भारत में सीमांत कृषि भूमि जोत का आकार क्या है? - bhaarat mein seemaant krshi bhoomi jot ka aakaar kya hai?

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जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय

लघु/सीमांत भूमि जोतों के लिए सिंचाई की सुविधाएं

Posted On: 06 AUG 2018 7:14PM by PIB Delhi

कृषि गणना वर्ष 2010-11 के अनुसार, विभिन्न आकार के वर्गों में परिचालन भूमि जोतों तथा निवल सिंचित क्षेत्र की अनुमानित संख्या निम्नलिखित हैः-

क्र.सं.

आकार वर्ग

परिचालन भूमि जोतों की संख्या

निवल सिंचित क्षेत्र (हेक्टेयर)

1

सीमान्त (0.99 हेक्टेयर से नीचे)

48917426

16834633

2

छोटा (1.0-1.99 हेक्टेयर)

12130813

14263101

3

अर्ध-मध्यम  (2.0-3.99 हेक्टेयर)

7060529

14995180

4

मध्यम (4.0-9.99 हेक्टेयर)

3148612

13265785

5

बृहद (10.0 हेक्टेयर एवं ऊपर)

463237

5208614

कुल

71720617

64567313

केन्द्र एवं राज्य के हिस्से दोनों के लिए सरकार द्वारा नाबार्ड के माध्यम से वित्त पोषण तंत्र की स्वीकृति की गई। इसमें लघु और सीमांत भूमि जोत भी शामिल हैं।

यह जानकारी केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण राज्य मंत्री श्री अर्जुन राम मेघवाल ने आज राज्यसभा में दी।

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वीके/आरआरएस/जीआरएस–9767

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लघु जोतधारक तथा कृषि विपणन

  • 11 Jul 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

कृषि जोत के प्रकार 

मेन्स के लिये:

लघु जोतधारक तथा कृषि विपणन 

चर्चा में क्यों?

COVID-19 महामारी के तहत लगाए गए लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित किया है, ऐसे में कृषि को पुन: आर्थिक विकास के इंजन और महत्त्वपूर्ण उपशामक के रूप में चर्चा के केंद्र में ला दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • वित्त मंत्री द्वारा COVID-19 महामारी आर्थिक पैकेज के रूप में कृषि, मत्स्य पालन और खाद्य प्रसंस्करण के लिये कृषि अवसंरचना को मज़बूत करने तथा कृषि शासन संबंधी सुधारों के लिये अहम उपायों की घोषणा की गई थी।
  • इस आर्थिक पैकेज के एक भाग के रूप में कृषि क्षेत्र में शासन एवं प्रशासन से संबंधित भी अनेक सुधारों की घोषणा की गई थी। 

कृषि संबंधी सुधारों की घोषणा: 

  • हाल ही में कृषि क्षेत्र में निम्नलिखित व्यापक परिवर्तनकारी सुधारों को लागू किया है:
  •  'आवश्यक वस्तु अधिनियम'-1955 में संशोधन;
  • 'कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) अध्यादेश', (Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Ordinance)- 2020;
  • कृषि उपज मूल्य निर्धारण और गुणवत्ता का आश्वासन;
  • कृषि विपणन सुधार। 

कृषि सुधारों का उद्देश्य:

  • कृषि सुधारों के माध्यम ’किसान प्रथम’ (Farmer First) अर्थात किसान को नीतियों के केंद्र में रखकर कार्य किया जाएगा जिनके निम्नलिखित उद्देश्य हैं:
    • कृषि-सेवाओं में रोज़गार उत्पन्न करना; 
    • विपणन चैनलों में विकल्पों को बढ़ावा देना; 
    • एक राष्ट्र एक बाज़ार’ की दिशा में कार्य करना; 
    • अवसंरचना का विकास;
    • मार्केट लिंकेज; 
    • फिनटेक और एगटेक में निवेश आकर्षित करना; 
    • खाद्य फसलों के स्टॉक प्रबंधन में पूर्वानुमान पद्धति को अपनाना।

लघु जोतधारकों की स्थिति:

  • सामान्यत: 2 हेक्टेयर से कम भूमि धारण करने वाले किसानों को लघु जोतधारक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 

क्र. सं.

समूह 

भूमि धारण (हेक्टेयर में)

1

सीमांत

< 1.0 हेक्टेयर

2

लघु 

1.0 < 2.0 हेक्टेयर

3

अर्द्ध-मध्यम

2.0 < 4.0 हेक्टेयर

4

मध्यम 

4.0 < 10.0 हेक्टेयर

5

वृहद 

10.0 हेक्टेयर से अधिक 

  • लगभग 85% किसान लघु तथा सीमांत जोतधारक हैं।

लघु जोतधारकों की समस्याएँ:

  • किसानों के लिये अपनाई जाने सार्वजनिक नीति के प्रभाव तथा खेत के आकार में व्युत्क्रमानुपाती संबंध होता है, अर्थात इन नीतियों का छोटे जोतधारक किसानों पर विपरीत प्रभाव होता है। 
  • खाद्य सुरक्षा प्रभावित:
    • कृषि उत्पादन बढ़ाने की दिशा में अपनाई गई नीतियों यथा- कृषि आगतों को आपूर्ति, कृषि विस्तार सेवाएँ आदि लघु जोतधारकों की प्रतिस्पर्द्धा क्षमता तथा खुद को बाज़ार में बनाए रखने की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। जिससे देश की खाद्य प्रणाली भी प्रभावित होती है। 
  • कम आय की प्राप्ति:
    • लघु जोतधारकों की आय राष्ट्रीय औसत आय से बहुत कम है। लघु जोतधारकों की प्रति व्यक्ति आय 15,000 रुपए प्रति वर्ष है। यह राष्ट्रीय औसत आय के पाँचवे हिस्से के बराबर है। 
  • औपचारिक बाज़ार तक पहुँच का अभाव:
    • भारत में लगभग लगभग 220 बिलियन डॉलर के वार्षिक कृषि उत्पाद सीमांत खेतों पर उगाया जाता है तथा इसे लगभग 50 किमी. के दायरे में अनौपचारिक बाज़ारों में बेच दिया जाता है।
    • औपचारिक (सार्वजनिक खरीद सहित) और अनौपचारिक बाज़ारों के सह-अस्तित्त्व के कारण कृषि उत्पादों तक पहुँच और मूल्य स्थिरता दोनों प्रभावित होती है। 
    • लघु जोतधारक किसानों को फसलों का अच्छा बाज़ार मूल्य तथा खरीददारों के विकल्प नहीं मिल पाते हैं।
  • अवसंरचना का अभाव:
    • 'बाज़ार तक फसल उत्पादों को लाने के लिये पर्याप्त लॉजिस्टिक संरचना का अभाव है। बड़े बाज़ारों और नगरों से भौतिक दूरी अधिक होने पर लघु जोतधारकों की आय में कमी होती है।

सुधारों की आवश्यकता: 

विपणन प्रणाली तथा अवसंरचना में सुधार:

  • अच्छी तरह से विनियमित बाज़ार की दिशा में निम्नलिखित सुधारों को लागू करने की आवश्यकता है: 
    • सुरक्षित और सस्ती भंडारण सुविधा; 
      • भंडारण सुविधाओं में वृद्धि, बड़े कृषि प्रसंस्करण उद्यमियों, खुदरा विक्रेताओं को आकर्षित करेगी।
    • गुणवत्ता प्रबंधन प्रौद्योगिकी; 
      • कार्यशील पूंजी;
      • कृषि उत्पादन तथा जलवायु परिवर्तन के साथ जुड़े जोखिमों से सुरक्षा की व्यवस्था । 
      • उदाहरण के लिये इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफ़ॉर्म आधारित कृषि प्रबंधन प्रणाली सूचना संबंधी बाधाओं को दूर करते हैं। ये प्लेटफ़ॉर्म ऋण पहुँच , जोखिम प्रबंधन, मौसम जानकारी, फसल प्रबंधन सेवाएँ प्रदान करते हैं।
      • 10,000 'किसान उत्पादक संगठनों' (Farmer Producer Organisations- FPOs) की स्थापना जैसे मिशन लघु जोतधारकों को 'बाज़ार आधारित कृषि’ उत्पादन की दिशा में प्रोत्साहन प्रदान करते हैं।

ई-मार्केटप्लेस जैसी पहलों की आवश्यकता:

  • ज़िला प्रशासन पर वाणिज्यिक विवाद निपटानों का समाधान करने के लिये पर्याप्त संसाधनों का अभाव है। 
  • प्रतिपक्ष जोखिम प्रबंधन के लिये एक उचित समाशोधन और निपटान तंत्र की आवश्यकता है। इस दिशा में ई-मार्केटप्लेस जैसी पहल को लागू किया जाना चाहिये। 

उत्पादों की गुणवत्ता का निर्धारण:

  • ऑनलाइन बिक्री की दिशा में छोटे जोतधारकों को मानक ग्रेड और गुणवत्ता-आधारित संदर्भ मूल्य अपनाने की आवश्यकता है। इसके लिये कृषि विपणन विस्तार सेवाओं का उपयोग किया जाना चाहिये।
  • सभी खाद्य मानक कानूनों और विभिन्न व्यापार मानकों को अच्छे उत्पादों की आपूर्ति की समझ के साथ संरेखित किया जाना चाहिये।

गैर-अनाज फसलों संबंधी पहल:

  • गैर-अनाज फसलों के साथ जुड़े जोखिमों और ऋण का प्रबंधन करने के लिये नवाचारी उपायों को अपनाना चाहिये ताकि इसका लाभ लघु जोत धारकों को मिल सके।

पशुधन को महत्त्व:

  • पशुधन का भारत की कृषि जीडीपी में 30% योगदान है, अत: बाज़ार तथा पशुधन के मध्य भी बेहतर समन्वय बनाने की आवश्यकता है।

अंतर-राज्य समन्वय: 

  • कृषि राज्य सूची का विषय है, अत: कृषि क्षेत्र में बेहतर अंतर-राज्य समन्वय को लागू किया जाना चाहिये। 

निष्कर्ष:

  • कृषि क्षेत्र में नवीन सुधारों को लागू करने से कृषि उत्पादकों, मध्यस्थों तथा उपभोक्ताओं के मध्य बेहतर समन्वय हो पाएगा तथा लघु जोतधारकों को भी अपने उत्पादों पर बेहतर रिटर्न मिल सकेगी तथा इससे भूगोल द्वारा उत्पन्न सीमाएँ महत्त्वहीन हो जायेगी। 

स्रोत: इकनॉमिक टाइम्स

सीमांत जोत का आकार कितना है?

सीमांत (एक हेक्टेयर से कम जोत के साथ) 2015-16 की कृषि जनगणना के अनुसार, भारत में अधिकांश भूमि जोत 86 प्रतिशत छोटी और सीमांत है। वे आकार में दो हेक्टेयर से कम हैं, और इन परिवारों की आय पहले से ही उपभोग व्यय पर खर्च से कम है

भारत में कृषि जोत का औसत आकार कितना है?

स्रोत: : एसएएस, 2021 के आंकड़ों के आधार पर । 7.35 एसएएस रिपोर्ट, 2021 भी जोत के बढ़ते विखंडन को दर्शाती है जैसा कि चित्र 18 में छोटे किसानों की बढ़ती हिस्सेदारी से स्पष्ट है। घरेलू स्वामित्व वाले जोत का औसत आकार वर्ष 2003 में 0.725 हेक्टेयर से घटकर वर्ष 2013 में 0.592 हेक्टेयर और आगे 0.512 हेक्टेयर हो गया है।

भारत में छोटी भूमि जोत का औसत आकार क्या है?

सही उत्तर 1-2 हेक्टेयर है।

भूमि जोत क्या है?

किसी व्यक्ति को भू-स्वामी या भूमिधर, मौसमी काश्तकार या पट्टेदार के रूप में जितनी भूमि पर स्थायी और पैतृक अधिकार मिले, उसे भू-स्वामी की जोत कहते है । भूस्वामी की जोत तथा कृषक की जोत समान आकार की हो सकती है, अथवा भिन्न प्रकार की भी हो सकी हे ।