भारत में धार्मिक विविधता का लोगों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा होगा - bhaarat mein dhaarmik vividhata ka logon ke jeevan par kya prabhaav pada hoga

यह लेख आज के भारतीय देश में धर्म के बारे में है। भारतीय उपमहाद्वीप में उत्पन्न होने वाले धर्म के लिए, भारतीय धर्म देखें।

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तवांग में गौतम बुद्ध की एक प्रतिमा।

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बैंगलोर में शिव की एक प्रतिमा.

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कर्नाटक में जैन ईश्वरदूत (या जिन) बाहुबली की एक प्रतिमा।

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[2] में स्थित, भारत, दिल्ली में एक लोकप्रिय पूजा के बहाई हाउस।

भारत एक ऐसा देश है जहाँ धार्मिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता को कानून तथा समाज, दोनों द्वारा मान्यता प्रदान की गयी है। भारत के पूर्ण इतिहास के दौरान धर्म का यहाँ की संस्कृति में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। भारत विश्व की चार प्रमुख धार्मिक परम्पराओं का जन्मस्थान है - हिन्दू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म तथा सिख धर्म।[1] भारतीयों का एक विशाल बहुमत स्वयं को किसी न किसी धर्म से सम्बन्धित अवश्य बताता है।

भारत की जनसंख्या के 79.8% लोग हिन्दू धर्म का अनुसरण करते हैं।[2] इस्लाम (15.23%)[1], बौद्ध धर्म (0.70%), ईसाई पन्थ (2.3%) और सिख धर्म (1.72%), भारतीयों द्वारा अनुसरण किये जाने वाले अन्य प्रमुख धर्म हैं। आज भारत में उपस्थित धार्मिक आस्थाओं की विविधता, यहाँ के स्थानीय धर्मों की उपस्थिति तथा उनकी उत्पत्ति के अतिरिक्त, व्यापारियों, यात्रियों, आप्रवासियों, यहाँ तक कि आक्रमणकारियों तथा विजेताओं द्वारा भी यहाँ लाए गए धर्मों को आत्मसात करने एवं उनके सामाजिक एकीकरण का परिणाम है। सभी धर्मों के प्रति हिन्दू धर्म के आतिथ्य भाव के विषय में जॉन हार्डन लिखते हैं, "हालाँकि, वर्तमान हिन्दू धर्म की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता उसके द्वारा एक ऐसे गैर-हिन्दू राज्य की स्थापना करना है जहाँ सभी धर्म समान हैं; ..."[3]

मौर्य साम्राज्य के समय तक भारत में दो प्रकार के दार्शनिक विचार प्रचलित थे, श्रमण धर्म तथा वैदिक धर्म. इन दोनों परम्पराओं का अस्तित्व हजारों वर्षों से साथ-साथ बना रहा है।[4] बौद्ध धर्म और जैन धर्म श्रमण परम्पराओं से निकल कर आये हैं, जबकि आधुनिक हिन्दू धर्म वैदिक परम्परा का ही विस्तार है। साथ-साथ मौजूद रहने वाली ये परम्पराएं परस्पर प्रभावशाली रही हैं।

पारसी धर्म और यहूदी धर्म का भी भारत में काफी प्राचीन इतिहास रहा है और हजारों भारतीय इनका अनुसरण करते हैं। पारसी तथा बहाई धर्मों का पालन करने वाले विश्व के सर्वाधिक लोग भारत में ही रहते हैं। [5] [6] भारत की जनसंख्या के 0.2% लोग बहाई धर्म का पालन करते हैं।

भारत के संविधान में राष्ट्र को एक धर्मनिरपेक्ष गणतन्त्र घोषित किया गया है जिसमें प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म या आस्था का स्वतन्त्र रूप से पालन तथा प्रचार करने का अधिकार है (इन गतिविधियों पर नैतिकता, कानून व्यवस्था, आदि के अन्तर्गत उचित प्रतिबन्ध लगाये जा सकते हैं).[7][8]. भारत के संविधान में धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार को एक मौलिक अधिकार की संज्ञा दी गयी है।

भारत के नागरिक आम तौर पर एक दूसरे के धर्म के प्रति काफी सहिष्णुता दर्शाते हैं और धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण बनाए रखते हैं, हालाँकि अन्तर-धार्मिक विवाह व्यापक रूप से प्रचलित नहीं है। भारत के सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय के अनुसार मुसलमानों के लिए शरियत या मुस्लिम कानून को भारतीय नागरिक कानून के ऊपर वरीयता दी जायेगी।[9] विभिन्न समुदायों के बीच दंगों को सामाजिक मुख्यधारा में अधिक समर्थन प्राप्त नहीं होता है और आमतौर पर यह माना जाता है wikt: इन धार्मिक संघर्षों का कारण विचारों में मतभेद की बजाय राजनैतिक होता है।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

इतिहास[संपादित करें]

वैदिक धर्म का विकास[संपादित करें]

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इंडस वैली सीवीलाइजेशन के "प्रिस्ट किंग"

हिंदू धर्म को प्राचीन धर्म माना जाता है,[10] जिसकी उत्पत्ति प्रागैतिहासिक काल में मानी जाती है ,[11] ।[12]भारतीय उपमहाद्वीप में प्रागैतिहासिक धर्म की मौजूदगी के साक्ष्यों को बिखरी हुई मीजोलिथिक रॉक पेंटिंग्स (पत्थर पर बनाये गए चित्र) पर देखा जा सकता है जिनमें कई प्रकार के नृत्यों तथा रस्मों को दर्शाया गया है। सिंधु नदी की घाटी में बसने वाले नीयोलिथिक पुरोहितगण अपने मृत-जनों को धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार दफनाते थे, जिससे मृत्यु पश्चात जीवन तथा जादुई आस्थाओं में उनके विश्वास के बारे में पता चलता है।[13] केन्द्रीय मध्य प्रदेश की भीमबेटका रॉक शेल्टर्स तथा पूर्वी कर्नाटक के कुपगल पेट्रोग्लिफ्स जैसी दक्षिण एशिया की अन्य पाषाण युग की साइटों (स्थलों) के पत्थरों में पाए जाने वाले चित्रों में धार्मिक संस्कारों को दर्शाया गया है तथा रीति-रिवाजों के लिए संगीत के इस्तेमाल किये जाने के साक्ष्य भी दिखाई देते हैं।[14]

3300-1700 ई.पू. तक अस्तित्व में रहने वाली और सिंधु तथा घग्गर-हकरा नदियों की घाटियों के इर्द-गिर्द केंद्रित सिंधु घाटी सभ्यता के हड़प्पाई लोग संभवतः प्रजनन की प्रतीक रूपी एक महत्वपूर्ण देवी मां की पूजा करते थे।[15] सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों की खुदाई में मिलने वाली मुद्राओं में जानवरों और "अग्नि-वेदियों" को दिखाया गया है, जो अग्नि से संबंधित अनुष्ठानों की ओर संकेत करते हैं। एक लिंग-योनि को भी प्राप्त किया गया है जो हिंदुओं द्वारा वर्तमान में पूजनीय शिव लिंग के ही समान है।

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दुनिया में सबसे बड़ा अक्षरधाम हिंदू मंदिर

हिंदू धर्म के मूल में सिंधु घाटी सभ्यता, आर्यों के वैदिक धर्म तथा अन्य भारतीय सभ्यताओं के सांस्कृतिक तत्व शामिल हैं। हिंदू धर्म का प्राचीनतम उपलब्ध ग्रंथ ऋग्वेद है जिसे संभवतः वैदिक काल में 1700-1100 ई.पू. के बीच लिखा गया था।γ[›][16] महाकाव्य (एपिक) और पौराणिक काल के दौरान रामायण और महाभारत महाकाव्यों को पहली बार लगभग 500-100 ई.पू.,[17] में लिखा गया था, हालांकि इसके पहले ये कथाएं मौखिक रूप से सदियों से चली आ रही थीं।[18]

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200 ई. के बाद कई विचारधाराओं को भारतीय दर्शन में औपचारिक रूप से शामिल कर लिया गया, जिनमें शामिल हैं, सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिका, पूर्व-मीमांसा तथा वेदांत.[19] हिंदू धर्म, जो सामान्यतः एक अत्यंत ईश्वरवादी धर्म है, में नास्तिक विचारों का भी समावेश रहा है; भारत में छठी शताब्दी ई.पू. के आसपास उत्पन्न होने वाली और पूरी तरह से भौतिकतावादी तथा गैर-धार्मिक 'कर्वक (चार्वाक)' विचारधारा, स्पष्टतया भारतीय दर्शन की संभवतः सबसे अधिक नास्तिक विचारधारा है। कर्वक (चार्वाक) को एक नास्तिक ("विधर्मिक") व्यवस्था के रूप में वर्गीकृत किया गया है; इसे हिंदू धर्म की आमतौर पर रूढ़िवादी मानी जाने वाली छह विचारधाराओं में शामिल नहीं किया जाता है। यह हिंदू धर्म के भीतर एक भौतिकवादी परंपरा की मौजूदगी के साक्ष्य के रूप में काफी उल्लेखनीय है।[20] कर्वक (चार्वाक) विचारधारा के प्रति हमारी समझ अपूर्ण है और अन्य विचारधाराओं द्वारा इसकी आलोचना पर आधारित है; अब यह परंपरा मृतप्राय हो चुकी है।[21] आमतौर पर नास्तिक के रूप में जानी जाने वाली अन्य भारतीय विचारधाराओं में शामिल हैं, शास्त्रीय सांख्य और पूर्व-मीमांसा.

अनादि श्रमण परम्परा से धर्मों का उदय[संपादित करें]

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24वें जैन तीर्थंकर भगवान महावीर (599-527 ई॰पू॰, या सम्भवतः 549-477 ई॰पू॰), ने पाँच प्रतिज्ञाओं पर बल दिया है, जिनमें अहिंसा तथा अस्तेय (चोरी न करना) शामिल हैं। बौद्ध धर्म की स्थापना करने वाले 28 वें बुद्ध भगवान गौतम बुद्ध का जन्म मगध (जिसका अस्तित्व 546-324 ई॰पू॰ तक रहा) के उत्कर्ष से ठीक पहले शाक्य वंश में हुआ था। उनका परिवार वर्तमान के दक्षिणी नेपाल स्थित लुम्बिनी के मैदानी इलाकों में रहता था। भारतीय बौद्ध धर्म, मौर्य साम्राज्य के महान सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान अपने चरम पर था। सम्राट अशोक ने अपना धर्म परिवर्तन करके बौद्ध धर्म को अपनाया और तीसरी शताब्दी ई॰पू॰ में भारतीय उपमहाद्वीप को एकीकृत किया। उन्होंने धर्म-प्रचारकों को देश-विदेश में चारों तरफ भेजकर एशिया में बौद्ध धर्म का प्रसार करने में सहायता की। [22] कुषाण साम्राज्य तथा मगध और कौशल जैसे राज्यों द्वारा प्रदान किये जाने वाले संरक्षण के खतम होने के बाद भारतीय बौद्ध धर्म का पतन हो गया।

कुछ विद्वानों का मानना है कि 400 ई॰पू॰ तथा 1000 ई॰ के बीच, भारत में बौद्ध धर्म के पतन के जारी रहने के साथ हिन्दू धर्म का विस्तार हुआ।[23] उसके बाद बौद्ध धर्म भारत में प्रभावी रूप से विलुप्तप्राय हो गया।

इस्लाम का आगमन[संपादित करें]

इन्हें भी देखें: Islam in India

यद्यपि इस्लाम भारत में अरब व्यापारियों के आगमन के साथ 7 वीं शताब्दी की शुरुआत में आया था, एक प्रमुख धर्म के रूप में इसका उदय भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिमों की विजय के साथ ही प्रारंभ हुआ। भारत में इस्लाम का विस्तार मुख्यतः दिल्ली सल्तनत (1206-1526) तथा मुग़ल साम्राज्य के दौरान हुआ और रहस्यवादी सूफी परंपरा का इसमें काफी योगदान रहा है।[24]

भक्ति आन्दोलन[संपादित करें]

14-17 वीं शताब्दी के दौरान जब उत्तर भारत मुस्लिम शासन के अधीन था, भक्ति आन्दोलन मध्य तथा उत्तरी भारत में व्यापक रूप से प्रचलित हो गया। इस आन्दोलन की शुरुआत शिक्षकों तथा सन्तों के एक अनौपचारिक समूह द्वारा की गयी थी। चैतन्य महाप्रभु, वल्लभाचार्य, सूरदास, मीरा बाई, कबीर, तुलसीदास, रविदास, नामदेव, तुकाराम,जम्भेश्वरजी और अन्य मनीषियों ने उत्तर भारत में भक्ति आन्दोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने सिखाया कि लोग रीति-रिवाजों तथा जाति-धर्म और पाण्डित्य की गूढ़ताओं के व्यर्थ के भार का त्याग करके ईश्वर के प्रति अपने असीम प्रेम को साधारण तरीके से भी प्रकट कर सकते हैं। इस अवधि के दौरान विभिन्न भारतीय राज्यों और प्रान्तों की स्थानीय भाषाओं में गद्य तथा कविताओं के रूप में भक्ति साहित्य की बाढ़ सी आ गयी थी। भक्ति आन्दोलन, सम्पूर्ण उत्तर और दक्षिण भारत में कई अलग-अलग आन्दोलनों के रूप में फैल गया। हालाँकि उत्तर भारत में, भक्ति आन्दोलन तथा शिया मुसलमानों के चिश्ती नाम से प्रसिद्द सूफी आन्दोलन के बीच अन्तर कर पाना मुश्किल है। मुस्लिम धर्म में आस्था रखने वाले लोगों ने इसे सूफियाना विचार के तौर पर अपनाया जबकि हिन्दुओं ने वैष्णव भक्ति के रूप में।

सिख धर्म[संपादित करें]

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सिखों का हरमन्दिर साहिब या गोल्डेन टेम्पल

गुरु नानक (1469-1539) सिख धर्म के संस्थापक थे। गुरु ग्रन्थ साहिब को पहली बार सिखों के पाँचवें गुरु, गुरु अर्जन देव द्वारा संकलित किया गया था। इसके लिए उन्होंने सिखों के पहले पाँचों गुरुओं तथा सार्वभौम भाईचारे की शिक्षा देने वाले अन्य सन्तों के लेखन का सहारा लिया, जिनमें हिन्दू सन्त तथा मुस्लिम मौलवी भी शामिल थे। गुरु गोबिन्द सिंह की मृत्यु से पहले गुरु ग्रन्थ साहिब को अनन्त गुरु घोषित कर दिया गया। सिख धर्म में सभी लोगों को वाहेगुरु[25] के समक्ष रंग, जाति या वंश की परवाह किये बिना समान माना गया है।[26]

गुरु नानक के उपदेश, धर्म की परवाह किये बिना सभी मनुष्यों पर समान रूप से लागू होते हैं।[27] इस कृत्य के लिए, उन्होंने अन्य आस्थाओं के शब्दकोशों के धार्मिक शब्दों का स्वतंत्र रूप से इस्तेमाल किया और उनको पुनर्परिभाषित भी किया।[28] गुरु नानक ने अपने प्रसिद्द वाक्य, "न तो कोई हिन्दू है और न ही मुसलमान", द्वारा मनुष्य के शाश्वत इश्वर के साथ मिलन को साम्प्रदायिकता के खिलाफ अपने उपदेश के रूप में परिभाषित किया है।

ईसाई धर्म का उद्गम[संपादित करें]

हालांकि ऐतिहासिक साक्ष्य पहली सदी[29][30][31] से ही भारत में ईसाई धर्म की उपस्थिति की ओर इशारा करते हैं, इसकी लोकप्रियता यूरोपीय उपनिवेशवाद और प्रोटेस्टेंट मिशनरियों के प्रयासों के बाद ही बढ़ी.[32]

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साम्प्रदायिकता[संपादित करें]

साम्प्रदायिकता ने आधुनिक भारत के धार्मिक इतिहास को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ब्रिटिश राज की 'फूट डालो और राज्य करो' नीति के प्रतिकूल परिणामस्वरूप भारत को धर्म के आधार पर दो राष्ट्रों में विभाजित कर दिया गया - मुस्लिम बाहुल्य वाला पाकिस्तान (जिसमें वर्तमान का इस्लामी पाकिस्तान गणराज्य तथा बंगलादेश गणराज्य शामिल हैं), तथा हिन्दू बाहुल्य वाला भारत संघ (जो बाद में पन्थनिरपेक्ष भारत गणराज्य बन गया)। 1947 में भारत के विभाजन ने पंजाब, बंगाल, दिल्ली, तथा भारत के अन्य हिस्सों में हिन्दुओं, मुसलमानों तथा सिखों में दंगों को भड़का दिया; इस हिंसा में 500,000 से अधिक लोगों की जानें गयीं। नवनिर्मित भारत तथा पाकिस्तान के बीच 1 करोड़ 20 लाख शरणार्थियों का आवा-गमन, आधुनिक इतिहास के सबसे बड़े जन-प्रवासन में से एक है।Δ[›][33] स्वतन्त्रता के बाद से भारत में हिन्दुओं तथा मुसलमानों के बीच निहित तनाव के कारण कई बार बड़े पैमाने पर हिंसा देखने को मिली है। भारत का गणतन्त्र पन्थनिरपेक्ष है और इसकी सरकार किसी भी धर्म को आधिकारिक रूप से मान्यता प्रदान नहीं करती है। हाल के दशकों में साम्प्रदायिक तनाव और धर्म आधारित राजनीति का काफी बोलबाला हो गया है।[34]

जनसांख्यिकी[संपादित करें]

इन्हें भी देखें: भारत में हिन्दू धर्म, भारत में इस्लाम, भारत में बौद्ध धर्म, भारत में ईसाई धर्म, भारत में सिख धर्म, भारत में यहूदी धर्म एवं भारत में जैन धर्म

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हिंदू धर्म एक हीनोथीस्टिक (बहुईश्वरवादी) धर्म तथा भारत का सबसे बड़ा धर्म है; जनसंख्या में इसके 828 मिलियन अनुयायियों (2001) का अनुपात 80.5% है। हिंदू शब्द मूलतः एक भौगोलिक स्थिति को दर्शाता है; इसे संस्कृत शब्द सिंधु से लिया गया है और यह सिंधु नदी के इलाकों के व्यक्ति को सन्दर्भित करता है।

इस्लाम एक एकेश्वरवादी धर्म है और एक इश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखता है तथा मुहम्मद का अनुसरण करता है। यह भारत में सबसे बड़ा अल्पसंख्यक धर्म है। 2001 की जनगणना के अनुसार, भारत 138 मिलियन मुसलमानों[35] का घर है, जो कि इंडोनेशिया (210 मिलियन)[36] और पाकिस्तान (166 मिलियन) के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी है; जनसंख्या में उनका अनुपात 13.4% का है।[37] मुसलमान जम्मू-कश्मीर तथा लक्षद्वीप में बहुमत में हैं[38] और आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और केरल जैसे राज्यों में भी वे काफी अधिक संख्या में पाए जाते हैं।[38][39] हालांकि, भारत में संप्रदाय आधारित कोई जनगणना नहीं की गयी है, लेकिन सूत्रों से पता लगता है कि सुन्नी इस्लाम[40] के अनुयायी सबसे अधिक हैं जबकि उनमे अल्पसंख्यक होने के बावजूद शिया मुसलमानों की संख्या काफी अधिक है। टाइम्स ऑफ इंडिया और डीएनए जैसे भारतीय सूत्रों के अनुसार 2005-2006 के मध्य में शिया लोगों की संख्या कुल मुस्लिम जनसंख्या के 25% से 31% के बीच थी; अर्थात 157,000,000 मुसलमानों में उनकी संख्या 40,000,000[41][41] से 50,000,000[42] के बीच थी।[40][43]

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15 वीं या 16 वीं सदी के ताड़ के पत्ते का पांडुलिपि में सम्मिलित तमिल भाषा में ईसाई प्रार्थना का एक सेट.

ईसाई धर्म एक एकेश्वरवादी धर्म है और नए टेस्टामेंट में प्रस्तुत यीशु के जीवन तथा उपदेशों पर आधारित है; यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है और ईसाईयों की संख्या कुल जनसंख्या का लगभग 2.3% है। भारत में ईसाई धर्म की शुरूआत का श्रेय सेंट थॉमस को दिया जाता है। वे मालाबार में 52 ई. में पहुंचे थे।[44][45][46] नागालैंड, मेघालय और मिजोरम में ईसाई लोग बहुमत में हैं और पूर्वोत्तर भारत, गोवा तथा केरल में भी उनकी संख्या काफी अधिक है।

बौद्ध धर्म एक धार्मिक, अनीश्वरवादी धर्म तथा दर्शन (विचारधारा) है। बौद्ध धर्म के अनुयायी भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य तथा जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में बहुमत (45%) में हैं और सिक्किम में भी उनकी काफी बड़ी संख्या (40%) निवास करती है। महाराष्ट्र में बौद्धों की संख्या 1 करोड 40 लाख (15%) से अधिक है, हालांकी 2001 की जनगणना के अनुसार 8 मिलियन बौद्ध भारत में रहते हैं, जो कि जनसंख्या का लगभग 0.8% है।[35] लेकिन कुछ सर्वेक्षण के अनुसार और भारतीय बौद्ध विद्वानों के अनुसार भारत की आबादी में 5.5% बौद्ध है, जिनकी संख्या 2011 के जनगणना के अनुसार 6,67,00,000 है। अधिकांश बौद्ध दलित है इसलिए उनको जनगनणा में हिंदूओं में गिना जाता है। हिंदू और इस्लाम के बाद बौद्ध धर्म ही भारत का तिसरा बड़ा धर्म है। ख्रिश्चन, शिख तथा जैन धर्मों के अनुयायीओं की जनसंख्या बौद्ध जनसंख्या से कम है।

जैन धर्म एक अनीश्वरवादी धर्म तथा दार्शनिक प्रणाली है जिसका प्रारंभ भारत में लौह युग में हुआ था। जैनियों की आबादी भारत की जनसंख्या का 0.4% (लगभग 4.2 मिलियन) है और वे मुख्यतः राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों में केंद्रित हैं।[38] हालांकि जैन धर्म को आमतौर पर अनीश्वरवादी माना जाता है, पॉल डूंडास लिखते हैं, "हालांकि जैन धर्म को सृष्टि-रचयिता भगवान के अस्तित्व और उनके द्वारा मानवी कार्यों में हस्तक्षेप की संभावना को नकारने के सीमित अर्थ में नास्तिक माना जा सकता है, लेकिन इसके द्वारा प्रत्येक जीव के भीतर परमात्मा नामक एक ईश्वरीय अस्तित्व की संभावना को स्वीकारने, जिसे अक्सर 'भगवान' (उदाहरण, पृष्ठ 114-16) कहा जाता है, के गूढ़ अर्थ में आस्तिक धर्म की संज्ञा देनी चाहिए ".[47]

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जैकोबाइट सीरियन और्थोडौक्स चर्च, 1550 AD में स्थापित

पॉल डूंडास लिखते हैं कि 19वीं सदी के अधिकांश ब्रिटिश विद्वानों को "जैन धर्म की स्वतंत्र प्रकृति तथा उत्पत्ति के विषय में कोई संशय नहीं था".[48] 1847 में एक विद्वान ने लिखा है कि जैन, पारसी, तथा सिक्ख जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों में "ब्राह्मणों की पूजा पद्धति से कुछ भी मिलता-जुलता नहीं था".[48] एक अन्य विद्वान ने 1874 में कहा कि जैनियों को हिंदू कानूनों के तहत नहीं लाया जा सकता क्योंकि "हिंदू शब्द का प्रयोग हिंदू कानून का मूल माने जाने वाले शास्त्रों के दायरे में आने वाले व्यक्तियों के लिए किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति उस दायरे से बाहर है तो उसपर हिन्दू कानून लागू नहीं किया जा सकता है।[48] हालांकि उन्होंने यह अवश्य कहा कि, "भारत की एकदम शुरुआती जनगणनाओं से पता चलता है कि कई जैन लोग तथा अन्य धार्मिक समूहों के सदस्य स्वयं को वास्तव में हिंदू धर्म के ही एक प्रकार के रूप में देखते थे और, 1921 की पंजाब की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार, 'जैनियों तथा सिखों की एक बड़ी संख्या द्वारा हिंदुओं से अलग वर्गीकृत किये जाने के प्रति अनिच्छा के कारण, उन व्यक्तियों को जैन-हिंदू तथा सिख-हिंदू के रूप में दर्ज किये जाने की अनुमति दे दी गयी".[48] उन्होंने माना कि "गणनाकारों के पूर्वाग्रह" ने जनगणना को अवश्य प्रभावित किया था। इसके अलावा वे कहते हैं कि "जैन-हिन्दू" शब्द एक दुर्भाग्यपूर्ण समझौता मात्र था".[48]

सिक्ख धर्म की शुरुआत सोलहवीं शताब्दी में उत्तर भारत में नानक तथा उनके बाद आने वाले नौ अन्य गुरुओं के उपदेशों के फलस्वरूप हुई। 2001 तक भारत में 19.2 मिलियन सिक्ख थे। पंजाब सिक्खों का आध्यात्मिक घर है और एकमात्र ऐसा राज्य है जहां सिख बहुमत में हैं। सिक्खों की एक बड़ी संख्या पड़ोस के नई दिल्ली तथा हरियाणा राज्यों में भी रहती है।

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संटा कैटारीना के से कैथेड्रल

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कोचीन में परदेसी आराधनालय का अभ्यन्तर.

2001 की जनगणना के अनुसार पारसी (भारत में पारसी धर्म के अनुयायी) लोग भारत की कुल जनसंख्या का 0.006% हैं,[49] और अपेक्षाकृत रूप से मुंबई शहर तथा उसके आसपास ही केंद्रित हैं। भारत में पारसियों की संख्या लगभग 61,000 है और 2001 की जनगणना के अनुसार में मुख्यतः मुंबई के आसपास ही केंद्रित हैं। डोंयी-पोलो तथा महिमा जैसे कुछ आदिवासियों के धर्म भी भारत में मौजूद हैं। संथाल भी, संथाल लोगों द्वारा माने जाने वाले कई आदिवासी धर्मों में से एक है; संथाल लोगों की कुल संख्या लगभग 4 मिलियन है लेकिन इस धर्म को मानने वालों के संख्या मात्र 23,645 ही है। भारत में लगभग 2.2 मिलियन लोग बहाई आस्था के अनुयायी हैं, इस प्रकार यह विश्व में बहाई लोगों का सबसे बड़ा समुदाय है।[50] दक्षिण भारत में प्रचलित 'अय्यावाझी' को आधिकारिक तौर पर एक हिंदू संप्रदाय माना जाता है और जनगणना में उसके अनुयायियों की गिनती हिंदुओं के रूप में की है।

आज भारतीय यहूदियों का समुदाय बहुत ही छोटा है। ऐतिहासिक रूप से भारत में काफी अधिक यहूदी रहा करते थे, जिनमें शामिल हैं, केरल के कोचीन यहूदी, महाराष्ट्र के बेन इस्राएल और मुंबई के निकट बगदादी यहूदी. इसके अतिरिक्त, स्वतंत्रता के बाद से भारत में मुख्यतः दो परिवर्तित (प्रोसीलाईट) यहूदी समुदाय रह रहे हैं: मिजोरम, मणिपुर के नेई मेनाशे, तथा बेने एफ्राइम जिन्हें तेगुलू यहूदी भी कहा जाता है। भारतीय मूल के लगभग 95,000 यहूदियों में से भारत में अब 20,000 से भी कम बचे हैं। भारत के कुछ हिस्से इस्राइलियों में विशेष रूप से लोकप्रिय हैं और त्योहारों के मौसम में उनकी संख्या काफी बढ़ जाती है।

2001 की जनगणना में लगभग 0.07% लोगों ने अपने धर्म का खुलासा नहीं किया था।

आँकड़े (सांख्यिकी)[संपादित करें]

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1909 में ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य के मानचित्र, प्रचलित धर्म द्वारा छायांकित।

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श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर में एक मस्जिद में प्रार्थना कर रहे मुसलमान।

भारत के धार्मिक समुदायों के आँकड़े निम्नलिखित हैं (2001 जनगणना):

Religions of India[39]α[›]β[›]
धर्म जनसंख्या प्रतिशत
सभी धर्म 1,028,610,328 100.00%
हिन्दू 827,578,868 80.5%
मुसलमान 138,188,240 13.4%
ईसाई 24,080,016 2.3%
सिख 19,215,730 1.9%
बौद्ध 7,955,207 0.8%
जैन 4,225,053 0.4%
बहाई 1,953,112 0.18%
अन्य 4,686,588 0.32%
धर्म का खुलासा नहीं किया 727,588 0.1%
धार्मिक समूहों की विशेषताएँ
धार्मिक
समूह
जनसंख्या
%
विकास
(1991-2001)
लिंग अनुपात
(कुल)
साक्षरता
(%)
कार्य में भागीदारी
(%)
लिंग अनुपात
(ग्रामीण)
लिंग अनुपात
(शहरी)
लिंग अनुपात
(बच्चे)ε[›]
हिंदू 80.46% 20.3% 931 65.1% 40.4% 944 894 925
मुस्लिम 13.43% 36.0% 936 59.1% 31.3% 953 907 950
ईसाई 2.34% 22.6% 1009 80.3% 39.7% 1001 1026 964
सिख 1.87% 18.2% 893 69.4% 37.7% 895 886 786
बौद्ध 0.77% 18.2% 953 72.7% 40.6% 958 944 942
जैन 0.41% 26.0% 940 94.1% 32.9% 937 941 870
एनिमिस्ट, अन्य 0.65% 103.1% 992 47.0% 48.4% 995 966 976

कानून[संपादित करें]

भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक "सम्प्रभु समाजवादी पन्थनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक गणतन्त्र" घोषित किया गया है। प्रस्तावना में पन्थनिरपेक्ष शब्द को 1976 में बयालीसवें संशोधन अधिनियम द्वारा डाला गया था। यह सभी धर्मों व‌ पन्थों के प्रति सहनशीलता और समान व्यवहार को बढ़ावा देता है। भारत का कोई आधिकारिक धर्म या पन्थ नहीं है; यह किसी भी धर्म का पालन करने, उपदेश देने और प्रचार करने के अधिकार को प्रदान करता है। किसी भी सरकार समर्थित स्कूल में कोई धार्मिक अनुदेश नहीं दिया जाता है। एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ मामले में भारत की सर्वोच्च न्यायलय ने माना कि पन्थनिरपेक्षता भारतीय संविधान का एक अभिन्न अंग है।[51]

भारतीय संविधान के अनुसार धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। संविधान एक दिशासूचक सिद्धान्त (डाइरेक्टिव प्रिंसिपल) के रूप में नागरिकों के लिए समान आचार संहिता (यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड) का भी सुझाव देता है।[52] हालाँकि अब तक इसे लागू नहीं किया गया है क्योंकि दिशानिर्देशक सिद्धान्त संवैधानिक रूप से अप्रवर्तनीय हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा है कि समान आचार संहिता को एक बार में ही लागू करना देश की अखण्डता के लिए नुकसानदायक हो सकता है और परिवर्तन को धीरे-धीरे करके लाना चाहिए (पन्नालाल बंसीलाल बनाम आन्ध्र प्रदेश राज्य, 1996).[53] महर्षि अवधेश बनाम भारत संघ (1994) में सर्वोच्च न्यायलय ने एक समान आचार संहिता लाने के लिए सरकार के खिलाफ एक रिट ऑफ़ मैंडेमस (परमादेश) को खारिज कर दिया था और इस प्रकार इसको लाने की जिम्मेदारी विधायिका पर डाल दी। [54]

प्रमुख धार्मिक समुदाय जो भारत में आधारित नहीं हैं, वे अभी भी अपने निजी कानूनों का ही पालन कर रहे हैं। जहाँ मुसलमानों, ईसाइयों, पारसियों और यहूदियों के उनके स्वयं के निजी कानून हैं; हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिख लोग 'हिन्दू पर्सनल लॉ' नामक एक निजी कानून द्वारा शासित होते हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 (2) (बी) में कहा गया है कि हिन्दुओं में "सिख, जैन तथा बौद्ध धर्मं का पालन करने वाले व्यक्तियों" को भी शामिल किया जायेगा।[55] इसके अलावा हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, जैनियों, बौद्ध, तथा सिखों की कानूनी स्थिति को इस प्रकार परिभाषित करता है - कानूनी रूप से हिन्दू परन्तु "धर्म के आधार पर हिन्दू" नहीं। [56] भारत के पन्थनिरपेक्ष ("नागरिक") कानून के तहत आने वाला एकमात्र भारतीय धर्म ब्रह्मोइज्म है, जो 1872 के अधिनियम III से प्रारम्भ होता है।

पहलू[संपादित करें]

धर्म भारतीयों के जीवन में प्रमुख भूमिका निभाता है।[57] रीति-रिवाज, पूजा और अन्य धार्मिक गतिविधियां किसी भी व्यक्ति के जीवन में काफी महत्त्वपूर्ण होती हैं; सामाजिक जीवन में भी इनका प्रमुख स्थान रहता है। प्रत्येक व्यक्ति की धार्मिकता का स्तर भिन्न होता है; हाल के दशकों में भारतीय समाज में धार्मिक रूढ़िवाद तथा उसके पालन में काफी कमी आई है, खासकर शहर में रहने वाले युवाओं में.

रीति-रिवाज[संपादित करें]

भारत में धार्मिक विविधता का लोगों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा होगा - bhaarat mein dhaarmik vividhata ka logon ke jeevan par kya prabhaav pada hoga

गर्मी मानसून के दौरान उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर एक पूजा का प्रदर्शन.

भारतीयों की एक विशाल संख्या दैनिक आधार पर कई रीति-रिवाजों का पालन करती है।[58] अधिकांश हिंदू अपने घर में ही धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।[59] हालांकि, रीति-रिवाजों का पालन भिन्न-भिन्न क्षेत्रों, गावों, तथा व्यक्तियों के बीच काफी अलग हो सकता है। श्रद्धालु हिंदू जन कुछ कामों को दैनिक रूप से करते हैं, जैसे कि, सुबह-सुबह स्नान करने के बाद पूजा करना (जिसे आमतौर पर घर के किसी मंदिर में किया जाता है और सामान्यतः धूप-बत्ती जलाने के बाद भगवान की मूर्ति को भोग लगाया जाता है), धार्मिक ग्रंथों का पाठ करना और देवताओं की स्तुति करना, आदि। [59] शुद्धता और प्रदूषण के बीच विभाजन, धार्मिक रीति-रिवाजों की एक उल्लेखनीय विशेषता है। धार्मिक कृत्यों में यह मानकर चला जाता है कि उसको करने वाले में कुछ अशुद्धि अथवा कलंक अवश्य मौजूद है, जिसे धार्मिक अनुष्ठान के दौरान या पहले समाप्त या दूर किया जाना चाहिए। जल द्वारा शुद्धीकरण, अधिकांश धार्मिक कृत्यों का एक अभिन्न अंग है।[59] अन्य विशेषताओं में शामिल हैं बलिदान के सद्प्रभाव में विश्वास तथा स्वयं को लायक बनाने की इच्छा, जिसे धीरे-धीरे सत्कर्मों और दान द्वारा प्राप्त किया जाता है और जो परलोक में होने वाले कष्टों को कम करने में मदद करता है।[59] श्रद्धालू मुसलमान मस्जिद द्वारा अजान दिए जाने पर निश्चित समय पर दिन में पांच बार नमाज अदा करते हैं। नमाज अदा करने के पहले उन्हें स्वयं को वज़ू द्वारा शुद्ध करना होता है, जिसमें शरीर के आमतौर पर खुले रहने वाले अंगों को धोना शामिल होता है। सच्चर समिति के एक ताजा अध्ययन में पाया गया कि 3-4% मुस्लिम बच्चे मदरसों में पढ़ते हैं।[60]

आहार संबंधी आदतों पर धर्म का काफी प्रभाव पड़ता है। लगभग एक तिहाई भारतीय शाकाहारी हैं; बौद्ध धर्म के समर्थक अशोक के शासनकाल में इसको काफी प्रचार मिला। [61][62] शाकाहारी भोजन ईसाइयों तथा मुसलमानों के बीच अधिक प्रचलित नहीं है।[63] जैन धर्म की सभी संप्रदायों और परंपराओं में सभी भिक्षुओं तथा जन-साधारण के लिए शाकाहारी होना आवश्यक है। हिंदू धर्म में गोमांस खाना वर्जित है जबकि इस्लाम में सूअर का मांस खाना वर्जित है।

रस्में[संपादित करें]

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जन्म, विवाह और मृत्यु जैसे अवसरों पर अक्सर काफी विशिष्ट प्रकार की धार्मिक रस्मों का पालन किया जाता है। हिंदू धर्म में जीवन-चक्र से संबंधित प्रमुख रस्मों में शामिल हैं अन्नप्राशन (बच्चे द्वारा पहली बार ठोस आहार का सेवन करना), उपनयनम (उच्च जाति के लड़कों में "जनेऊ" बांधने की रस्म) और श्राद्ध (मृतक परिजनों को श्रद्धांजलि अर्पित करना).[64][65] अधिकांश भारतीयों में, युवा जोड़े की सगाई तथा शादी की निश्चित तिथि और समय को माता-पिता द्वारा ज्योतिषियों के परामर्श से तय किया जाता है।[64]

मुसलमान भी कई प्रकार के जीवन-चक्र से संबंधित रिवाजों का पालन करते हैं जो हिंदुओं, जैनियों, तथा बौद्धों से अलग होते हैं।[66] कई रस्में जीवन के शुरुआती दिनों से संबंधित होती हैं, जिनमें शामिल हैं, फुसफुसा कर प्रार्थना करना, प्रथम स्नान और सिर की हजामत बनाना. धार्मिक शिक्षा की शुरुआत जल्द ही हो जाती है। लड़कों की खतना रस्म आमतौर पर जन्म के बाद की जाती है; कुछ परिवारों में इसे यौवन के शुरू होने के बाद ही किया जाता है।[66] शादी में पति द्वारा पत्नी को दहेज दिया जाता है और एक सामाजिक समारोह का आयोजन करके इस वैवाहिक अनुबंध को मान्यता प्रदान की जाती है।[66] मृतक व्यक्ति को दफ़नाने के तीन दिन बाद मित्र तथा परिजन एकत्र होकर दुखी परिवार को सांत्वना प्रदान करते हैं, कुरान को पढ़ते और सुनते हैं और मृतक की आत्मा के लिए प्राथना करते हैं।[66] भारतीय इस्लाम, महान सूफी संतों की इबादत के लिए बनाई गयी दरगाहों को तवज्जो दिए जाने के कारण जाना जाता है।[66]

तीर्थ[संपादित करें]

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2001, प्रयाग में महा कुंभ मेला जिसने दुनिया भर से सात करोड़ हिन्दुओं को अपनी ओर आकर्षित किया, जिसे धरती का सबसे बड़ी धार्मिक सभा मानी जाती है।

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मार थोमा चर्च द्वारा आयोजित किया गया मारामोन कन्वेंशन एशिया में सबसे बड़ा वार्षिक ईसाई सभा है

भारत में कई धर्मों के तीर्थ स्थान मौजूद हैं। दुनिया भर के हिंदू इलाहाबाद, हरिद्वार, वाराणसी और वृंदावन जैसे कई धार्मिक शहरों की महिमा को पहचानते हैं। प्रमुख मंदिर वाले वाले शहरों में शामिल हैं, पुरी, जहां प्रसिद्ध वैष्णव जगन्नाथ मंदिर है और प्रचलित रथ यात्रा निकाली जाती है; तिरुमाला-तिरुपति, जहां तिरुमाला वेंकटेश्वर मंदिर है; और कटरा, जहां वैष्णो देवी का मंदिर विराजमान है। हिमालय के पहाड़ों में स्थित बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री शहरों को चार धाम तीर्थ यात्रा के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक चार (बारह) साल में आयोजित होने वाला कुम्भ मेला हिंदुओं के पवित्रतम तीर्थों में से है; इसे बारी-बारी से इलाहबाद, हरिद्वार, नासिक, तथा उज्जैन में मनाया जाता है।

बौद्ध धर्म के आठ महान स्थानों में से सात भारत में स्थित हैं। बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर वे स्थान हैं जहां गौतम बुद्ध के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुई थीं। सांची में सम्राट अशोक द्वारा निर्मित एक बौद्ध स्तूप है। भारत में हिमालय की तलहटी में कई तिब्बती बौद्ध स्थलों का निर्माण किया गया है, जैसे कि रुमटेक मठ एवं धर्मशाला. मुसलमानों के लिए अजमेर में स्थित ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह शरीफ एक प्रमुख तीर्थ स्थान है। अन्य इस्लामी तीर्थों में शामिल हैं, फतेहपुर सीकरी में शेख सलीम चिश्ती का मकबरा, दिल्ली की जामा मस्जिद और मुंबई की हाजी अली दरगाह. जैनियों के उल्लेखनीय तीर्थ स्थानों में शामिल हैं माउंट आबू के दिलवाड़ा मंदिर, पालिताना, पावापुरी, गिरनार,शिखर जी, चम्पापुरी, तथा श्रवणबेलगोला.

अमृतसर स्थित हरमंदिर साहिब सिक्खों का सबसे पवित्र गुरुद्वारा है, जबकि स्वामीथोप में स्थित थलाईमईपथि, अय्यावाझी संप्रदाय के सदस्यों का प्रमुख तीर्थ स्थान है। दिल्ली में स्थित लोटस टेम्पल बहाई आस्था से जुड़े लोगों के लिए उपासना का एक प्रमुख स्थान है।

त्यौहार[संपादित करें]

धार्मिक त्योहारों को व्यापक रूप से मनाया जाता है और भारतीयों के जीवन में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को ध्यान में रखते हुए किसी भी धार्मिक त्यौहार को राष्ट्रीय छुट्टी का दर्जा प्रदान नहीं किया गया है। दीवाली, गणेश चतुर्थी, होली, दुर्गा पूजा, उगाडी, दशहरा और पोंगल/संक्रांति भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय हिंदू त्यौहार हैं। मुसलमानों में ईद-उल-फितर तथा ईद-उल-जुहा के त्योहारों को काफी व्यापक रूप से मनाया जाता है। कुछ उल्लेखनीय सिक्ख छुट्टियों में शामिल हैं, गुरु नानक का जन्मदिवस, बैसाखी, बंदी छोड़ दिवस (जिसे दिवाली भी कहा जाता है) और होला महोल्ला. क्रिसमस और बुद्ध जयंती शेष धार्मिक समूहों की प्रमुख छुट्टियां हैं। कई त्योहारों को भारत के अधिकांश हिस्सों में मनाया जाता है, जबकि कई राज्यों तथा क्षेत्रों में धार्मिक तथा भाषाई आधार पर अपने स्थानीय त्यौहार भी होते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ विशिष्ट मंदिरों या दरगाहों से संबंधित सूफी संतों के सम्मान में मनाये जाने वाले उत्सव तथा त्यौहार काफी आम हैं। जैनो में मुख्यतः सबसे बड़ा आध्यात्मिक त्यौहार "संवत्सरी" (जो हिंदी मास की भाद्रपद शुक्ला चतुर्थी/पंचमी) और दस लक्षण (अनंत चतुर्दशी ) पर्व है मुहर्रम एक ऐसा अनूठा त्यौहार है जिसमें उत्सव नहीं मनाया जाता है; इसे 680 ई. में मुहम्मद के परपोते इमाम हुसैन की शोकाकुल स्मृति के रूप में मनाया जाता है। एक तजिया (हुसैन के मकबरे के समान बांस की एक प्रतिकृति) को पूरे शहर में घुमाया जाता है। मुहर्रम को भारतीय शिया इस्लाम के केन्द्र लखनऊ में काफी उत्साहपूर्वक मनाया जाता है।[67]

धर्म और राजनीति[संपादित करें]

राजनीति[संपादित करें]

धार्मिक विचारधारा, विशेष रूप से हिंदुत्व आंदोलन द्वारा व्यक्त विचारधारा, ने 20वीं सदी के अंतिम 25 वर्षों में भारतीय राजनीति को काफी अधिक प्रभावित किया है। भारत की सांप्रदायिकता और जातिवाद के कई अन्तर्निहित तत्व ब्रिटिश शासन के दौरान उभर कर सामने आये थे, विशेष तौर पर 19वीं सदी के उत्तरार्ध के बाद से; अधिकारियों तथा अन्य लोगों द्वारा भारत के कई क्षेत्रों का राजनीतिकरण कर दिया गया था।[68] इंडियन काउंसिल्स एक्ट ऑफ 1909 (जिसे व्यापक तौर पर मोर्ले-मिन्टो रिफोर्म्स एक्ट के नाम से जाना जाता है), जिसने इम्पीरियल विधानमंडल तथा प्रांतीय परिषदों के लिए हिंदू तथा मुसलमानों द्वारा अलग-अलग मतदान की स्थापना की, विशेष रूप से विभाजनकारी था। इसे दोनों समुदायों के बीच तनाव बढ़ाने के लिए दोषी ठहराया गया।[69] निचली जातियों द्वारा काफी अधिक उत्पीड़न का सामना किये जाने के कारण भारतीय संविधान में भारतीय समाज के कुछ वर्गों हेतु सकारात्मक कार्यवाई के प्रावधानों को शामिल किया गया। हिंदू वर्ण व्यवस्था के प्रति बढ़ते हुए आक्रोश के कारण हाल के दशकों में हजारों दलित (जिन्हें "अछूत" भी कहा जाता है) बौद्ध तथा ईसाई धर्म की शरण में चले गए हैं।[70] इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा शासित कई राज्यों ने कानून बनाकर धर्म-परिवर्तन को अधिक दुष्कर बना दिया है; उनका दावा है कि इस प्रकार का धर्म-परिवर्तन अक्सर बलपूर्वक या लालच देकर करवाया जाता है।[71] हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी भाजपा के नेताओं द्वारा स्वयं को राम जन्मभूमि आंदोलन तथा अन्य प्रमुख धार्मिक मुद्दों के साथ जोड़ने के बाद मीडिया में व्यापक प्रचार मिला। [72]

भारतीय राजनीतिक दलों द्वारा अक्सर अपने प्रतिद्वंद्वियों पर वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगाया जाता है, अर्थात्, किसी मुद्दे का राजनीतिक समर्थन करने का एकमात्र उद्देश्य होता है किसी खास समुदाय के वोट प्राप्त करना। कांग्रेस पार्टी और भाजपा, दोनों पर वोट बैंक की राजनीति द्वारा लोगों का शोषण करने का आरोप लगाया जाता है। शाहबानो तलाक के मुकदमे ने काफी विवाद उत्पन्न किया था; कांग्रेस पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को दरकिनार करते हुए एक संसदीय संशोधन द्वारा मुस्लिम कट्टरपंथियों के तुष्टिकरण का आरोप लगाया गया था। 2002 के गुजरात दंगों के बाद कुछ राजनीतिक दलों पर वोट बैंक की राजनीति करने का आरोप लगाया गया था।[73] उत्तर प्रदेश में एक चुनाव अभियान के दौरान भाजपा ने मुसलमानों के खिलाफ एक भड़काऊ सीडी जारी की थी।[74] कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) द्वारा, निकृष्टतम श्रेणी की वोट बैंक राजनीति करने का आरोप लगाते हुए इसकी निंदा की गयी थी।[75] जाति-आधारित राजनीति का भी भारत में अपना महत्त्व है; जाति-आधारित भेदभाव और आरक्षण व्यवस्था अभी भी प्रमुख मुद्दे बने हुए हैं जिनपर गर्मागर्म बहस जारी है।[76][77]

शिक्षा[संपादित करें]

कई राजनीतिक दलों पर अपनी राजनीतिक शक्ति का उपयोग करके शिक्षण सामग्री में संशोधन तथा हेरफेर करने का आरोप लगाया गया है। जनता पार्टी सरकार (1977-1979) के शासन काल के दौरान सरकार पर मुस्लिम दृष्टिकोण के प्रति अत्यधिक सहानुभूति दिखाने का आरोप लगाया गया था। 2002 में भाजपा नेतृत्व वाली राजग सरकार ने एक नवीन राष्ट्रीय पाठ्क्रम के माध्यम से नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) के स्कूलों की पाठ्यपुस्तकों को बदलने की कोशिश की थी।[78] मीडिया के कुछ हिस्सों में इसको पाठ्यपुस्तकों के "भगवाकरण" के रूप में संबोधित किया गया; भगवा भाजपा के झंडे का रंग है।[78] कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में यूपीए द्वारा गठित अगली सरकार ने पाठ्यपुस्तकों के भगवाकरण को समाप्त करने का वादा किया।[79] हिन्दू समूहों ने आरोप लगाया कि यूपीए स्कूल के पाठ्यक्रम में मार्क्सवादी तथा मुसलमानों के हितों को बढ़ावा दे रहा है।[80][81]

संघर्ष[संपादित करें]

भारत में धार्मिक विविधता का लोगों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा होगा - bhaarat mein dhaarmik vividhata ka logon ke jeevan par kya prabhaav pada hoga

कलकत्ता में 1946 के डायरेक्ट एक्शन डे के बाद हिंदुओं और मुसलमानों के संघर्ष का परिणाम.

1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से सांप्रदायिक संघर्ष समय-समय पर भारत को त्रस्त करते रहे हैं। इन संघर्षों की जड़ें मुख्यतः बहुसंख्यक हिंदू तथा अल्पसंख्यक मुसलमान समुदायों के कुछ तबकों के बीच निहित तनाव में हैं, जो भारत के विभाजन के दौरान होने वाले खूनी संघर्ष और ब्रिटिश राज के तहत उभर कर सामने आया था। ये संघर्ष हिंदू राष्ट्रवाद बनाम इस्लामी कट्टरवाद और इस्लामवाद की परस्पर प्रतिस्पर्धी विचारधाराओं के कारण भी उत्पन्न होता है; ये दोनों विचारधाराएं हिंदुओं तथा मुसलमानों के कुछ तबकों में व्याप्त हैं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अन्य प्रमुख नेताओं के साथ महात्मा गांधी और उनके "शांति सैनिकों " ने बंगाल में शुरुआती धार्मिक संघर्ष को दबाने के लिए काम किया, जिसमें मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा 16 अगस्त 1946 को शुरू किये गए डायरेक्ट एक्शन डे के फलस्वरूप कलकत्ता (जो अब पश्चिम बंगाल में है) तथा नोआखाली जिले (जो वर्तमान के बंगलादेश में है) में शुरू होने वाले दंगे शामिल हैं। इन संघर्षों में मुख्यतः पत्थरों और चाकुओं का इस्तेमाल किया गया और व्यापक स्तर पर लूटपाट और आगजनी भी की गयी, जिससे पता लगता है कि यह काम अनाड़ी लोगों का था। विस्फोटक और हथियार का इस्तेमाल किये जाने की संभावना काफी कम थी क्योंकि भारत में उनका मिलना काफी मुश्किल था।[82]

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2002 के गुजरात हिंसा के दौरान अहमदाबाद के कई भवनों में हिंदू और मुस्लिम भीड़ द्वारा आग लगाई गई।

स्वतंत्रता पश्चात के प्रमुख सांप्रदायिक संघर्षों में शामिल हैं, 1984 के सिक्ख विरोधी दंगे, जो भारतीय सेना के ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद चालू हुए थे। हरमंदिर साहिब के भीतर छुपे सिक्ख आतंकवादियों के खिलाफ भारी मात्रा में गोला-बारूद, टैंकों तथा हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल किया गया जिससे सिक्खों के पवित्रतम गुरूद्वारे को काफी नुकसान पहुंचा। भारतीय सेना ने इस हमले में जरनैल सिंह भिंडरांवाले को मार गिराया; इस हमले में कुल मिलाकर लगभग 3000 सैनिकों, आतंकवादियों, तथा सामान्य नागरिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।[83] इससे क्रोधित होकर इंदिरा गांधी के सिक्ख अंगरक्षकों ने 31 अक्टूबर 1984 को उनकी हत्या कर दी, जिसके परिणामस्वरूप चार दिनों तक सिक्खों का कत्ले-आम किया गया। कुछ अनुमानों के अनुसार 4000 से अधिक सिक्ख मारे गए थे।[83] अन्य घटनाओं में शामिल हैं - अयोध्या विवाद के परिणामस्वरूप बाबरी मस्जिद का विध्वंस किये जाने के बाद 1992 में मुंबई में होने वाले दंगे; और गोधरा ट्रेन कांड के बाद 2002 के गुजरात दंगे जिनमें 2000 से अधिक मुसलमानों को मार दिया गया था।[84] कई आतंकवादी गतिविधियों के लिए सांप्रदायिकता को दोषी ठहराया जाता है, जैसे कि 2005 में अयोध्या में जन्मभूमि पर होने वाला हमला, 2006 में वाराणसी बम विस्फोट, 2006 में जामा मस्जिद विस्फोट और 11 जुलाई 2006 को मुंबई ट्रेन बम धमाके. कई कस्बों और गांवों को छोटी-मोटी घटनाएं त्रस्त करती रही हैं; जिसमें से एक उदहारण स्वरुप, उत्तर प्रदेश के मऊ में हिंदुओं द्वारा अपने एक त्यौहार का उत्सव मनाने के कारण भड़कने वाले हिंदू-मुस्लिम दंगे में पांच लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।[84]

आजादी के बाद मुख्य धार्मिक दंगे

वर्ष राइअट राज्य / प्रान्त कारण परिणाम

1984

एंटी सिख राइअट दिल्ली इंदिरा गांधी की हत्या 2,700 सिख मारे गए[85]

1992-1993

बॉम्बे राइअट मुंबई बाबरी मस्जिद का विध्वंस 900 लोग मारे गए

2002

गुजरात राइअट गुजरात गोधरा ट्रेन बर्निंग 1,044 लोग मारे गए, 790 मुसलमान और 254 हिन्दू (गोधरा ट्रेन फायर में मारे लोगों के सहित)

2008

कन्धमाल राइअट कन्धमाल जिला, ओड़िशा स्वामी लक्ष्मणानन्द की हत्या 20 मारे गए और 12,000 लोग विस्थापित

नोट्स[संपादित करें]

भारत में धार्मिक विविधता का लोगों के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा होगा - bhaarat mein dhaarmik vividhata ka logon ke jeevan par kya prabhaav pada hoga

कुर्गिअख घाटी में तंज़े की बौद्ध मठ (गोम्पा) के ऊपर प्रार्थना का झंडॉ॰ऐसा माना जाता है कि झंडे पर छपी प्रार्थना हवा द्वारा फैल रही है।

  • ^ α: The data exclude the Mao-Maram, Paomata, and Purul subdivisions of Manipur's Senapati district.
  • ^ β: The data are "unadjusted" (without excluding Assam and Jammu and Kashmir); the 1981 census was not conducted in Assam and the 1991 census was not conducted in Jammu and Kashmir.
  • ^ γ: Oberlies (1998, p. 155) gives an estimate of 1100 BCE for the youngest hymns in book ten. Estimates for a terminus post quem of the earliest hymns are far more uncertain. Oberlies (p. 158), based on "cumulative evidence", sets a wide range of 1700–1100 BCE. The EIEC (s.v. Indo-Iranian languages, p. 306) gives a range of 1500–1000 BCE. It is certain that the hymns post-date Indo-Iranian separation of ca. 2000 BCE. It cannot be ruled out that archaic elements of the Rigveda go back to only a few generations after this time, but philological estimates tend to date the bulk of the text to the latter half of the second millennium.
  • ^ Δ: According to the most conservative estimates given by Symonds (1950, p. 74), half a million people perished and twelve million became homeless.
  • ^ ε: Statistic describes resident Indian nationals up to six years in age.

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • भारत में हिन्दू धर्म
  • हिन्दू धर्म का इतिहास
  • भारत में नास्तिकता
  • भारत में इस्लाम

सन्दर्भ[संपादित करें]

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  85. [2][मृत कड़ियाँ]

भारत में धार्मिक विविधता से आप क्या समझते हैं?

आज भारत में मौजूद धार्मिक आस्थाओं की विविधता, यहां के स्थानीय धर्मों की मौजूदगी तथा उनकी उत्पत्ति के अतिरिक्त, व्यापारियों, यात्रियों, आप्रवासियों, यहां तक कि आक्रमणकारियों तथा विजेताओं द्वारा भी यहां लाए गए धर्मों को आत्मसात करने एवं उनके सामाजिक एकीकरण का परिणाम है।

भारतीय धार्मिक विशेषताएं क्या है?

भारत एक ऐसा देश है जहाँ धार्मिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता को कानून तथा समाज, दोनों द्वारा मान्यता प्रदान की गयी है। भारत के पूर्ण इतिहास के दौरान धर्म का यहाँ की संस्कृति में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। भारत विश्व की चार प्रमुख धार्मिक परम्पराओं का जन्मस्थान है - हिन्दू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म तथा सिख धर्म।

भारतीय समाज में धर्म का क्या महत्व है?

इस दृष्टि से धर्म मनुष्य में सहिष्णुता, दया, धर्म, स्नेह, सेवा आदि सामाजिक गुणों को विकसित करता है। इसके परिणामस्वरूप समाज की व्यवस्था में शक्ति एवं क्षमता का विकास होता है। धर्म व्यक्ति के व्यवहारों को भी नियन्त्रित कर, सामाजिक नियन्त्रण में महत्वपूर्ण योगदान देता है।

धर्म का हमारे जीवन में क्या महत्व है तथा इसमें किस प्रकार से परिवर्तन होना चाहिए?

धर्म मनुष्य मे जीवन के महत्व को स्पष्ट करता है, पवित्र भावनाओं को पैदा करता है एवं मानसिक तनाव व चिन्ताओं से दूर रखकर गलत, समाज विरोधी व धर्म विरोधी कार्यों के प्रति घृणा को पैदा करता है। इस तरह धर्म व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करता है एवं उसे सुख समृद्धि हेतु धार्मिक नियमों के अनुरूप आचरण के लिए प्रेरित करता है।