चाय की खेती कैसे होती है - chaay kee khetee kaise hotee hai

चाय की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

चाय की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

लेखक - Lohit Baisla | 23/4/2020

विश्व में सबसे ज्यादा चाय का उत्पादन चीन में किया जाता है। चाय के उत्पादन में भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। इसका सबसे ज्यादा निर्यात करने वाला देश श्रीलंका है। भारत में दार्जिलिंग , असम, कोलुक्कुमालै, पालमपुर, मुन्नार, नीलगिरि चाय की खेती के लिए प्रचलित हैं। चाय की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु , मिट्टी, इसमें होने वाले रोगों की जानकारी यहां से प्राप्त करें।

  • चाय की खेती के लिए गर्म आद्र जलवायु सबसे उत्तम होती है।

  • 10 से 35 डिग्री तापमान में इसकी अच्छी पैदावार होती है।

  • चाय के बगानों में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।

  • इसकी खेती के लिए 4.5 - 5.0 पी.एच वाली हल्की अम्लीय मिट्टी अच्छी मानी जाती है।

  • बगानों में चाय के पौधों को लगाने के लिए अक्टूबर - नवंबर का महीना सबसे सही समय है।

  • इसकी सिंचाई बारिश के माध्यम से होती है। बारिश कम या नहीं होने पर हर दिन फव्वारा विधि से सिंचाई करनी चाहिए।

  • पौधों को लगाने के लगभग एक साल बाद पत्तियां तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती हैं।

  • किसान वर्ष में 3 बार इसकी तुड़ाई कर के फसल प्राप्त कर सकते हैं।

  • इसकी फसल में मुख्य रूप से लाल कीट, शैवाल, अंग मारी, गुलाबी रोग, फफोला, काला विगलन आदि रोग होते हैं।

  • कॉपर सल्फ़ेट का छिड़काव कर के हमें इन रोगों से निजात मिल सकता है।

  • प्रति हेक्टेयर बगान से लगभग 1800 से 2500 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर चाय प्राप्त किया जा सकता है।

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चाय की खेती कैसे होती है - chaay kee khetee kaise hotee hai
चाय की खेती (Tea Farming) की खेती की पूरी जानकारी

चाय की खेती (Tea Farming)

नमस्कारकिसान भाइयों,चाय देश की सबसे प्रमुख पेय फसल है.जाड़े के मौसम में ठंढी जैसे-जैसे बढ़गी चाय की मांग भी बढ़ेगी.चाय की खेती (Tea Farming) करके अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है.आज गाँव किसान (Gaon Kisan) अपने इस लेख में आपको चाय की खेती (Tea Farming) की पूरी जानकारी देगा वह भी अपने देश की भाषा हिंदी में.जिससे किसानों को इसकी खेती की जानकारी आसानी से हो जाय.तो आइये जानते है चाय की खेती (Tea Farming) की पूरी जानकारी-

Contents

  • 1 चाय के फायदे 
  • 2 उत्पत्ति एवं क्षेत्र 
      • 2.0.1 आसाम प्रजाति 
      • 2.0.2 चीन प्रजाति 
  • 3 जलवायु एवं मिट्टी 
  • 4 किस्में 
  • 5 पौध प्रबन्धन एवं रोपण 
  • 6 पोषण एवं सिंचाई 
  • 7 संघाई एवं कटाई-छंटाई
    • 7.1 कठोर कटाई 
    • 7.2 मध्यम कटाई 
    • 7.3 हल्की कटाई 
  • 8 अंतरसश्यन 
  • 9 तुड़ाई एवं तुड़ाई उपरांत प्रबन्धन 
  • 10 प्रबन्धन एवं प्रसंस्करण 
    • 10.1 विघटन
    • 10.2 रोलिंग 
    • 10.3 किण्वन 
    • 10.4 सुखाना 
    • 10.5 श्रेणीकरण 
  • 11 निष्कर्ष 

चाय के फायदे 

चाय की पत्तियां एक खुशबूदार उत्तेजक पेय के रूप में उपयोग किया जाता है.इसमें प्रचुर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है.इसके अलावा चाय में कॉफ़ी की तुलना में कम कैफीन होता है.चाय की पत्तियां इसके झाड़ीनुमा पेड़ से प्राप्त की जाती है.ठंढ में चाय पीना लाभकारी होता है.चाय से हार्ट अटैक का खतरा कम हो जाता है.यह हड्डियों के लिए भी फायदेमंद होती है.

उत्पत्ति एवं क्षेत्र 

चाय का वानस्पतिक नाम केमेलिया साइनेनसिस (Camellia Sinensis) है.जो कैमेलिएसी (Camelliacea) कुल का पौधा है.चाय का उत्पत्ति स्थल चीन है.भारत, चीन, श्रीलंका, इंडोनेशिया विश्व में चाय उत्पादक प्रमुख देश है. भारत चाय का सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता देश है.भारत में यह मुख्य रूप से असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, कर्णाटक एवं केरल में उगाई जाती है.चाय मुख्यतः दो तरह की प्रजातियों से प्राप्त की जाती है.

आसाम प्रजाति 

आसाम प्रजाति में पत्तियां मोटी एवं गूदेदार होती है.

चीन प्रजाति 

चीन प्रजाति के चाय के पौधे छोटे तथा पत्तियां भी छोटी होती है.

जलवायु एवं मिट्टी 

चाय के लिए नम एवं गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है.परन्तु 33 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा एवं 10 डिग्री सेल्सियस कम तापमान इसे नुकसान पहुंचता है.भारत में चाय उत्पादन क्षेत्र की जलवायु में काफी विविधता है.सालों भर सामान रूप से वितरित 200 से 300 सेमी० वर्षा तथा 22 से 28 डिग्री सेल्सियस औसत तापमान चाय उत्पादन के लिए उत्तम मानी जाती है.

सूर्य की तीखी किरणे चाय के उत्पादन एवं सुवास को नुकसान पहुंचाती है अतः चाय के बगान में तेजी से बढ़ने वाले छायादार पौधे भी लगाए जाने चाहिए.चाय के अच्छे उत्पादन के लिए गहरी सूखी तथा दोमट बलुई मिट्टी जिसमें जल जमाव बिलकुल न हो तथा पोटाश एवं फास्फोरस की प्रचुर मात्रा हो, मिट्टी थोड़ी अम्लीय होनी चाहिए.जिसका पी० एच० मान 5 से 6 के बीच हो उपयुक्त मानी गयी है.जल जमाव रोकने के लिए अक्सर ढालूनुमा जमीन का चुनाव किया जाता है.

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किस्में 

चाय की उन्नत किस्मों में जयराम, सुन्दरम, गोलकोंडा, पांडियन, बुकलेंड, सिंगारा, इवरग्रीन, बी० एस० एस०-1 से 5 तक आदि प्रमुख है.

पौध प्रबन्धन एवं रोपण 

चाय को मुख्य रूप से बीज या कर्तन द्वारा लगाया जाता है.बीज द्वारा प्रबन्धन के लिए चाय के गुणवत्ता युक्त बीज को नर्सरी में लगाया जाता है.जिसमें लगभग 4 सप्ताह में जड़े निकल आती है.जिसे दोबारा प्लास्टिक की थैली में प्रतिरोपित किया जाता है.9 से 10 महीने के पुराने पौधे मुख्य प्रक्षेत्र में प्रतिरोपित के लिए उपयुक्त होते है.कर्तन द्वारा पौधे तैयार करने के लिए मध्यम सख्त शाखा का चुनाव अप्रैल-मई या अगस्त-सितम्बर में एक पत्ती एवं एक नोड के साथ काट लिया जाता है.अत्यधिक वर्षा के समय कर्तन नही लगाना चाहिए.कर्तन में जड़ आने में लगभग 10 से 12 सप्ताह लग जाते है.कर्तन लगाने से जड़ आने तक नर्सरी में 80 से 90 प्रतिशत से ज्यादा आर्द्रता बनी रहनी चाहिए.उपयुक्त कठोरीकरण के पश्चात पौधों को 1.20 x 0.7 मीटर पर जिसमें 10800 पौधे हेक्टेयर या 1.35 x 0.73 x 075 मीटर पर 13200 पौधे प्रति हेक्टेयर लगाये जा सकते है.

चाय के पौधे लगाने का सबसे उचित समय मई से जून या सितम्बर से अक्टूबर का महीना होता है.

पोषण एवं सिंचाई 

चाय में पौधे की किसी तरह का बिना अत्यधिक नुकसान किये पहुंचाए वानस्पतिक वृध्दि हेतु एवं पुष्पन को रोकने के लिए पोषण के लिए उर्वरक दिया जाता है.इसलिए उर्वरक के रूप में नाइट्रोजन का अत्यधिक उपयोग किया जाता है.उसके साथ पोटाश, कैल्शियम, फास्फोरस, सल्फर एवं मेग्निशियम की भी आवश्यकता होती है.चार वर्ष एवं उससे अधिक उम्र के पौधे में लगभग 300 किलों नाइट्रोजन, 300 किलों पोटाश प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष उपयोग किया जाना चाहिए.उर्वरक का उपयोग बरसात से पहले किया जाना चाहिए.चाय मुख्य रूप से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में लगाया जाता है, जहाँ जल जमाव नही हो पाय. कम वर्षा वाली अवधि में आवश्यकता पद्नेपर सिंचाई स्प्रिन्किलर से सिंचाई दी जाती है.

संघाई एवं कटाई-छंटाई

चाय के पौधे की नियमित कटाई-छंटाई की जाती है.जिसके दो उद्देश्य है-वानस्पतिक वृद्धि को बढ़ावा देना ताकि ज्यादा पत्तियां प्राप्त की जा सके तथा पौधे की ऊंचाई को तुड़ाई नियंत्रित करना है.चाय के पौधे में कटाई-छंटाई का चक्र चार या पाँच वर्षों का होता है.इसकी सघनता अनुसार कटाई-छंटाई को तीन भागो में बांटा गया है.

कठोर कटाई 

कठोर कटाई में पौधे को 30 से 45 सेमी० की ऊंचाई से काटा जाता है.

मध्यम कटाई 

मध्यम कटाई में पौधे को 50 से 60 सेमी० की ऊंचाई से काटा जाता है.

हल्की कटाई 

हल्की कटाई में पौधे को 60 से 70 सेमी० की ऊंचाई से काटा जाता है.

कटाई-छंटाई एवं सघाई मानसून के पूर्व या बाद में किया जाता है.उत्तरी पूर्वी भागो या वैसे राज्य जहाँ ठन्डे के मौसम में पौधे सुषुप्तावस्था में चले जाते है.प्रत्येक वर्ष सितम्बर से अक्टूबर माह तक हल्की कटाई-छंटाई की जाती है जिसे स्किफिंग (Skiffing) कहते है.ज्यादा पत्ती लेने के लिए यह दो वर्ष के अंतराल पर भी हल्की छंटाई करते है. यह सबसे हल्की कटाई-छंटाई होती है.चाय की पत्ती का उत्पादन कटाई-छंटाई की ऊंचाई, समय, नई शाखाओं की प्रकृति यथा सघनता एवं आकार,पौधे के स्वास्थ्य,पौधे में कार्बोहाइड्रेट की स्थिति आदि पर निर्भर करती है.

अंतरसश्यन 

चाय की अच्छी बढवार एवं उत्पादन के लिए सूर्य की तीखी सीधी किरणों से सुरक्षा देना आवश्यक होता है.इसलिए चाय के बागानों में बीच-बीच में तेजी से बढ़ने वाले छायादार वृक्ष लगाए जाते है.छाया देने के साथ-साथ ये वृक्ष मृदा अपरदन को भी कम करते है तथा मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों का भी समावेश होता है.छायादार पौधे के रूप से एल्बीजिया, अकाशीय, काला एवं सफ़ेद सिरस, सिल्वर ओक आदि लगाए जाते है.नियमित रूप से खरपतवार नियंत्रण करने की भी आवश्यकता होती है.

तुड़ाई एवं तुड़ाई उपरांत प्रबन्धन 

पत्तियों की तुड़ाई पौधे लगाने के तीन वर्ष बाद आरम्भ की जाती है.चाय तुड़ाई की तकनीक पर इसकी गुणवत्ता एवं उपज पर निर्भर करती है.नियमित अंतराल पर इसकी कोमल शाखाएं एक ऊपर कली तथा दो या तीन पत्तियों के साथ जोड़ी जाती है.तुड़ाई अप्रैल से जून एवं सितम्बर से नवम्बर माह में की जाती है.इसे एक कली दो पत्ती भी कहते है.तुड़ाई पत्तियों के निकलने के अनुसार नियमित रूप से 7 से 14 दिनों के अंतराल पर की जाती है.

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प्रबन्धन एवं प्रसंस्करण 

तुड़ाई के उपरांत चाय के प्रसंस्करण की विधि पर ही उसकी गुणवत्ता निर्भर करती है.तुड़ाई के उपरान्त मुख्य रूप से निम्न चरणों में प्रसंस्करण किया जाता है.

विघटन

यह पत्तियों के 15 से 20 प्रतिशत आर्द्रता कम करने के लिए भौतिक एवं रासायनिक विघटन के लिए होता है.

रोलिंग 

पत्तियों के तोड़ने एवं उचित रंग प्रदान करने के लिए किया जाता है.

किण्वन 

ऑक्सीकरण कम कर किण्वन की क्रिया सुवास एवं गुणवत्ता के लिए किया जाता है.

सुखाना 

आर्द्रता कम करने के लिए सुखाना आवश्यक होता है.

श्रेणीकरण 

तैयार पदार्थ को अनेक श्रेणियों में बांटकर बाजारों में भेजा जाता है.

निष्कर्ष 

किसान भाइयों, उम्मीद है गाँव किसान (Gaon Kisan) के इस लेख से आप सभी को चाय की खेती (Tea Farming) सम्बन्धी सभी जानकारियां मिल पायी होंगी.गाँव किसान (Gaon Kisan) द्वारा चाय के फायदे से लेकर तुड़ाई एवं प्रसंस्करण तक सभी जानकारिया बताई गयी है.किसान भाइयों फिर भी चाय की खेती (Tea Farming) से सम्बंधित कोई प्रश्न हो तो कमेन्ट बॉक्स में जाकर कमेन्ट कर पूंछे.इसके अलावा यह लेख आप सब को कैसा लगा कमेन्ट कर यह भी बताएं.महान कृपा होगी.

आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जय हिन्द.

चाय की खेती के लिए क्या आवश्यक है?

चाय के पौधों को गर्म रखें चाय के पौधे को लंबे, गर्म उगने वाले मौसम की आवश्यकता होती है।

सबसे अधिक चाय की खेती कहाँ होती है?

असम भारत के उत्तरपूर्व में स्थित है और भारत का सबसे बड़ा चाय उत्पादक राज्य है.

चाय कहाँ उगाई जाती है?

भारत में प्रमुख चाय उत्पादक राज्य हैं: असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, सिक्किम, नागालैंड, उत्तराखंड, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, बिहार, उड़ीसा। इंडिया ब्रैंड इक्विटी फाउंडेशन की माने तो देश में प्रति वर्ष क़रीब 564 हज़ार हेक्टेयर क्षेत्रफल में चाय का उत्पादन होता है।

भारत में चाय की खेती कहाँ की जाती है?

इतिहास सबसे पहले सन् १८१५ में कुछ अंग्रेज़ यात्रियों का ध्यान असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों पर गया जिससे स्थानीय क़बाइली लोग एक पेय बनाकर पीते थे। भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड बैंटिक ने १८३४में चाय की परंपरा भारत में शुरू करने और उसका उत्पादन करने की संभावना तलाश करने के लिए एक समिति का गठन किया।