धान की सीधी बुवाई कैसे होती है? - dhaan kee seedhee buvaee kaise hotee hai?

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धान की सीधी बुआई (dhan ki sidhi buai kya hai): क्या आपके इलाके में पानी की समस्या है? या कम पानी वाले खेत में धान की फसल लेना चाहते हैं। यदि हां...

तो यह लेख आपके लिए है। यहां हम आपको कम पानी में धान की अधिक उपज के लिए धान की सीधी बुआई (dhan ki sidhi buai) के बारे में बताएंगे। 

तो आइए, सबसे पहले जानते हैं कि धान की खेती (dhan ki kheti) में सीधी बुआई के लिए उपयुक्त पारिस्थितिकी क्या है?

किसान साथियों जैसा कि आप जानते हैं धान के लिए ज्यादा पानी की जरूरत होती है। धान गर्म और नम जलवायु की फसल है।

भारत में कई राज्य ऐसे हैं, जहां धान के लिए जलवायु तो उपयुक्त है लेकिन पानी की आपूर्ति समय पर नहीं हो पाती है। ऐसे जगहों पर धान की सीधी बुआई करने से कम सिंचाई में भी धान की पूरी पैदावार मिलती है। 

अब जानते हैं धान की सीधी बुआई क्या है (dhan ki sidhi buai kya hai)?

धान की सीधी बुआई क्या है (dhan ki sidhi buai kya hai)?

धान की सीधी बुआई एक ऐसी विधि है जिसमें धान की खेती (dhan ki kheti)  बिना नर्सरी तैयार किए धान को खेत में सीधी बुआई की जाती है। 

इस विधि में धान की रोपाई की भी जरूरत नहीं होती है। इससे किसानों को रोपाई में खर्च होने वाले पैसे और श्रम की काफी बचत होती है। इसमें खेत में पानी भरने की भी जरूरत नहीं होती है। 

ऐसे करें धान की सीधी बुआई

धान की सीधी बुआई के लिए किसानों को सबसे पहले किसानों को खेत को गर्मी में ही जुताई कर देनी चाहिए। इससे खेत से खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।

इसके लिए भूमि को समतल होना बहुत जरूरी है, यदि भूमि समतल ना हो तो उसे लेजर लैंड लेबलिंग या पाटे की सहायता से समतल बना लें। 

धान की सीधी बुआई आप सीड ड्रिल मशीन से कर सकते हैं। धान की सीधी बुआई दो तरह से की जाती है। 

  1. सूखी विधि

  2. गीली विधि

सूखी विधि में आप गेहूं की बुआई की तरह सूखी खेत में छिटकवां विधि या लाइन में धान की बुआई कर सकते हैं।

गीली विधि भी सूखी विधि तरह कर सकते हैं। यह विधि वहां उपयुक्त होती है, जहां जलजमाव होती है।

आपको बता दें, सीधी बुआई मानसून आने से पहले कर लेनी चाहिए ताकि बाद में जलभराव होने पर पौधे प्रभावित नहीं होते हैं।

उर्वरक प्रबंधन

धान की सीधी बुआई के लिए प्रति हेक्टेयर 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 30 किलोग्राम पोटाश खेत की जुताई के समय डाल दें। इसके बाद धान के बढ़वार के 40 किलोग्राम नाइट्रोजन का छिड़काव करें। 

धान की सीधी बुआई के फायदे (dhan ki sidhi buai ke fayde)  

  • इस तकनीक से रोपाई की लागत नहीं लगती है
  • फसल भी समय से तैयार हो जाती है।
  • जुताई की लागत में बचत में होती है। 
  • फसल की बुआई सही समय में हो जाती है।
  • 15 से 20 प्रतिशत पानी की बचत होती है। 
  • इस विधि की फसल 5 से 15 दिन पहले तैयार हो जाती है। 

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सीधी बुवाई द्वारा धान की खेती, खाद्य फसलों में गेहूं के बाद चावल एक महत्वपूर्ण फसल है, जोकि विश्व की आधे से अधिक आबादी के लिए मुख्य भोजन है| एशिया में चावल आम तौर पर रोपित पौधों द्वारा पलेवा की चड़युक्त मिट्टी में उगाया जाता है| जिसके लिए पानी की अधिक मात्रा और मजदूर की आवश्यकता होती है| जिससे किसान की लागत बढ़ जाती है|

गिरते जलस्तर, मजदूरों की कमी, जलवायु परिवर्तन और अधिक लागत के कारण, रोपित चावल की खेती की स्थिरता को खतरा पैदा हो गया है| इसके समाधान के लिए धान की सीधी बुआई विधि पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है| धान की सीधी बुवाई (डी एस आर), नर्सरी से रोपाई के बजाय सीधे मुख्य खेत में बीज द्वारा फसल बुआई की एक प्रक्रिया है|

जिसमें पानी की कम आवश्यकता, कम लागत की मांग और मजदूरों की कम आवश्यकता किसानों को भविष्य के लिए एक विकल्प के रूप में आकर्षित कर रही है| धान की सीधी बुवाई में मिटटी की बार-बार जुताई नहीं करनी पड़ती| जिससे सूक्ष्मजीवों को लाभ पहुंचता है|

विशेष रूप से ग्रीन गैस उत्सर्जन और पर्यावरणीय स्थिरता को सुधारने में मदद मिलती है| वर्तमान में हमारे देश में इस तकनीक को कुछ स्थानों पर ही अपनाया गया है| जिसे किसानों की सहभागिता के रूप में अधिक लोकप्रिये बनाने की आवश्यकता है|धान की उन्नत खेती हेतु यहाँ पढ़ें- धान (चावल) की खेती कैसे करें

सीधी बुवाई नाशीजीव स्थिति

धान की फसल में एक अनुमान के मुताबिक लगभग 130 से अधिक नाशीजीव पाए जाते हैं| जिसमें लगभग 10 से 12 मुख्य नाशीजीव की भूमिका निभाते हैं| धान में पाए जाने वाले प्रमुख नाशीजीव जैसे- तना बेधक, पत्ती लपेटक, भूरा फुदका, गंधी बग, झोंका रोग, बकाने रोग, जीवाणु झुलसा, भूरा धब्बा, आवरण झुलसा और कंडुआ रोग मुख्य हैं|

जो कि पौधे की विभिन्न अवस्थायों पर विभिन्न जलवायु में आक्रमण करते हैं और इनसे फसल को 10 से 20 प्रतिशत तक नुकसान होता है| धान की सीधी बुवाई में आमतौर पर इन्हीं नाशीजीवों का प्रकोप होता है एवं कुछ परिस्थितियों में दीमक और सूत्रकृमी का ज्यादा प्रकोप देखा गया है|

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आईपीऍम मॉड्यूल

भारतीय कृषि संस्था, जो कि नाशीजीवों के समेकित नाशीजीव प्रबंधन पर कार्य करता है, ने धान की सीधी बुवाई में नाशीजीवों के प्रबंधन के लिए एक मॉड्यूल विकसित किया है| जिसने हरियाणा में किसानों के सहयोग से उनके खेतों पर बड़े पैमाने पर परीक्षण किया जा रहा है या किया है| इस संस्था के द्वारा विकसित मॉड्यूल को धान के किसानों द्वारा बहुतायत में अपनाया जा रहा है| धान की सीधी बुवाई के लिए संस्था द्वारा विकसित आईपीएम मॉड्यूल इस प्रकार है, जैसे-

1. कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यू पी से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज उपचार|

2. प्रारम्भिक खरपतवार प्रबंधन के लिए बुवाई के 2 दिन बाद प्री-एमरजेंस खरपतवारनाशी पेंडीमेलिन 30 प्रतिशत ई सी का 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग

3. 20 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर की दर से सेस्वनिया (ढेंचा) का भूरी खाद के रूप में प्रयोग|

4. बिस्पायरीबैक सोडियम (नामिनी गोल्ड) 10 प्रतिशत एससी का 250 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 25 दिन बाद प्रयोग|

5. बुवाई के 25 दिन बाद सेस्बनिया (ढेंचा) के लिए 2-4 डी का 0.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें, ताकि ढेंचा को भूरी खाद के लिए प्रयोग कर सकें|

6. साप्ताहिक अंतराल पर नाशीजीवों एवं मित्र कीटों की निगरानी|

7. तना बेधक के पतंगे के निगरानी के लिए 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से स्थापना करना और 25 से 30 दिन बाद ल्युर को बदलना|

8. उर्वरकों का संतुलित उपयोग (80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 से 70 किलोग्राम फास्फोरस और 30 से 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर)

9. ट्राईकोडर्मा विरिडी का प्रयोग|

10. आर्थिक हानि स्तर के आधार पर आवश्यकतानुसार रासायनिकों का प्रयोग|

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उचित जलवायु

धान की सीधी बुवाई के लिए शुष्क और आर्द्र मौसम की आवश्यकता होती है एवं पकने के समय हल्की ठण्ड वाला मौसम अनुकूल माना जाता है| धान को भारत वर्ष में विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से उगाया जाता है| धान की वर्षा आधारित, सिंचित, असिंचित सभी क्षेत्रों में खेती की जाती है| धान की खेती के लिए 21 से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान आदर्श माना गया है|

उपयुक्त मिटटी

धान की खेती के लिए चिकनी दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी गयी है| इसके अलावा दोमट और बलुई दोमट मिट्टी में भी इसे आसानी से उगाया जा सकता है एवं अच्छी पैदावार ली जा सकती है|

भूमि की तैयारी

धान की सीधी बुवाई के लिए भूमि का समतल होना बहुत आवश्यक है, यदि भूमि समतल ना हो तो उसे लेजर लैंड लेबलिंग की सहायता से समतल बनाया जा सकता है| समतल भूमि में एक बार गर्मी की जुताई करके छोड़ दिया जाता है एवं कुछ दिनों बाद पाटा या पटेला लगाकर मिट्टी की एक बार पुनः जुताई करने के बाद उपयुक्त नमी में बुवाई की जाती है|

धान की सीधी बुवाई मानसून आने के करीब एक से दो सप्ताह पूर्व करना अच्छा होता है| अतः धान की सीधी बुवाई जून के प्रथम सप्ताह तक अवश्य कर देनी चाहिए| बुवाई के लिए सीड ड्रिल का प्रयोग करें और जिन खेतों में फसलों के अवशेष हो तथा जमीन आच्छादित हो वहां पर टरबो हैपी सीडर से 2 से 3 इंच गहरी बुवाई करें|

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बीज की मात्रा एवं उर्वरक

धान की सीधी बुवाई के लिए 20 से 25 किलोग्राम बीज, 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 से 70 किलोग्राम फास्फोरस और 30 से 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है| नाइट्रोजन की आधी और फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय प्रयोग करें|

नाइट्रोजन की शेष मात्रा को दो भागों में बुवाई के 20 से 25 दिन बाद और 45 से 50 दिन बाद खड़ी फसल में टाप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए| खेत में जिंक की कमी होने की अवस्था में जिंक सल्फेट की 20 से 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें|

खरपतवर प्रबंधन

धान की सीधी बुवाई में खरपतवार एक बहुत बड़ी समस्या है, जिसके प्रबंधन के लिए बुवाई के 48 घंटों के अन्दर प्री-एमरजेंस खरपतवारनाशी (पेंडीमेथालिन) का 3.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से प्रयोग करें| बुवाई के 25 से 28 दिन बाद बिस्पायरिबैक सोडियम खरपतवारनाशी का 30 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें|

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खाली स्थान भरना

बुवाई के दौरान मशीन द्वारा धान के कुछ बीज सीधी लाइन के अलावा आस-पास छिटकर गिर जाते हैं, जिसे बुवाई के 25 से 30 दिन बाद उखाड़कर सीधी कतार में खाली और उचित स्थान पर रोप दें| जिससे फसल देखने में अच्छी लगे और (कतार से कतार 20 सेंटीमीटर एवं पौध से पौध की दूरी 12 से 15 सेंटीमीटर) जिससे खेत में पौधों की प्रति है उचित संख्या बनी रहे|

सिंचाई प्रबंधन

धान की सीधी बुवाई में रोपित धान की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है| जिससे पूरे फसल मौसम में 15 से 20 प्रतिशत पानी की बचत होती है| सीधी बुवाई में आमतौर पर साप्ताहिक अंतराल पर पानी देने की आवश्यकता होती है| सिंचाई के लिए जब खेत में हल्की दरारें निकलनी शुरू हों तब पानी देना उपयुक्त होता है और सिंचाई की मात्रा मौसमी बरसात पर भी निर्भर करती है|

फसल की देखभाल

फसल की स्थिति और नाशीजीवों (कीट, रोग व सूत्रकृमी) की साप्ताहिक अंतराल पर निगरानी बहुत ही आवश्यक है| जिससे किसान भाइयों को अपने खेत की सम्पूर्ण स्थिति का पता लगता रहे तथा कौन से नाशीजीव का उसके खेत में आगमन और आक्रमण हो रहा है एवं उनका कैसे प्रबंधन करना है, की उचित जानकारी मिलती रहे| तना बेधक की मोथ की निगरनी के लिए फेरोमोन ट्रैप 5 से 7 प्रति हेक्टेयर की दर से खेतों में लगाना चाहिए|

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पैदावार

बासमती धान की प्रजाति पूसा- 1121 में धान की सीधी बुवाई में रोपित धान की तुलना में उपज लगभग समान मिलती है| धान की सीधी बुवाई में औसतन 50 से 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिल जाती है|

सीधी बुवाई तकनीक से लाभ-

सीधी बुवाई तकनीक के प्रमुख लाभ इस प्रकार है, जैसे-

1. इस विधि से धान की बुवाई करने पर 15 से 20 प्रतिशत पानी की बचत होती है, क्योंकि इस विधि से खेत में लगातार पानी रखने की आवश्यकता नही पड़ती है|

2. इस विधि में रोपाई नहीं करनी पड़ती जिसके फलस्वरूप नर्सरी उगाने का खर्च, मजदूर का खर्च, समय और ईंधन की बचत होती है|

3. इस विधि से बुवाई करने पर फसल आमतौर पर 5 से 15 दिन पहले तैयार हो जाती है जिससे दूसरी फसल के लिए अधिक समय मिल जाता है और उपज में कोई कमी नहीं पायी जाती है|

4. धान की खेती लगातार रोपाई विधि से करने पर भूमि की भौतिक दशा पर बुरा असर पड़ता है, जिसको धान की सीधी बुवाई करके सुधार जा सकता है|

5. सीधी बुवाई विधि से धान की खेती करने में बीज की मात्रा कम लगती है|

6. मिटटी में सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बनी रहती है|

7. इस विधि से ग्रीन हाउस गैस मुख्यता मिथेने गेस का उत्सर्जन कम किया जा सकता है, जो की ग्लोबल वार्मिंग का मुख्य कारण है|

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धान की सीधी बुवाई कैसे की जाती है?

धान की सीधी बुआई क्या है (dhan ki sidhi buai kya hai)? धान की सीधी बुआई एक ऐसी विधि है जिसमें धान की खेती (dhan ki kheti) बिना नर्सरी तैयार किए धान को खेत में सीधी बुआई की जाती है। इस विधि में धान की रोपाई की भी जरूरत नहीं होती है। इससे किसानों को रोपाई में खर्च होने वाले पैसे और श्रम की काफी बचत होती है।

धान के बीज की बुवाई कैसे करें?

धान की सीधी बुवाई का क्या है तरीका या विधि दूसरी विधि में खेत में लेव लगाकर अंकुरित बीजों को ड्रम सीडर द्वारा बोया जाता है। बुवाई से पूर्व धान के खेत को समतल कर लेना चाहिए। धान की सीधी बुवाई करते समय बीज को 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर ही बोना चाहिए। मशीन द्वारा सीधी बुवाई में कतार से कतार की दूरी 18-22 से.

धान में अधिक कल्ले निकलने के लिए क्या करें?

धान में कल्ले बढ़ाने की दवा खरपतवार के लिए 2-4D नामक दवा का प्रयोग कर सकते हैं। खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई के 3-4 के अंदर पेंडीमेथलीन 30 ई.सी का 3.5 लीटर मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से 800-900 लीटर पानी में मिलाकर खेत में प्रयोग करने से खरपतवार का नियंत्रण अच्छी तरह से होता है।

धान की अधिक पैदावार कैसे करें?

धान की खेती की प्रचलित पद्धतियां.
छिटकवां बुवाई।.
नाड़ी हल या दुफन या सीडड्रिल से कतारों में बुवाई।.
बियासी पद्धति (छिटकवां विधि) से सवा गुना अधिक बीज बोकर बुवाई के एक महीने बाद फसल की पानी भरे खेत में हल्की जुताई।.
लेही पद्धति (धान के बीजों को अंकुरित करके मचौआ किये गये खेतों में सीधे छिटकवां विधि से बुवाई).

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