दान करते समय क्या बोलना चाहिए? - daan karate samay kya bolana chaahie?

उन्नति के लिए दान का मंत्र

सभी सांसारिक कर्मों में सर्वश्रेष्ठ कर्म है दान। यह मनुष्य ही नहीं, देवों और असुरों सभी के लिए उन्नति का मार्ग प्रशस्त करने वाला कर्म है।  तप: परं कृतयुगे त्रेतायां ज्ञानमुच्यते द्वापरे...

दान करते समय क्या बोलना चाहिए? - daan karate samay kya bolana chaahie?

Anuradha Pandeyहिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीTue, 13 Jul 2021 01:58 PM

सभी सांसारिक कर्मों में सर्वश्रेष्ठ कर्म है दान। यह मनुष्य ही नहीं, देवों और असुरों सभी के लिए उन्नति का मार्ग प्रशस्त करने वाला कर्म है। 
तप: परं कृतयुगे त्रेतायां ज्ञानमुच्यते
द्वापरे यज्ञमेवाहुर्दानमेकं कलौ युगे। 
सतयुग में तप, त्रेता में ज्ञान, द्वापर में यज्ञ और कलियुग में दान को मनुष्य के कल्याण का साधन बताया गया है। गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते हैं- 
प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुं एक प्रधान।
जेन केन विधि दीन्हें दान करइ कल्यान। 
बृहदारण्यकोपनिषद् की एक कथा में इसकी महिमा का उल्लेख मिलता है। 
इस सृष्टि में एक समय ऐसा भी आया, जब देवताओं की उन्नति अवरुद्ध हो गई। उधर असुर लोक में भी उन्नति के मार्ग बंद दिखते थे। पृथ्वी पर भी मनुष्यों में आत्मिक और सांसारिक उन्नति का भाव जाता रहा। हर तरफ बस सभी जैसे-तैसे खा-पी कर सो जाते। न धर्म चर्चा, न प्रगति। 
तीनों लोकों का हाल जब एक दूसरे ने जाना तो वे मिलकर पितामह प्रजापति ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे प्रार्थना की कि कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे उन्नति के मार्ग सभी लोकों के लिए खुल जाएं। प्रजापति ब्रह्मा ने तीनों को मात्र एक अक्षर का उपदेश दिया। वह अक्षर था ‘द’। 
स्वर्ग में भोगों के बाहुल्य से भोग ही देवलोक का सुख माना गया। अत: देवगण कभी वृद्ध ना होकर, सदा इंद्रिय भोग भोगने में लगे रहते हैं। उनकी इस अवस्था पर विचार कर प्रजापति ब्रह्मा जी ने देवताओं को ‘द’ के द्वारा दमन- इंद्रिय दमन का उपदेश दिया। ब्रह्मा के इस उपदेश से देवगण अपने को कृतकृत्य मान उन्हें प्रणाम कर वहां से चले गए। असुर स्वभाव से ही हिंसावृत्ति वाले होते हैं। क्रोध और हिंसा उनका नित्य व्यापार है। इसलिए प्रजापति ने उन्हें इस तरह के कर्म से छुड़ाने के लिए ‘द’ के द्वारा उन्हें जीवमात्र पर दया करने का उपदेश दिया। असुर गण ब्रह्मा जी की इस आज्ञा को शिरोधार्य कर वहां से चले गए। 
मनुष्य कर्मयोगी होने के कारण सदा लोभवश कर्म करने और धनोपार्जन में ही लगे रहते हैं। इसलिए प्रजापति ने लोभी मनुष्यों को ‘द’ द्वारा उनके कल्याण के लिए दान करने उपदेश दिया। मनुष्य गण भी प्रजापति की आज्ञा को स्वीकार कर सफल मनोरथ होकर वहां से प्रणाम कर चले गए। अत: मानव को अपने अभ्युदय के लिए दान अवश्य करना चाहिए। 
दान के कई नियम शास्त्रों में बताए गए हैं, जिसमें दान के शुभ फल की प्राप्ति के लिए दान कर्ता के बारे में भी वर्णन मिलता है। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि दान का नाश भी हो सकता है। इसके तीन कारण हो सकते हैं- अश्रद्धा, अपात्रता एवं पश्चाताप। बिना श्रद्धा के जो दिया जाता है, वह व्यर्थ जाता है और राक्षस दान के समान माना जाता है। इसी तरह डांट-डपटकर, कटु वचन बोलकर जो दान दिया जाता है, उसका भी महत्त्व जाता रहता है। इसी तरह यह भी देखना चाहिए कि दानकर्ता और दान प्राप्तकर्ता की पात्रता है या नहीं। दोनों का ही सच्चरित्र, सत्यनिष्ठ और धर्मनिष्ठ होना शास्त्रों में दान के सुफल हेतु जरूरी माना गया है। 
(‘कल्याण ’ से  साभार)

दान करते समय क्या बोलना चाहिए? - daan karate samay kya bolana chaahie?

* इन नियमों के अनुसार देंगे दान नहीं होगा अनिष्ट

-ज्योतिषाचार्य प्रणयन एम. पाठक

1. दान देने वाला पूर्वाभिमुखी होकर दान दे और लेने वाला उत्तराभिमुखी होकर उसे ग्रहण करे, ऐसा करने से दान देने वाले की आयु बढ़ती है और लेने वाले की भी आयु क्षीण नहीं होती।


2. स्वयं जाकर दिया हुआ दान उत्तम एवं घर बुलाकर दिया हुआ दान मध्यम फलदायी होता है। गौओं, ब्राह्मणों तथा रोगियों को जब कुछ दिया जाता हो, उस समय जो न देने की सलाह देता हो वह दु:ख भोगता है।

3. तिल, कुश, जल और चावल इनको हाथ में लेकर दान देना चाहिए अन्यथा उस दान पर दैत्य अधिकार कर लेते हैं। पितरों को तिल के साथ तथा देवताओं को चावल के साथ दान देना चाहिए, परंतु जल व कुश का संबंध सर्वत्र रखना चाहिए।

4. मनुष्य को अपने द्वारा न्यायपूर्वक अर्जित किए हुए धन का 10वां भाग ईश्वर की प्रसन्नता के लिए किसी सत्कर्मों में लगाना चाहिए। जो मनुष्य अपने स्त्री, पुत्र एवं परिवार को दुःखी करके दान देता है वह दान जीवित रहते हुए भी एवं मरने के बाद भी दुःखदायी होता है।

5. अन्न, जल, घोड़ा, गाय, वस्त्र, शैया, छत्र और आसन इन 8 वस्तुओं का दान मृत्यु उपरांत के कष्टों को नष्ट करता है।

6. गाय, घर, वस्त्र, शैया तथा कन्या इनका दान एक ही व्यक्ति को करना चाहिए। रोगी की सेवा करना, देवताओं का पूजन, ब्राह्मणों के पैर धोना गौदान के समान है।

7. गाय, स्वर्ण, चांदी, रत्न, विद्या, तिल, कन्या, हाथी, घोड़ा, शैया, वस्त्र, भूमि, अन्न, दूध, छत्र तथा आवश्यक सामग्री सहित घर- इन 16 वस्तुओं के दान को महादान कहते हैं।

8. विद्याहीन ब्राह्मणों को दान नहीं लेना चाहिए, लेने से ब्राह्मण की हानि होती है।

9. दीन, अंधे, निर्धन, अनाथ, गूंगे, जड़, विकलांगों तथा रोगी मनुष्य की सेवा के लिए जो धन दिया जाता है उसका महान पुण्य होता है।