उस छोटी-सी मुलाकात ने संभव के मन में क्या हलचल उत्पन्न कर दी.

उस छोटी-सी मुलाकात ने संभव के मन में क्या हलचल उत्पन्न कर दी? इसका सूक्ष्म विवेचन कीजिए।

संभव एक नौजवान था। इससे पहले किसी लड़की ने उसके दिल में दस्तक नहीं दी थी। अचानक पारो से मुलाकात होने पर उसे किसी लड़की के प्रति प्रेम की भावना जागरूक हुई थी। पारो को जब उसने गुलाबी साड़ी में पूरी भीगी हुई देखा, तो वह देखता रह गया। उसका सौंदर्य अनुपम था। उसने उसके कोमल मन में हलचल मचा दी। वह उसे खोजने के लिए हरिद्वार की गली-गली खोजता था। घर पहुँचकर उसका किसी चीज़ में मन नहीं लगता। विचारों और ख्वाबों में बस पारो की ही आकृति उसे नज़र आ रही थी। वह उससे मिलने के मनसूबे बनाना लगा। उसका दिल उसे पाना चाहता था। पारो उस क्षण में ही उसके जीवन का आधार बन गई थी, जिसे पाने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था।

Concept: गद्य भाग

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छोटी सी मुलाकात ने संभव के मन में क्या हलचल उत्पन्न कर दी इसका सूक्ष्म विवेचन कीजिए?

अचानक पारो से मुलाकात होने पर उसे किसी लड़की के प्रति प्रेम की भावना जागरूक हुई थी। पारो को जब उसने गुलाबी साड़ी में पूरी भीगी हुई देखा, तो वह देखता रह गया। उसका सौंदर्य अनुपम था। उसने उसके कोमल मन में हलचल मचा दी

पारो और संभव में से आप किसके प्रति अधिक सहानुभूति रखते हैं और क्यों दूसरा देवदास पाठ के आधार?

'दूसरा देवदास' इस पाठ का पात्र संभव के प्रति अधिक सहानुभूति लगती है क्योंकि वो अपनी प्रेमिका पारो से मिलने के लिए बहुत व्याकुल रहता था। जिस तरह शरतचन्द्र के नाटक में 'देवदास' में अपनी पारो से मिलने कि लिए व्याकुल रहता है। संभव को अपने जीवन में पहली बार किसी लड़की से प्रेम का आभास हुआ था।

मनोकामना की गाँठ को आधारभूत अनोखा क्यों कहा गया है दूसरा देवदास कहानी के आधार पर प्रकरण सहित टिप्पणी कीजिए?

जिस प्रकार देवदास की प्रेमिका पारो थी, वैसे ही यहाँ भी उसकी प्रेमिका पारो ही थी। उसने इसी पारो को पाने के लिए मंसा देवी में मन्नत की गांठ बाँधी थी। वह अपनी इसी पारों को देखना चाहता था। इस कथन से स्पष्ट हो गया कि इस कहानी की नायिका का नाम पारो है और संभव की कहानी इस पारो के बिना पूरी नहीं हो सकती है।

दूसरा देवदास कहानी में मन्नू की बुआ का नाम क्या था?

सब पर मानो बुआजी का व्यक्तित्व हावी है. सारा काम वहां इतनी व्यवस्था से होता जैसे सब मशीनें हों, जो कायदे में बंधी, बिना रुकावट अपना काम किए चली जा रही हैं. ठीक पांच बजे सब लोग उठ जाते, फिर एक घंटा बाहर मैदान में टहलना होता, उसके बाद चाय-दूध होता.