पंजाब/अमृतसर. 13 अप्रैल भले ही बैसाखी का दिन हो लेकिन भारतीय इतिहास में यह काले दिन के तौर पर दर्ज है। 97 साल पहले आज ही के दिन जलियांवाला बाग में जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने भीड़ पर गोलियां चलाने के आदेश दिए थे। इसमें एक हजार से अधिक लोग शहीद हुए और दो हजार से ज्यादा जख्मी हुए थे। अंग्रेजों के इस कायरतापूर्ण कार्रवाई ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। उसके ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ देश में विरोध बेहद तेज हो गया था। ऊधम सिंह ने 13 मार्च 1940 में लंदन में जनरल डायर की हत्या कर दी थी। हालांकि अक्सर माना जाता है कि यह जनरल डायर 'रेजनीलॉड डेयर' थे लेकिन ये गलत है। तो किस डायर को मारा था शहीद उधम सिंह ने? Show - दरअसल 1919 में पंजाब के तत्कालीन ब्रिटिश लेफ्टिनेण्ट गवर्नर का नाम माइकल ओ डायर था। माइकल डायर ने घटना को सही ठहराया था। उस पर अपनी सहमती दी थी। क्या मिली थी जनरल रेजिनॉल्ड डायर को सजा? - जलियाबांग की घटना के बाद भारत के तत्कालीन सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट एडविन मॉण्टेगू ने 1919 में जांच के लिए हंटर कमीशन बनाया था। आगे की स्लाइड्स पर देखिए जलियांबाग हत्याकांड की कुछ फोटोज...
उधम सिंह (26 दिसम्बर 1899 – 31 जुलाई 1940) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के महान सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे।[1] उन्होंने जलियांवाला बाग कांड के समय पंजाब के गर्वनर जनरल रहे माइकल ओ' ड्वायर को लन्दन में जाकर गोली मारी थी।[2] कई इतिहासकारों का मानना है कि यह हत्याकाण्ड ओ' ड्वायर व अन्य ब्रिटिश अधिकारियों का एक सुनियोजित षड्यंत्र था, जो पंजाब प्रांत पर नियन्त्रण बनाने के लिये किया गया था।[3][4][5] उत्तर भारतीय राज्य उत्तराखण्ड के एक जनपद का नाम भी इनके नाम पर उधम सिंह नगर रखा गया है। जीवन वृत्तांत[संपादित करें]उधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब प्रांत के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में एक सिख परिवार में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। उधमसिंह के बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था, जिन्हें अनाथालय में क्रमश: उधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले। इतिहासकार मालती मलिक के अनुसार उधमसिंह देश में सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर 'राम मोहम्मद सिंह आजाद' रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मों का प्रतीक है। {राम-हिंदू, मोहम्मद-मुस्लिम, सिंह-सिख} अनाथालय में उधमसिंह की जिंदगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। उधमसिंह अनाथ हो गए थे परंतु इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए और देश की आजादी तथा जनरल डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे। माइकल ओ'डायर की गोली मारकर हत्या[संपादित करें]उधमसिंह १३ अप्रैल १९१९ को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। राजनीतिक कारणों से जलियाँवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीर उधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ'डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली। अपने इस ध्येय को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुँचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना ध्येय को पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत के यह वीर क्रांतिकारी, माइकल ओ'डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगे। उधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ'डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुँच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके। बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ'डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ'डायर को लगीं जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला। 4 जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
उधम सिंह ने माइकल ओ डायर को क्यों मारा?सर माइकल फ्रांसिस ओ ड्वायर (Michael O'Dwyer ; 28 अप्रैल 1864 - 13 मार्च 1940), 1912 से 1919 तक भारत में पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे। ओ डायर ने अमृतसर नरसंहार के संबंध में कर्नल रेजिनाल डायर की कार्रवाई का समर्थन किया और इसे "सही" ठहराया था। इसके कारण उन्हें भारतीय स्वतंत्रता सेनानी उधम सिंह ने गोली मार दी थी।
जनरल डायर की मृत्यु कैसे हुई?- 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को 'रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी' की लंदन के 'कॉक्सटन हॉल' में बैठक थी, जहां माइकल ओ'डायर भी वक्ताओं में से एक था। - ऊधम सिंह ने अपनी रिवाल्वर एक मोटी सी किताब में छिपा ली। बैठक के बाद ऊधम ने माइकल ओ'डायर पर गोलियां चला दीं। उसकी मौत हो गई।
जनरल डायर की मौत कब हुई थी?13 मार्च 1940माइकल ओ' ड्वायर / हत्या तारीखnull
जनरल डायर का असली नाम क्या था?कर्नल रेजिनाल्ड एडवर्ड हैरी डायर (अंग्रेज़ी: Colonel Reginald Edward Harry Dyer) ब्रिटिश सेना का एक अधिकारी था जिसे अस्थायी ब्रिगेडियर जनरल बनाया गया था जो पंजाब (ब्रिटिश भारत) के शहर अमृतसर में जलियांवाला बाग़ नरसंहार के लिए उत्तरदायी था।
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