1968 की शिक्षा नीति क्या थी? - 1968 kee shiksha neeti kya thee?

 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 - National Policy on Education 1968

स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त राष्ट्रीय शिक्षा के विकास का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कदम सन् 1968 में भारत सराकर के द्वारा शिक्षा की राष्ट्रीय नीति की घोषणा करना था। कोठारी आयोग के सुझाव के अनुरूप भारत सरकार ने इस नीति की घोषणा की। इस नीति ने शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन करने तथा सभी स्तरों की शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने पर बल दिया। इस शिक्षा नीति ने 17 आधारभूत सिद्धान्तों को स्थापित किया तथा कहा कि भारत सरकार इन सिद्धान्तों के अनुरूप देश में शिक्षा का विकास करेगी।

• 14 वर्ष तक के बच्चों को संविधान की धारा 45 के अनुरूप निःशुल्क शिक्षा देना चाहिए।

• अध्यापकों का वेतन भत्ते एवं सेवा शर्ते, उनकी योग्यता एवं उत्तरदायित्वों को देखते हुए पर्याप्त संतोषजनक होने चाहिए। शिक्षको को सेवा रत परीक्षण देना चाहिए।

• त्रिभाषा सूत्र को लागू करने को कहा।

• शिक्षा प्राप्त करने के अवसर सभी को उपलब्ध कराना।

• प्रतिभा खोज करना छोटी उम्र के बच्चों में कार्य अनुभव एवं राष्ट्रीय सेवा को शिक्षा का अभिन्न अंग बनना।

• विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

• कृषि एवं उद्योगों की शिक्षा पर विशेष बल देना चाहिए।

• पुस्तकों की गुणवत्ता में सुधार करना चाहिए एवं उनका मुल्य कम रखना चाहिए।

• परीक्षा प्रणाली को वैद्य एवं विश्वसनीय बनाना।

• आध्यमिक शिक्षा का तेजी से विकास करना जिससे वह वंचित वर्ग तक पहुँच सके।

• विश्वविद्यालय शिक्षा विश्वविद्यालय में छात्रों की संख्या विश्वविद्याय में उपलब्ध सुविधाओं के अनुपात में होनी चाहिए।

विश्वविद्यालय स्तर पर अंशकालीन तथा पत्राचार पाठ्यक्रमों का बड़े पैमाने पर विकास किया जाये।

• खेल कूद की व्यवस्था सभी छात्रों के लिए की जायें।

• अल्पसंख्यकों की शिक्षा को बढ़ाना।

• शैक्षिक ढाँचा 10+2+3 को सम्पूर्ण राष्ट्र में लागू करना । 


राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 क्या है what is National Education Policy 1968

जब कोठारी आयोग ने (1961-1966) अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को 29 जून 1966 को प्रस्तुत की थी। इसके 9 महीने बाद भारत सरकार ने 5 अप्रैल 1967 को संसद सदस्यों की एक समिति का गठन किया

जिसे तीन काम दिए जिनमें पहला कोठारी आयोग (Kothari Commission) द्वारा दिए सुझाव पर गंभीरता से विचार करना था दूसरा काम राष्ट्रीय शिक्षा नीति का (ड्राफ्ट) प्रारूप तैयार करना था

जबकि तीसरा कार्य प्राथमिकताओं के आधार पर उसके क्रियान्वयन की रूपरेखा को तैयार करना था।

इसके बाद इस संसद की बनाई हुई समिति ने कोठारी आयोग के सुझावों का गंभीरता से अध्ययन किया और उसके बाद सुझावों कों सरकार को प्रस्तुत किया 

समिति ने सर्वप्रथम शिक्षा द्वारा राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने पर बल दिया था। इसके बाद सामाजिक समानता की प्राप्ति के लिए आयोग द्वारा प्रस्तावित सामान्य विद्यालय 

पड़ोस विद्यालय के रूप में स्वीकार किए गए थे। समिति ने भाषा नीति कार्यानुभव, चरित्र निर्माण, विज्ञान शिक्षा एवं शोध और शैक्षिक अवसरों की समानता पर विस्तार से विचार प्रकट किए 

और शिक्षा के सभी स्तरों में गुणात्मक सुधार पर अधिक बल दिया उसने केंद्र और राज्य सरकारों के शैक्षिक उत्तरदायित्व निश्चित किए और अंत में प्राथमिकताओं के आधार पर भावी कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की,

संसद में इस पर लंबी बहस और चर्चा भी हुई और राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अंतिम रूप दिया  24 जुलाई को 1968 को सरकार ने इसकी विधिवत घोषणा कर दी।

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के मूल तत्व Main element of national education policy 1968

कोठारी आयोग की रिपोर्ट पर आधारित यह शिक्षा नीति  9 पृष्ठों में प्रस्तुत की गई थी। इसके मूल तत्वों को निम्न प्रकार से क्रमबद्ध किया गया है

  • शिक्षा राष्ट्रीय महत्व का विषय

शिक्षा नीति में शिक्षा को राष्ट्रीय विषय का महत्व माना गया है और यह स्वीकार किया गया है कि शिक्षा द्वारा ही लोकतंत्र को अधिक मजबूत बनाया जा सकता है। 

शिक्षा के द्वारा ही स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा, न्याय समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता आदि के मूल्यों का विकास भी किया जा सकता है। 

राष्ट्रीय एकता को सबसे अधिक मजबूत करने के लिए उत्पादन, वृद्धि और राष्ट्र का सभी प्रकार से विकास करने के लिए और राष्ट्र की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में इसका 

आधुनिकीकरण करने के लिए शिक्षा स्तर को सर्वप्रमुख माना गया है, इसलिए शिक्षा राष्ट्रीय महत्व का एक प्रमुख विषय कहा गया है।

  • शिक्षा की व्यवस्था पर केंद्र एवं राज्य सरकारों का संयुक्त उत्तरदायित्व

भारत एक गणराज्य है और इसमें कुछ विषय केवल केंद्र के अधीन है और कुछ विषय केवल राज्य सरकारों के अधीन हैं जबकि कुछ ऐसे भी विषय हैं जो केंद्र और राज्य सरकारों दोनों के अधीन है

अर्थात ऐसे विषय जिन पर राज्य सरकार (State Government) और केंद्र सरकार (Central Government) दोनों सरकार विचार विमर्श कर सकती हैं और इनके प्रति नए नियम लागू कर सकती हैं। इसी प्रकार से एक विषय है 

शिक्षा का जिसके प्रति राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों का ही उत्तरदायित्व है राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण करना केंद्रीय विश्वविद्यालयों और राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा संस्थाओं का प्रबंध करना 

उच्च स्तर की विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा और अनुसंधान का स्तर मानक निश्चित करना विदेशों में शैक्षिक एवं सांस्कृतिक समझौते करना राज्यों को शैक्षिक नेतृत्व प्रदान करना और उनके शैक्षिक कार्यक्रमों को संपादन हेतु आर्थिक सहायता प्रदान करना 

शिक्षा को नियोजित किया जायेगा साथ ही शैक्षिक प्रशासनिक ढांचे को नियंत्रित किया जायेगा और शिक्षा के सभी स्तरों में गुणवत्ता लायी जाएगी तथा शिक्षा का विकास किया जायेगा आदि सभी कार्य राज्य सरकारों और केंद्र सरकारों के द्वारा ही किए जाते हैं।

  • शिक्षा पर केंद्रीय बजट का 6% व्यय किया जाएगा

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में बताया गया कि इस शिक्षा नीति में शिक्षा (Education) को राष्ट्रीय महत्व का बिषय माना ही गया है, 

इसलिए केंद्रीय बजट से 6% खर्चे शिक्षा पर व्यय करने का प्रस्ताव रखा गया है, जबकि उस समय शिक्षा पर केंद्रीय बजट का केवल 2.9 प्रतिशत ही व्यय किया जाता था।

  • संपूर्ण देश के लिए 10+2+3 शिक्षा संरचना

पूरे देश में 10+2+3 शिक्षा संरचना लागू की जाएगी +10 शिक्षा के लिए एक आधारभूत पाठ्यचर्या की तैयारी की जाएगी तथा +2 पर स्थान विशेष की

आवश्यकता अनुसार पाठ्यचर्या निश्चित की जाएगी और इस स्तर पर 50% छात्रों को व्यबसायिक शिक्षा की ओर मोड़ने का भी प्रयास किया जाएगा जबकि स्नातक पाठ्यक्रम 3 वर्ष का होगा

जिसमें विश्वविद्यालय को अपने पाठ्यक्रम निश्चित करने की स्वतंत्रता होगी परंतु पाठ्यक्रम अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के आधार पर विकसित किए जाएंगे।

  • अनिवार्य एवं निशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 45 के अनुसार बताया जाता है, कि 6 से 14 वर्ष वर्ग के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी यह प्रश्न किया गया

कि प्रथम 5 वर्ष के अंदर 6 से 11 आयु वर्ग के बच्चों को निम्न प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य और निशुल्क हो जाए

और अगले 5 वर्षों में 11 से 14 आयु वर्ग के बच्चों की उच्च प्राथमिक शिक्षा भी अनिवार्य और निशुल्क हो जाए इस प्रकार 10 वर्षो के अंदर अर्थात 1978 तक इस लक्ष्य को प्राप्त कर लिया जाएगा।

  • माध्यमिक शिक्षा का विस्तार एवं उन्नयन

जहाँ माध्यमिक शिक्षा की मांग है वहां उपलब्ध कराई जाएगी निकट भविष्य में 10 वर्षीय शिक्षा को अनिवार्य और निशुल्क किया जाएगा। 

माध्यमिक स्तर पर छात्र और छात्राओं को देश का इतिहास तथा संविधान के मूल तत्वों का सामान्य ज्ञान कराने का प्रावधान और व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था होगी इसमें गुणात्मक सुधार भी किया जाना है।

  • माध्यमिक स्तर पर त्रिभाषा सूत्र लागू

प्राथमिक स्तर पर केवल मातृ भाषा में अध्ययन करना अनिवार्य होगा जबकि उच्च प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा तथा अन्य किसी भारतीय भाषा अथवा अंग्रेजी का अध्ययन अनिवार्य होगा

और माध्यमिक स्तर पर इसके साथ ही किसी एक और राष्ट्रीय भाषा अथवा अंतर्राष्ट्रीय महत्व की भाषा का अध्ययन करना आवश्यक होगा।

  • भारतीय भाषाओं का विकास

राष्ट्रीय महत्त्व की सभी भाषाओं के शिक्षण की व्यवस्था की जाएगी और उनका निरंतर विकास किया जाएगा राष्ट्रभाषा हिंदी का प्रचार किया जाएगा और संस्कृत की शिक्षा के लिए उचित कदम भी उठाए जाएंगे।

  • प्रथम 10 वर्षीय शिक्षा में कार्य अनुभव एवं राष्ट्रीय सेवा को अनिवार्य

शिक्षा का उत्पादन से संबंध स्थापित करने के लिए प्रथम 10 वर्षीय शिक्षा में कार्यानुभव अनिवार्य किया जाएगा और स्वावलंबन पर बल भी दिया जाएगा। 

बच्चों में सामाजिकता की भावना विकसित करने और उनका चरित्र निर्माण करने के लिए समाज सेवा को भी अनिवार्य किया जाएगा।

  • प्रतिभावान छात्रों की पहचान

अल्पायु प्राथमिक स्तर के बाद में ही प्रतिभावान छात्रों की पहचान की जाएगी उनको अपने विकास के उचित अवसर दिए जाएंगे, जबकि निर्धन छात्रों को आर्थिक सहायता दी जाएगी।

  • विश्वविद्यालय शिक्षा का प्रसार एवं उन्नयन 

उच्च स्तर पर छात्रों की बढ़ती हुई संख्या के कारण महाविद्यालयों में सायंकालीन कक्षाओं की व्यवस्था की जाएगी विश्वविद्यालय में अंशकालीन और पत्राचार पाठ्यक्रम चलाए जाएंगे 

विश्वविद्यालय शिक्षा उन्नयन के लिए विश्वविद्यालय को स्वायत्तता प्रदान की जाएगी कुलपति पद पर प्रशासनिक पद प्राप्त शिक्षाविदों को नियुक्त किया जाएगा 

प्रथम स्नातक पाठ्यक्रम में इंटर पास छात्रों को प्रवेश दिया जाएगा और स्नातकोत्तर स्तर पर केवल योग्य छात्रों को ही प्रवेश दिया जाएगा।

  • कृषि, व्यावसायिक, तकनीकी एवं इंजीनियरिंग की शिक्षा

कृषि विज्ञान के ज्ञान के लिए पॉलिटेक्निक विद्यालय खोले जाएंगे और उसके उच्च पद के लिए कुछ विश्वविद्यालयों में कृषि संस्थाओं की स्थापना की जाएगी

और प्रत्येक राज्य में कम से कम एक कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किया जाएगा जो कृषि के क्षेत्र में अनुसंधान के कार्य के लिए उत्तरदायित्व होगा।

वही व्यावसायिक शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, आदि के स्तर का में सुधार किया जाएगा और औद्योगिक संस्थानों को विकसित किया जाएगा।

  • विज्ञान शिक्षा और वैज्ञानिक अनुसंधान पर विशेष ध्यान

आर्थिक विकास की गति तीव्र करने और भारतीय समाज में आधुनिकीकरण करने के लिए प्रथम 10 वर्षीय छात्र में विज्ञान और गणित की शिक्षा अनिवार्य कर दी जाएगी 

और विश्वविद्यालय शिक्षा में विज्ञान की उच्च शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में शोध कार्य को प्राथमिकता भी दी जाएगी साथ ही राष्ट्र के वैज्ञानिक शोध संस्थानों को पर्याप्त आर्थिक सहायता दी जाएगी।

  • उच्च स्तर की पाठ्य पुस्तकों का निर्माण 

किसी भी स्तर की शिक्षा के लिए उच्च स्तरीय पुस्तकों का निर्माण किया जाएगा इसके लिए विद्वान लेखकों को प्रोत्साहित किया जाएगा

और उन्हें इसके लिए आर्थिक सहायता भी दी जाएगी साथ ही योग्य लेखकों को पारिश्रमिक देकर उनसे नई  पुस्तकें तैयार कराई जाएंगी।

  • परीक्षा प्रणाली में सुधार 

वाह्य परीक्षाओं के महत्व को कम किया जाएगा और आंतरिक एवं सतत मूल्यांकन की योजना बनाई जाएगी माध्यमिक स्तर पर कक्षा 10 के बाद पहली सार्वजनिक परीक्षा होगी 

किसी भी स्तर की परीक्षा को विश्वसनीय एवं वैध बनाया जाएगा परीक्षा परिणामों में बाह्य और आंतरिक मूल्यांकन के प्राप्तांक अलग-अलग दिए जाएंगे और इसी के आधार पर ग्रेड भी प्रदान किए जाएंगे।

  • शिक्षकों के स्तर और शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार

शिक्षा व्यवसाय की ओर नवयुवकों को आकर्षित करने के लिए शिक्षकों के वेतन मान बढ़ाये जाएंगे और उनकी सेवा शर्तों को आकर्षक बना दिया जाएगा।

प्रत्येक स्तर के सरकारी एवं गैर सरकारी शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय वेतनमान निश्चित किए जाएंगे और समान सेवा शर्त निश्चित की जाएगी। सभी शिक्षकों के लिए 3 सूत्री लाभ योजना

जीपीएफ बीमा और पेंशन तुरंत लागू की जाएगी शिक्षकों के संगठनों को मान्यता दी जाएगी शिक्षकों को राजनीति में भाग लेने की स्वतंत्रता होगी और वह चुनाव लड़ सकेंगे साथ ही 

शिक्षकों को प्रभावशाली बनाने के लिए शिक्षण प्रशिक्षण में सुधार किए जाएंगे उनके स्तर को और ऊंचा उठाया जाएगा इसके लिए विश्वविद्यालय में शिक्षक शिक्षा विद्यालय स्थापित किए जाएंगे

और शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में शोध कार्य को बढ़ावा दिया जाएगा पूर्ण कालीन शिक्षक प्रशिक्षण संस्थाओं में पूर्णकालीन शिक्षक प्रशिक्षण के साथ-साथ अंतर सेवा पर शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी 

शिक्षकों को निरंतर अद्यतन क्रिया से परिचित कराया जाएगा और अघतन कौशलों में प्रशिक्षित किया जाएगा.

  • छात्र कल्याण योजनाएँ 

विद्यालय में निशुल्क मध्यान भोजन की व्यवस्था की जाएगी और महाविद्यालयों में और विश्वविद्यालय में सस्ते जलपान ग्रहों की व्यवस्था की जाएगी। 

छात्रों के लिए छात्रावासों का निर्माण किया जाएगा और प्रत्येक स्तर पर छात्रवृत्ति की संख्या बढ़ाई जाएगी छात्रों को छात्र संघ बनाने की स्वीकृति भी दी जाएगी।

  • छात्रों के लिए खेलकूद की उत्तम व्यवस्था

शिक्षा के सभी स्तरों पर स्वास्थ्य लाभ हेतु खेलकूद की उत्तम व्यवस्था की जाएगी और खिलाड़ियों को प्रोत्साहन दिया जाएगा।

  • प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम को बढ़ावा 

शत प्रतिशत साक्षरता की प्राप्ति के उत्पादन में प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम को लागू किया जाएगा व्यापारिक एवं औद्योगिक संस्थानों में कार्यरत व्यक्तियों को पूर्ण शिक्षा का उत्तरदायित्व इन संस्थाओं पर होगा।

शिक्षक और छात्र राष्ट्रीय सेवा कार्य के अंतर्गत साक्षरता आंदोलन में भाग लेंगे विश्वविद्यालयों में विस्तार सेवा केंद्रों की स्थापना की जाएगी जिनके माध्यम के द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ावा मिलेगा 

स्थान स्थान पर सार्वजनिक पुस्तकालय की स्थापना की जाएगी और आकाशवाणी दूरदर्शन के द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रसारित किए जाएंगे।

  • संपूर्ण शिक्षा द्वारा भारतीय समाज का आधुनिकीकरण

प्राथमिक माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा और प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों के द्वारा भारतीय समाज का आधुनिकीकरण किया जाएगा अर्थात भारतीय जनता में अपनी संस्कृति की सुरक्षा के साथ-साथ वैज्ञानिक सोच भी उत्पन्न होगी 

उन्हें विज्ञान (Science) एवं तकनीकी (Technology) के प्रयोग द्वारा उत्पादन में वृद्धि करने की ओर अग्रसर भी किया जाएगा और किसी विचार प्रक्रिया के निरंतर मूल्यांकन की ओर प्रवृत्त किया जाएगा

  • शैक्षिक अवसरों की समानता की प्राप्ति 

राष्ट्र के सभी बच्चों को जाति लिंग में धर्म स्थान आदि किसी भी आधार पर भेदभाव किए बिना शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराए जाएंगे

इसकी पूर्ति के लिए समस्त बालकों की पहुंच के अंदर की दूरी पर प्राथमिक स्कूल माध्यमिक स्कूल (Primay Middle School) स्थापित किए जाएंगे 

बालिकाओं और पिछड़ी अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया जाएगा पहाड़ी क्षेत्रों और गरीबों के बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी 

शारीरिक विकलांग बच्चे मानसिक दृष्टि से विकलांग बच्चों के लिए अलग विद्यालय स्थापित किये जाएंगे सभी के लिए प्राथमिक शिक्षा नि:शुल्क होगी

जबकि माध्यमिक शिक्षा उच्च शिक्षा (Higher Education) पर निर्धन छात्रों को शुल्क मुक्ति में छूट दी जाएगी तथा छात्रों को छात्रवृत्ति की सुविधा होगी

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के दोष Defect of National Education policy 1968

  1. शिक्षा नीति 1968 के अंतर्गत राज्य सरकार और केंद्र सरकारों के मध्य शैक्षिक उत्तरदायित्व निश्चित हो गए थे, किंतु राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में इस बात का कहीं पर भी जिक्र नहीं है, कि वे अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह के लिए बाध्य किए जा सके, इसीलिए राज्य सरकार और केंद्र सरकारों ने अपनी मनमानी से शैक्षिक उत्तरदायित्व का निर्वाहन किया।
  2. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 में जो 10 वर्षीय शिक्षा की आधारभूत पाठ्यचर्या निर्माण की बात कही थी वह छात्र के लिए बोझ के समान है, क्योंकि यह पाठ्यचर्या अति विस्तृत है और ऊपर से कार्य अनुभव और राष्ट्रसेवा कार्यों की अनिवार्यता भी होती है।
  3. माध्यमिक स्तर पर त्रिभाषा सूत्र को लागू करना निश्चित किया गया था। प्रारंभ में त्रिभाषा सूत्र का निर्माण पूरे देश में राष्ट्रभाषा हिंदी की शिक्षा अनिवार्य करने के उद्देश्य से किया गया था, इसलिए कोठारी आयोग द्वारा प्रस्तावित त्रिभाषा सूत्र में अहिंदी क्षेत्रों में हिंदी या अंग्रेजी भाषा में से एक भाषा लेने की छूट प्रदान की गई थी, जो त्रिभाषा सूत्र की मूल भावना अर्थात मूल उद्देश्य के प्रतिकूल था।
  4. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 के अंतर्गत उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए किसी भी इंटर पास छात्र के लिए महाविद्यालय में प्रवेश द्वार खोल दिए गए थे, इसलिए परिणाम यह हुआ, कि महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में छात्रों का प्रवेश इतना बढ़ गया, कि छात्र अनुशासनहीनता के साथ ही छात्रों में आक्रोश बड़ा और शिक्षित बेरोजगारी बढ़ती गई।

दोस्तों आपने इस लेख में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968 (National Education policy 1968) के बारे में पढ़ा आशा करता हूँ, यह लेख आपको अच्छा लगा होगा

  • इसे भी पढ़ें:-
  1. विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग 1948-49
  2. पी. डब्ल्यू डी एक्ट 2016
  3. पी. डब्ल्यू. डी एक्ट 1995
  4. संशोधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1992
  5. शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009

भारत में पहली और दूसरी शिक्षा नीति कब लागू की गई?

प्रथम शिक्षा नीति 1968 में डीएस कोठारी की अध्यक्षता में बनीदूसरी शिक्षा नीति 1986 में बनी और 1992 में उसमें आवश्यकतानुसार संशोधन भी किए गए। अब 34 वर्षों पश्चात बहुत बड़े विमर्श के बाद 29 जुलाई, 2020 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा तीसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की गई।

भारत में प्रथम शिक्षा नीति कब लागू की गयी थी?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) 24 जुलाई 1986 को भारत की प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित की गई। यह पूर्ण रूप से कोठारी आयोग के प्रतिवेदन पर आधारित थी। सामाजिक दक्षता, राष्ट्रीय एकता एवं समाजवादी समाज की स्थापना करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।

भारतीय शिक्षा से संबंधित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में क्या प्रावधान किए गए हैं?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 की सबसे प्रमुख विशेषता संपूर्ण देश में एक प्रकार की शिक्षा संरचना होगी, अर्थात या शिक्षा संरचना 10+2+3 पर आधारित होगी। जिसमें पहले 5 वर्ष प्राथमिक स्तर इसके बाद 3 वर्ष उच्च प्राथमिक स्तर 2 वर्ष माध्यमिक स्तर 2 वर्ष इंटरमीडिएट स्तर 3 वर्ष का स्नातक स्तर होगा। वह समाप्त कर दी जाएगी।

भारत में शिक्षा नीति कितनी बार आई है?

जैसे कि हमने आपको ऊपर बताया कि शिक्षा नीति बच्चों की शिक्षा के लिए बनाई जाती हैं जिसे केंद्र सरकार द्वारा बनाया जाता हैं. इसके अंतर्गत शिक्षा की व्यवस्था की जाती हैं जोकि एक तरह के पैटर्न के अनुसार पूरे देश में लागू होती है. इसलिए इसे शिक्षा नीति नाम दिया गया है. देश अब तक केवल 3 बार शिक्षा नीति बदली गई है.