव मंदिरो की सूची, जहां पूजा होती है :
Mandir अम्बिकापुर[संपादित करें]यहां महामाया मंदिर है, जो कि देवी दुर्गा को समर्पित है। मान्यताओं के अनुसार यह इक्यावन शक्तिपीठ। शक्तिपीठों में से एक है। राजिम[संपादित करें]छत्तीसगढ़ का प्रयाग राजिम रायपुर से 47 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह महानदी के तट पर स्थित है। यहॉ पैरी और सोंढू नदियॉ महानदी में आकर मिलती हैं। माघ पूर्णिमा पर यहॉ प्रतिवर्ष मेला लगता है। जहॉ बड़ी संख्या में धर्मालु पवित्र महानदी में स्नान का पुण्य कमाते हैं। यहॉ भगवान राजीव लोचन का बेहद सुन्दर, प्राचीन मन्दिर है। इसके साथ ही मंदिरों के समूह भी हैं। जिनका विशेष धार्मिक महत्व है।]] राजीव लोचन मन्दिर के अतिरिक्त यहॉ कुलेश्वर महादेव, राजेश्वर मंदिर, जगन्नाथ मन्दिर, पंचेश्वर महादेव मन्दिर, भूलेश्वर महादेव मन्दिर, नरसिंह मन्दिर, बद्रीनाथ मन्दिर, वामन वराह मन्दिर, राजिम तेलीन का मन्दिर, दानेश्वर मन्दिर, रामचन्द्र मन्दिर, सोमेश्वर महादेव मन्दिर, शीतला मन्दिर प्रमुख दर्शनीय हैं, जो अपनी वास्तुकला का परिचय देते है। प्राचीन कथानुसार राजिम का प्राचीन नाम कमल क्षेत्र या पद्मपुर था, जो इसका संबंध राजीव तेलीन, राजीव लोचन तथा जगपाल से जोड़ता है। कथानुसार राजीव तेलीन के पास काले पत्थर की मूर्ति थी। जगपाल ने राजीव तेलीन को सोना देकर मूर्ति प्राप्त कर राजीव लोचन नामक मन्दिर बनवाया। राजीव लोचन मन्दिर जगन्नाथपुरी जाने वाले तीर्थयात्रियों के रास्ते में आने वाले महत्वपूर्ण मन्दिरों में से एक है।]] राजिम के लिये नियमित बस सेवा, रेल्वे लाइन (रायपुर-धमतरी छोटी रेल्वे लाइन) एवं टैक्सयाँ भी रायपुर व अभनपुर से उपलब्ध हैं। राजिम के पास महानदी पर लंबा पुल बन जाने पर बारहमासी सड़क संपर्क स्थापित हो गया है। अन्य स्थल[संपादित करें]चंपारण्यरायपुर से 60 किलोमीटर दूर चम्पारण्य वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक वल्लभाचार्य जी की जन्म-स्थली होने के कारण यह उनके अनुयायियों का प्रमुख दर्शन स्थल है। यहॉ चम्पकेश्वर महादेव का पुराना मन्दिर है। इस मन्दिर के शिवलिंग के मध्य रेखाएँ हैं। जिससे शिवलिंग तीन भागों में बँट गया है, जो क्रमशः गणेश, पार्वती व स्वयं शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं। डोंगरगढ़डोंगरगढ़ हावड़ा-मुंबई रेल्वे मार्ग पर स्थित राजनांदगॉव से 59किलोमीटर दूर है। यहॉ पहाड़ी के ऊपर मॉ बम्लेश्वरी का विशाल मन्दिर है। नवरात्रि में यहॉ अपार जन-समूह माता जी के दर्शन के लिये आते हैं। इस मन्दिर का निर्माण राजा कामसेन ने करवाया था। दन्तेवाड़ाबस्तर की आराध्या देवी मॉ दंतेश्वरी की पावन नगरी दंतेवाड़ा है। यह डंकिनी-शंखिनी नदी के संगम पर स्थित है। यह जगदलपुर से 85 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसका निर्माण रानी भाग्येश्वरी देवी द्वारा कराया गया था। पुरातात्विक महत्व के इस मन्दिर में मॉ दन्तेश्वरी के दर्शन के लिये भक्तों को सात दरवाजों से होकर गुजरना पड़ता है। माता के दर्शनार्थी युवकों को धोती पहनना अनिवार्य होता है। धोती की व्यवस्था मन्दिर में ही रहती है। दन्तेवाड़ा में भैरव बाबा का एक प्रमुख मन्दिरशंखिनी नदी के दूसरे तट पर स्थित है। संगम स्थल पर एक विशाल शिलाखण्ड में एक पद चिह्न माना जाता है। दंतेश्वरी मन्दिर के पास ही आदिवासी समाज के प्रमुख देव भीमा देव जो कि अकाल और बाढ़ से बचाने वाले माने गये हैं। उनकी विशेष प्रतिमा स्थित है। बारसूरबस्तर की ऐतिहासिक नगरी बारसूर को नागवंशीय राजाओं की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। यह जगदलपुर दन्तेवाड़ा मार्ग में गीदम से 23किलोमीटर दूर है। यहॉ 11वीं, 12वीं शताब्दी के बत्तीसगा मन्दिर, देवरली मन्दिर, चन्द्रादित्य मन्दिर, मामा-भांजा मन्दिर प्रसिद्ध मन्दिर है। बारसूर की विशाल गणेश भगवान की प्रतिमा प्रसिद्ध है। नारायण गुड़ी मन्दिर का गरुड़ स्तम्भ व पेद्दम्मा गुड़ी की दुर्गा मूर्ति दन्तेवाड़ा के दंतेश्वरी मन्दिर में सुरक्षित है। तुलारअबूझमाड़ के माड़ क्षेत्र में दो पहाड़ियों के मध्य स्थित शिवलिंग पर सारे समय स्वच्छ, निर्मल जल टपकता रहता है। यहां का प्रसिद्ध शिलिंग तुलार के नाम से जाना जाता है। यह प्रसिद्ध बारसूर नगरी से 42किलोमीटर दूर स्थित है। गुप्तेश्वरदक्षिण बस्तर में शबरी नदी के किनारे स्थित इस स्थान पर पुरातात्विक उत्खनन के उपरान्त 5वीं, 6वीं शताब्दी के कल्चुरी शासनकाल की मूर्तियां, मन्दिर व बावड़ी आदि मिली हैं। टीलों की खुदाई के उपरान्त शिव मन्दिरों का विशाल समूह निकला है। ढोंढरेपालदरभा विकासखण्ड में स्थित यह प्राचीन भारतीय मन्दिर कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। त्रिरथ शैली में निर्मित तीन मन्दिरों के समूह के आज मात्र अवशेष रह गये हैं, मगर खण्डहर का हर पत्थर अतीत की सुन्दरता का गुणगान करता परिलक्षित होता है। आरंगरायपुर से संबलपुर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 6 पर रायपुर से 36 किलोमीटर दूरी पर स्थित आरंग एक प्राचीन नगरी है। सजिसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। बाद्य देवल मन्दिर एवं महामाया मन्दिर यहां के पौराणिक मन्दिरों में से एक हैं। रतनपुरआराध्य मां महामाया शक्तिपीठ की सीपना यहां कल्चुरी नरेश रत्नसेन ने की थी। यहां अनेकों सुन्दर पुराने मन्दिर, जलाशय तथा प्राचीन किले के अवशेष हैं। खल्लारीमहासमुन्द जिले से लगभग 22 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां पास की एक पहाड़ी पर एक शिलाखण्ड है, जो सती स्तम्भ का एक भाग प्रतीत होता है। यह सिन्दूर से पुता हुआ है और खल्लारी माता के रूप में पूजनीय है। चैत्र माह में पूर्णिमा को खल्लारी ग्राम में देवी के सम्मान में एक मेला लगता है। सिरपुरराष्ट्रीय राजमार्ग 6 पर आरंग से 24 किलोमीटर आगे बांयी ओर लगभग 16 किलोमीटर पर सिरपुर स्थित है। प्राचीन काल में इसे श्रीपुर के नाम से जाना जाता था। 5 वी, से 8 वीं सदी के मध्य यह दक्षिण कोशल की राजधानी था। 7 वीं सदी में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहां आया था। लगभग 1000 वर्ष पुराना पूर्णतः ईटों से निर्मित यहां का लक्ष्मण मन्दिर, गंधेश्वर महादेव मन्दिर तथा बौद्ध विहार पर्यटकों को विशेष रूप से आकर्षित करता है। महानदी और जोंक नदी के संगम पर बसा, जांजगीर जिले में स्थित शिवरीनारायण बिलासपुर से 63 किलोमीटर पर स्थित है। यहां प्रसिद्ध विष्णु मन्दिर है। यह शिवरीनारायण से 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। खरोद में प्रसिद्ध लक्ष्मणेश्वर मन्दिर है। जगदलपुरचौहानों का प्रसिद्ध नगर जगदलपुर संभागीय व जिला मुख्यालय है। पुरात्व के दृष्टिकोण से जगदलपुर का इतिहास काफी समृद्ध है। वहीं जगदलपुर का प्रसिद्ध राजमहल और उसमें स्थित माई दंतेश्वरी देवी का मन्दिर जगदलपुर का सबसे पवित्र स्थल है। आदिवासी संस्कृति की राजधानी जगदलपुर अपने सांस्कृतिक आयामों के कारण और भी ख्यातिलब्ध है। जगदलपुर का बस्तर दशहरा अपनी विशेष प्राचीन आदिवासी परम्परा का निर्वहन करने के कारण विश्व स्तरीय आदिम उत्सव में स्थान रखता है। इस प्रकार इस प्राचीन नगरी का महत्वपूर्ण स्थान है। नारायणपाल का विष्णु मंदिरइन्द्रावती और नारंगी के संगम के आस-पास अवस्थित नारायणपाल ग्राम जो कि जगदलपुर जिले से लगभग 23 मील दूर है। नागवंशीय वास्तुकला में पल्लवित यह भव्य मन्दिर भगवान विष्णु का है। इसका निर्माण नरेश जगदेक् भूषण की पत्नी ने सन् 1111 में नारायणपाल नामक स्थान में करवाया था। मन्दिर अपने आदर्श बनावट के लिये सुविख्यात है। जांजगीरबिलासपुर जिले में यह स्थित है। यहां पर भगवान विष्णु का अपूर्ण मन्दिर स्थित है। धमधा (दुर्ग)- यहां पर प्राचीन किला एवं मन्दिर पाया गया है। नागपुरादुर्ग जिले में स्थित नागपुरा जैनियों का धार्मिक स्थल है। यहां पर श्री उवसंम्हार पार्श्वतीर्थ का प्राचीन जैन मन्दिर स्थित है। बालोदयह भी दुर्ग जिले में स्थित है। यहां का सती का चबूतरा एवं प्राचीन किला प्रसिद्ध है। इसी के पास में झलमला स्थित है। जहां पर गंगा मैया का प्रसिद्ध मन्दिर है। हर 6 महीने में यहां पर नवरात्रि में मेला भरता है। खरखरायह दुर्ग जिले में स्थित है। यहां का 1128 मीटर लम्बा मिट्टी का बना बांध प्रसिद्ध है। देव-बालौदायहां का प्राचीन शिव मन्दिर प्रसिद्ध है। सिंघोड़ायह सरायपाली, महासमुंद जिले में स्थित है। यहां सिंघोड़ा देवी का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। तुरतुरियायह महासमुंद जिले में है। यहां बहरिया ग्राम के पास बाल्मीकी आश्रम स्थित है। यहां का काली मन्दिर भी प्रसिद्ध है। पलारीयह बलौदा बाजार के पास स्थित है। यहां का ईंटों से बना सिद्धेश्व मन्दिर प्रसिद्ध है। गिरोधपुरीयह संत घासीदास की जन्म-स्थली है। यह सिमगा, रायपुर के पास स्थित है। यहां कबीरपंथियों की पीठ स्थित है। सिहावायह नगरी से 8 किलोमीटर दूर स्थित है। श्रृंगी ऋषि पर्वत से छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी महानदी का उद्गम हुआ है। यहां के अन्य प्रसिद्ध मन्दिरों में कर्णेश्वर महादेव, मातागुड़ी, मोखला मांझी एवं भिम्बा महाराज है। चंदखुरीयह रायपुर के पास स्थित है। यहां का प्राचीन शिव मन्दिर प्रसिद्ध है।]] रविशंकर जलाशययह धमतरी से 13 किलोमीटर दूर स्थित महानदी पर बना विशालकाय बांध है। इसे गंगरेल के नाम से भी जानते हैं। यह एक पिकनिक स्थल के पुर में भी विकसित हो चुका है। केशकाल घाटीयह बस्तर जिले में स्थित है। 5 किलोमीटर लम्बी सर्पाकार घाटी, राष्ट्रीय स्मारक गढ़धनोरा, कोपेन कोन्हाड़ी में चौथी शताब्दी की प्राचीन गणेश मूर्ति इसकी प्रसिद्धि का कारण हैं। घाटी की समाप्ति पर उपर स्थित पंचवटी घाटी की मनोरम छंटा बिखेरता हैं। ऋषभ तीर्थ गुंजी व शक्तिबिलासपुर जिले में स्थित है। यहां का तमउदहरा झरना, पंचवटी एवं गिद्ध पर्वत प्रसिद्ध है। पालीयह बिलासपुर जिले में स्थित है। यहां का 9 वीं शताब्दी का शिव मन्दिर प्रसिद्ध है। लाफागढ़यह बिलासपुर जिले में स्थित है। मेकाल पर्वत की उंची चोटी पर किला व जटाशंकरी नदी का उद्गम स्थल प्रसिद्ध है। यह कलचुरियों की प्रथम राजधानी रही है। धनपुरबिलासपुर जिले में स्थित धनपुर जैन तीर्थकर की मूर्ति एवं प्राचीन मन्दिर के लिये विख्यात है। बिलाई माताधमतरी नगर में स्थित बिलाई माता का मन्दिर प्रसिद्ध मन्दिर है। प्रत्येक नवरात्रि में यहां मेला लगता है। बिरकोनीमहासमुंद जिले में स्थित है। यहां का चण्डीमाता का मन्दिर प्रसिद्ध है। चंडी-डोंगरीबागबाहरा के पास स्थित चण्डी-डोंगरी चण्डीमाता की विशाल प्रतिमा के कारण प्रसिद्ध है। ब्राह्मनीयह महासमुंद जिले में स्थित है। यहां पर बह्नेश्वर महादेव का प्राचीन मन्दिर व श्वेत गंगा नामक जल-कुण्ड प्रसिद्ध है। साँचा:छत्तीसगढ छत्तीसगढ़ में सबसे बड़ा मंदिर कौन सा है?लक्ष्मणेश्वर महादेव मंदिर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से १२० कि॰मी॰ तथा संस्कारधानी शिवरीनारायण से ३ कि॰मी॰ की दूरी पर बसे खरौद नगर में स्थित है। यह नगर प्राचीन छत्तीसगढ़ के पाँच ललित कला केन्द्रों में से एक हैं और मोक्षदायी नगर माना जाने के कारण इसे छत्तीसगढ़ की काशी भी कहा जाता है।
छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध मंदिर कौन सा है?मां बम्लेश्वरी देवी मंदिर(Maa Bamleshwari Devi) : मां बम्लेश्वरी देवी मंदिर डोंगरगढ़ में स्थित है. छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में स्थित यह मंदिर 1600 फीट की पहाड़ी पर है. मुख्य रूप से बड़ी बम्लेश्वरी मंदिर के रूप में जाना जाता है, यह छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक बार आने वाले मंदिरों में से एक है।
दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर कहाँ है?अंकोरवाट (खमेर भाषा : អង្គរវត្ត) कम्बोडिया में एक मन्दिर परिसर और दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक है, 162.6 हेक्टेयर (1,626,000 वर्ग मीटर; 402 एकड़) को मापने वाले एक साइट पर। यह एक हिन्दू मन्दिर है। यह कम्बोडिया के अंकोर में है जिसका पुराना नाम 'यशोधरपुर' था।
छत्तीसगढ़ में कितने देवी मंदिर है?छत्तीसगढ़ के 36 प्रसिद्ध देवी मंदिर ।।
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