तीसरी क़सम फ़िल्म का सेल्यूलाइट पर श्री कविता क्यों कहा गया है - teesaree qasam film ka selyoolait par shree kavita kyon kaha gaya hai

तीसरी कसम
तीसरी क़सम फ़िल्म का सेल्यूलाइट पर श्री कविता क्यों कहा गया है - teesaree qasam film ka selyoolait par shree kavita kyon kaha gaya hai

फ़िल्म का पोस्टर
निर्देशक बासु भट्टाचार्य
निर्माता शैलेन्द्र
लेखक फणीश्वर नाथ रेणु (संवाद)
पटकथा नबेन्दु घोष
आधारित तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम 
द्वारा: फणीश्वर नाथ "रेणु"
अभिनेता राज कपूर,
वहीदा रहमान,
दुलारी,
इफ़्तेख़ार,
असित सेन,
सी एस दुबे,
कैस्टो मुखर्जी
संगीतकार शंकर-जयकिशन
प्रदर्शन तिथि(याँ) 1966
समय सीमा 159 मिनट
देश भारत
भाषा हिन्दी

तीसरी कसम 1966 में बनी हिन्दी भाषा की नाट्य फिल्म है। फ़िल्म का निर्देशन बासु भट्टाचार्य ने और निर्माण प्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र ने किया था। यह हिन्दी लेखक फणीश्वर नाथ "रेणु" की प्रसिद्ध कहानी मारे गए ग़ुलफ़ाम पर आधारित है। इस फिल्म के मुख्य कलाकारों में राज कपूर और वहीदा रहमान शामिल हैं। बासु भट्टाचार्य द्वारा निर्देशित तीसरी कसम एक फिल्म गैर-परंपरागत है जो भारत की देहाती दुनिया और वहां के लोगों की सादगी को दिखाती है। यह पूरी फिल्म मध्यप्रदेश के बीना एवं ललितपुर के पास खिमलासा में फिल्मांकित की गई। इस फ़िल्म की असफलता के बाद शैलेन्द्र काफी निराश हो गए थे और उनका अगले ही साल निधन हो गया था।

यह हिन्दी के महान कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'मारे गये गुलफाम' पर आधारित है। इस फिल्म का फिल्मांकन सुब्रत मित्र ने किया है। पटकथा नबेन्दु घोष की है, जबकि संवाद स्वयं फणीश्वर नाथ "रेणु" ने लिखे हैं। फिल्म के गीत शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने लिखें, जबकि फिल्म का संगीत शंकर-जयकिशन की जोड़ी ने दिया है। यह फ़िल्म उस समय व्यावसायिक रूप से सफ़ल नहीं रही थी, पर इसे आज अदाकारों के श्रेष्ठतम अभिनय तथा प्रवीण निर्देशन के लिए जाना जाता है। इस फ़िल्म के बॉक्स ऑफ़िस पर पिटने के कारण निर्माता गीतकार शैलेन्द्र का निधन हो गया था। इसको तत्काल बॉक्स ऑफ़िस पर सफलता नहीं मिली थी पर यह हिन्दी के श्रेष्ठतम फ़िल्मों में गिनी जाती है।

संक्षेप[संपादित करें]

हीरामन एक गाड़ीवान है। फ़िल्म की शुरुआत एक ऐसे दृश्य के साथ होती है जिसमें वो अपना बैलगाड़ी को हाँक रहा है और बहुत खुश है। उसकी गाड़ी में सर्कस कंपनी में काम करने वाली हीराबाई बैठी है। हीरामन कई कहानियां सुनाते और लीक से अलग ले जाकर हीराबाई को कई लोकगीत सुनाते हुए सर्कस के आयोजन स्थल तक हीराबाई को पहुँचा देता है। इस बीच उसे अपने पुराने दिन याद आते हैं और लोककथाओं और लोकगीत से भरा यह अंश फिल्म के आधे से अधिक भाग में है। इस फ़िल्म का संगीत शंकर जयकिशन ने दिया था। हीरामन अपने पुराने दिनों को याद करता है जिसमें एक बार नेपाल की सीमा के पार तस्करी करने के कारण उसे अपने बैलों को छुड़ा कर भगाना पड़ता है। इसके बाद उसने कसम खाई कि अब से "चोरबजारी" का सामान कभी अपनी गाड़ी पर नहीं लादेगा। उसके बाद एक बार बांस की लदनी से परेशान होकर उसने प्रण लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए वो बांस की लदनी अपनी गाड़ी पर नहीं लादेगा। हीराबाई नायक हीरामन की सादगी से इतनी प्रभावित होती है कि वो मन ही मन उससे प्रीति कर बैठती है उसके साथ मेले तक आने का 30 घंटे का सफर कैसे पूरा हो जाता है उसे पता ही नहीं चलता हीराबाई हीरामन को उसके नृत्य का कार्यक्रम देखने के लिए पास देती है जहां हीरामन अपने दोस्तों के साथ पहुंचता है लेकिन वहां उपस्थित लोगों द्वारा हीराबाई के लिए अपशब्द कहे जाने से उसे बड़ा गुस्सा आता है। वो उनसे झगड़ा कर बैठता है और हीराबाई से कहता है कि वो ये नौटंकी का काम छोड़ दे। उसके ऐसा करने पर हीराबाई पहले तो गुस्सा करती है लेकिन हीरामन के मन में उसके लिए प्रेम और सम्मान देख कर वो उसके और करीब आ जाती है। इसी बीच गांव का जमींदार हीराबाई को बुरी नजर से देखते हुए उसके साथ जबरदस्ती करने का प्रयास करता है और उसे पैसे का लालच भी देता है। नौटंकी कंपनी के लोग और हीराबाई के रिश्तेदार उसे समझाते हैं कि वो हीरामन का ख्याल अपने दिमाग से निकाल दे नहीं जमींदार उसकी हत्या भी करवा सकता है और यही सोच कर हीराबाई गांव छोड़ कर हीरामन से अलग हो जाती है । फिल्म के आखिरी हिस्से में रेलवे स्टेशन का दृश्य है जहां हीराबाई हीरामन के प्रति अपने प्रेम को अपने आंसुओं में छुपाती हुई उसके पैसे उसे लौटा देती है जो हीरामन ने मेले में खो जाने के भय से उसे दिए थे।उसके चले जाने के बाद हीरामन वापस अपनी गाड़ी में आकर बैठता है और जैसे ही बैलों को हांकने की कोशिश करता है तो उसे हीराबाई के शब्द याद आते हैं "मारो नहीं"और वह फिर उसे याद कर मायूस हो जाता है।

अन्त में हीराबाई के चले जाने और उसके मन में हीराबाई के लिए उपजी भावना के प्रति हीराबाई के बेमतलब रहकर विदा लेने के बाद उदास मन से वो अपने बैलों को झिड़की देते हुए तीसरी क़सम खाता है कि अपनी गाड़ी में वो कभी किसी नाचने वाली को नहीं ले जाएगा। इसके साथ ही फ़िल्म खत्म हो जाती है।

मुख्य कलाकार[संपादित करें]

  • राज कपूर - हीरामन
  • वहीदा रहमान - हीराबाई
  • दुलारी - हीरामन की भाभी
  • इफ़्तेख़ार - जमींदार विक्रम सिंह
  • असित सेन -
  • सी एस दुबे - बिरजू
  • कृष्ण धवन - लालमोहर
  • कैस्टो मुखर्जी - शिवरतन

दल[संपादित करें]

  • निर्देशक - बासु भट्टाचार्य
  • कथा व संवाद - फणीश्वरनाथ रेणु
  • पटकथा - नबेंदु घोष
  • निर्माता - शैलेन्द्र
  • सम्पादक - जी जी मयेकर
  • छायांकन - सुब्रता मित्रा
  • कला निर्देशक - देश मुखर्जी
  • वस्त्र एवं भूषा - पंडित शिवराम, हनुमान
  • नृत्य निर्देशक - लच्छू महाराज
  • संगीतकार - शंकर जयकिशन
  • गीतकार - शैलेन्द्र, हसरत जयपुरी
  • पार्श्वगायक - आशा भोसले, मन्ना डे, मुकेश, मुबारक बेगम, लता मंगेशकर, सुमन कल्याणपुर, शंभु, शंकर

संगीत[संपादित करें]

गीतगायकगीतकारसमयटिप्पणी
"सजन रे झूठ मत बोलो" मुकेश शैलेन्द्र 3:43 लोकप्रिय गीत
"सजनवा बैरी हो गए हमार" मुकेश शैलेन्द्र 3:51 लोकप्रिय गीत
"दुनिया बनाने वाले" मुकेश शैलेन्द्र 5:03 लोकप्रिय गीत
"चलत मुसाफिर" मन्ना डे शैलेन्द्र 3:04 लोकप्रिय गीत
"पान खाए सैयां हमारो" आशा भोसले शैलेन्द्र 4:08 लोकप्रिय गीत
"हाय ग़ज़ब कहीं तारा टूटा" आशा भोसले शैलेन्द्र 4:13
"मारे गए गुलफाम" लता मंगेशकर हसरत जयपुरी 4:00
"आ आ आ भी जा" लता मंगेशकर शैलेन्द्र 5:03

रोचक तथ्य[संपादित करें]

  • हिंदी 'स्पर्ष 2' पाठ्यपुस्तक में यह फिल्म 'तीसरी कसम का शिल्पकार शैलेन्द्र' नामक पाठ है।

नामांकन और पुरस्कार[संपादित करें]

  • 1966 राष्ट्रपति स्वर्ण पदक - सर्वश्रेष्ठ फिल्म
  • 1967 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार - सर्वश्रेष्ठ फिल्म
  • 1967 मास्को अन्तर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव: ग्रां प्री - नामांकन

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • तीसरी क़सम इंटरनेट मूवी डेटाबेस पर

तीसरी कसम फ़िल्म को सैल्यूलाइड पर लिखी कविता क्यों कहा गया है?

Solution : . तीसरी कसम. फिल्म को "सैल्यूलाइड पर लिखी कविता" इसलिए कहा गया है, क्योंकि यह एक भावपूर्ण फ़िल्म थी। यह मात्र एक कहानी न होकर फिल्मी रील पर लिखी हुई एक कविता थी, जो अत्यन्त संवेदनशील और मानवीय गुणों से ओतप्रोत थी।

लेखक ने तीसरी कसम फ़िल्म की क्या विशेषता बताई है?

शैलेंद्र एक आदर्शवादी संवेदनशील और भावुक कवि थे। शैलेंद्र ने अपने जीवन में एक ही फिल्म का निर्माण किया, जिसका नाम 'तीसरी कसम' था। यह एक संवेदनात्मक और भावनापूर्ण फिल्म थी। शांत नदी का प्रवाह और समुद्र की गहराई उनके निजी जीवन की विशेषता थी और यही विशेषता उनकी फिल्म में भी दिखाई देती है।

2 तीसरी कसम फ़िल्म को खरीददार क्यों नहीं मिल रहे थे?

'तीसरी कसम' फ़िल्म को खरीददार नहीं मिल सके क्योंकि फ़िल्मकारों को इस फ़िल्म से लाभ मिलने की उम्मीद बहुत कम थी। अतः उसे खरीदकर वह नुकसान नहीं उठाना चाहते थे

3 लेखक ने ऐसा क्यों लिखा है कि तीसरी कसम ने साहित्य रचना के साथ शत प्रतिशत न्याय किया?

तीसरी कसम. ने साहित्य रचना के साथ शत प्रतिशत न्याय किया है। क्योंकि यह फिल्म उन फिल्मों में से है जो साहित्य के विषय के साथ-साथ जनता की रुचि पर भी खरी उतरती हैं। शैलेंद्र ने राजकपूर जैसे स्टार को हीरामन बनाकर जनता के सामने प्रस्तुत किया जिसने अपने पात्र के साथ अभिनय ईमानदारी के साथ किया