2014 लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी - 2014 lokasabha chunaav mein aam aadamee paartee

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लोकसभा चुनाव 2014: उम्मीदवारों का व्ययक्रमांकअभ्यर्थी का नामपार्टीव्यय देखें1वीणा देवीलोजपाडाउनलोड2राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंहजद (यू)डाउनलोड3प्रगति मेहताराजदडाउनलोड4कामेश्वरी मंडलबहुजन समाज पार्टीडाउनलोड5डॉ अशोक कुमार सिंहशिव सेनाडाउनलोड6रामवदन रॉयसमाजवादी पार्टीडाउनलोड7सूर्योदय पासवानसंख्य्यपति भागदीरी पार्टीडाउनलोड8प्रमोद कुमारSUCI (सी)(Cडाउनलोड9उचित कुमारRSPI (एमएल)डाउनलोड10मुज़फ्फर फखरुद्दीनस्वतंत्रडाउनलोड11शरवन कुमार आनंदस्वतंत्रडाउनलोड12संदीपआम आदमी पार्टीडाउनलोड

संसदीय निर्वाचन क्षेत्र -25 खगड़िया

अभियर्थी व्यय विवरणी

क्रम संख्याप्रत्याशी का नामपार्टी का नामव्यय रिपोर्ट1.ब्रह्मदेव मुखियाराष्ट्रीय नौजवान दलदेखे2.चौधरी महबूब अली कैसरभारतीय जनता पार्टीदेखे3.दिनेश चंद्र यादवजनता दल यूनाइटेडदेखे4.गणेश मुखिया निशादजल कल्याण लोकतंत्रिक पार्टीदेखे5.जगदीश चंद्र बसुभारतीय कम्युनिस्ट पार्टीदेखे6.कृष्णा कुमारी यादवराष्ट्रीय जनता दलदेखे7.माखन शाहसमाजवादी जनता पार्टी राष्ट्रदेखे8.राजेश कुमारबहुजन समाज पार्टीदेखे9.सतीश प्रसाद सिंहस्वतंत्रदेखे10.स्वामी विवेकानंदआम आदमी पार्टीदेखे11.तेज बहादुर सिंहप्रौतिवादी सर्व समाजदेखे12.उमेश चंद्र भारतीस्वतंत्रदेखे

अभियर्थी शपथ पत्र

क्रम संख्याप्रत्याशी का नामपार्टी का नामशपथ पत्र1.ब्रह्मदेव मुखियाराष्ट्रीय नौजवान दलदेखे2.चौधरी महबूब अली कैसरभारतीय जनता पार्टीदेखे3.दिनेश चंद्र यादवजनता दल यूनाइटेडदेखे4.गणेश मुखिया निशादजल कल्याण लोकतंत्रिक पार्टीदेखे5.जगदीश चंद्र बसुभारतीय कम्युनिस्ट पार्टीदेखे6.कृष्णा कुमारी यादवराष्ट्रीय जनता दलदेखे7.माखन शाहसमाजवादी जनता पार्टी राष्ट्रदेखे8.राजेश कुमारबहुजन समाज पार्टीदेखे9.राजीव रंजनलोक दलदेखे10.सतीश प्रसाद सिंहस्वतंत्रदेखे11.स्वामी विवेकानंदआम आदमी पार्टीदेखे12.तेज बहादुर सिंहप्रौतिवादी सर्व समाजदेखे13.उमेश चंद्र भारतीस्वतंत्रदेखे14.विनोद तांतीबहुजन मुक्ति पार्टीदेखे

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यही नहीं, दिल्ली में जहाँ कि उसी की पार्टी की सरकार है, वहाँ भी पार्टी को सीभी सात सीटों पर हार का मुँह देखना पड़ा.

इसके साथ ही वोट प्रतिशत के लिहाज़ से भी ये पार्टी बीजेपी और कांग्रेस के बाद तीसरे नंबर पर पहुंच गई है.

जबकि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में इसी पार्टी को पंजाब की चार सीटों पर जीत हासिल हुई थी.

लोकसभा चुनाव में इतने खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी के अंदर और बाहर सभी ओर से पार्टी के नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं.

चांदनी चौक की विधायक अलका लांबा ने 23 मई को चुनावी नतीजे सामने आने के बाद पार्टी छोड़ने का ऐलान कर दिया है.

इसके साथ ही कई पूर्व सहयोगियों ने पंजाब से लेकर दिल्ली तक आम आदमी पार्टी के ख़राब प्रदर्शन के लिए अरविंद केजरीवाल को ज़िम्मेदार ठहराया है.

ऐसे में सवाल उठता है कि साल 2020 में दिल्ली विधानसभा और 2022 में पंजाब विधानसभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए कैसी चुनौतियां सामने आएंगी.

पंजाब में क्यों बिगड़ी 'आप' की हालत

वरिष्ठ पत्रकार सरबजीत पंधेर मानते हैं कि पंजाब में मतदाताओं के मोहभंग होने के लिए अरविंद केजरीवाल से ज़्यादा उनके सहयोगी ज़िम्मेदार हैं.

वह कहते हैं, "पंजाब में सभी पार्टियों के कार्यकर्ता राजनीतिक निर्णयों में ज़्यादा हक़ दिए जाने की मांग करते हैं. आम आदमी पार्टी में ज़मीनी स्तर के स्वयंसेवक भी ज़्यादा हक़ मांग रहे थे. लेकिन यहां पर आम आदमी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य स्तरीय नेताओं जैसे सुच्चासिंह छोटेपुर को पार्टी से निकाल दिया. इसके बाद गुग्गी को पार्टी अध्यक्ष बना दिया. और ये फ़ैसले आम कार्यकर्ताओं से विचार-विमर्श किए बगैर लिए गए. ऐसे में पंजाब में पार्टी को खड़ा करने वाले कार्यकर्ताओं के मनोबल और अपेक्षाओं को काफ़ी ठेस पहुंची."

"इसके बाद पार्टी ने दिल्ली से नेताओं को भेजना शुरू कर दिया. जबकि अपेक्षा ये की जा रही थी कि ज़मीन से ऊपर उठकर आने वाले नेताओं को नेतृत्व की ज़िम्मेदारी दी जाएगी. इसमें अरविंद केजरीवाल का कसूर ये है कि उन्होंने साफ़ मिल रहे संकेतों को ध्यान से देखकर सुधार के क़दम उठाने की जगह उन्हें नज़रअंदाज़ किया."

पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले कुछ इस तरह के संकेत भी मिले थे कि पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व पंजाब में पार्टी के ढांचे को अपने नियंत्रण में रखने की कोशिश कर रहा था.

पंजाब में आम आदमी पार्टी की राजनीति पर लंबे समय से नज़र रखने वाले बीबीसी पंजाबी सेवा के संवाददाता खुशहाल लाली बताते हैं कि पंजाब में पार्टी ने किसी तरह के ढांचे को खड़ा करने की ओर ध्यान नहीं दिया.

खुशहाल बताते हैं, "2014 में पंजाब में पार्टी ने जिन लोगों को टिकट दिया वो अपने आप में बेहद अच्छे उम्मीदवार थे. पार्टी ने उनके चुनाव को लेकर काफ़ी सजगता बरती. लेकिन कुछ समय बाद किसी विचारधारा के अभाव में सभी स्थानीय नेताओं में 2017 में होने वाले चुनाव में मुख्यमंत्री बनने की होड़ मचने लगी. इस वजह से पार्टी को काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. इसके बाद पार्टी में बगावत के स्वर काफ़ी मुखर हो गए जो कि आने वाले समय में पार्टी के लिए पंजाब में मुसीबत खड़ी कर सकते हैं."

दिल्ली में क्यों टूटा 'आप' का दिल?

इस लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी दिल्ली की सात में से एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हुई है.

हालांकि, 2014 के चुनाव में भी आम आदमी पार्टी को किसी तरह की सफलता हाथ नहीं लगी थी.

लेकिन इस बार मतदान प्रतिशत के लिहाज़ से आम आदमी पार्टी तीसरे नंबर पर पहुंच गई है.

पार्टी को लगभग 18 फीसदी वोट मिले हैं. दूसरे नंबर पर कांग्रेस और पहले नंबर पर बीजेपी मौजूद है.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इसका असर 2020 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा.

राजनीतिक विश्लेषक प्रमोद जोशी मानते हैं कि बीते कुछ समय में पार्टी का उसके मतदाताओं से संपर्क कम हुआ है.

वह बताते हैं, "ये पहला मौका है जब वोट प्रतिशत के आधार पर दिल्ली में आम आदमी पार्टी तीसरे नंबर पर खिसक गई है. ऐसे में दिल्ली में आम आदमी पार्टी का भविष्य मुझे बहुत अच्छा नज़र नहीं आता है. विधानसभा चुनाव में भी पार्टी सफल नहीं हुई, या सरकार बनाने में सफल नहीं हुई तो आम आदमी पार्टी के लिए एक बार फिर ख़ुद को मुख्यधारा में लाना बहुत मुश्किल होगा."

साल 2020 में पार्टी छोड़ने का ऐलान कर चुकीं विधायक अलका लांबा ने बीबीसी को बताया है कि वह और उनके जैसे कई दूसरे विधायक काफ़ी समय से मुख्यमंत्री के सामने अपने क्षेत्र की समस्याएं रख रहे थे लेकिन उन्हें समय नहीं दिया गया.

लांबा कहती हैं, "पार्टी के विधायकों का एक वॉट्सऐप ग्रुप है जिसमें विधायक अपने-अपने क्षेत्र की समस्याएं मुख्यमंत्री के सामने रखते हैं लेकिन उन पर कोई सुनवाई नहीं हुई. इसके बाद जब 23 मई को नतीज़े सामने आए तो मैंने इसी ग्रुप में इन विधायकों की बात दोहराई तो मुझे ग्रुप से बाहर निकाल दिया गया"

इमेज स्रोत, Twitter/Saurabh_MLAgk

चुनावी नतीज़े आने के बाद पार्टी ने एक नया चुनावी कैंपेन शुरू किया है. इसके तहत शहर में कई जगह 'दिल्ली में तो केजरीवाल' के बोर्ड लगाए गए हैं.

अलका लांबा ने इस चुनाव अभियान पर टिप्पणी करते हुए लिखा है कि इस बार दिल्ली में मोदी की तरह किसी एक नाम पर वोट नहीं मिलेंगे.

साल 2014 के आम चुनाव से पहले आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी तमाम लोकतांत्रिक सवालों को उठाते हुए सत्ता में आई थी.