Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 4 (क) बनारस (ख) दिशा Textbook Exercise Questions and Answers. Show
RBSE Class 12 Hindi Solutions Antra Poem 4 (क) बनारस (ख) दिशाRBSE Class 12 Hindi (क) बनारस (ख) दिशा Textbook Questions and Answersबनारस प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न
4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. (ख) अगर ध्यान से देखो (ग) अपनी एक टाँग पर खड़ा है यह शहर दिशा प्रश्न 1. प्रश्न 2. योग्यता विस्तार - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
RBSE Class 12 Hindi (क) बनारस (ख) दिशा Important Questions and Answersअतिलघूत्तरात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. लयूत्तरात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न
10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. निबन्धात्मक प्रश्न - प्रश्न 1. प्राचीन काल से ही काशी और गंगा के सान्निध्य के कारण मोक्ष-प्राप्ति की अवधारणा यहाँ से जुड़ी हुई है। दशाश्वमेध घाट पर पूजा-पाठ चलता रहता है। गंगा के किनारों पर नावें बँधी रहती हैं। गंगा के घाटों पर दीप जलते रहते हैं, हवन होते रहते हैं, चिताग्नि जलती रहती है और उसका धुआँ सदैव उठता रहता है। यह बनारस की विशेषता है। यहाँ का कार्य अपनी गति से चलता रहता है। इस नगरी के साथ लोगों की आस्था, श्रद्धा, विरक्ति, विश्वास, आश्चर्य और भक्ति के भाव जुड़े हैं। इस कविता में काशी की प्राचीनता, आध्यात्मिकता, भव्यता और आधुनिकता का समाहार है। यह मिथक बन चुका शहर है। इस कविता में बनारस शहर की दार्शनिक व्याख्या है। प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4. (ख) कला पक्ष बनारस के आध्यात्मिक और आधुनिक दोनों रूपों का मिला-जुला वर्णन है। 'गंगा के जल में एक टाँग पर खड़ा है' में मानवीकरण है। 'बिलकुल बेखबर' में अनुप्रास अलंकार है। 'टाँग' का प्रयोग प्रतीक के रूप में किया गया है। मुक्त छन्द है। भाषा सरल और प्रवाहमय है। प्रश्न 5. (ख) कलापक्ष-बनारस की प्राचीनता एवं आधुनिकता का समावेश है। बिम्ब योजना आकर्षक है। 'सई-साँझ' में अनुप्रास अलंकार है। भाषा सरल एवं प्रवाहमय है। मुक्त छन्द का प्रयोग है। बनारस की सन्ध्याकालीन शोभा का वर्णन है। चित्रोपमता अधिक है। भाषा में लाक्षपिकता है। प्रश्न 6. (ख) कलापक्ष - बच्चे के भोलेपन का मनोवैज्ञानिक वर्णन है। बच्चे की दुनिया छोटी होती है, इसलिए वह अपने अनुसार सोचता है। नाटकीयता अधिक है। कथोपकथन शैली का प्रयोग है। बोलचाल की सरल भाषा का प्रयोग है। साहित्यिक परिचय का प्रश्न - प्रश्न : कला-पक्ष - केदारनाथ सिंह की कविताओं में बिम्ब विधान पर बहुत बल दिया गया है। उनकी भाषा नम्य और पारदर्शी है तथा उसमें नयी ऋजुता और बेलौसपन पाया जाता है। उनके बिम्बों का स्वरूप परिचित तथा नया और बदलता रहने वाला है। उनके शिल्प में बातचीत की सहजता है और अपनापन अनायास दिखाई देता है। प्रमुख कृतियाँ : (क) काव्य
संग्रह - 1. अभी बिलकुल अभी, 2. जमीन पक रही है, 3. यहाँ से देखो, 4. अकाल में सारस, 5. बाघ। (क) बनारस (ख) दिशा Summary in Hindiकवि परिचय : जन्म - 7 जुलाई, 1934 ई.। ग्राम - चकिया, जिला-बलिया (उ. प्र.)। शिक्षा - काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम. ए., पी-एच. डी.। गोरखपुर तथा जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर रहे। स्वतंत्र लेखन कार्य किया। 19 मार्च 2018 को 83 वर्ष की आयु में दिल्ली में आपका निधन हुआ। साहित्यिक परिचय - भाव-पक्ष-केदारनाथ सिंह मूलत: मानवीय संवेदना के कवि हैं। आपकी कविताओं में शोर-शराबा न होकर, विद्रोह का शांत और संयत स्वर सशक्त रूप से उभरा है। जमीन, रोटी, बैल आदि उनकी इसी प्रकार की कविताएँ हैं। संवेदना और विचार-बोध उनकी कविताओं में साथ-साथ चलते हैं। उनका मानना है कि जीवन के बिना प्रकृति और वस्तुएँ महत्त्वहीन हैं। अत: उनकी कविताओं में मनुष्य जीवन का निकटता से चित्रण हुआ है। उनमें रोजमर्रा की जिन्दगी के अनुभव स्पष्ट दिखाई देते हैं। कला-पक्ष - केदारनाथ सिंह की कविताओं में बिम्ब विधान पर बहत बल दिया गया है। उनकी भाषा नम्य और पारदर्शी है तथा उसमें नयी ऋजुता और बेलौसपन पाया जाता है। उनके बिम्बों का स्वरूप परिचित तथा नया और बदलता रहने वाला है। उनके शिल्प में बातचीत की सहजता है और अपनापन अनायास दिखाई देता है। आपको अनेक पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं-'अकाल में सारस' कविता संग्रह पर 'साहित्य अकादमी पुरस्कार (1989)', मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रीय सम्मान (1994), व्यास सम्मान, दयावती मोदी पुरस्कार आदि। कृतियाँ - अब तक केदारनाथ सिंह के निम्न काव्य-संग्रह तथा निबन्ध; कहानी आदि प्रकाशित हो चुके हैं - सप्रसंग व्याख्याएँ : बनारस 1. इस शहर में वसंत शब्दार्थ :
सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश आधुनिक कवि केदारनाथ सिंह की कविता 'बनारस' से उद्धृत है जो हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग -2' में संकलित है। प्रसंग : इन पंक्तियों में बनारस-शहर में वसन्त के अचानक आने का वर्णन किया गया है। वसन्त में धूलभरी आँधी चलती है जिससे सारे शहर में धूल ही धूल हो जाती है। व्याख्या : वसन्त के अकस्मात् आगमन पर बनारस में लहरतारा या मडुवाडीह मोहल्ले से धूलभरी आँधियाँ चलती हैं जिसके कारण पुराने शहर बनारस के प्रत्येक भाग में धूल-ही-धूल भर जाती है। धूल के कारण जिस प्रकार मुँह में किरकिरापन हो जाता है उसी प्रकार सारे शहर में धूल-ही-धूल हो जाती है। लगता है मानो बनारस शहर की जीभ धूल के कारण किरकिरी हो गई हो। कहने का तात्पर्य यह है कि बनारस में वसन्त में धूलभरी आँधियाँ चलती हैं और सारा वातावरण धूलधूसरित हो जाता है। विशेष :
2.
जो है वह सुगबुगाता है शब्दार्थ :
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ 'बनारस' कविता से ली गई हैं, जिसके रचयिता आधुनिक कवि केदारनाथ सिंह हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग -2' में संकलित है। प्रसंग : इन पंक्तियों में कवि ने बनारस में वसन्तागमन का वर्णन किया है। वसन्त आने पर बनारस में नवीन जागृति, उल्लास और चेतना व्याप्त हो जाती है। पत्थरों तक में नरमी का एहसास होता है। व्याख्या : कवि कहता है कि बनारस में वसन्त की हवा चलने से जो अस्तित्व में है उसमें सुगबुगाहट होने लगती है, उसमें जागृति आ जाती है। जो अस्तित्व हीन हैं उनमें भी नवांकुर फूटने लगते हैं। इस प्रकार वसन्त की हवा का सारे वातावरण पर प्रभाव पड़ता है। लोग विगत असफलताओं से निराश नहीं होते बल्कि उनमें नई उमंग और नया संकल्प भर जाता है। नवजीवन का संचार होने लगता है और वातावरण नवीन उत्साह से भर जाता है। दशाश्वमेध घाट पर आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को ऐसा लगता है मानो नदी का स्पर्श करने वाला घाट का अन्तिम पत्थर कुछ और नरम हो गया है, उसकी कठोरता कम हो गई है। यह ऐसा ही है जैसे पाषाण हृदय व्यक्ति का, हृदय बदल जाता है, उसके व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। घाट पर बैठे बन्दरों की आँखों में एक विशेष प्रकार की नमी दिखाई देने लगती है। एक अजीब-सी चमक दिखाई देती है। घाट पर बैठे भिखारियों के कटोरे भिक्षा से भर जाते हैं जैसे उनमें वसन्त उतर आया हो। जो दीन-हीन हैं उनमें भी एक उमंग भर जाती है। विशेष :
3. तुमने कभी देखा है शब्दार्थ : अनन्त = जिसका अन्त न हो, बहुत अधिक, अनेक। सन्दर्भ : प्रस्तुत काव्यांश 'बनारस' कविता से उद्धृत है जो हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग -2' में संकलित है। इसके रचयिता केदारनाथ सिंह हैं। प्रसंग - इन पंक्तियों में कवि ने वसन्त आने पर बनारस में जो प्रसन्नता व्याप्त होती है उसका वर्णन किया है। वसन्त आने पर भिखारियों के कटोरे भीख से भर जाते हैं, उनके मुख पर प्रसन्नता व्याप्त हो जाती है। व्याख्या : कवि कहता है कि वसन्त आने पर बनारस के अभावग्रस्त लोगों में भी उल्लास व्याप्त हो जाता है। खाली कटोरों में वसन्त उतर आता है अर्थात् भिखारियों के कटोरे भीख से भर जाते हैं। उनके चेहरों पर उमंग व्याप्त हो जाती है। बनारस की यह विशेषता है कि यहाँ दिन उल्लास, उमंग और प्रसन्नता के साथ प्रारम्भ होता है। लोगों की जिजीविषा, आशा और उमंग के साथ यह शहर भरा रहता है। लोग आशा और उमंग के साथ जीते हैं। यहाँ प्रतिदिन कोई-न-कोई शव गंगा के किनारे लाया जाता है। इस प्रकार यह शहर खाली भी होता रहता है। लोग शव को कंधे पर उठाकर अंधेरी गली से निकालकर गंगा की ओर दाह-संस्कार के लिए ले जाते हैं। अर्थात् मृत्यु के अन्धकार से निकालकर शव को मोक्ष के प्रकाश की ओर ले जाया जाता है। इस प्रकार शहर में कहीं खुशी का वातावरण व्याप्त रहता है तो कहीं शोक की काली चादर बिछ जाती है। इस प्रकार परस्पर विपरीत दृश्य बनारस में देखने को मिलते हैं। विशेष :
4. इस शहर में धूल शब्दार्थ :
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ आधुनिक कविता के सशक्त हस्ताक्षर केदारनाथ सिंह की कविता 'बनारस से ली गई हैं। इस कविता को हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित किया गया है। प्रसंग : इन पंक्तियों में बनारस की जीवन-शैली का वर्णन है। यहाँ हर कार्य धीरे-धीरे होता है मानो यह इस शहर की विशेषता है। आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से इस नगर का अपना अलग ही महत्त्व है। व्याख्या' : बनारस शहर में सैकड़ों वर्षों से कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। इस शहर में धूल धीरे-धीरे उड़ती है, लोग धीरे-धीरे चलते हैं। उनका जीवन धीमी गति से चलता है। मन्दिरों और गंगा के घाटों पर बहुत मन्द ध्वनि में घण्टे बजते हैं। शहर में संध्या धीरे-धीरे उतरती है। भाव यह है कि बनारस में जीवन सहज रूप से चलता है। हर कार्य का धीरे-धीरे होना यहाँ का स्वभाव बन गया है। यही सामूहिक मंथर गति सारे शहर को बाँधे हुए है। इस मजबूत बंधन के कारण यहाँ की हर अपने स्थान पर स्थिर है, वह गिरती और हिलती नहीं है। मंगा के प्रति आस्था और श्रद्धा आज भी अडिग है। नावें भी निश्चित स्थान पर ही बँधती हैं और तुलसीदास की खड़ाऊँ भी सैकड़ों वर्षों से वहीं रखी हैं। पुराने मूल्य, मान्यताएँ, आस्था, विश्वास, श्रद्धा आदि सभी बनारस की धरोहर के रूप में सुरक्षित हैं। बनारस की आध्यात्मिकता और भव्यता अब भी जैसी की तैसी है। भाव यह है कि बनारस का जीवन अब भी पुराने ढंग से ही चल रहा है। विशेष :
5. कभी सई-साँझ शब्दार्थ :
सन्दर्भ : 'बनारस' कविता से उद्धृत इन पंक्तियों के रचयिता केदारनाथ सिंह हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है। प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश में बनारस के संध्याकालीन सौन्दर्य का वर्णन है। कहीं श्रद्धा के साथ मंत्रोच्चारण करते हुए गंगा की आरती उतारी जाती है तो कहीं शवयात्रा निकाली जाती है। इसी मिले-जुले रूप का वर्णन इस अंश में किया गया है। व्याख्या : कवि कहता है कि कभी सन्ध्या के समय अचानक इस बनारस नगरी को देखो तो एक अजीब-सा दृश्य आँखों के सामने आयेगा। संध्या आरती के समय इस शहर को देखो तब एक आश्चर्यजनक दृश्य दिखाई देगा। ऐसा दिखाई देगा मानो यह शहर आधा जल में है, आधा मंत्र में है और आधा फूल में है अर्थात् संध्या के समय मन्दिरों-घाटों पर आधा .. बनारस शहर जल, मंत्र और फूलों से भगवान की आरती उतारने में निमग्न रहता है। उसी समय दूसरी ओर गंगा तट पर चिता जलती दिखाई देती है। इस प्रकार यह शहर आधा नींद में और आधा शव में दिखता है तो कहीं आधे शहर में शंख की ध्वनि सुनाई देती है अर्थात् आधा शहर नींद की अचेतनता में डूबा रहता है तो कहीं देर रात तक पूजा-पाठ होता रहता है। आधा शहर प्राचीन संस्कृति के रूप में देखने को मिलता है। आधा शहर प्राचीनता, आध्यात्मिकता और श्रद्धा - भक्ति में डूबा दिखता है तो आधा शहर आधुनिक संस्कृति से सराबोर दिखता है। विशेष :
6. जो है वह खड़ा है शब्दार्थ :
संदर्भ - प्रस्तुत काव्यांश 'बनारस' कविता से उद्धृत है जिसके रचयिता श्री केदारनाथ सिंह हैं। यह कविता हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है। प्रसंग - इन पंक्तियों में एक ओर बनारस के प्राचीन भव्य स्वरूप की झाँकी प्रस्तुत की गयी है तो दूसरी ओर बनारस की आधुनिकता का वर्णन है। इसमें बनारस के एक विशिष्ट रूप को प्रस्तुत किया गया है। सदियों से चली आ रही आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक वैभव का भी वर्णन है। व्याख्या - कवि का कहना है कि बनारस में जो कुछ विद्यमान है वह सभी बिना किसी आधार के, बिना किसी सहारे के खड़ा है। बनारस की प्राचीनता, आस्था, आध्यात्मिकता, विश्वास, भक्ति, श्रद्धा और सामूहिक गति सभी विरासत के रूप में यहाँ के जनजीवन में व्याप्त हैं। उसका मिथकीय रूप आज भी सुरक्षित है। जो अस्तित्व में नहीं है उसे राख, रोशनी के ऊँचे खम्भे, आग के स्तम्भ, पानी के खम्भे, धुएँ की सुगन्ध और आदमी के उठे हाथ थामे हुए हैं अर्थात् बनारस में आध्यात्मिकता की दोनों शैलियों के मिले-जुले रूप देखने को मिलते हैं। यह बनारस शहर सदियों से किसी अज्ञात, अदृश्य सूर्य को अर्घ्य देता हुआ गंगा के जल में अपनी एक टाँग पर खड़ा है और दूसरी टौंग से अनजान है। सूर्य को ब्रह्म का प्राचीनतम रूप मानकर सदियों से यहाँ पूजा जा रहा है। यह परम्परा आज की नहीं बहुत प्राचीन है। कहने का तात्पर्य यह है कि आज भी गंगा के बीच में खड़े होकर उसके जल से सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। बनारस का एक भाग आज भी प्राचीन परम्परा में दृढ़ है तो दूसरा आधुनिकता से प्रभावित है। इस प्रकार बनारस में प्राचीनता के साथ आधुनिकता का समावेश है। विशेष :
दिशा हिमालय किधर है? सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ 'दिशा' नामक कविता से ली गई हैं। यह प्रसिद्ध आधुनिक कवि केदारनाथ सिंह की रचना है जो हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित है। प्रसंग : यह कविता बाल मनोविज्ञान से सम्बन्धित है। प्रत्येक व्यक्ति की सोच अलग होती है। यथार्थ के सम्बन्ध में सभी अपने ढंग से सोचते हैं। बच्चे भी अपने ढंग से सोचते हैं। व्याख्या : बच्चों की दुनिया छोटी होती है। बच्चा अपनी सीमा में ही सोचता है। कवि कहता है कि मैंने स्कूल से बाहर आते हुए एक बच्चे से प्रश्न किया, हिमालय किधर है? बच्चे ने सहजता से हिमालय उधर ही बता दिया जिधर उसकी पतंग उड़ती हुई भागी जा रही थी। बच्चे का उत्तर सुनकर कवि ने जाना कि हिमालय किधर है। बच्चे का उत्तर सुनकर कवि ने समझा कि प्रत्येक व्यक्ति का अपना-अपना यथार्थ होता है। बच्चे दुनिया की हर चीज को अपने ढंग से देखते हैं। उनकी दुनिया छोटी होती है। वे उसी सीमा में सोचते हैं। विशेष :
बनारस कविता में बनारस शहर की क्या क्या विशेषताएं बताई गई है?Answer: कवि के अनुसार बनारस शहर में धूल धीरे-धीरे उड़ती है, यहाँ लोग धीरे-धीरे चलते हैं, धीरे-धीरे ही यहाँ मंदिरों में घंटे बजते हैं तथा शाम भी यहाँ धीरे-धीरे होती है। कवि के अनुसार यहाँ सभी कार्य धीरे-धीरे होना इस शहर की विशेषता है। यह शहर को सामूहिक लय प्रदान करता है।
काशी की क्या विशेषताएं बताई गई है संक्षेप में लिखिए?इसे संसार के सबसे पुरानी नगरों में माना जाता है। भारत की यह जगत्प्रसिद्ध प्राचीन नगरी गंगा के वाम (उत्तर) तट पर उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी कोने में वरुणा और असी नदियों के गंगासंगमों के बीच बसी हुई है। इस स्थान पर गंगा ने प्राय: चार मील का दक्षिण से उत्तर की ओर घुमाव लिया है और इसी घुमाव के ऊपर इस नगरी की स्थिति है।
बनारस का क्या महत्व है?इसे 'बनारस' और 'काशी' भी कहते हैं। हिन्दू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बौद्ध एवं जैन धर्म में भी इसे पवित्र माना जाता है। वाराणसी की संस्कृति का गंगा नदी, श्री कशी विश्वनाथ मन्दिर एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है।
बनारस कविता का मूल भाव क्या है?बनारस कविता में प्राचीनतम शहर बनारस के सांस्कृतिक वैभव के साथ ठेठ बनारसीपन पर भी प्रकाश डाला गया है। बनारस शिव की नगरी और गंगा के साथ विशिष्ट आस्था का केंद्र है। बनारस में गंगा, गंगा के घाट, मंदिर तथा मंदिरों और घाटों के किनारे बैठे भिखारियों के कटोरे जिनमें वसंत उतरता है - का चित्र बनारस कविता में अंकित हुआ है।
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