भाषा का साहित्य में क्या महत्व है? - bhaasha ka saahity mein kya mahatv hai?

भाषा विचारों को व्यक्त करने का एक प्रमुख साधन है। भाषा मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आ

भाषा विचारों को व्यक्त करने का एक प्रमुख साधन है। भाषा मुख से उच्चारित होने वाले शब्दों और वाक्यों आदि का वह समूह है, जिनके द्वारा मन की बता बतलाई जाती है। भाषा की सहायता से ही किसी समाज विशेष या देश के लोग अपने मनोगत भाव अथवा विचार एक-दूसरे पर प्रकट करते हैं। दुनिया में हजारों प्रकार की भाषाएं बोली जाती हैं। हर व्यक्ति बचपन से ही अपनी मातृभाषा या देश की भाषा से तो परिचित होता है लेकिन दूसरे देश या समाज की भाषा से नहीं जुड़ पाता। भाषा विज्ञान के जानकारों ने यूं तो भाषा के विभिन्न वर्ग स्थापित करके उनमें से प्रत्येक की अलग-अलग शाखाएं बनाई हैं। यथा, हमारी ¨हदी भाषा, भाषा विज्ञान की दृष्टि से भारतीय आर्य शाखा की एक भाषा है। ब्रजभाषा, अवधी, बुंदेलखंडी आदि इसकी उप भाषाएं हैं। पास-पास बोली जाने वाली अनेक उप भाषाओं में बहुत कुछ साम्य होता है और उसी साम्य के आधार पर उनके वर्ग या कुल स्थापित किए जाते हैं।

मानव समाज के साथ ही भाषा का भी बराबर विकास होता आया है। इसी विकास के कारण भाषाओं में सदा परिवर्तन होता रहता है। सामान्यत: भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं, यह हमारे समाज के निर्माण, विकास, अस्मिता, सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान का भी महत्वपूर्ण साधन है। भाषा के बिना मनुष्य अपूर्ण है और अपने इतिहास और परंपरा से विछिन्न है। भाषा और लिपि भाव व्यक्तिकरण के दो अभिन्न पहलू हैं। एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है जबकि ¨हदी, मराठी, संस्कृत, नेपाली आदि सभी देवनागरी में लिखी जाती हैं।

भाषा के महत्व को मनुष्य ने लाखों साल पहले पहचानकर उसका निरंतर विकास किया है। भाषा में ही हमारे भाव, राज्य, वर्ग, जातीयता और प्रांतीयता झलकती है। इस झलक का संबंध व्यक्ति की मानवीय संवेदना और मानसिकता से भी होता है। जिस व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य और मानसिकता जिस स्तर की होगी, उनकी भाषा के शब्द और उनके मुख्यार्थ भी उसी स्तर के होंगे। समाज में रहकर व्यापार या लोगों से बातचीत के लिए मनुष्य के पास भाषा ही एकमात्र माध्यम है।

मनुष्य को सभ्य और पूर्ण बनाने के लिए शिक्षा जरूरी है और सभी प्रकार की शिक्षा का माध्यम भाषा ही है। साहित्य, विज्ञान, अर्थशास्त्र आदि सभी क्षेत्रों में प्रारंभिक से लेकर उच्चतर शिक्षा तक हर स्तर पर भाषा का महत्व स्पष्ट है। जीवन के सभी क्षेत्रों में किताबी शिक्षा हो या व्यवहारिक शिक्षा, यह भाषा के द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। विश्व में विज्ञान से लेकर भाषा विज्ञान तक सभी क्षेत्रों में नए-नए शोध होते रहते हैं। इनमें अध्ययन व शोध लेखन के लिए नए-नए शब्द रचे जाते हैं। इन शब्दों से संचय भाषा के द्वारा सामाजिक-वैज्ञानिक विकास की अभिव्यक्ति होती है।

भाषा के बिना लिखित साहित्य का अस्तित्व ही संभव नही है। वेद, पुराण, उपनिषद् से लेकर तुलसीदास आदि का साहित्य भाषा के कारण इतने सालों तक सुरक्षित रहकर आज तक भी हमें अध्ययन के लिए प्रेरित करता है। साहित्यकार ऐसी भाषा को आधार बनाते हैं, जो उनके पाठकों व श्रोताओं की संवेदनाओं के साथ एकाकार करने में समर्थ हों।

हमें अपने बच्चों को अपनी मातृ भाषा के महत्व को समझाना होगा। हमें अपनी परंपरा का वास्तविक चित्र उन्हें दिखाना होगा। माता के अलावा संस्कार का तीसरा स्त्रोत बच्चे का वह प्राकृतिक व सामाजिक परिवेश है जिसमें वह जन्म लेता है और पलता-बढ़ता है। यह परिवेश उसके आहार-व्यवहार, शरीर के रंग-रूप के साथ ही आदतें भी बनाता है। सामाजिक परिवेश के अंतर्गत परिवार, मोहल्ला, गांव और विद्यालय के साथी, सहपाठी, मित्र, पड़ोसी व शिक्षक आते हैं। पवित्र भावों और आस्था का सूत्र ही अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता और पूज्य भाव के लिए प्रेरित करता है। यही सूत्र सामाजिक आचरण का नियम कहलाता है।

डा. रजनी रानी शंखधार, प्रधानाचार्या, रघुनाथ ग‌र्ल्स इंटर कालेज मेरठ

भाषा में है संस्कार

वशीकरण एक मंत्र है, तज दे वचन कठोर।

तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुंओर।

गोस्वामी तुलसीदास की ये पंक्तियां भाषा के महत्व को समझाने के लिए काफी हैं। भाषा से ही संस्कार जुड़े होते हैं। वर्तमान पीढ़ी अपनी भाषा से दूर होने के साथ ही संस्कारों से भी दूरी बना रही है, जिससे पाश्चात्य संस्कृति का बोलबाला बढ़ रहा है। हम जिस भाषा को महत्व देते हैं उसी भाषा की संस्कृति सीखते-समझते हैं। इसके लिए बच्चों को अपनी भाषा से जोड़े रखना बेहद जरूरी है।

-अलका ऐरन, शिक्षिका, आरजी इंटर कालेज

फिर बढ़ रही ¨हदी

हमारी भाषा ही हमें पीढि़यों से जोड़ती है। हमारी भाषा ¨हदी दुनिया में दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। बावजूद इसके आधुनिकता की आंधी में युवा पीढ़ी ¨हदी से ही दूर होती जा रही है। हालांकि सोशल मीडिया पर बढ़ती ¨हदी सक्रियता ने लोगों को अपनी भाषा की ओर से फिर से मोड़ने और जोड़ने का काम किया है। इससे जहां ¨हदी भाषा के प्रयोग का चलन बढ़ा है वहीं विश्व पटल पर भी देश के प्रतिनिधियों ने देश की भाषा को स्थापित करने में पूरा योगदान दिया है।

-दीपा रस्तोगी, शिक्षिका, आरजी इंटर कालेज

भाषा बताती जीवन की राह

भाषा हमारे सामाजिक जीवन की नींव है। भाषा हमारी उन्नति और विकास का प्रतीक है।

भाषा हमारी शिक्षा और प्रगति की तस्वीर है। भाषा हमारी वाणी का प्रतिरूप है।

भाषा से होती है ज्ञान की चाह। भाषा ही बताती जीवन की राह।

-इंद्रा, इतिहास प्रवक्ता, आरजी इंटर कालेज

भाषा से जुड़ी पीढि़यां

भाषा का सीधा संबंध संस्कार से होता है। हमारे पूर्वजों ने हमें जो संस्कार दिए हैं वही संस्कार हमारी भाषा के जरिए अगली पीढि़यों तक जाएंगे। इसे आगे बढ़ाते रहना ही हमारा कर्तव्य है।

-रितिका तोमर, कक्षा 12वीं, आरजी इंटर कालेज

अपनी भाषा पहले

बोलचाल की भाषा में ¨हदी से अधिक अंग्रेजी का इस्तेमाल उचित नहीं है। जानकारी भले ही दोनों भाषाओं की हो लेकिन अपनी भाषा पर गर्व करना चाहिए और संवाद करते रहना चाहिए।

-रिम्शा सैफी, कक्षा 12वीं, आरजी इंटर कालेज

भाषा से बनी पहचान

पूरे विश्व में हमारा देश अपनी संस्कृति और सभ्यता के लिए पहचाना जाता है। इसकी यह पहचान इसकी भाषा के कारण ही है। कई भाषाएं अपने भीतर कई परंपराओं को समेटे हुए हैं।

महिमा गर्ग, कक्षा 12वीं, आरजी इंटर कालेज

Edited By: Jagran

साहित्य में भाषा का क्या महत्व है?

सामान्यत: भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं, यह हमारे समाज के निर्माण, विकास, अस्मिता, सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान का भी महत्वपूर्ण साधन है। भाषा के बिना मनुष्य अपूर्ण है और अपने इतिहास और परंपरा से विछिन्न है।

भाषा में शब्द का क्या महत्व है?

भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर व पढ़कर अपने मन के भावों या विचारों का आदान-प्रदान करता है। दूसरे शब्दों में- जिसके द्वारा हम अपने भावों को लिखित अथवा कथित रूप से दूसरों को समझा सके और दूसरों के भावो को समझ सके उसे भाषा कहते है। सार्थक शब्दों के समूह या संकेत को भाषा कहते है।

भाषा और साहित्य में क्या संबंध है?

भाषा और साहित्य एक दुसरे के पूरक हैं. विभिन्न कालों में भाषा के विभिन्न रूपों के दर्शन हमें साहित्य में ही होते हैं. भाषा जीवित हो अथवा मृत, उसका अध्ययन हम उस भाषा के साहित्य के आधार पर ही करते हैं. साहित्य के द्वारा हम जीवित भाषा की सजीवता व उसके उत्कर्ष से परिचित होते हैं.

साहित्य भाषा का अर्थ क्या है?

भाषा के प्रयोग की एक विशेष विधि को साहित्य कहते हैं । इससे स्पष्ट है कि भाषा के प्रयोग की कोई दूसरी विधि भी है जो विशिष्ट नहीं है । अध्ययन की सुविधा के लिए हम इसे सामान्य भाषा कहेंगे ।