चौपाई से आप क्या समझते हैं? - chaupaee se aap kya samajhate hain?

परिभाषा 

यह सममात्रिक छन्द है, इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। चरण के अन्त में दो गुरु होते हैं;

उदाहरण 

“बंदउँ गुरु पद पदुम परागा, सुरुचि सुवास सरस अनुरागा। ”

अमिय मूरिमय चूरन चारू, समन सकल भवरुज परिवारु।।”

ऽ।। ।। ।। ।।। ।।ऽ ।।। ।ऽ। ।।। ।।ऽऽ

चौपाई मात्रिक सम छन्द का एक भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है। 'प्राकृतपैंकलम्' का चउपइया 15 मात्राओं का भिन्न छन्द है। इसका विकास पादाकुलक के चौकलों के नियम के शिथिल होने से सम्भव जान पड़ता है। भानु ने चौपाई के 16 मात्रा के चरणों में न तो चौकलों का कोई क्रम माना है और न ही लघु-गुरु का। उन्होंने सम के पीछे सम और विषम के पीछे विषम कल के प्रयोग को अच्छा माना है तथा अन्त में जगण (।ऽ।) और तगण (ऽऽ।) को वर्जित माना है।[1]

  • सम-सम का प्रयोग-

"गुरु-पद-रज-मृदु-मं-जुल-अं-जन"।

  • विषम-विषम, सम-सम का प्रयोग-

"नित्य-भजिय-तजि-मन-कुटि-ला-ई"।

  • विषम-विषम सम, विषम-विषम सम का प्रयोग-

"कहहु-राम-की-कथा-सुहा-ई।"

  • दो विषम सम के समान प्रयुक्त-

"बंदौं-राम-नाम-रघु-बरको।"[2] तुलसी ने इन नियमों का 'रामचरितमानस' में बहुत अच्छा निर्वाह किया है और उनके छन्द प्रवाह का सौन्दर्य भी यही है। चन्द, जायसी, सुन्दर, सूर, नन्ददास तथा जोधराज आदि ने इन नियमों में शिथिलता दिखलाई है। कभी-कभी 15 मात्रा के चरणों का प्रयोग मिलता है और कभी लघुगुरु (।ऽ) से अन्त किया गया है। यद्यपि 15 मात्रा का 'चौपई छन्द' अलग है, परन्तु उसके अन्त में ग ल (ऽ।) आवश्यक है। चरण के अन्त में ल ग (।ऽ) का प्रयोग इस छन्द में स्वतंत्रता से मिलता है। जायसी में ऐसे अनेक छन्द हैं तथा नन्ददास ने अपनी तीनों मंजरियों में ऐसे बहुत प्रयोग किये हैं- "चले-चले तुम जैयो तहाँ। बैठे हों साँवरे जहाँ।"[3]। इनको चौपाई ही माना जायेगा, यद्यपि 15 मात्रा के चरण हैं। सुन्दर में 15 मात्रा के ल ग (।ऽ) तथा ग ग (ऽऽ) दोनों प्रकार के अन्त पाये जाते हैं, जो चौपई के ग ल (ऽ।) से भिन्न हैं- "ये चौपाई त्रयोदस कही। आतम साक्षी जानौ सही।" [4] वस्तुत: अनेक कवियों में चौपाई तथा चौपई छन्द के प्रयोग में भ्रम की स्थिति पायी जाती है।

विशेषता

हिन्दी में यह छन्द चन्द्र के काव्य से ही मिलता है। यह सामान्यत: वर्णनात्मक है, जिसमें किसी भी प्रकार की स्थिति आ जाती है। सभी रसों का निर्वाह इसमें हो जाता है। कथा-काव्यों में इस छन्द की लोकप्रियता का मुख्य कारण यही है। वीरकाव्य के कवियों में केशव, जटमल, गोरेलाल, सूदन, गुलाब तथा जोधराज आदि ने चौपाई का प्रयोग प्रसंगानुकूल किया है, पर प्रेमाख्यानक कवियों में कुतुबन, जायसी, उसमान, नूरमुहम्मद आदि सभी ने इस छन्द को दोहा के साथ अपनाया है। सूर ने 'सूरसागर' के कथात्मक अंशों को जोड़ने के लिए इस छन्द का आश्रय लिया है। नन्ददास ने मंजरियों में प्रयोग किया है। कथा-काव्य के लिए इस छन्द की उपयुक्तता के कारण कृष्ण-कथा भी इस शैली में कई कवियों ने लिखी है। आधुनिक काल में द्वारकाप्रसाद मिश्र ने 'कृष्णायन' में इसका प्रयोग किया है। लाल कवि का 'छत्र-प्रकाश' इसी शैली में है। सन्त कवियों में सुन्दरदास ने भी ग्रन्थों की रचना दोहा-चौपाई-शैली में की है।[5]

पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. छन्द प्रभाकर, पृष्ठ 49
  2. भानु के छन्द प्रभाकर से
  3. विरहमंजरी, पं. 5
  4. आत्मभेद
  5. उदाहरण-'सर्वांगयोग', 'पंचन्द्रियचरित्र'

धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 1 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 248।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

देखें  वार्ता  बदलें

छन्द

अरविन्द सवैया · अरसात सवैया · किरीट सवैया · गंगोदक सवैया · चौपाई · कवित्त · छप्पय · दुर्मिल सवैया · दोहा · कुण्डलिया · मत्तगयन्द सवैया · मदिरा सवैया · महाभुजंगप्रयात सवैया · सोरठा · रोला · त्रिवेणी · हरिगीतिका · बरवै · अनुष्टुप छन्द · मानिनी सवैया · मालिनी छन्द · इन्द्रवज्रा छन्द · चौपई छन्द · वसन्ततिलका छन्द · उपेन्द्रवज्रा छन्द · सरसी छन्द · मुक्त छंद · वर्ण वृत्त · मुक्तहरा सवैया · उल्लाला छन्द · घनाक्षरी · वाम सवैया · सवैया · सुखी सवैया · सुन्दरी सवैया · सुमुखि सवैया

देखें  वार्ता  बदलें

साहित्यिक शब्दावली
पद्य

कविता · काव्य · महाकाव्य · खंड काव्य · प्रबोधक काव्य · प्रबन्ध काव्य · गीत · दोहा · कवित्त · सोरठा · रोला · हरिगीतिका · बरवै · कुण्डलिया · पद · मालिनी छन्द · इन्द्रवज्रा छन्द · उपेन्द्रवज्रा छन्द · वसन्ततिलका छन्द · वर्ण वृत्त · मुक्तक · त्रिवेणी · उल्लाला छन्द · सरसी छन्द · छन्द · रुबाई · सवैया · चौपाई · चौपई छन्द · मुक्त छंद · सरस साहित्य · नौटंकी · गोचारण काव्य · रासो काव्य · कविता संग्रह · शैली · बिम्ब विधान · नायक भेद · नायिका भेद

गद्य

कहानी · कथा · कथानक रूढ़ि · उपन्यास · नाटक · आलोचना · आत्मकथा · निबन्ध · एकांकी · अभिसार · संस्मरण · टीका · जीवनी · रेखाचित्र · समीक्षा · यात्रा साहित्य · प्रेषणीयता · रिपोर्ताज · आलोचना · उपसंहार · कटूपहास · नीतिकथा · कथा संग्रह · कथेतर साहित्य · क्षणिका

उर्दू

ग़ज़ल · शायरी · शायर · शे'र · मसनवी · मरसिया · क़सीदा · नज़्म · क़ाफ़िया · बह'र · मक़्ता · मतला · मिसरा · रदीफ़ · वज़्न · तज़किरा · तराना

अन्य

अमरीकी साहित्य · आस्ट्रिया साहित्य · इथिओपियाई साहित्य

चौपाई से आप क्या समझते?

चौपाई मात्रिक सम छन्द का एक भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के १६ मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में चौपाइ छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में १६-१६ मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।

चौपाई का उदाहरण क्या होगा?

श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि। बरनउ रघुवर विमल जस, जो दायक फल चारि। पवन तनय संकट हरण, मंगल मूरती रूप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहिं सुरभूप।।

चौपाई की पहचान कैसे करें?

चौपाई यह सम मात्रिक छन्द है । इसमें चार चरण होते हैं। ... .
गीतिका प्रत्येक चरण में 26 मात्राएं होती हैं, 14 और 12 पर यति । चरणान्त में लघुरूप विन्यास आवश्यक होता है । ... .
हरिगीतिका- यह मात्रिक सम छन्द है। प्रत्येक चरण में 28 मात्राएं होती हैं। ... .
दोहा यह मात्रिक अर्धसम छन्द है।.

चौपाई कितने होते हैं?

इस ग्रंथ में 7 कांड हैं और उन्हीं के अंतर्गत इस ग्रंथ में 27 श्लोक, 4608 चौपाई, 1074 दोहे, 207 सोरठा और 86 छन्द हैं