1. दिन जल्दी-जल्दी ढलता हैदिन जल्दी-जल्दी ढलता है! Show
हो जाए न पथ में रात कहीं, बच्चे प्रत्याशा में होंगे, मुझसे मिलने को कौन विकल? 2. साथी, अन्त दिवस का आयासाथी, अन्त दिवस का आया! तरु पर लौट रहे हैं नभचर, रवि-रजनी का आलिंगन है, जग के विस्तृत अंधकार में, 3. साथी, सांझ लगी अब होनेसाथी, सांझ लगी अब होने! फैलाया था जिन्हें गगन में, खेल रही थी धूलि कणों में, मिट्टी से था जिन्हें बनाया, 4. संध्या सिंदूर लुटाती हैसंध्या सिंदूर लुटाती है! रंगती स्वर्णिम रज से सुदंर करती सरिता का जल पीला,
उपहार हमें भी मिलता है, 5. बीत चली संध्या की वेलाबीत चली संध्या की वेला! नभ में कुछ द्युतिहीन सितारे 6. चल बसी संध्या गगन सेचल बसी संध्या गगन से! क्षितिज ने साँस गहरी हिल उठे तरु-पत्र सहसा, बुलबुलों ने पाटलों से, 7. उदित संध्या का सिताराउदित संध्या का सितारा! थी जहाँ पल पूर्व लाली, शोर स्यारों ने मचाया, काटती थी धार
दिन भर 8. अंधकार बढ़ता जाता हैअंधकार बढ़ता जाता है! मिटता अब तरु-तरु में अंतर, दिखलाई देता कुछ-कुछ मग, ड़र न लगे सुनसान सड़क
पर, 9. अब निशा नभ से उतरतीअब निशा नभ से उतरती! देख, है गति मन्द कितनी थी किरण अगणित बिछी जब, था उजाला जब गगन में 10. तुम तूफ़ान समझ पाओगेतुम तूफ़ान समझ पाओगे? गीले बादल, पीछे रजकण, गंध-भरा यह मंद पवन था, तोड़-मरोड़ विटप लतिकाएँ, 11. प्रबल झंझावात, साथीप्रबल झंझावात, साथी! देह पर अधिकार हारे, शब्द ’हरहर’, शब्द ’मरमर’-- हँस रहा संसार खग पर, 12. है यह पतझड़ की शाम, सखेहै यह पतझड़ की शाम, सखे! नीलम-से पल्लव टूट गए, लुक-छिप करके गानेवाली, नंगी डालों पर नीड़ सघन, 13. यह पावस की सांझ रंगीलीयह पावस की सांझ रंगीली! फैला अपने हाथ सुनहले घिरे घनों से पूर्व गगन में इंद्र धनुष की आभा सुंदर 14. दीपक पर परवाने आएदीपक पर परवाने आए! अपने पर फड़काते आए, जले ज्वलित आलिंगन में कुछ, पहुँच गई बिस्तुइया सत्वर 15. वायु बहती शीत-निष्ठुरवायु बहती शीत-निष्ठुर! ताप जीवन श्वास वाली, पड़ गया पाला धरा पर, थी न सब दिन त्रासदाता 16. गिरजे से घंटे की टन-टनगिरजे से घंटे की टन-टन! मंदिर से शंखों की तानें, मेरा मंदिर था, प्रतिमा थी, जब ये पावन ध्वनियाँ आतीं, 17. अब निशा देती निमंत्रणअब निशा देती निमंत्रण! महल इसका तम-विनिर्मित, भूत-भावी इस जगह पर सत्य कर सपने असंभव!-- 18. स्वप्न भी छल, जागरण भीस्वप्न भी छल, जागरण भी! भूत केवल जल्पना है, मनुज के अधिकार कैसे! जानता यह भी नहीं मन-- 19. आ, सोने से पहले गा लेंआ, सोने से पहले गा लें! जग में प्रात पुनः आएगा, दिन में पथ पर था उजियाला, काल-प्रहारा से उच्छश्रृंखल, 20. तम ने जीवन-तरु को घेरातम ने जीवन-तरु को घेरा! टूट गिरीं इच्छा की कलियाँ, पल्लव मरमर गान कहाँ अब! स्वप्नों ही ने
मुझको लूटा 21. दीप अभी जलने दे, भाईदीप अभी जलने दे, भाई! निद्रा की मादक मदिरा पी, आज पड़ा हूँ मैं बनकर शव, दीप शिखा में झिल-मिल, झिल-मिल, 22. आ, तेरे उर में छिप जाऊँआ, तेरे उर में छिप जाऊँ! मिल न सका स्वर जग क्रंदन का, जिसे सुनाने को अति आतुर 23. आओ, सो जाएँ, मर जाएँआओ, सो जाएँ, मर जाएँ! स्वप्न-लोक से हम निर्वासित, मौन रहो, मुख से मत बोलो, आँसू भी न बहाएँगे हम, 24. हो मधुर सपना तुम्हाराहो मधुर सपना तुम्हारा! पलक पर यह स्नेह चुम्बन दे दिखाई विश्व ऐसा, कंठ में हो गान ऐसा, 25. कोई पार नदी के गाताकोई पार नदी के गाता! भंग निशा की नीरवता कर, होंगे भाई-बंधु निकट ही, आज न जाने क्यों होता मन, 26. आओ, बैठें तरु के नीचेआओ, बैठें तरु के नीचे! कहने को गाथा जीवन की, अर्ध्य बने थे ये देवल के भाव भरा उर शब्द न आते, 27. साथी, घर-घर आज दिवालीसाथी, घर-घर आज दिवाली! फैल गयी दीपों की माला हास उमंग हृदय में भर-भर आँख हमारी नभ-मंडल पर, 28. आ, गिन डालें नभ के तारेआ, गिन डालें नभ के तारे! मिलकर हमको खींच रहे जो, उठ अपने बल पर घमंड कर, देख मनुज की छाती विस्तृत, 29. मेरा गगन से संलापमेरा गगन से संलाप! दीप जब दुनिया बुझाती, बोल अपनी मूक भाषा एक ही
होता इशारा, 30. कहते हैं, तारे गाते हैंकहते हैं, तारे गाते हैं! सन्नाटा वसुधा पर छाया, स्वर्ग सुना करता यह गाना, ऊपर देव, तले
मानवगण, 31. साथी, देख उल्कापातसाथी, देख उल्कापात! टूटता तारा न दुर्बल, बीच ही में क्षीण होकर, मैं बहुत विपरीत इसके 32. देखो, टूट रहा है तारादेखो, टूट रहा है तारा! नभ के सीमाहीन पटल पर हुआ न उडुगन में क्रंदन भी, यह परवशता या निर्ममता 33. मुझ से चाँद कहा करता हैमुझ से चाँद कहा करता है-- चोट कड़ी है काल प्रबल की, तू तो है लघु मानव केवल, तू अपने दुख में चिल्लाता, 34. विश्व सारा सो रहा हैविश्व सारा सो रहा है! हैं विचरते स्वप्न सुंदर, अवनि पर सर, सरित, निर्झर, न्याय न्यायाधीश भूपर, 35. कोई रोता दूर कहीं परकोई रोता दूर कहीं पर! इन काली घड़ियों के अंदर, ऐसी ही थी रात घनेरी, मित्र पड़ोसी क्रंदन सुनकर, 36. साथी, सो न, कर कुछ बातसाथी, सो न, कर कुछ बात! बोलते उडुगण परस्पर, बात करते सो गया तू, पूर्ण कर दे वह कहानी, 37. तूने क्या सपना देखा हैतूने क्या सपना देखा है? पलक रोम पर बूँदें सुख की, नभ में कर क्यों फैलाता है? मृगजल से ही ताप मिटा ले 38. आज घिरे हैं बादल, साथीआज घिरे हैं बादल, साथी! भरा हृदय नभ विगलित होकर आँसू का बल हमें कभी था अब आँसू उर ज्वाल बुझाते 39. देख, रात है काली कितनीदेख, रात है काली कितनी! आज सितारे भी हैं सोए, आज बुझी है अंतर्ज्वाला, क्या उन्मत्त समीरण आता, 40. यह पपीहे की रटन हैयह पपीहे की रटन है! बादलों की घिर घटाएँ, जो बहा दे, नीर आया, यह न पानी से बुझेगी, 41. है पावस की रात अँधेरीहै पावस की रात अँधेरी! विद्युति की है द्युति अम्बर में, मैंने अपने हास चपल से, है सहसा जिह्वा पर आई, 42. आज मुझसे बोल, बादलआज मुझसे बोल, बादल! तम भरा तू, तम भरा मैं, आग तुझमें, आग मुझमें, भेद यह मत देख दो पल-- 43. आज रोती रात, साथीआज रोती रात, साथी! घन तिमिर में मुख छिपाकर जब तड़ित क्रंदन श्रवणकर एक उर में आह ’उठती, 44. रात-रात भर श्वान भूकतेरात-रात भर श्वान भूकते। पार नदी के जब ध्वनि जाती, इस रव से निशि कितनी विह्वल, जब दिन होता ये चुप होते, 45. रो, अशकुन बतलाने वालीरो, अशकुन बतलाने वाली! 'आउ-आउ' कर किसे बुलाती? सत्य मिटा, सपना भी टूटा, 46. साथी, नया वर्ष आया हैसाथी, नया वर्ष आया है! वर्ष पुराना, ले, अब जाता, उठ इसका स्वागत करने को, उठ, ओ पीड़ा के मतवाले! 47. आओ, नूतन वर्ष मना लेंआओ, नूतन वर्ष मना लें! गृह-विहीन बन वन-प्रयास का उठो, मिटा दें आशाओं को, हुई बहुत दिन खेल मिचौनी, 48. रात आधी हो गई हैरात आधी हो गई है! जागता मैं आँख फाड़े, सुन रहा हूँ, शांति इतनी, दे रही कितना दिलासा, 49. विश्व मनाएगा कल होलीविश्व मनाएगा कल होली! घूमेगा जग राह-राह में आँसू की दो धार बहेगी, 50. खेल चुके हम फाग समय सेखेल चुके हम फाग समय से! फैलाकर निःसीम भुजाएँ, मन दे दाग अमिट बतलाते, रंग छुड़ाना, चंग बजाना, 51. साथी, कर न आज दुरावसाथी, कर न आज दुराव! खींच ऊपर को भ्रुओं को व्यक्त कर दे अश्रु कण से, रो रही बुलबुल विकल हो 52. हम कब अपनी बात छिपातेहम कब अपनी बात छिपाते? हम अपना जीवन अंकित कर हम सब कुछ करके भी मानव, मानवता के विस्तृत उर हम, 53. हम आँसू की धार बहातेहम आँसू की धार बहाते! मानव के दुख का सागर जल उर मथकर कंठों तक आता, मिट जाते हम करके वितरण 54. क्यों रोता है जड़ तकियों परक्यों रोता है जड़ तकियों पर! जिनका उर था स्नेह विनिर्मित, इनमें मानव का जीवन है, रो तू अक्षर-अक्षर में ही, 55. मैंने दुर्दिन में गाया हैमैंने दुर्दिन में गाया है! दुर्दिन जिसके आगे रोता, जीवन का क्या भेद बताऊँ, साथी, हाथ पकड़ मत मेरा, 56. साथी, कवि नयनों का पानीसाथी, कवि नयनों का पानी- चढ जाए मंदिर प्रतिमा पर, लिखे कथाएँ राज-काज की, ’कल-कल’ करे सरित
निर्झर में, 57. जग बदलेगा, किंतु न जीवनजग बदलेगा, किंतु न जीवन! क्या न करेंगे उर में क्रंदन प्रणय-स्वप्न की चंचलता पर मानव-भाग्य-पटल पर अंकित 58. क्षण भर को क्यों प्यार किया थाक्षण भर को क्यों प्यार किया था? अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर, ‘यह अधिकार कहाँ से लाया?' वह क्षण अमर हुआ जीवन में, 59. आज सुखी मैं कितनी, प्यारे'आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!' चिर अतीत में 'आज' समाया, लहरों में मचला यौवन था, साँसों में अटका जीवन है, 'आज सुखी मैं कितनी, प्यारे!' 60. सोच सुखी मेरी छाती हैसोच सुखी मेरी छाती है— मैंने कैसे तुझे गँवाया, तू जिसको कर प्यार, वही मैं! 61. जग-का मेरा प्यार नहीं थाजग-का मेरा प्यार नहीं था! तूने था जिसको लौटाया, सीमित जग से सीमित क्षण में स्वर्ग न जिसको छू पाया था, 62. देवता उसने कहा थादेवता उसने कहा था! रख दिए थे पुष्प लाकर गोद मंदिर बन गई थी, प्यार पूजा थी उसीकी, 63. मैंने भी जीवन देखा हैमैंने भी जीवन देखा है! अखिल विश्व था आलिंगन में, सिंधु जहाँ था, मरु सोता है! प्रिय सब कुछ खोकर जीता हूँ, 64. क्या मैं जीवन से भागा थाक्या मैं जीवन से भागा था? स्वर्ण श्रृंखला प्रेम-पाश की मेरा सारा कोष नहीं था, बूँद उसे तुमने दिखलाया, 65. निर्ममता भी है जीवन मेंनिर्ममता भी है जीवन में! हो वासंती अनिल प्रवाहित जिसकी कंचन की काया थी, जगती में है प्रणय उच्चतर, 66. मैंने खेल किया जीवन सेमैंने खेल किया जीवन से! सत्य भवन में मेरे आया, मिलता था बेमोल मुझे सुख, थे बैठे भगवान हृदय में, 67. था तुम्हें मैंने रुलायाथा तुम्हें मैंने रुलाया! हाय, मृदु इच्छा तुम्हारी! स्नेह का वह कण तरल था, बूँद कल की आज सागर, 68. ऐसे मैं मन बहलाता हूँ
ऐसे मैं मन बहलाता हूँ! सोचा करता बैठ अकेले नहीं खोजने जाता मरहम, आह निकल मुख से जाती है, 69. अब वे मेरे गान कहाँ हैंअब वे मेरे गान कहाँ हैं! टूट गई मरकत की प्याली, जगती के नीरस मरुथल पर, किस पर अपना प्यार चढाऊँ? 70. बीते दिन कब आने वालेबीते दिन कब आने वाले! मेरी वाणी का मधुमय स्वर, विश्व करेगा मेरा आदर, मुझमें है देवत्व जहाँ पर, 71. आज मुझसे दूर दुनियाआज मुझसे दूर दुनिया! भावनाओं से विनिर्मित, ’बात पिछली भूल जाओ, वह समझ मुझको न पाती, 72. मैं जग से कुछ सीख न पायामैं जग से कुछ सीख न पाया। जग ने थोड़ा-थोड़ा चाहा, जग ने जो दिन-बीच कमाया, जग ने जो प्रतिमा ठुकराई, 73. श्यामा तरु पर बोलने लगीश्यामा तरु पर बोलने लगी! है अभी पहर भर शेष रात, दिग्वधुओं का मुख तमाच्छ्न्न, अधरों के नीचे लेजाकर 74. यह अरुण-चूड़ का तरुण रागयह अरुण-चूड़ का तरुण राग! सुनकर इसकी हुंकार वीर जग पड़ा खगों का कुल महान, अब जीवन-जागृति-ज्योति दान 75. तारक दल छिपता जाता हैतारक दल छिपता जाता है। कलियाँ खिलती, फूल बिखरते, इसे कहूँ मैं हास पवन का, रवि ने अपना हाथ बढ़ाकर 76. शुरू हुआ उजियाला होनाशुरू हुआ उजियाला होना! हटता जाता है नभ से तम, ओस-कणों से निर्मल-निर्मल, किसी बसे द्रुम की ड़ाली पर, 77. आ रही रवि की सवारीआ रही रवि की सवारी! नव किरण का रथ सजा है, विहग बंदी और चारण, चाहता, उछलूँ विजय कह, 78. अब घन-गर्जन-गान कहाँ हैंअब घन-गर्जन-गान कहाँ हैं! कहती है ऊषा की पहली कहता एक बूँद आँसू झर टहनी पर बैठी गौरैया 79. भीगी रात विदा अब होतीभीगी रात विदा अब होती। रोते-रोते रक्त नयन हो, प्राची से ऊषा हँस पड़ती, हाथ बढ़ा सूरज किरणों
के 80. मैं कल रात नहीं रोया थामैं कल रात नहीं रोया था ! दुख सब जीवन के विस्मृत कर, प्यार-भरे उपवन में घूमा,
आँसू के दाने बरसाकर 81. मैं उसे फिर पा गया थामैं उसे फिर पा गया था! था वही तन, था वही मन, वह न बोली, मैं न बोला, चार लोचन
डबडबाए! 82. स्वप्न था मेरा भयंकरस्वप्न था मेरा भयंकर! रात का-सा था अंधेरा, क्षीण सरिता बह रही थी, धार से कुछ फासले पर 83. हूँ जैसा तुमने कर डालाहूँ जैसा तुमने कर डाला! पूण्य किया, पापों में डूबा, क्षय मेरा निर्माण जगत का पूछा जब, ’क्या जीवन जग में?' 84. मैं गाता, शून्य सुना करतामैं गाता, शून्य सुना करता! इसको अपना सौभाग्य कहूँ, जब सबने मुझको छोड़ दिया, मेरे मन की दुर्बलता पर-- 85. मधुप, नहीं अब मधुवन तेरामधुप, नहीं अब मधुवन तेरा! तेरे साथ खिली जो कलियाँ, नूतन मुकुलित कलिकाओं पर, जहाँ प्यार बरसा था तुझ पर, 86. आओ, हम पथ से हट जाएँआओ, हम पथ से हट जाएँ! युवती और युवक मदमाते, इनकी इन मधुमय घडियों में, यदि इनका सुख सपना टूटे, 87. क्या कंकड़-पत्थर चुन लाऊँक्या कंकड़-पत्थर चुन लाऊँ? यौवन के उजड़े प्रदेश के, स्वप्नों के इस रंगमहल में, इसमें करुण स्मृतियाँ सोईं, 88. किस कर में यह वीणा धर दूँकिस कर में यह वीणा धर दूँ? देवों ने था जिसे बनाया,
इसने स्वर्ग रिझाना सीखा, क्यों बाक़ी अभिलाषा मन में, 89. फिर भी जीवन की अभिलाषाफिर भी जीवन की अभिलाषा! दुर्दिन की दुर्भाग्य निशा में, सुखी किरण दिन की जो खोई, शून्य प्रतीक्षा में है मेरी, 90. जग ने तुझे निराश कियाजग ने तुझे निराश किया! डूब-डूबकर मन के अंदर तूने अपनी प्यास बताई, पूछा, निज रोदन में सकरुण 91. सचमुच तेरी बड़ी निराशासचमुच तेरी बड़ी निराशा! जल की धार पड़ी दिखलाई, तूने समझा देव मनुज है, समझा तूने प्यार अमर है, 92. क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैंक्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं! अगणित उन्मादों के क्षण हैं, याद सुखों की आँसू लाती, दोनों करके पछताता हूँ, 93. मूल्य अब मैं दे चुका हूँमूल्य अब मैं दे चुका हूँ! स्वप्न-थल का पा निमंत्रण, उठ पड़ा तूफान, देखो! क्यों विहँसता छोर देखूँ? 94. तू क्यों बैठ गया है पथ परतू क्यों बैठ गया है पथ पर? ध्येय न हो, पर है मग आगे, मानव का इतिहास रहेगा जीवित भी तू आज मरा-सा, 95. साथी, सब कुछ सहना होगासाथी, सब कुछ सहना होगा! मानव पर जगती का शासन, हम क्या हैं जगती के सर में! 96. साथी, साथ न देगा दुख भीसाथी, साथ न देगा दुख भी! काल छीनने दु:ख आता है, जब परवशता का कर अनुभव इसे कहूँ कर्तव्य-सुघरता 97. साथी, हमें अलग होना हैसाथी, हमें अलग होना है! भार उठाते सब अपने बल, संग क्षणिक ही तेरा-मेरा, मिलकर एक गीत, आ, गा लें, 98. जय हो, हे संसार, तम्हारीजय हो, हे संसार, तम्हारी! जहाँ झुके हम वहाँ तनो तुम, मानव का सच हो सपना सब, अनायास निकली यह वाणी, 99. जाओ कल्पित साथी मन केजाओ कल्पित साथी मन के! जब नयनों में सूनापन था, सच, मैंने परमार्थ ना सीखा, जाओ जग में भुज फैलाए, 100. विश्व को उपहार मेराविश्व को उपहार मेरा! पा जिन्हें धनपति, अकिंचन, थकित, आजा! व्यथित, आजा! ले तृषित जग होंठ तेरे कीर्ति गायन कौन कर रहा है?कीर्ति गायन कौन - कौन गा रहे हैं ? उत्तर कीर्ति गायन पक्षी, भाट चारण और बन्दी - गण गा रहे हैं।
मैदान छोड़कर किसकी फौज भाग गई?Answer. छोड़कर मैदान भागी, तारकों की फ़ौज सारी। आ रही रवि की सवारी। चाहता, उछलूँ विजय कह, पर ठिठकता देखकर यह- रात का राजा ...
आ रही रवि की सवारी से कवि का क्या अभिप्राय है?यहाँ पर कवि ने सूर्य के आगमन का मनोहारी वर्णन किया है। जब सूर्योदय होता है तब ऐसा प्रतीत होता है जैसे सूर्य अपने नव किरणों के रथ पर सवार होकर चला आ रहा है। कली और पुष्पों से पूरा रास्ता सजाया गया है। बादल मानो सूर्य के स्वागत के लिए रंगीन पोशाक पहन कर खड़े हों।
आ रही रवि की सवारी में कौन सा अलंकार है?की जब सवारी आ रही है तब तारों की फौज यानि तारों का समूह आकाश रूपी । मैदान को छोड़कर भाग रहा है। यहाँ कवि. ने रूपक अलंकार का प्रयोग करते हुए – युद्ध के दृश्य का चित्रण किया है।
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