CBSE Class 6 Hindi Bal Ram Katha Important Questions Chapter 7 - Sone Ka Hiran - Free PDF Download
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Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 7 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. अभ्यास प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न 1. मारीच रावण का कौन था? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. सीता ने राम के पराक्रम के बारे में क्या कहा? Bal Ram Katha Class 6 Chapter 7 Summary राम को कुटी से निकलते देखकर मायावी हिरण कुलांचे भरने लगा। उसने राम को बहुत छकाया। राम को वह बहुत दूर ले गया। हिरण को पकड़ने के राम के सारे प्रयास विफल हुए। राम ने उसे जीवित पकड़ने का प्रयास छोड़ दिया। उन्होंने उस पर बाण चलाए। हिरण बाण लगते ही धरती पर गिर पड़ा। जमीन पर गिरते ही मारीच असली रूप में आ गया। उसने अपना रूप बदला और आवाज़ भी बदल ली। वह राम की सी आवाज़ में जोर से चिल्लाया-‘हा सीते! हा लक्ष्मण!’ ध्वनि ऐसी थी मानो राम सहायता के लिए पुकार रहे हों। मारीच के प्राण पखेरू उड़ गए। मारीच की आवाज़ सुनकर राम को समझने में देर नहीं लगी वे तुरंत तेज़ कदमों से कुटिया की ओर बढ़े। मारीच की पुकार सीता और लक्ष्मण ने भी सुनी। लक्ष्मण रहस्य समझ गए और चौकसी बढ़ा दिए। इधर रावण एक विशाल पेड़ के नीचे खड़ा था। उसका प्रपंच सफल होने पर था। रावण को अकंपन की बात स्मरण हो गई कि सीता का अपहरण होने पर राम के प्राण निकल जाएँगे। उधर सीता वह आवाज़ सुनकर विचलित हो गईं। उन्होंने लक्ष्मण से कहा-“तुम जल्दी जाओ। तुम्हारे भाई किसी कठिन संकट में फँस गए हैं। जाओ, लक्ष्मण जल्दी।” लक्ष्मण ने सीता को समझाया कि राम संकट में नहीं हैं। उनका कोई कुछ नुकसान नहीं कर सकता। वह आवाज़ मायावी राक्षसों की चाल है। इस पर सीता का क्रोध और बढ़ गया। क्रोध में आँखों से आँसू बहने लगे। उन्होंने लक्ष्मण को भला-बुरा कहा तथा उन पर भरत के गुप्तचर होने का भी आरोप लगा दिया। सीता की बातों से लक्ष्मण काफ़ी आहत हो गए। लक्ष्मण चुप-चाप सिर झुकाकर खड़े थे। वे बार-बार सीता को समझाने का प्रयास करते रहे कि यह राक्षसों की चाल है, लेकिन सीता ने एक भी नहीं मानी और कहने लगीं कि-“मैं राम के बिना नहीं रह सकती। अपनी जान दे दूंगी। लक्ष्मण तुम जाओ और राम को जल्दी ले आओ।” इसके बाद लक्ष्मण ने सीता को प्रणाम किया और राम की खोज में निकल पड़े। लक्ष्मण के जाते ही रावण आ पहुँचा। रावण गेरुआ वस्त्र पहने कुटिया के पास आया। सीता ने साधु समझकर उसका स्वागत किया। रावण ने सीता की खूब प्रशंसा की और लंका में जाकर रहने को कहा। उसने कहा-तुम सोने की लंका में मेरी रानी बनकर रहोगी। सीता क्रोधित हो उठीं। वे बोलीं-मैं प्राण त्याग दूंगी पर तुम्हारे साथ नहीं जाऊँ गी। रावण ने सीता की बात अनसुनी कर दी। उसने सीता को खींचकर रथ में बिठा लिया। सीता उसके चंगुल से बचने का प्रयास करती रही लेकिन सब व्यर्थ हुआ। वे राम और लक्ष्मण को पुकारती रहीं। वह विलाप करती रहीं-हा राम! हा लक्ष्मण! रावण का रथ लंका की ओर उड़ चला। मार्ग में वे पशुओं, पक्षियों, पर्वतों से कहती जा रही थीं कि कोई राम को बता दे कि रावण ने उसका हरण कर लिया है। गिद्ध राज जटायु ने सीता का विलाप सुना और तुरंत रावण के रथ पर हमला किया। क्रोध में रावण ने उसके पंख काट दिए। अतः वह धरती पर आ गिरा। रावण का रथ टूट गया था। अतः वह उड़ान नहीं भर सकता था। उसने तत्काल सीता को अपनी बाँहों में दबाया और दक्षिण दिशा की ओर उड़ने लगा। सीता किसी तरह राम के पास सूचना पहुँचाना चाहती थीं। उन्होंने अपने आभूषण उतार कर नीचे फेंकने शुरू कर दिए ताकि राम को उसका पता चल जाए। रावण ने सीता को आभूषण फेंकने से नहीं रोका। उसे लगा कि सीता दुखी होकर ऐसा कर रही हैं। कुछ समय में रावण लंका पहुँच गया। वह सीधा अंत:पुर गया। वह अपने धन वैभव से सीता को प्रभावित करना चाहता था। उसने सीता से कहा-मैं तुम्हें एक वर्ष का समय देता हूँ। निर्णय तुम्हें करना है। मेरी रानी बनकर लंका में राज करोगी या विलाप करते हुए जीवन बिताओगी? ‘सीता बार-बार रावण को धिक्कारती रही और राम का गुणगान करती रही। उसने रावण को चेतावनी भरे स्वर में कहा। ‘राम तुझे अपनी दृष्टि से जलाकर राख कर सकते हैं। उनकी शक्ति देवता स्वीकार करते हैं। मैं उस राम की पत्नी हूँ, जिसके तेज के आगे कोई ठहर नहीं सकता। तेरा सारा वैभव मेरे लिए बेकार है। राम के हाथों तेरा संहार निश्चित है। सीता बार-बार धिक्कारती रहीं और राम का गुणगान करती रहीं। राम का गुणगान सुनकर रावण चिंतित हो गया। उसने आठ राक्षसों को बुलाकर पंचवटी भेज दिया ताकि वे राम-लक्ष्मण पर निगरानी रख सकें। इधर रावण ने सीता को अंत:पुर से निकालकर अशोक वाटिका में बंदी बना दिया। उसने अनेक प्रयत्न किए पर सीता का मन नहीं बदला। वह रो-रोकर दिन काट रही थीं। रावण ने राक्षस-राक्षसियों को आदेश दिया कि सीता को कोई शारीरिक प्रताड़ना मत देना उसके मन को ठेस पहुँचाओ, अपमानित करो। रावण ने सब किया पर सीता बार-बार राम का नाम लेती रहीं। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या 41 पृष्ठ
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