शिशु का नाम तारकेश्वर नाथ से भोलानाथ कैसे पड़ा स्पष्ट कीजिए? - shishu ka naam taarakeshvar naath se bholaanaath kaise pada spasht keejie?

 माँता का आँचल पाठ का सारांश, माँता का आँचल का सारांश, माँता का आँचल पाठ का सार, माँता का आँचल का सार

संकलित अंश में ग्रामीण अंचल और उसके चरित्रों का एक अनोखा चित्र है। बालकों के खेल, कुतूहल, माँ की ममता, पिता का दुलार, लोकगीत आदि अनेक प्रसंग इसमें शामिल हैं। शहर की चकाचौंध से दूर गाँव की सहजता को रचनाकार ने आत्मीयता से प्रस्तुत किया है। यहाँ बाल मनोभावों की अभिव्यक्ति करते-करते लेखक ने तत्कालीन समाज के पारिवारिक परिवेश का चित्रण भी किया है।

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लेखक एक उदाहरण देते हुए कहता है कि जहाँ बच्चे होते हैं वहाँ चारों तरफ खुशहाली और जहाँ बूढ़े होते हैं वहाँ खर्चों  की बात होती है अर्थात् लड़के खुशी फ़ैलाने वाले होते हैं। लेखक कहता है कि रामायण का पाठ करते समय जब वे उसे दर्पण में अपना मुख निहारते देख हँसते तो उसे बड़ी शर्म आती थी। पिता पाठ कर हजार बार राम नाम लिख पर्ची को रखते और फिर पाँच सौ बार राम नाम लिखे छोटे-2 कागजों को आटे की गोलियाँ में लपेटकर मछलियों को खिलाते थे। लेखक तब भी पिता के कंधो पर सवार रहता था। आते वक्त पिता उसे पेड़ की डाल पर बिठा कर झूला-झुलाते थे।

लेखक बताता है कि बाबूजी उससे कुश्ती करते तथा उसे खुश करने के लिए हार जाते। जीत्त करके वह उनकी दाढ़ी मूँछ उखाड़ता तो हँसते हुए हाथों को चूम कर खट्टी-मिट्टी चुम्मी लेते समय स्वयं दाढ़ी गड़ा देते। फिर वह दाढ़ी-मूंछ उखाड़ता और पिता झूठी-मूठी रोते और खूब हँसाते। अर्थात लेखक के पिता उसे हमेशा खुश देखना चाहते थे।

बच्चा पिता के साथ खाना खाने बैठ जाता। पिता अपने ही हाथ से उन्हें दही-भात खिलाते। पेट भर जाने पर भी माँ और खिलाने की जिद करती और कहती कि बच्चे को थोड़ा बड़ा कौर खिलाना चाहिए। वे एक कहावत कहते हुए बोलती कि खाना तो एक माँ ही पेट भर के खिला सकती है और खिलाना शुरू कर देतीं। वह पशु-पक्षियों के नाम की कौर उसे बहलाकर फटाफट खिला देती। फिर खाना खाते ही पिता उसे खेलने भेज देते। लेखक काठ का घोड़ा लेकर नग्न ही बाहर भाग जाता।

लेखक कहता है जब माँ उसे पकड़ कर सिर में तेल की मालिश करती तो वह बहुत छटपटाता। परन्तु माँ पर पिता के बिगड़ने पर भी माँ नहीं मानती, चोटी गूंथ कर रंगीन कपड़े पहनाकर ही छोड़ती और वह पिता की गोद में सिसकता हुआ बाहर जाता। बाहर खेलते साथ के ब को देखते ही गोद से उतरकर खेलने लग जाता।

चबूतरे के कोने को नाटकघर और चौकी को रगमंच बनाकर वे कभी दुकान बनाते तो कभी मटकी के टुकड़ों के लड्डू, पैसे और बताशों के खोमचे बनाते। कई बार पिता जी उनसे गोरखपुरिए पैसे (बटखरे और जस्ते के छोटे-2 टुकड़े) खरीद लेते थे। अर्थात बालसुलभ स्वभाव के कारण वह बच्चों में खेलने लग जाता था। मिठाई की दुकान बढ़ाकर ये घरोंदा बनाते जो धूल और तिनकों से बनाया जाता था। छोटी-मोटी, टूटी-फूटी चीजों के बर्तन आदि गृह सामग्री बनाते और आचमनी कलछी बनाते थे। फिर वे ज्योनार बनाते तथा स्वयं ही जीमने बैठ जाते। लेखक के पिता जब धीरे से पाँत में आ बैठते तो सब हँसते हुए भाग जाते। वे पूछते की भोज कब होगा और हंस-हंसकर लोट-पोट हो जाते।

आँधी आने के तुरंत बाद वे चुन-चुनकर मीठे गोपी आम चूसते थे। एक दिन आँधी आने के बाद तुरंत मूसलाधार वर्षा हुई। बच्चे वर्षा भगाने के मंत्र बोलने लगे पर वर्षा कम न हुई। सब पेड़ों से सटे बैठे थे। बिच्छू नजर आते ही सब दौड़ पड़े। रास्ते में मूसन नामक वृद्ध मिला। बैजू ने कुछ गाकर उसे चिढ़ाया और सबने सुर में सुर मिला दिया। मूसन तिवारी ने उन्हें बुरी तरह से खदेड़ा और बस भाग पड़े। स्वयं के बचपन के तमाशे बताते हुए कहता है कि कभी कभी कनस्तर का बाजा, अमेले की शहनाई, टूटी चूहदानी की पालकी बनाकर बाराती बन जाते। समधी बकरे पर चढ़ जाता। बारात चबूतरे के एक कोने से दूसरे पर जाकर रुकती, सजे हुए मंडप तक जाती फिर लौट आती। पिता ज्यों ही मूह देखने के लिए घुंघटा उठाते सारे भाग जाते। फिर खेती की जाती। चबूतरे पर घिरनी गाड़ कर, गली कुआँ बनाकर, पतली सी रस्सी में चुक्कड़ बाँध कर दो बच्चे बैल बन घूमते। अगूँठे का हल बनाकर फसल उगाते और हाथों हाथ काट लेतो फसल को पैर से गोदकर मिट्टी के दीए की तराजू पर तौलकर नगदी बनाते। तभी पिता भोलानाथ से खेती का हाल-चाल पूछ बैठते और सब खेत खलिहून छोड़ भाग जाते। वह फसल मौज-मस्ती की थी

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बच्चे जब कोई झुंड ददरी के मेले जाते देखते तो खूब उधम मचाते। जब बारात की पालकी देखते तो बोलते की पालकी में हमारी मेहरी है। इस बात पर एक बूढ़े वर ने उन्हे खूब फटकारा था। उसकी सूरत अब भी याद ही लेखक कहता है कि वह जँवाई कैसे बना? पता नहीं क्योंकि वह बदसूरत था। उसका मुँह घोड़े जैसा था।

आँधी आने के तुरंत बाद वे चुन चुनकर मीठे-मीठे आम चूसते थे। एक दिन आँधी आने के बाद तुरंत मूसलाधार वर्षा हुई। बच्चे वर्षा भगाने के मंत्र बोलने लगे पर वर्षा कम न हुई। सब पेड़ों से सटे बैठे थे। बिच्छू नजर आते ही सब दौड़ पड़े। रास्ते में मूसन नामक वृद्ध मिला। बैजू ने कुछ गाकर उसे चिढ़ाया और सबने सुर में सुर मिला दिया। मूसन तिवारी ने उन्हें बुरी तरह से खदेड़ा और बस भाग पड़े।

तिवारी सीधे पाठशाला गया और चार लड़के बैजू को पकड़ने आए। बैजू तो भाग गया बाकि सारे पकड़े गए। गुरु जी ने सबकी खूब धुनाई की। खबर सुनते ही पिताजी दौड़ आए खूब लाड़ करने पर भी गोद में बैठा उनका कंधा गीला कर रहा था। पिता जी ने गुरुजी से कहा-सुनी की और घर चल पड़ा रास्ते में बच्चों का झुण्ड देख उनका नाचना-गाना सुन, रहा न गया और गोद से उतर उनके साथ चल पड़ा फिर सब मकई के खेत में दौड़ पड़े। सब चिड़िया को पकड़ने को भाग रहे थे और वह चिड़ियों को खेत खाने को उकसा रहा था। दूर खड़े कुछ व्यक्ति पिताजी से बोले की लड़के और बंदर पराई पीर नहीं समझते और हसने लगा।

लेखक अगली घटना बताते हुए कहता है कि एक टीले पर जाकर चूहों के बिलों में पानी डाल रहे थे तो गणेश जी की सवारी की रक्षा करने के लिए शिव जी का साँप निकल आया। सब एक तरफ से दौड़ पड़े। गिरते-पड़ते लहूलुहान होते एक सुर में रोते सारे घरों में घुस गए। पिता जी हुक्का पीते हुए बोले पर अनसुना कर माँ के पास दौड़ पड़ा। माँ चावल साफ करना छोड़ उसे डरा देख रो पड़ी। वह गोद में बुरी तरह चिपका हुआ साँ-साँ कर रहा था। जल्दी से मुख चूमते हुए घावों पर हल्दी लगाई। पिता दौड़े आए और जल्दी-सी माँ की गोद से उसे लेने लगे। परन्तु पूरे दिन जिसके पास सिर्फ दूध पीने आता था अब प्रेम, सुरक्षा और शान्ति की छाया न छोड़ी अर्थात डर के मारे माँ की गोद से चिपका रहा।

माता का आँचल का प्रश्न उत्तर,  माता का आँचल पाठ का प्रश्न उत्तर  

1.प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है?

उत्तर- पाठ से पता चलता है कि बच्चे का माता से सिर्फ दूध पीने का नाता था उसे उसका पिता ही नहलाता, खाना खिलाता और साथ खेलता था। वह सोता भी पिता के साथ ही था परन्तु साँप से डर कर वह पिता के पास नहीं बल्कि माँ की शरण में चला जाता है। वास्तविक बात यह है कि बच्चा माँ के बिना अधूरा होता है। सारी दुनिया की खुशी एक तरफ और माँ की गोद एक तरफ होती है। बच्चा जो सुरक्षा अपनी माँ की ममता भरी गोद में महसूस करता है और कहीं महसूस नहीं करता। यही वजह थी कि विपदा के समय वह माँ की शरण में चला गया।

2.आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?

उत्तर- लेखक की माँ बच्चे के छटपटाने पर भी तेल डालकर, उसकी मालिश करके चोटी गूंथ देती थी फिर नजर का टीका लगा कर उसके पिता की गोद में दे देती। वह सिसकता हुआ गोद में बाहर जाता था। परन्तु अपने साथ के बच्चों को खेलते देखता तो बालसुलभ चंचल मन खेलने का आतुर हो जाता और वह खेलने लग जाता और सिसकना भूल जाता था।

3.आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।

 छात्र अपने बचपन से जुड़ी किसी भी तुकबंदी के बारे में स्वयं लिखें

4.भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर- भोलानाथ और उसके साथियों के खेल - काम के खेल में- मिठाई की दुकान पर वाली (मिट्टी) के लडडू, गीली मिट्टी की जलेबी, पत्तों की पूरी और कचौरियां, फूटे घड़े के टुकड़े के बताशे, इत्यादि।

बारात का खेल- कनस्तर का तम्बूरा, आम के छोटे पौधे को घिस कर बनाई गई शहनाई, टूटी चूहेदानी की पालकी, धूल की ज्योनार, केलों और आम के पत्तों का मण्डप, सवारी के लिए बकरा; इत्यादि।

आज के समय के हमारे खेल- क्रिकेट-बैट, रैकेट और चिड़िया, फुटबॉल, गेंद और विकेट बैडमिंटन- 

5.पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हो?

उत्तर-

(1) जब पिताजी रामायण का पाठ करते हैं तो लेखक दर्पण में अपना मुख देखता है और पिता के हँसने पर लजा जाता है।

(2) पिता बच्चे के साथ कुश्ती खेलते हैं और स्वयं हार कर चित्त हो जाते हैं। बच्चा छाती पर बैठकर मुँछ और दाढ़ी उखाड़ता है तो वे उसके छोटे-छोटे हाथ चूम लेते हैं और खट्टा-मीठा अपनी दाढ़ी चुभा देते हैं।

(3) बच्चा पिता की आवाज को सुनकर अनसुना कर देता है और माँ की गोद में चिपक जाता है।

6. इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं।

उत्तर  1930 में ग्रामीण संस्कृति सीधी-सादी और अभावग्रस्त थी। चोट वगैरा का इलाज भी हल्दी से कर  देते थे विद्यालय में अध्यापक का रोब था।

निम्नलिखित परिवर्तन दिखाई देते हैं--

(1) खेल के नए-नए उपकरण व सामान हो गए हैं।

(2) बच्चों के पालन-पोषण में फर्क हो गया है।

(3) धार्मिक विचार बदल गए हैं।

(4) अब बरामदे में हुक्के नहीं गुड़गुड़ाते हैं।

7. पाठ पढते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।

 छात्र अपने अनुभव के आधार पर स्वयं करें

8. यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर-माता-पिता हर वक्त बच्चों की भलाई और पालन-पोषण की कोशिश करते रहते हैं। माँ बच्चों को दूध पिलाती है और खाना खिलाती है। वे बच्चों के साथ बच्चे बनकर खेलते हैं। पिता बच्चे को अपने पास सुलाता है। सुबह नहा कर पूजा में बैठाता है, घुमाकर लाता है, झूला झुलाता है और उसे खूब खिलाता हँसाता है। माँ उसे तेल लगाकर चोटी गूँथती है और नजर का टीका लगाती है। उसे सुन्दर कपड़े पहनाती है। उसे रोते ही अपने आँचल में छुपा लेती है। उसकी चोटों पर हल्दी लगाती है और रोने लग जाती है।

9. माता का अँचल शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाइए।

उत्तर-यह शीर्षक एकदम सही है क्योंकि बच्चे माँ के आँचल में अपने आपको सुरक्षित महसूस करते हैं तथा पाठ की अंतिम घटना में वह प्यार की मूर्ति (बच्चा) पिता को भी अनसुना कर माँ के ऑचल में रोता हुआ छुप जाता है। मेरे हिसाब से इस पाठ का शीर्षक मेरा बचपन होना चाहिए था क्योंकि इस पाठ में सारी घटनाएं लेखक के बचपन की है|

10. बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?

उत्तर-

(1) माता और पिता के साथ में रहकर।

(2) माँ की गोद और पिता की गोद. कंधे या पीठ पर बैठकर  होकर।

(3) अपने खिलौने दिखाकर।

(4) चीजें खाने के लिए माँग कर।

(5) माता-पिता कहना मानकर।

(6) माता-पिता के  साथ खेलकर।

(7) अच्छा बच्चा बनकर

1. इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?

छात्र स्वयं करें

12. फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आंचलिक रचनाओं को पढ़िए।

 छात्र स्वय

माता का अंचल का अन्य प्रश्न, माता का अंचल पाठ का अन्य प्रश्न उत्तार 

प्रश्न- माता का आंचल पाठ का उद्देश्य क्या है?

उत्तर- माता का आंचल पाठ का उद्देश्य बाल मनोभावों की अभिव्यक्ति के साथ-साथ तत्कालीन समाज के पारिवारिक परिवेश का चित्रण करना है।

प्रश्न- माता का आंचल पाठ का संदेश क्या है?

उत्तर- माता का आंचल पाठ का संदेश यह है कि हमें अपने माता-पिता का सदैव सम्मान करना चाहिए उन्हें कभी किसी तरह का कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए।

प्रश्न- माता का आंचल पाठ के लेखक कौन हैं?

उत्तर- माता का आंचल के लेखक शिवपूजन सहाय हैं।

प्रश्न- माता का आंचल का मुख्य पात्र कौन है?

उत्तरमाता का आंचल का मुख्य पात्र भोलानाथ है।

प्रश्न- माता का आँचल पाठ में भोलानाथ का वास्तविक नाम क्या है?

उत्तर- भोलानाथ का वास्तविक नाम तारकेश्वर नाथ है। तारकेश्वर नाथ को पिताजी बड़े प्यार से भोलानाथ कहकर पुकारा करते थे।

प्रश्न भोला नाथ की मां उसे किस तरह कन्हैया बना देती थी?

उत्तर- भोलानाथ के लाख मना करने पर भी भोलानाथ की माँ कड़वा तेल से उसके सिर को सराबोर कर देती उसकी नाभि और लीलार पर काजल की बिंदी लगा देती बालों में फूलदार चोटी बांधती और रंगीन कुर्ता-टोपी पहनाकर कन्हैया बना देती थी।

प्रश्न- माता का आंचल पाठ में भोलानाथ के पिता की दिनचर्या का वर्णन करिए?

उत्तर- माता का आंचल पाठ में वर्णित भोलानाथ के पिता की दिनचर्या के बारे में यह पता चलता है कि वह सुबह जल्दी उठते और स्नान करके पूजा-पाठ पर बैठ जाते थे वह प्रायः बालक भोलानाथ को भी अपने साथ पूजा पर बैठा लेते थे । वह प्रतिदिन रामायण का पाठ करते थे इस तरह से घर का माहौल पूरी तरह आध्यात्मिक बना हुआ था।

प्रश्न- भोलानाथ और उसके साथी खेल-खेल में फसल कैसे उगाया करते थे?

उत्तर- फसल उगाने के लिए भोलानाथ और उसके साथी चबूतरे के छोर पर घिरनी गाड़ कर बाल्टी को कुआं बना लेते थे। मुँज की पतली रस्सी से चुक्कड़ बांधकर कुएं में लटका दिया जाता था। दो लड़के बैलों की भांति मोट खींचने लगते चबूतरा खेत, कंकड़ बीज बनता और वह खेती करके इस तरह फसल पैदा करते थे।

प्रश्न भोलानाथ और उसके साथी खेल ही खेल में दावत की योजना किस तरह बना लेते थे?

उत्तर- दावत की योजना बनाने के लिए घड़े के मुंह का चूल्हा बनाया जाता दिए की कड़ाही और वह पानी को घी, धूल को आटा, बालू को चीनी बनाकर भोजन बनाते तथा सभी भोजन करने के लिए एक पंगत में या एक पंक्ति में बैठ जाते थे। इस तरह वे लोग दावत को संपन्न करते थे।

प्रश्न- माता का आंचल पाठ में वर्णित समय में गांव की स्थिति और वर्तमान समय में गांव की स्थिति में आए परिवर्तन को स्पष्ट कीजिए?

उत्तर- पहले के गांव के समय से वर्तमान गांव के समय में बहुत परिवर्तन आया है जैसे कि पहले गांव में परिवहन, पानी, बिजली इत्यादि नाम मात्र की सुविधाएं थी। लोग अपनी आजीविका के लिए कृषि साधन पर निर्भर थे। परंतु आज के गांव में घर-घर टेलीविजन, बिजली, पानी व परिवहन इत्यादि सुविधाएं उपलब्ध हो गई है।

माता का आंचल के शब्दार्थ, माता का आंचल पाठ के शब्दार्थ

मृदंग शब्द का क्या अर्थ है मृदंग शब्द का अर्थ है एक तरह का वाद्य यंत्र
तड़के शब्द का क्या अर्थ है तड़के शब्द का अर्थ है प्रभात या सवेरा
लिलार शब्द का क्या अर्थ है लिलार शब्द का अर्थ है ललाट
त्रिपुंड शब्द का क्या अर्थ है त्रिपुंड शब्द का अर्थ है एक प्रकार का तिलक जिसमें ललाट पर तीन आड़ी या अर्धचंद्राकार रेखाएं बनाई जाती हैं।
उतान शब्द का क्या अर्थ है उतान शब्द का अर्थ है पीठ के बल लेटना
सानकर शब्द का क्या अर्थ है सानकर शब्द का अर्थ है मिलाना
अफर शब्द का क्या अर्थ हैअफर शब्द का अर्थ है भरपेट से अधिक खा लेना
ठौर शब्द का क्या अर्थ है ठौर शब्द का अर्थ है स्थान या अवसर
महतारी शब्द का क्या अर्थ है महतारी शब्द का अर्थ है माता
बोथकर शब्द का क्या अर्थ है बोथकर शब्द का अर्थ है सराबोर कर देना
चँदोआ शब्द का क्या अर्थ है चँदोआ शब्द का अर्थ है छोटा सामियाना
ज्योनार शब्द का क्या अर्थ है ज्योनार शब्द का अर्थ है भोज या दावत
जीमने शब्द का क्या अर्थ है जीमने शब्द का अर्थ है भोजन करना
अमोले शब्द का क्या अर्थ है अमोले शब्द का अर्थ है आम का उगता हुआ पौधा
ओहार शब्द का क्या अर्थ है ओहार शब्द का अर्थ है पर्दे के लिए डाला हुआ कपड़ा
कसोरे शब्द का क्या अर्थ है कसोरे शब्द का अर्थ है मिट्टी का बना छीछला कटोरा
रहरी शब्द का क्या अर्थ है रहरी शब्द का अर्थ है अरहर 

अँठई शब्द का क्या अर्थ है अँठई शब्द का अर्थ है कुत्ते के शरीर में चिपके रहने वाले छोटे कीड़े या किलनी 

चिरौरी शब्द का क्या अर्थ है चिरौरी शब्द का अर्थ है दीनता पूर्वक की जाने वाली प्रार्थना या विनती
भभूत शब्द का क्या अर्थ है भभूत शब्द का अर्थ है राख 

दिक करना मुहावरे का क्या अर्थ है दिक करना मुहावरे का अर्थ है परेशान करना
मेहरी शब्द का क्या अर्थ है मेहरी शब्द का अर्थ है घरवाली
ढीठ शब्द का क्या अर्थ है ढ़ीठ शब्द का अर्थ है निडर
चिरई शब्द का क्या अर्थ है चिरई शब्द का अर्थ है चिड़िया
ओसारा शब्द का क्या अर्थ है ओसारा शब्द का अर्थ है बरामदा
अधीर शब्द का क्या अर्थ है अधीर शब्द का अर्थ है बेचैन
अमनिया शब्द का अर्थ क्या है अमनिया शब्द का अर्थ है साफ

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शिशु तारकेश्वर नाथ का नाम भोलानाथ कैसे पड़ा?

उत्तर : शिशु का मूल नाम तारकेश्वर नाथ था। तारकेश्वर के पिता स्वयं भोलेनाथ अर्थात् शिव के भक्त थे। अपने समीप बैठा कर शिशु के माथे पर भभूत लगाकर और त्रिपुण्डाकार में तिलक लगाकर, लम्बी जटाओं के साथ शिशु से कहने लगते कि बन गया भोलानाथ। फिर तारकेश्वर नाथ न कहकर धीरे-धीरे उसे भोलानाथ कहकर पुकारने लगे और फिर हो गया भोलानाथ

पिताजी तारकेश्वरनाथ को भोलानाथ कहकर क्यों पुकारते थे?

सिर में लंबी-लंबी जटाएँ थीं । भभूत रमाने से हम खासे 'बम - भोला' बन जाते थेपिता जी हमें बड़े प्यार से 'भोलानाथ' कहकर पुकारा करते। पर असल में हमारा नाम था 'तारकेश्वरनाथ'।

इस पाठ में बालक का वास्तविक नाम क्या था उसका नाम भोलानाथ क्यों पड़ा?

'माता का आँचल' पाठ में भोलेनाथ का वास्तविक नाम तारकेश्वर नाथ था, लेकिन उनको सब भोलेनाथ कहकर पुकारते थे। उनका भोलेनाथ नाम इसलिए पड़ा क्योंकि भोलेनाथ के पिता उन्हें बचपन में सुबह नहला-धुला कर अपने साथ पूजा-पाठ करते समय बैठा लेते थे।

माता का आंचल पाठ के आधार पर लिखिए कि शिशु का नाम भोलेनाथ कैसे पड़ा?

भोलानाथ का अपने पिता से अपार स्नेह था पर जब उस पर विपदा आई तो उसे जो शांति व प्रेम की छाया अपनी माँ की गोद में जाकर मिली वह शायद उसे पिता से प्राप्त नहीं हो पाती। माँ के आँचल में बच्चा स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। लेखक ने इसलिए पिता पुत्र के प्रेम को दर्शाते हुए भी इस कहानी का नाम माँ का आँचल रखा है।