भारत में 1000 लड़कों पर कितनी लड़कियां हैं? - bhaarat mein 1000 ladakon par kitanee ladakiyaan hain?

मंगलवार सुबह सीएम ने झाबुआ और मंदसौर जिले की समीक्षा बैठक ली। इस मौके पर CM ने कलेक्टर से कहा कि अफीम और डोडाचूरा के तस्करों को सख्ती से कुचल दो। साम्प्रदायिक घटनाओं पर उन्होंने कहा कि तनाव को सामंजस्य से पहले ही निपटा लें। सीएम ने लव जिहाद, धर्मांतरण, पशु तस्करी के मामलों को गंभीरता से लेने की भी बात कही। इसी दौरान सीएम शिवराजसिंह चौहान ने सेक्स रेशियो यानि लिंगानुपात की भी बात बताई. सीएम ने कहा कि मंदसौर जिले का लिंगानुपात 1000 लड़कों पर 1021 लड़कियों का हो गया है। इस उपलब्धि को एक उत्सव के रूप में मनाएं। उत्सव में मैं भी आऊंगा।

CM ने मंदसौर जिला कलेक्टर गौतम सिंह से कई मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की। सीएम ने सरकार की योजनाओं की स्थिति पर चर्चा की और जरुरी निर्देश भी दिए। बैठक में स्थानीय विधायक और मंत्री हरदीप सिंह डंग तथा जगदीश देवड़ा भी जुड़े रहे। सीएम ने कहा कि लहसुन को ब्रांड बनाएं। हमने ‘एक जिला एक उत्पाद योजना’ में लहसुन को शामिल किया है। हम इसका देश-विदेश में एक्सपोर्ट कर सकें, इसके लिए अब अवसर है। इसकी मार्केटिंग के लिए बेहतर किया जाए ताकि जिले का यह उत्पाद ब्रांड बनकर फेमस हो। कलेक्टर ने सीएम को बताया कि मंदसौर का गौरव दिवस वृहद स्तर पर मनाने का निर्णय लिया गया है। इस पर CM ने कहा कि इसे हम भगवान पशुपतिनाथ से जोड़कर भी मना सकते हैं।

CM ने कलेक्टर से सवाल किया कि अभी पेयजल की स्थिति क्या है? इस पर कलेक्टर ने बताया पेयजल की स्थिति इस समय संतोषजनक है। जिले में कहीं भी कोई संकट नहीं है। नए बोर की खुदाई प्रतिबंधित है। कुछ स्थानों पर मांग के अनुसार परिवहन से पेयजल प्रदाय किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि अफीम और डोडा चूरा के कारण जिले में अंतरराष्ट्रीय तस्कर सक्रिय रहते हैं। सीएम ने निर्देश दिए कि नारकोटिक्स और पुलिस को सक्रिय कर इन्हें सख्ती से कुचल दो।

आईआईपीएस (IIPS) का कहना है कि अब तक जो भी आंकड़े जारी किए गए हैं वह महज एक फैक्ट शीट हैं. संस्थान अगले महीने राष्ट्रीय रिपोर्ट जारी करेगा जिसमें सामाजिक, आर्थिक संदर्भ को भी विस्तृत रूप से दर्शाया जाएगा.

भारत में 1000 लड़कों पर कितनी लड़कियां हैं? - bhaarat mein 1000 ladakon par kitanee ladakiyaan hain?

जनसंख्या. (सांकेतिक तस्वीर)

24 नवंबर को राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ने अपनी एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया कि अब देश में प्रति 1000 पुरुषों पर 1020 महिलाएं हैं. आजादी के बाद ऐसा पहली बार हुआ जब देश में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या ज्यादा रही. इससे पहले के तमाम आंकड़े बताते हैं कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या हमेशा से कम ही रही है . एनएफएचएस 2019-21 कि यह रिपोर्ट जैसे ही बाहर आई इस पर दो धड़ों में बंटे लोग नजर आए. एक धड़ा इसे सरकार की कामयाबी और उसकी बेटियों से जुड़ी तमाम योजनाओं की तारीफ करते नहीं थक रहा था. तो वहीं दूसरा धड़ा इस पूरे आंकड़े में झोल की बात कर रहा था और कह रहा था कि एनएफएचएस के यह आंकड़े जमीनी स्तर पर जो आंकड़े हैं, उसे नहीं दर्शाता है‌. क्या वाकई ऐसा है?

दरअसल राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 की जो रिपोर्ट आई, उसका सर्वेक्षण स्वास्थ्य मंत्रालय की स्वायत्त संस्थान अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (IIPS) ने की थी. आईआईपीएस की माने तो किसी भी सर्वेक्षण में स्त्री पुरुष अनुपात का अनुमान वास्तविक आंकड़ों से अधिक ही रहेगा. उसका कारण यह है कि यह आंकड़े परिवार के स्तर पर इकट्ठा किए जाते हैं. उसका एक कारण और है कि आईआईपीएस के सर्वेक्षण में पुरुषों के प्रभुत्व वाले कई क्षेत्रों को शामिल नहीं किया जाता है. जिनमें संस्थानों, बेघरों, सेना, छात्रावास इत्यादि हैं.

संदेह की वजह क्या है?

दरअसल राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ सर्वेक्षण द्वारा जारी किए गए आंकड़ों पर सवाल नहीं है, बल्कि आंकड़ों की व्याख्या और उनके प्रेजेंटेशन पर सवाल है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के सर्वेक्षण का मकसद होता है कि वह इसके जरिए देश में महिलाओं एवं बाल स्वास्थ्य से संबंधित सभी सूचनाओं को विस्तार से जुटा सकें और उसका विश्लेषण कर उसे पेश करें, ताकि इसके आधार पर सरकार लोक स्वास्थ्य संबंधी जरूरी नीतियों को बना सकें. एनएफएचएस के आंकड़ों के जरिए जो कहा गया कि देश में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या ज्यादा है, उस पर शक इसलिए है क्योंकि इन सर्वेक्षणों में वैज्ञानिक पद्धति से बहुत कम घरों और उनमें रहने वाले लोगों का चयन किया जाता है.

जबकि यही जनगणना में देश के सभी घरों और लोगों के बारे में जानकारी ली जाती है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2019-21 में देश के सभी जिलों से 637 हजार घरों की जानकारी जमा की गई थी. यानि इस पूरे सर्वे में 6.36 लाख परिवारों को शामिल किया गया था. जिनमें 724,115 महिलाएं और 101,839 पुरुष शामिल थे. यानि सवा सौ करोड़ की आबादी में अगर कुछ लाख लोगों को एक सर्वे में शामिल कर उनसे आंकड़े निकाले जाएं और उन्हें पूरे देश के तराजू में रख कर सच मान लिया जाए तो ये गलत होगा.

डी-फैक्टो की वजह से भी सर्वे में महिलाओं की संख्या ज्यादा हो सकती है

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के लिए जिन घरों को चयनित किया जाता है उन्हें दो सूचीयों में नामित किया जाता है. पहला डी-ज़्यूरे और दूसरा डी-फैक्टो. डी-ज़्यूरे यानि चयनित घरों में रहने वाले मूल सदस्य, वहीं डी-फैक्टो यानि कि वह लोग जो सर्वे की पहली रात को चयनित घर में ठहरे थे. चाहे वह उस घर के सामान्य सदस्य हों या ना हों. एनएफएचएस विस्तृत जानकारी के लिए ज्यादातर डी-फैक्टो सदस्यों पर ही केंद्रित रहता है. इसका मुख्य कारण यह होता है, क्योंकि विस्तृत सर्वे या फिर स्वास्थ्य संबंधी परीक्षणों के लिए वह लोग मौजूदा समय में उपलब्ध होते हैं.

डी-फैक्टो की सूची में हमेशा महिलाओं की तादाद ज्यादा होती है. क्योंकि घरों में अक्सर आगंतुक महिलाएं ज्यादा होती हैं. जैसे कि बेटियां मायके से लौटी हों या फिर कोई अन्य महिला रिश्तेदार घर आई हों. हालांकि अब यहां यह भी सवाल उठ सकता है कि अगर बेटियां मायके आई हों तो बहुएं भी तो मायके जा सकती हैं? फिर महिलाओं की संख्या ज्यादा कैसे हुई? इसे ऐसे समझिए कि महिलाएं एक घर से निकलकर दूसरे घर में ठहर जाती हैं. लेकिन ज्यादातर पुरुषों के साथ ऐसा नहीं होता है. प्रवासी मजदूरों की कहानी आपको पता ही होगी, बड़े-बड़े शहरों में ज्यादातर प्रवासी मजदूर अकेले ही रहते हैं. जबकि उनके बीवी बच्चे परिवार के साथ गांव में ही रहते हैं.

महामारी से पहले और महामारी के दौरान कराया गया था सर्वेक्षण

इस बार का नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे इसलिए भी खास है क्योंकि इसके सर्वेक्षण का समय भी बेहद खास रहा है. डाउन टू अर्थ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार सर्वे का पहला चरण महामारी से पहले यानि 17 जून 2019 से जनवरी 2020 तक का था. जबकि दूसरा चरण 2 जनवरी 2020 से 30 अप्रैल 2021, यानि कोरोना महामारी की पहली लहर के बाद किया गया. दरअसल जिन 14 राज्यों में कोरोना काल के दौरान दूसरे चरण का सर्वेक्षण किया गया उन राज्यों में बड़ी आबादी वाले उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं. जहां महानगरों से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौटे थे.

एनएफएचएस 5 द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, अगर हम इन राज्यों में पुरुष-महिला लिंगानुपात को देखें तो हमें पता चलेगा कि मध्यप्रदेश में 1000 पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का अनुपात 970 है. जबकि उत्तर प्रदेश में प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1017 है. उसी तरह उड़ीसा में एक 1000 पुरुषों पर 1063 महिलाएं हैं, जबकि राजस्थान में 1000 पुरुषों पर 1009 महिलाएं हैं. अब सवाल उठता है कि क्या इन राज्यों में वाकई पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या बढ़ गई है. क्योंकि अगर हम 1998 में किए गए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के आंकड़ों को देखें तो उसके अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति 1000 पुरुषों पर 957 महिलाएं थीं. और इसी रिपोर्ट में कहा गया था कि महिलाओं के मुकाबले पुरुष शहरी क्षेत्रों की ओर ज्यादा पलायन कर रहे हैं.

अगले महीने राष्ट्रीय रिपोर्ट जारी होगी

बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक होने का लिंग चयन गर्भपात, शिक्षा स्वास्थ्य एवं संपत्ति के अधिकारों में महिलाओं के अनदेखी पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा. जबकि अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान ने भी कहा है कि उसके द्वारा जारी किए गए आंकड़ों का अध्ययन सिर्फ सालाना आधार पर स्त्री पुरुष अनुपात में बढ़ोतरी के संदर्भ में ही किया जाना चाहिए. लेकिन यहां जन्म के समय स्त्री पुरुष अनुपात को भी ध्यान से देखा जाना चाहिए. क्योंकि 2019-21 में प्रति 1000 लड़कों पर 929 लड़कियां हुईं, जो लड़कों के मुकाबले लड़कियों के कम होने को दर्शाता है.

हालांकि यह आंकड़ा 2015 के आंकड़े से सुधरा जरूर है. क्योंकि 2015 के आंकड़े के अनुसार उस वक्त जन्म के समय स्त्री-पुरुष का अनुपात प्रति 1000 पर 919 था. लेकिन यह अभी भी विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्त्री पुरुष अनुपात के अनुमान से कम है. आईआईपीएस का कहना है कि अब तक जो भी आंकड़े जारी किए गए हैं वह महज एक फैक्ट शीट हैं. संस्थान अगले महीने राष्ट्रीय रिपोर्ट जारी करेगा जिसमें सामाजिक, आर्थिक संदर्भ को भी विस्तृत रूप से दर्शाया जाएगा.

यह भी पढ़ें-

  • ‘सेना ने संदिग्ध समझकर चलाई थी गोलियां’, नागालैंड फायरिंग पर लोकसभा में बोले गृह मंत्री अमित शाह

1000 लड़कों के पीछे कितनी लड़कियां हैं?

सर्वे में पाया गया कि हर 1,000 मर्दों के अनुपात में 1,020 औरतें हैं. इससे पहले साल 2011 की जनगणना में हर 1,000 मर्दों के अनुपात में 943 औरतें गिनी गईं थीं. उत्तर प्रदेश को क्या अब भी जनसंख्या नियंत्रण क़ानून की ज़रूरत है?

1000 पुरुष पर कितनी महिलाएं हैं?

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के आंकड़ों के मुताबिक, देश में अब हर 1000 पुरुषों पर 1,020 महिलाएं हैं.

भारत में प्रति हजार पुरुषों पर कितनी महिलाएं हैं?

24 नवंबर को राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ने अपनी एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया कि अब देश में प्रति 1000 पुरुषों पर 1020 महिलाएं हैं.

भारत में कितने लड़कों पर कितनी लड़कियां है?

बाल लिंग अनुपात के ताजा आंकड़ों के अनुसार भारत में 1000 लड़कों पर 918 लड़कियां हैं. 2001 में ये आंकड़ा 927 था. 1961 के बाद से ये आंकड़ा अपने सबसे निम्न स्तर पर पहुंच गया है. भारत की जनसंख्या का 80 फीसदी हिस्सा हिंदू समुदाय में 2001 में जहां बाल लिंग अनुपात 1000 पर 925 था वो 2011 में गिरकर 913 रह गया.