मनुष्य की आवश्यकताएँ अनन्त हैं। कुछ आवश्यकता की वस्तुए तो देश में ही प्राप्त हो जाती है तथा कुछ वस्तुओं को विदेशों से मंगवाना पड़ता है। भोगोलिक परिस्थितियों के कारण प्रत्येक देश सभी प्रकार की वस्तुए स्वयं पैदा नहीं कर सकता है। किसी देश में एक वस्तु की कमी है तो दूसरे देश में किसी दूसरी वस्तु की। इस कमी को दूर करने के लिए विदेशी व्यापार का जन्म हुआ है। दो देशों के मध्य होने वाले वस्तुओं के परस्पर विनिमय या आदान’-प्रदान को विदेशी व्यापार कहते हैं। जो देश माल भजेता है उसे निर्यातक एवं जो देश माल मंगाता है उसे आयातक कहते हैं एवं उन दोनों के बीच होने वाल े आयात-निर्यात को विदेशी व्यापार कहते हैं। विदेशी व्यापार के प्रकार
विदेशी व्यापार का महत्वप्रत्येक देश के लिये विदेशी व्यापार बहुत अधिक बढ़ गया है क्योंकि-
विदेशी व्यापार के लाभ
उपर्युक्त लाभों के अतिरिक्त विदेशी कार्यकुशलता एवं रोजगार में वृद्धि, एकाधिकार की समाप्ति, शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक विकास में विदेशी व्यापार सहायक होता है। विदेशी व्यापार के दोष
विदेशी व्यापार की कठिनाइयॉंविदेशी व्यापार में अनेक लाभ होने के बाद भी इसके विकास में कठिनाइयां एवं बाधाओं का सामना करना पड़ता है जो है-
विदेशी व्यापार का मुख्य कार्य क्या है?प्रत्येक प्रभाग एक विशिष्ट क्षेत्र में सक्षमता विकास को पूरा करता है और संस्थान के समग्र विकास में योगदान देता है।
विदेशी व्यापार कितने प्रकार के होते हैं?इसी कारण से प्रत्येक देश के लिए उन वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन अधिक लाभप्रद रहता है जिनका वह अधिक कुशलतापूर्वक उत्पादन कर सकते हैं तथा शेष वस्तुओं को वह व्यापार के माध्यम से उन देशों से ले सकते हैं जो उन वस्तुओं का उत्पादन कम लागत पर कर सकते हैं।
विदेशी व्यापार का क्या महत्व है?इसके विपरीत यदि निर्यात आयातों से कम होते हैं तो व्यापार सन्तुलन प्रतिकूल (Unfavourable ) होता है । प्रतिकूल व्यापार सन्तुलन के कारण विदेशी विनिमय या विदेशी मुद्रा कोष में कमी आती है तथा अनुकूल व्यापार सन्तुलन के कारण विदेशी विनिमय के कोष में वृद्धि होती है।
23 विदेशी व्यापार का मुख्य कार्य क्या है ?`?उदारीकरण एवं भूमंडलीकरण तथा निर्यात बढ़ाने के समग्र उद्देश्य को ध्यान में रखकर तब से विदेश व्यापार महानिदेशालय को सूत्रधार की भूमिका सौंपी गई है। देश के हितों को ध्यान में रखकर आयात / निर्यात के नियंत्रण / निषेध के स्थान पर निर्यात / आयात के संवर्धन एवं सुगमता पर बल दिया गया। क्र. सं.
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