वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति कब हुई? - varn vyavastha kee utpatti kab huee?

वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति कब हुई? - varn vyavastha kee utpatti kab huee?

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Published in Journal

Year: Dec, 2018
Volume: 15 / Issue: 12
Pages: 158 - 164 (7)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/a/58529
Published On: Dec, 2018

Article Details

प्राचीन भारत में वर्ण व्यवस्था के आधार पर विस्तृत अध्ययन | Original Article


इस संदूक को: देखें  संवाद  संपादन

हिन्दू धर्म
श्रेणी

वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति कब हुई? - varn vyavastha kee utpatti kab huee?
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वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति कब हुई? - varn vyavastha kee utpatti kab huee?

हिन्दू मापन प्रणाली

वर्ण (संस्कृत: वर्ण), के कई अर्थ होते हैं, जैसे प्रकार, क्रम, रंग या वर्ग।[1][2] इसका उपयोग सामाजिक वर्गों को संदर्भित करने के लिए किया जाता था। सनातन ग्रंथों में जैसे मनुस्मृति[1][3][4] और अन्य ग्रंथों में मनुष्यों के इन चार वर्णों का उल्लेख है:[1][5]

  • क्षत्रिय: शासक, योद्धा, सैनिक और प्रशासक।[कृपया उद्धरण जोड़ें]
  • ब्राह्मण: पुजारी, विद्वान और शिक्षक, भिछुक ,इंजीनियर और डॉक्टर[कृपया उद्धरण जोड़ें]
  • वैश्य: कृषिविद , व्यापारी।[6]
  • शूद्र: सेवा प्रदाता , पशुपालक, चर्मकार।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

कालांतर में समुदाय वर्णों से संबंधित हो गए। डी. आर. जटावा के अनुसार समुदाय जो चार वर्णों या वर्गों में से एक से संबंधित थे, उन्हें सवर्ण कहा जाता था, जो लोग किसी वर्ण से संबंध नहीं रखते थे, उन्हें अवर्ण कहा जाता था।[7][8] आमतौर पर इस अवधारणा का पता ऋग्वेद के पुरुष सूक्त पद्य से लगाया जाता है।

मनुस्मृति में वर्ण व्यवस्था पर टिप्पणी अक्सर उद्धृत की जाती है.[9] वर्ण-व्यवस्था की चर्चा धर्मशास्त्रों में व्यापक रूप से की जाती है।[10] धर्म-शास्त्रों में वर्ण व्यवस्था समाज को चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) में विभाजित करती है। जो लोग अपने पापों के कारण इस व्यवस्था से बाहर हो जाते हैं, उन्हें अवर्ण (अछूत) के रूप में निरूपित किया जाता है और वर्ण व्यवस्था के बाहर माना जाता है।[11][12] म्लेच्छ और जो लोग अधर्मी या अनैतिक हैं उन्हें भी अवर्ण माना जाता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • हिंदू धर्म
  • जाति
  • क्षत्रिय
  • ब्राह्मण
  • वैश्य
  • शूद्र
  • म्लेच्छ

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. ↑ अ आ इ Doniger, Wendy (1999). Merriam-Webster's encyclopedia of world religions. Springfield, MA, USA: Merriam-Webster. पृ॰ 186. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-87779-044-0.
  2. Stanton, Andrea (2012). An Encyclopedia of Cultural Sociology of the Middle East, Asia, and Africa. USA: SAGE Publications. पपृ॰ 12–13. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-4129-8176-7.
  3. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Monier-Williams 2005 924 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  4. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; Malik 2005 p.48 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  5. Ingold, Tim (1994). Companion Encyclopedia of Anthropology. London New York: Routledge. पृ॰ 1026. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-415-28604-6.
  6. Kumar, Arun (2002). Encyclopaedia of Teaching of Agriculture. Anmol Publications. पृ॰ 411. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-261-1316-3. मूल से 3 जनवरी 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 मार्च 2021.
  7. DR Jatava (2011). The Hindu Sociology. Surabhi Publications. पृ॰ 92.
  8. Yājñika, Acyuta and Sheth, Suchitra (2005). The Shaping of Modern Gujarat: Plurality, Hindutva, and Beyond, p. 260. Penguin Books India
  9. David Lorenzen (2006). Who invented Hinduism: Essays on religion in history. Yoda Press. पपृ॰ 147–149. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-902272-6-1.
  10. (Olivelle, Caste and Purity 1998, पृ॰प॰ 189–216)
  11. (Olivelle, Caste and Purity 1998, पृ॰प॰ 199–216)
  12. Bayly, Susan (2001), Caste, Society and Politics in India from the Eighteenth Century to the Modern Age, Cambridge University Press, पपृ॰ 9–11, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-521-26434-1

वर्ण व्यवस्था का आरंभ कब हुआ?

सर्वप्रथम सिन्धु घाटी सभ्यता में समाज व्यवसाय के आधार पर विभिन्न वर्गों में बांटा गया था जैसे पुरोहित, व्यापारी, अधिकारी, शिल्पकार, जुलाहा और श्रमिक। वर्ण व्यवस्था का प्रारम्भिक रूप ऋग्वेद के पुरुषसूक्त में मिलता है। इसमें 4 वर्ण ब्राह्मण, राजन्य या क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का उल्लेख किया गया है।

वर्णों की उत्पत्ति कैसे हुई?

प्राचीन धर्मशास्त्रों में वर्णों की उत्पत्ति ईश्वरकृत एवं दैवी मानी गई। इसे परम्परागत सिद्धान्त भी कहा गया। इस सिद्धान्त के अनुसार वर्णों की उत्पत्ति ईश्वरकृत है।। ऋग्वेद के दशम् मण्डल के पुरुषसूक्त में वर्ण सम्बन्धी वर्णों की उत्पत्ति विराट पुरुष से हुई

वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धांतों पर चर्चा करें?

वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति का गुण सिद्धान्त सत्व गुण ज्ञान विज्ञान, वेदज्ञ, धर्मज्ञ, शुद्ध आचरण युक्त, रज गुण, शौर्य, शक्ति प्रदर्शन, रक्षा कार्य, तथा तम गुण लोभ, प्रमादयुक्त, अज्ञानयुक्त होता था। अतः जो व्यक्ति जिस गुण का होता था, उस गुण के साथ ही उसका वर्ण निर्धारित हो जाता था।

वर्ण व्यवस्था क्यों बनाई गई?

स्मृति के काल में कार्य का विभाजन करने हेतु वर्ण व्यवस्था को व्यवस्थित किया गया था। जो जैसा कार्य करना जानता हो, वह वैसा ही कार्य करें, जैसा की उसके गुण और स्वभाव में है तब उसे उक्त वर्ण में शामिल समझा जाए। आज यह व्यवस्था जाति व्यवस्था में बदलकर विकृत हो चली है।