भारत छोड़ो आंदोलनक्रिप्स मिशन के वापस लौटने के उपरांत, गांधीजी ने एक प्रस्ताव तैयार किया जिसमें अंग्रेजों से तुरन्त भारत छोड़ने तथा जापानी आक्रमण होने पर भारतीयों से अहिंसक असहयोग का आह्वान किया गया था। कांग्रेस कार्यसमिति ने वर्धा की अपनी बैठक (14 जुलाई 1942) में संघर्ष के गांधीवादी प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति दे दी। Show
अगस्त 1942 में संपूर्ण भारत में गांधी द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई। ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध 1857 ई. के पश्चात् देश की आजादी के लिये चलाए जाने वाले सभी आंदोलनों में 1942 ई. का भारत छोड़ो आंदोलन सबसे विशाल और सबसे तीव्र आंदोलन था। इस आंदोलन ने जहाँ एक ओर ब्रिटिश सरकार की नींव पूरी तरह हिला दी वहीं दूसरी ओर जनसामान्य को भी यह बता दिया कि अब स्वतंत्रता दूर नहीं है। 14 जुलाई, 1942 को वर्धा में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई, जिसमें भारत छोड़ो आंदोलन पर एक प्रस्ताव पारित हुआ। इससे पूर्व गांधीजी ने भारत छोड़ो प्रस्ताव के विरोधियों को चुनौती देते हुए कहा था कि “यदि संघर्ष का उनका प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया जाता तो मैं देश की बालू से ही कांग्रेस से बड़ा आंदोलन खड़ा कर दूंगा।" भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत एवं विस्तार
भारत छोड़ो आंदोलन के कारणभारत छोड़ो आंदोलन औपनिवेशिक शासन के शोषण के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया थी जिसे द्वितीय विश्वयुद्धजनित परिस्थितियों ने और अधिक तीव्र कर दिया। युद्ध के दौरान जापान द्वारा ब्रिटेन की लगातार पराजय के कारण भारतीयों के ऊपर जापानियों का नियंत्रण होने का खतरा बन आया। अगस्त प्रस्ताव और क्रिप्स मिशन की असफलता ने यह तय कर दिया था कि अंग्रेज़ युद्ध के दौरान या बाद कोई भी रियायत देने को तैयार नहीं हैं। युद्ध के समय आर्थिक दशाएँ पहले से अधिक प्रतिकूल हो गईं, खाद्यान्न संकट एवं महँगाई ने जन-असंतोष में काफी वृद्धि कर दिया। 1930 ई. के सविनय अवज्ञा आंदोलन के बाद कोई व्यापक आंदोलन नहीं चला, अतः जनता के पास संघर्ष के लिये पर्याप्त ऊर्जा व उत्साह था।
भारत छोड़ो प्रस्तावअखिल भारतीय कांग्रेस समिति ने बम्बई में 8 अगस्त 1942 को 14 जुलाई, 1942 के कांग्रेस कार्यकारिणी द्वारा पारित प्रस्ताव का अनुसमर्थन कर दिया। यही प्रस्ताव 'भारत छोड़ो प्रस्ताव' के नाम से जाना जाता है। इसकी मुख्य बातें निम्न थीं-
भारत छोड़ो आन्दोलन आंदोलन का स्वरूपजब जनता ने नेताओं की गिरफ्तारी आदि के समाचार सुने और पढे तो उनके क्षोभ का कोई ठिकाना नहीं रहा और वह अंग्रेजों से बदला लेने की सोचने लगी। कांग्रेसी नेताओं ने जनता के लिए कोई अनुदेश या निर्देश नहीं छोड़े थे। महात्माजी ने तो केवल करो या मरो का नारा दिया था। इसलिए जनता के पास कोई निश्चित कार्यक्रम नहीं था। ऐसी दशा में शेष अखिल भारतीय नेताओं ने कांग्रेस समिति की तरफ से एक पुस्तिका प्रकाशित की जिसमें 12 सूत्री कार्यक्रम दिया हुआ था। इस 12 सूत्री कार्यक्रम में सम्पूर्ण देश में शांतिपूर्ण हड़तालें, सार्वजनिक सभाएँ, नमक बनाना, लगान न देना आदि कार्यक्रम सम्मिलित थे। सरकार ने शीघ्र ही इस पुस्तिका को जब्त कर लिया और अनेक कठोर कदम उठाये। इस आंदोलन का स्वरूप बिल्कुल अहिंसात्मक था। हिंसा को कोई स्थान नहीं था। जनता से कहा गया था कि पुलिस थानों, तहसीलों तथा जिले के मुख्य कार्यालयों को अहिंसक कार्यों द्वारा अकर्मण्य बना दिया जाए, परंतु जब प्रमुख नेताओं को बंदी बना लिया गया तो जनता का धैर्य डिग गया। उन्हें स्पष्ट रूप से मालूम हो गया कि वे अहिंसक क्रांति से कुछ प्राप्त नहीं कर सकते हैं और क्रांति के बिना अंग्रेजों के हौसले पस्त नहीं किए जा सकते। इसलिए आंदोलन का संचालन ऐसे व्यक्तियों के हाथों में चला गया जो जीवन के विनाश और निर्माण में भेद नहीं कर सके। अतः आंदोलन अहिंसात्मक मार्ग पर बढ़ता-बढ़ता क्रांतिकारी उद्देश्य के चरम बिंदु पर जा पहुँचा और आंदोलन में हिंसा का समावेश हो गया। भारत छोड़ो आन्दोलन के उद्देश्य
उपर्युक्त उद्देश्यों से स्पष्ट होता है कि महात्मा गांधी और कांग्रेस का उद्देश्य मूलतः भारत की पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति था जिसके लिए वे कोई भी कदम उठाने के लिए तैयार थे। अहिंसा के सन्दर्भ में गांधी जी ने अब अपने विचार बदल लिए थे। युद्ध में दो में से जो कमजोर हो वहा हिंसा का प्रयोग करे तो वह युद्ध भी अहिंसात्मक होगा, अर्थात् शक्तिशाली के विरूद्ध हिंसा का प्रयोग भी अहिंसा होगा। इसलिए इसी अन्तराल में उन्होंने एक भाषण में कहा था, “यह आन्दोलन जन आन्दोलन होगा इसमें सब साधनों (हिंसात्मक या अहिंसात्मक) का प्रयोग किया जा सकता है।" इसी में गांधी जी ने कहा, “यह आन्दोलन कांग्रेस की अन्तिम कोशिश होगी जिसमें या तो हम भारतीय स्वतंत्रता प्राप्त करेंगे या मर मिटेंगे। प्रत्येक मनुष्य इस आन्दोलन के उपरान्त अपने को स्वतन्त्र समझेगा।" भारत छोड़ो आंदोलन के चार चरणप्रथम चरण- आंदोलन की पहली अवस्था गाँधीजी की 9 अगस्त, 1942 ई. की गिरफ्तारी से लेकर 3-4 दिन तक रही। इस काल में श्रमिक हड़तालों का विशेष प्रभाव था। पुलिस का दमन-चक्र चला जिससे लोगों में अत्यधिक असंतोष भड़का और वे हिंसा पर उतर आए।
भारत छोड़ो आंदोलनइस आंदोलन के फलस्वरूप विश्व लोकमत में नाटकीय परिवर्तन हुआ। आंदोलन का अमरीकी जनता पर काफी प्रभाव पड़ा। स्वयं ब्रिटेन का लोकमत भी चाहने लगा कि इंग्लैंड भारत को छोड़ दे। चीन की जनता पर भी विशेष प्रभाव पड़ा। चीन के मार्शल च्यांग कॉई शेक ने 25 जुलाई, 1942 ई. को अमरीकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट को "अंग्रेजों के लिए यही सबसे बडी नीति है कि भारत को पूर्ण स्वतंत्रता दे दे।" च्यांग कॉई शेक द्वारा भारत की वकालत करने पर चर्चिल बौखला उठा और उसने धमकी दी, यदि चीन भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता रहा, तो अंग्रेज चीन के साथ अपनी संधि तोड़ देंगे। आंदोलन विरोधी दृष्टिकोण- लीग की दृष्टि से यह खतरनाक आंदोलन था। मुस्लिम लीग के सर्वेसर्वा श्री जिन्ना ने इस आंदोलन की निंदा की और मुसलमानों को इसमें भाग न लेने का परामर्श दिया। हिंदू महासभा ने इस आंदोलन को निरर्थक बताया और कहा कि देश को पूर्ण स्वतंत्रता की माँग करनी चाहिए। उदारवादी नेता सर तेजबहादुर सप्र ने इस आंदोलन को अकल्पित तथा असामयिक बताया। डॉ. अम्बेडकर ने भी इस आंदोलन का विरोध किया। अकाली दल और साम्यवादी दल भी इस आंदोलन के विरूद्ध थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि कांग्रेस को छोड़कर कोई भी दल सन् 1942 ई. में अंग्रेजों को अप्रसन्न करने के पक्ष में नहीं था। भारत छोड़ो आंदोलन का महत्त्व और परिणामसन् 1942 ई. का आंदोलन स्वाधीनता प्राप्ति की दिशा में महान् कदम था। यह आंदोलन कोई साधारण नहीं था, अपितु स्वतंत्रता प्राप्ति में महान् आंदोलन था। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह व्यापक जन-असंतोष था जो गुलामी की जंजीरों को तोड़ना चाहता था। भारत में राजनीतिक जागति- इस आंदोलन का तात्कालिक उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति था और इसमें यह आंदोलन असफल सिद्ध हुआ। परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि आंदोलन पूर्णतः निष्फल रहा। इस आंदोलन का महान् उद्देश्य था-जनता में जागृति उत्पन्न करना और विदेशी ब्रिटिश शासन के विरूद्ध मुकाबला करने की भावना उत्पन्न करना। आंदोलन इस उद्देश्य को प्राप्त करने में बहुत सफल रहा। इस आंदोलन ने लोगों में नवीन चेतना का अभ्युदय एवं अत्याचारों से लोहा लेने की भावना का विकास किया। सरदार पटेल के अनुसार, “भारत में ब्रिटिश राज्य के इतिहास में ऐसा विप्लव कभी नहीं हुआ था जैसा कि 1942 ई. में हुआ। लोगों ने जो प्रतिक्रिया की है हमें उस पर गर्व है।" क्रांतिकारी गतिविधियों को प्रोत्साहन- 1942 के आंदोलन ने उग्रवादियों एवं क्रांतिकारियों की गतिविधियों को तीव्र कर दिया। सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज का गठन किया और आजाद हिंद फौज के सैनिकों ने अंग्रेजी सेनाओं से डटकर लोहा लिया और उन्हें अनेक स्थानों पर पराजित किया। आजाद हिंद फौज के सैनिकों की वीरता, साहस और बलिदान ने देश में एक अद्भुत जोश की भावना उत्पन्न कर दी और देशवासी भारत की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए प्रेरित हुए। इस आंदोलन से उत्पन्न चेतना के परिणामस्वरूप ही 1946 में जलसेना का विद्रोह हुआ जिसने भारत में ब्रिटिश शासन पर और भयंकर चोट की। साम्यवादी तथा मुस्लिम लीग का विश्वासघात- इस आंदोलन ने साम्यवादी दल और मुस्लिम लीग का वास्तविक रूप प्रकट कर दिया। इन दोनों दलों के राष्ट्र-विरोधी कार्यों से भारतवासियों में तीव्र असंतोष उत्पन्न हुआ। विदेशों में भारतीयों के प्रति सहानुभूति- इस आंदोलन के कारण अमेरिका तथा चीन में भारतीयों के प्रति सहानुभूति उत्पन्न हुई। चीन के राष्ट्रपति च्यांगकाई शेक तथा अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने भारत को पूर्ण स्वतंत्रता दिए जाने का समर्थन किया। इस प्रकार हम देखते हैं कि आंदोलन अदम्य राष्ट्रीयता और क्रान्ति का प्रतिफल तथा अंग्रेजों के विरूद्ध घोर घृणा का परिणाम था। इस आंदोलन का स्वरूप शुरू में अहिंसात्मक था, परंतु परिवर्तित परिस्थितियों में यह क्रांतिकारी पथ पर अग्रसर होता गया। इस आंदोलन में सर्वसाधारण ने बढ़कर भाग लिया और सरकार ने भी इसे कुचलने में कमी नहीं रखी, फिर भी सरकार जनभावनाओं का दमन करने में पूर्ण सफल नहीं हो सकी। इस आंदोलन में केवल कांग्रेस ने ही महत्वपूर्ण भाग अदा किया था। अन्य दल दर्शक मात्र बने रहे। फिर भी यह आंदोलन, जिसकी जड़ें जनमानस में गहराई से आरोपित हो गई थीं, काफी सफल रहा। इस आंदोलन ने देश में राष्ट्रीयता की अलख जगा दी जो अंग्रेजों को भारत से निकाल देने के बाद ही शांत हो सकी। इस आंदोलन का सबसे बड़ा परिणाम यह हुआ कि “मुस्लिम लीग और अंग्रेजों में गन्धर्व विवाह हो गया।" अंग्रेज शासकों के विरूद्ध भारतीयों की घृणा से इस विद्रोह को प्रेरणा तथा प्रोत्साहन मिलता रहा। इसका उद्देश्य भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराना था और इसके लिए हिंसा तथा प्रशासनिक मशीनरी की तोड़-फोड़ को साधन रूप से अपनाया गया। यह जनता में उत्पन्न नये उत्साह तथा गरिमा का सूचक था।' इस आन्दोलन के प्रमुख संचालक जय प्रकाश नारायण ने इसके विषय में लिखा- “भारत छोड़ो आन्दोलन फ्रान्स व रूस की क्रान्ति से कम नहीं था। इससे भारत की स्थिति में पूर्णतया परिवर्तन आ गया। इसने नये भारत को जन्म दिया तथा राजनीतिक जीवन को एक नवीन दिशा दी। वास्तव में इससे भारतीय राष्ट्रवाद के भविष्य पर बहुत गहरा असर पड़ा।" भारत छोड़ो आंदोलन महत्वपूर्ण तथ्य
भारत छोड़ो आंदोलन का प्रमुख कारण क्या था?भारत छोड़ो आंदोलन के कारण:
आंदोलन का तात्कालिक कारण क्रिप्स मिशन की समाप्ति/ मिशन के किसी अंतिम निर्णय पर न पहुँचना था। द्वितीय विश्व युद्ध में भारत का ब्रिटिश को बिना शर्त समर्थन करने की मंशा को भारतीय राष्ट्रीय काँन्ग्रेस द्वारा सही से न समझा जाना।
भारत छोड़ो आंदोलन कब शुरू किया गया था कोई तीन कारण लिखिए?भारत छोड़ो आंदोलन: जब 1942 में बलिया, तमलुक और सतारा में बन गई थीं आज़ाद सरकारें नौ अगस्त 1942 को मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में महात्मा गांधी ने अंग्रेज़ों से तुरंत भारत छोड़ने को कहा और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे शक्तिशाली आंदोलन की शुरूआत की.
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने का मुख्य कारण कौन सा था?'भारत छोड़ो आंदोलन' द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 8 अगस्त 1942 को आरम्भ किया गया था, जिसका मकसद भारत मां को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराना था। ये आंदोलन देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ओर से चलाया गया था। बापू ने इस आंदोलन की शुरूआत अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन से की थी।
भारत छोड़ो आंदोलन की असफलता के क्या कारण थे कोई पांच कारण लिखिए?भारत छोड़ो आंदोलन की असफलता के कारण
सुसंगठित योजना के अभाव के कारण आंदोलन से पहले ही सारे नेता गिरफ्तार कर लिए गए। 2- गाँधी जी का अति आत्मविश्वास भी इस आंदोलन की असफलता का कारण बना। 3- इस आंदोलन का कोई मुख्य नेतृत्वकर्ता नहीं था जिसके कारण आंदोलन रास्ता भटक गया। 4- आंदोलन को बहुत सारे नेताओं का समर्थन प्राप्त नहीं था।
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