1988 क क ल डर ह द म - 1988 ka ka la dar ha da ma

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नाना ब्रिगेडियर, दादा कांग्रेस अध्यक्ष लेकिन मुख्तार बना डॉन:84 दिन में 3 मामलों में कोर्ट ने सुनाई 22 साल की सजा, कभी CBI ने कर दिया था केस वापस

3 दिन पहलेलेखक: राजेश साहू

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पूर्वांचल के सबसे बड़े डॉन मुख्तार अंसारी को गाजीपुर की MP-MLA कोर्ट ने 10 साल की सजा सुनाई है। साथ ही 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है। ये सजा कांग्रेस नेता अजय राय के बड़े भाई अवधेश राय मर्डर केस और एडिशनल एसपी पर किए गए हमले समेत कुल 5 मामलों में सुनाई गई है। पिछले 84 दिन के अंदर कोर्ट मुख्तार अंसारी को अलग-अलग मामले में 3 बार सजा सुना चुकी है।

22 सितंबर 2022 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने 7 साल और अगले ही दिन उन्हीं जस्टिस दिनेश कुमार सिंह ने गैंगस्टर मामले में 5 साल की सजा सुनाई। इन सबकी जानकारी आपको इस लिंक में मिल जाएगी। लेकिन आज हम मुख्तार के एक आम छात्र से पूर्वांचल के सबसे बड़े माफिया बनने की कहानी बताएंगे। हर उस दुर्दांत घटना को जानेंगे, जिसने पूर्वांचल के पूरे इलाके में डर का माहौल बना दिया था।

  • इन चीजों को जानने से पहले मुख्तार के परिवार के बारे में जानना जरूरी है। आइए उसी से शुरू करते हैं...

मुख्तार के परिवार का अपराध से कोई नाता नहीं रहा
महात्मा गांधी जिस वक्त देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे थे उस वक्त मुख्तार अंसारी के दादा कांग्रेस नेता मुख्तार अहमद अंसारी उनके साथ थे। मुख्तार के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान आजादी के संग्राम में लड़ाई लड़ रहे थे। आजादी के बाद पाकिस्तान जाने का प्रस्ताव आया तो कह दिया, "लड़ा है इस देश के लिए मरेंगे भी इस देश के लिए।"

मुख्तार अंसारी के पिता इतने सादगी पसंद और सम्मानित व्यक्ति थे कि नगर पालिका के चुनाव में उतरे तो बाकी लोगों ने पर्चा वापस ले लिया। इतने समृद्ध परिवार से होने के बावजूद मुख्तार ने परिवार के नक्शे कदम पर चलने के बजाय अपराध की दुनिया को चुना।

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मुख्तार अंसारी अपने आसपास प्राइवेट सुरक्षाकर्मियों को रखते थे।

मकनु सिंह गैंग में एंट्री
1970 के बाद उस वक्त की प्रदेश सरकार एवं केंद्र की कांग्रेस सरकार ने पूर्वांचल के कल्याण की तमाम योजनाएं लॉन्च की। योजनाएं आईं तो ठेकेदार भी सामने आए। कहा जाता है कि जहां सरकारी ठेका होगा वहां दबंगई भी होगी। इन्हीं ठेकों को हथियाने के लिए संघर्ष शुरू हुआ। उस वक्त पूर्वांचल में दो गैंग थी। पहली मकनु सिंह की दूसरी साहिब सिंह की गैंग। मुख्तार अपने कॉलेज दोस्त साधु सिंह के साथ मकनु सिंह गैंग में थे।

मऊ जिले के सैदपुर में दोनों गैंग के बीच ठेके को लेकर विवाद हुआ तो राहें एकदम अलग हो गईं। साहिब सिंह गैंग के सबसे खतरनाक खिलाड़ी का नाम था ब्रजेश सिंह। ध्यान रहे ब्रजेश और मुख्तार में उस वक्त किसी तरह का कोई विवाद नहीं था। लेकिन साल 1990 आते-आते ये दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। जो आज भी बरकरार है।

ब्रजेश ने दूसरी गैंग पकड़ी तो वह भी दुश्मन हो गया
मुख्तार और ब्रजेश दोनों ही अपने गैंग को बढ़ाते हुए आगे बढ़ रहे थे। तभी त्रिभुवन सिंह ब्रजेश सिंह के गैंग में शामिल हो गया। त्रिभुवन उस वक्त मुख्तार का दुश्मन हुआ करता था। मुख्तार का दुश्मन ब्रजेश का दोस्त बन गया। इस तरह त्रिभुवन के साथ ब्रजेश भी मुख्तार अंसारी का दुश्मन बन गया। यहीं से शुरू होती है वर्चस्व की जंग। ठेका रेलवे का हो या शराब का। किडनैपिंग का मामला हो या हत्याओं का, दोनों ही गैंग एक-दूसरे को पछाड़ने में लग गए।

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ब्रजेश और मुख्तार की कोई सीधी दुश्मनी नहीं थी। दुश्मन का दोस्त होने के चलते यह दुश्मनी बढ़ी।

1 दिन में साधु सिंह के पूरे परिवार का मर्डर
1988 में मंडी परिषद के ठेकेदार सच्चिदानंद की हत्या कर दी गई। नाम आया मुख्तार और साधु सिंह का। पुलिस केस लिखकर खोजती रही पर पकड़ नहीं पाई। इसी दौरान बनारस पुलिस लाइन में कॉन्स्टेबल पद पर तैनात राजेंद्र सिंह की हत्या कर दी गई। नाम फिर से मुख्तार और साधु का आया। इस हत्या के बाद ब्रजेश का खून खौल उठा।

राजेंद्र हत्याकांड में साधु सिंह गिरफ्तार हुआ। जेल में था तो पत्नी को बच्चा हुआ। साधु पुलिस कस्टडी में अपने बच्चे और पत्नी को देखने के लिए अस्पताल पहुंचा। पुलिस की वर्दी पहने एक व्यक्ति ने साधु की अस्पताल के अंदर ही गोली मारकर हत्या कर दी।

उसी दिन शाम को एक और दर्दनाक खबर सामने आई थी। साधु सिंह के गांव में उसकी मां, भाई समेत परिवार के 8 लोगों की हत्या कर दी गई। यह चर्चा रही है कि अस्पताल में पुलिस की वर्दी में आया व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि ब्रजेश सिंह ही था।

राजनीति में मुख्तार की एंट्री
साधु की मौत के बाद मुख्तार कमजोर हुआ। बाहुबल को बढ़ाने के लिए उसने चुनाव लड़ने का फैसला किया। राजनीतिक रसूख इतना था ही कि कोई पार्टी टिकट देने से मना नहीं कर सकती। मुख्तार ने मायावती पर भरोसा जताया और बसपा के टिकट पर मऊ सीट से चुनाव में उतर गए। मुख्तार ने बीजेपी के विजय प्रताप सिंह को 26 हजार वोट से हरा दिया। इस जीत के बाद मुख्तार की ताकत और संपत्ति में जबरदस्त इजाफा हो गया।

आगे की कहानी जानने से पहले मुख्तार पर दर्ज मामलों की जानकारी का ये ग्राफिक देखिए।

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चुनौती बनकर सामने आए कृष्णानंद
गाजीपुर की एक सीट है मोहम्मदाबाद। इस सीट पर 1985 से अंसारी परिवार का ही कब्जा था। 2002 में अंसारी परिवार के अजेय रथ को रोकते हुए भाजपा नेता कृष्णानंद राय विधायक बन गए। कृष्णा ने मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी को 7,772 वोटों से हरा दिया।

मुख्तार अंसारी इससे तिलमिला गया। इस तिलमिलाहट के दो कारण हैं। पहला चुनाव हारने की दूसरा हमला की। 2001 में मुख्तार के काफिले पर हमला हुआ। मुख्तार को अंदेशा हो गया था कि हमला हो सकता है इसलिए वह आगे वाली गाड़ी के बजाय पीछे वाली पर बैठ गए। आगे की गाड़ी में बैठे 3 लोग मारे गए। इस हमले को कृष्णानंद राय से जोड़कर देखा जाता है।

सरेआम गोलियों से भून दिया
25 नवंबर 2005, विधायक कृष्णानंद बुलेट प्रूफ गाड़ी के बजाय नॉर्मल गाड़ी से पड़ोसी गांव में क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन करने गए थे। कार्यक्रम से निकले ही थे कि भांवरकोल की बसनिया पुलिया के पास सामने से आई एक सिल्वर ग्रे कलर की SUV सामने खड़ी हो गई।

8 लोग एसयूपी से उतरे और विधायक कृष्णानंद राय की गाड़ी पर AK-47 से फायर कर दिया। शरीर के साथ पूरी गाड़ी छलनी हो गई। घटना स्थल पर कम से कम 500 राउंड गोलियां चली। सात लोग मारे गए। पोस्टमॉर्टम हुआ तो इन सातों शव से 67 गोलियां निकाली गई।

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कृष्णानंद राय को बुलेट प्रूफ गाड़ी मिली थी, लेकिन जब हत्या हुई तब वो नॉर्मल गाड़ी में थे।

पीछे वाली गाड़ी पर विधायक कृष्णानंद के भाई रामनारायण राय बताते हैं कि मारने वाले कह रहे थे, "मारो इनको, इन लोगों ने भाई को बहुत परेशान कर रखा है।" लोग बताते हैं कि ये भाई कोई और नहीं बल्कि मुख्तार अंसारी थे।

कृष्णानंद राय के साथ पूर्व ब्लॉक प्रमुख श्याम शंकर राय, रमेश राय, अखिलेश राय, मुन्ना यादव, शेषनाथ पटेल और निर्भय नारायण उपाध्याय की हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड के बाद जमकर तोड़फोड़ हुई। हंगामा हुआ।विधायक की पत्नी अलका राय ने मुख्तार अंसारी, अफजाल अंसारी, माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी, अताहर रहमान उर्फ बाबू और संजीव महेश्वरी उर्फ जीवा के खिलाफ मामला दर्ज हुआ। मामला इतना हाई था कि पुलिस एसपी जांच करने से मना कर रहे थे।

सीबीआई ने जोड़ लिए थे हाथ
अलका सीबीआई जांच की मांग कर रही थीं। सीबीआई ये केस लेना नहीं चाहती थी। दबाव बढ़ा तो केस ले लिया लेकिन एक साल बाद दबाव बढ़ा तो केस वापस कर दिया। अलका ने दोबारा एफआईआर करवाई तो जांच शुरू हुई।

जांच के दौरान एक मात्र चश्मदीद गवाह शशिकांत राय की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई। लोग कहते हैं कि शशिकांत की मौत नेचुरल नहीं बल्कि उनकी हत्या की गई। इस तरह से न्याय की आखिरी उम्मीद भी खत्म हो गई। सबूतों के अभाव में मुख्तार समेत सभी इस मामले से बरी हो गए।

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कृष्णानंद राय का मामला सीबीआई ने भी वापस कर दिया। अलका आखिरी दम तक लड़ती रही।

राजनीति में नाम स्थापित करने के बाद भी मुख्तार अंसारी की फितरत नहीं बदली। साल 2009 में ए कैटेगरी के बड़े ठेकेदार अजय प्रकाश सिंह उर्फ मन्ना की हत्या कर दी गई। बाइक से आए बदमाशों ने दिनदहाड़े एके-47 से भून दिया। इस हत्या के चश्मदीद गवाह मन्ना का मुनीम राम सिंह मौर्य थे। उनकी सुरक्षा में खतरा देखते हुए उन्हें एक गनर मिला था। 1 साल बाद 19 मार्च 2010 को गाजीपुर के आरटीओ ऑफिस के पास मुनीम राम सिंह मौर्य और गनर सतीश की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस मामले के मुख्य आरोपी मुख्तार अंसारी बनाए गए। पुलिस ने जांच पूरी कर ली है। कोर्ट में आरोप पत्र दाखिल हो चुका है जल्द सजा का ऐलान होगा।

मुख्तार अंसारी पिछले करीब 15 साल से देश की अलग-अलग जेलों में बंद है। मऊ, गाजीपुर, जौनपुर और बनारस में मुख्तार गैंग इतना ज्यादा फैल गया कि दूसरा कोई ऊपर उठ ही नहीं पाया। राजनीतिक पार्टियां जब भी पूर्वांचल में अपना ग्राफ बढ़ाने के लिए बढ़ी उन्होंने मुख्तार के ही कंधे को चुना। वो सपा हो या बसपा।

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मुख्तार के बाएं तरफ अब्बास अंसारी हैं। परिवार की राजनीतिक विरासत को अब वही संभाल रहे हैं।