मेरठ: मेरठ और क्रान्ति का अद्भुत नाता है. अट्टारह सौ सत्तावन को क्रान्ति की ज्वाला मेरठ से फूटी थी और वह अंग्रेज़ों को भगाकर देश को आज़ाद करने का सबब बनी. 1857 का वह दिन भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. कल यानी शनिवार को हम अपना 74वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे हैं. मेरठ की क्रांति का जिक्र किये बिना देश की आजादी के किस्से अधूरे हैं. मेरठ से आजादी के पहले आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जो बाद में पूरे देश में फैल गया. 85 सैनिकों के विद्रोह से एक छोटी सी चिंगारी निकली और ज्वाला बन गई. Show आपको बता दें 10 मई, अट्ठारह सौ सत्तावन को मेरठ से ही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फूंका गया था, जिसके तहत 85 सैनिकों का कोर्टमार्शल कर उनकी वर्दी उतरवाई गई थी और इस विद्रोह की वजह थी कि मेरठ में 24 अप्रैल अट्ठारह सौ सत्तावन को कार्बाइन की परेड हुई जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई. 85 सैनिकों ने कर दिया था विद्रोह पूरे विद्रोह की कहानी कुछ इस तरह है. कर्नल कार माइकल स्मिथ ने चर्बी लगे कारतूस भारतीय सैनिकों को देने के आदेश दिए. इन कारतूसों को मुंह से खोलना पड़ता था. तीसरी रेजीमेंट लाइन गैलरी के 90 में से 85 सैनिकों ने इस कारतूस के खिलाफ बगावत कर दी और यही वजह रही कि 9 मई अट्ठारह सौ सत्तावन को परेड ग्राउंड में इन सैनिकों का कोर्ट मार्शल किया गया, और इनकी वर्दी उतरवा दी गई. 10 मई, अट्ठारह सौ सत्तावन को इन सैनिकों ने अंग्रेजों के खिलाफ विरोध का बिगुल फूंक दिया और यही विरोध प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बुनियाद बना. News Reels मेरठ स्थित शहीद संग्रहालय के इंचार्ज पीके जैन की माने तो 1857 की क्रांति की शुरुआत मेरठ की जमीन से हुई थी. कहा जाता है कि अंग्रेजों ने करीब 90 भारतीय सैनिकों को गाय और सुअर की चर्बी का कारतूस दिया था, जिसे 85 सैनिकों ने चलाने से मना कर दिया, क्योंकि उस कारतूस को मुंह से खोलना पड़ता था और इन सैनिकों में हिन्दू और मुस्लिम दोनों समाज के लोग थे. अंग्रेजों ने ये जानबूझकर किया था, जिसके बाद इस सैनिकों ने विद्रोह कर दिया तो उनका कोर्टमार्शल हुआ और उन्हें विक्टोरिया के पास एक जेल थी, जहां रखा गया था और जब धीरे धीरे आंदोलन पूरे देश मे शुरू हो गया और यही वजह है कि आज भी इतिहास में वो तारीख दर्ज है. गौरतलब है कि इन शहीदों को हम सिर्फ स्वतंत्रता दिवस या गणतन्त्र दिवस पर न याद करें बल्कि इनकी याद हमारे दिल में हमेशा रहनी चाहिए. क्योंकि जिस आजाद देश मे आज हम सांस ले रहे हैं, उसकी नींव इन महान देश भक्तों ने खुद का बलिदान कर रखी थी. ये भी पढ़ें. यूपी: कानपुर में भारी बारिश से गिरा 100 साल पुराना मकान, मलबे में दबकर दो लोगों की मौत विद्रोह के कारण आग में घी का काम उस घटना ने किया जब बहादुर शाह द्वितीय के वंशजों को लाल किले में रहने पर पाबंदी लगा दी गई। कुशासन के नाम पर लार्ड डलहौजी ने अवध का विलय करा लिया जिससे बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी, अधिकारी एवं सैनिक बेरोजगार हो गए। इस घटना के बाद जो अवध पहले तक ब्रिटिश शासन का वफादार था, अब विद्रोही बन गया। सामाजिक
एवं धार्मिक कारण आर्थिक कारण इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के बाद भारतीय बाजार ब्रिटेन में निर्मित उत्पादों से पट गए। इससे भारत का स्थानीय कपड़ा उद्योग खासतौर पर तबाह हो गया। भारत के हस्तशिल्प उद्योग ब्रिटेन के मशीन से बने सस्ते सामानों का मुकाबला नहीं कर पाए। भारत कच्ची सामग्री का सप्लायर और ब्रिटेन में बने सामानों का उपभोक्ता बन गया। जो लोग अपनी आजीविका के लिए शाही संरक्षण पर आश्रित थे, सभी बेरोजगार हो गए। इसलिए अंग्रेजों के खिलाफ उनमें काफी गुस्सा भरा हुआ था। सैन्य कारण बंगाल आर्मी में अवध के उच्च समुदाय के लोगों की भर्ती की गई थी। उनकी धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, उनका समुद्र (कालापानी) पार करना वर्जित था। उनलोगों को लार्ड कैनिंग के नियम से शक हुआ कि ब्रिटिश सरकार उनलोगों को किस्चन बनाने पर तुली हुई है। अवध के विलय के बाद नवाब की सेना को भंग कर दिया गया। उनके सिपाही बेरोजगार हो गए और ब्रिटिश हुकूमत के कट्टर दुश्मन बन गए। तात्कालिक कारण मंगल पांडे विद्रोह का प्रसार इस घटना के बाद मेरठ छावनी में विद्रोह की आग भड़क गई। 9 मई को मेरठ विद्रोह 1857 के संग्राम की शुरुआत का प्रतीक था। मेरठ में भारतीय सिपाहियों ने ब्रिटिश अधिकारियों की हत्या कर दी और जेल को तोड़ दिया। 10 मई को वे दिल्ली के लिए आगे बढ़े। 11 मई को मेरठ के क्रांतिकारी सैनिकों ने दिल्ली पहुंचकर, 12 मई को दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इन सैनिकों ने मुगल सम्राट बहादुरशाह द्वितीय को दिल्ली का सम्राट घोषित कर दिया। शीघ्र ही विद्रोह लखनऊ, इलाहाबाद, कानपुर, बरेली, बनारस, बिहार और झांसी में भी फैल गया। अंग्रेजों ने पंजाब से सेना बुलाकर सबसे पहले दिल्ली पर अधिकार किया। 21 सितंबर, 1857 ई. को दिल्ली पर अंग्रेजों ने पुनः अधिकार कर लिया, परन्तु संघर्ष में 'जॉन निकोलसन' मारा गया और लेफ्टिनेंट 'हडसन' ने धोखे से बहादुरशाह द्वितीय के दो पुत्रों 'मिर्ज मुगल' और 'मिर्ज ख्वाजा सुल्तान' एवं एक पोते 'मिर्जा अबूबक्र' को गोली मरवा दी। लखनऊ में विद्रोह की शुरुआत 4 जून, 1857 ई. को हुई। यहां के क्रांतिकारी सैनिकों द्वारा ब्रिटिश रेजिडेंसी के घेराव के बाद ब्रिटिश रेजिडेंट 'हेनरी लॉरेन्स' की मृत्यु हो गई। हैवलॉक और आउट्रम ने लखनऊ को दबाने का भरकस प्रयत्न किया, लेकिन वे असफल रहे। आखिर में कॉलिन कैंपवेल' ने गोरखा रेजिमेंट के सहयोग से मार्च, 1858 ई. में शहर पर अधिकार कर लिया। वैसे यहां क्रांति का असर सितंबर तक रहा। बगावत को कुचलना विद्रोह की असफलता के कारण प्रभावी नेतृत्व का अभाव सीमित संसाधन मध्य वर्ग का हिस्सा नहीं लेना विद्रोह के परिणाम हड़प नीति की समाप्ति Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति की शुरुआत कैसे हुई?आपको बता दें 10 मई, अट्ठारह सौ सत्तावन को मेरठ से ही प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल फूंका गया था, जिसके तहत 85 सैनिकों का कोर्टमार्शल कर उनकी वर्दी उतरवाई गई थी और इस विद्रोह की वजह थी कि मेरठ में 24 अप्रैल अट्ठारह सौ सत्तावन को कार्बाइन की परेड हुई जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई.
अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति कब आरंभ हुआ?1857 के बिद्रोह (Indian Rebellion of 1857) भा 1857 के क्रांति भारत में भइल एक ठो बिद्रोह रहल जे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ़ रहल आ मई 1857 से जुलाई 1859 ले चलल।
अट्ठारह सौ सत्तावन की क्रांति से क्या समझते हैं?1857 का भारतीय विद्रोह भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ एक व्यापक लेकिन असफल विद्रोह था जिसने ब्रिटिश राज की ओर से एक संप्रभु शक्ति के रूप में कार्य किया।
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