ऋषि कृष्ण द्वैपायन भगवान के अवतार है। श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर में हुआ और ऋषि कृष्ण द्वैपायन जी भी द्वापर में हुए इन्हे आज वेदव्यास जी के नाम से जाना जाता है। द्वापर युग के अंत में जब कलियुग का प्रारम्भ हो रहा था, तब एक समस्या उत्पन्य होने लगी। क्योंकि वेद एक था और पहले एक वेद के सम्पूर्ण ज्ञान को एक व्यक्ति याद रख लेता था परन्तु कलियुग के मनुष्य को सम्पूर्ण वेद का ज्ञान याद करना संभव नहीं था। इसलिए ऋषि कृष्ण द्वैपायन अर्थात् वेदव्यास जी ने उस समय के ऋषिओं के आज्ञा से वेद का चार भाग किया। वेद के चार भाग करने से कृष्ण द्वैपायन का नाम वेदव्यास पड़ा। वेदव्यास अर्थात् वेद का विभाजन करने वाला। श्रीमद्भागवत महापुराण में कुछ इस प्रकार कहा गया है - Show सूत उवाच भावार्थः - सूत जी कहते हैं- इस वर्तमान चतुर्युगी के तीसरे युग द्वापर में महर्षि पराशर के द्वारा वसुकन्या सत्यवती के गर्भ से भगवान के कलावतार योगिराज व्यास जी का जन्म हुआ। एक दिन वे सूर्योदय के समय सरस्वती के पवित्र जल में स्नानादि करके एकान्त पवित्र स्थान पर बैठे हुए थे। महर्षि भूत और भविष्य को जानते थे। उनकी दृष्टि अचूक थी। उन्होंने देखा कि जिसको लोग जान नहीं पाते, ऐसे समय के फेर से प्रत्येक युग में धर्म संकरता और उसके प्रभाव से भौतिक वस्तुओं की भी शक्ति का ह्रास होता रहता है। संसार के लोग श्रद्धाहीन और शक्तिरहित हो जाते हैं। उनकी बुद्धि कर्तव्य का ठीक-ठीक निर्णय नहीं कर पाती और आयु भी कम हो जाती है। लोगों की इस भाग्यहीनता को देखकर उन मुनीश्वर ने अपनी दिव्य दृष्टि से समस्त वर्णों और आश्रमों का हित कैसे हो, इस पर विचार किया। चातुर्होत्रं कर्म शुद्धं प्रजानां वीक्ष्य वैदिकम्। भावार्थः - उन्होंने सोचा कि वेदोक्त चातुर्होत्र* कर्म लोगों का हृदय शुद्ध करने वाला है। इस दृष्टि से यज्ञों का विस्तार करने के लिये उन्होंने एक ही वेद के चार विभाग कर दिये। व्यास जी के द्वारा ऋक्, यजुः, साम और अथर्व- इन चार वेदों का उद्धार (पृथक्करण) हुआ। इतिहास और पुराणों को पाँचवाँ वेद कहा जाता है। उनमें से ऋग्वेद के पैल, सामगान के विद्वान् जैमिनि एवं यजुर्वेद के एकमात्र स्नातक वैशम्पायन हुए। * होता, अध्वर्यु, उद्गाता और ब्रह्मा- ये चार होता है। इनके द्वारा सम्पादित होने वाले अग्निष्टोमादि यज्ञ को चातुर्होत्र कहते हैं। उपर्युक्त भागवत प्रणाम से स्पष्ट होता है कि वेदव्यास जी ने वेद बनाया नहीं उन्होंने वेद को चार भाग कर दिए। अतएव उन्होंने ने वेदों को बनाया नहीं यह सिद्ध हुआ। अथर्वाङ्गिरसामासीत्सुमन्तुर्दारुणो मुनिः। भावार्थः - अथर्ववेद में प्रवीण हुए दरुणनन्दन सुमन्तु मुनि। इतिहास और पुराणों के स्नातक मेरे पिता रोमहर्षण थे। इन पूर्वोक्त ऋषियों ने अपनी-अपनी शाखा को और भी अनेक भागों में विभक्त कर दिया। इस प्रकार शिष्य, प्रशिष्य और उनके शिष्यों द्वारा वेदों की बहुत-सी शाखाएँ बन गयीं। कम समझने वाले पुरुषों पर कृपा करके भगवान वेदव्यास ने इसलिये ऐसा विभाग कर दिया कि जिन लोगों को स्मरण शक्ति नहीं है या कम है, वे भी वेदों को धारण कर सकें। तो वेदव्यास जी ने वेद लिखा है। परन्तु यह ध्यान रहे कि वेदव्यास जी ने वेदों को लिपिबद्ध किया था। अर्थात् वेद तो अनादि है वो वेदव्यास जी के अवतार लेने के पहले भी थे। वेद तो भगवान के श्रीमुख से प्रकट हुए थे। भगवान से मनुष्यों तक वेद सुनते हुए (गुरु-शिष्य परम्परा अनुसार) आये। इसलिए वेद को श्रुति भी कहते है। 'श्रुति' अर्थात् 'सुना' हुआ'। विस्तार से पढ़े - वेद का ज्ञान मनुष्यों तक कैसे आया? वेद का रचयिता कोई नहीं हैअतएव वेदव्यास जी ने वेद को नहीं लिखा है और न ही भगवान ने वेद को लिखा है। वेद और पुराणों में कहा गया है की वेद भगवान के निःश्वास है और जब भी सृष्टि बनती है तब वेद प्रकट कर दिए जाते है और जब प्रलय होता है तो भगवान में वेद लीन हो जाती है। फिर जब दोबारा सृष्टि बनती है तब वेद प्रकट कर दिए जाते है और फिर जब दोबारा प्रलय होता है तो भगवान में वेद लीन हो जाती है। यह क्रम अनादि कल से चलता आ रहा है। अतएव यह कहा गया है कि वेद नित्य है उसे किसी ने नहीं बनाया है। विस्तार से पढ़ने के लिए पढ़े - क्या वेद अपौरुषेय है, या मानव निर्मित है? - वेद, पुराण अनुसार चार वेद 4 ved में ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का गूढ़ ज्ञान समेटे हुए सनातन धर्म Sanatan dharma विश्व का प्राचीनतम धर्म है। इसकी समस्त मान्यताएँ और परम्पराएँ पूर्णतः वैज्ञानिक हैं। वस्तुतः यह एक जीवन शैली है जो मनोवैज्ञानिक होने के साथ-साथ व्यावहारिक भी है। जैन धर्म हो या सिख धर्म या फिर बौद्ध धर्म सब इसी सत्य सनातन धर्म रूपी वट-वृक्ष की ही शाखाएँ-प्रशाखाएँ हैं। इस पर आधारित अग्रोल्लिखित साहित्य समुच्चय विश्व भर में अद्वितीय है। चार वेद - चार वेदों 4 Ved के नाम क्रमानुसार निम्नलिखित हैं : ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद अथर्ववेद
उपवेद - चारों वेदों के क्रमशः चार उपवेद हैं, जो निम्नवत् हैं : स्थापत्य या शिल्पवेद धनुर्वेद गंधर्ववेद आयुर्वेद उपनिषद् ईश केन कठ प्रश्न मुण्डक माण्डूक्य तैत्तिरीय ऐतरेय छान्दोज्ञ कौषीतकी वृहदारण्यक श्वेताश्वर
वेदांग - वेदांगों की संख्या छः हैं जिन्हें कभी-कभी शास्त्र 6 Shastra भी कह दिया जाता है। यद्यपि व्यापक अर्थ में इन्हें शास्त्र कह भी सकते हैं। शिक्षा कल्प व्याकरण निरुक्त छंद ज्योतिष छह 6 शास्त्र - छह शास्त्र अग्रलिखित छह दर्शन के नाम पर जाने जाते हैं। 6 शास्त्र के नाम इस प्रकार हैं : न्याय शास्त्र वैशेषिक शास्त्र सांख्य शास्त्र योग शास्त्र मीमांसा शास्त्र वेदांत शास्त्र अठारह 18 पुराणों के नाम - ब्रह्म पुराण पद्म पुराण विष्णु पुराण वायु पुराण भागवत पुराण नारद पुराण मार्कंडेय पुराण अग्नि पुराण भविष्य पुराण ब्रह्म वैवर्त पुराण लिंग पुराण वराह पुराण स्कन्द पुराण वामन पुराण कूर्म पुराण मत्स्य पुराण गरुड़ पुराण ब्रह्माण्ड पुराण
इसके अतिरिक्त दो और महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं जो महाकाव्य के रूप में हैं। इन्हें भारतीय इतिहास के प्रमुख साहित्यिक ग्रंथ के रूप मे स्वीकार किया जाता है। रामायण (आदिकाव्य)
महाभारत (जय संहिता) अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ- श्रीमद्भगवद्गीता (महाभारत के युद्ध पर्व का अंश) श्रीरामचरितमानस (तुलसीदास कृत) 4 वेद 6 शास्त्र 18 पुराण आदि के नाम अथवा किसी अन्य तथ्य में कोई त्रुटि हो तो हमें अवगत कराने की कृपा करें। छह शास्त्र के लेखक कौन है?इस दर्शन के रचयिता महर्षि पतंजलि हैं। इसमें ईश्वर, जीवात्मा और प्रकृति का स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है।
6 शास्त्रों के नाम क्या है?शास्त्र छ: हैं—सांख्य, योग,न्याय,वैशेषिक,वेदांत और मीमांसा।
वेद शास्त्र कितने होते हैं?वेद के विभाग चार है: ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋग-स्थिति, यजु-रूपांतरण, साम-गतिशील और अथर्व-जड़। ऋक को धर्म, यजुः को मोक्ष, साम को काम, अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है।
14 शास्त्र कौन से हैं?शास्त्रों में शिक्षाशास्त्र ,नीतिशास्त्र अथवा धर्मशास्त्र , वास्तुशास्त्र , खगोलशास्त्र , अर्थशास्त्र , आयुर्वेद , व्याकरणशास्त्र , दर्शनशास्त्र , कलाशास्त्र, धनुर्वेद ( सैन्यविज्ञान ) आदि का समावेश होता है।
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