संस्कृत व्याकरण का पिता कौन है? - sanskrt vyaakaran ka pita kaun hai?

पाणिनि :- PANINI

पाणिनि संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण माने जाते हैं।इनके द्वारा संस्कृत व्याकरण का सबसे बडा व प्रसिद्ध ग्रंथ अष्टाध्यायी लिखा गया है । इनका जन्म 500 ईसा पूर्व शालातुर ग्राम ( वर्तमान  पाकिस्तान के लाहौर) में हुआ था। इनके पिता का नाम पाणिन तथा माता का नाम दाक्षी था। इनको पाणिनि, दाक्षिपुत्र व शालंकी आदि नामों से जाना जाता है।

पाणिनि की शिक्षा तक्षशिला विश्वविद्यालय में हुई थी तथा इनके गुरु का नाम उपवर्ष बताया जाता है। कुछ विद्वान इनकी शिक्षा नालंदा विश्वविद्यालय से मानते हैं, किंतु इनके  जन्म वर्ष व स्थान को देखते हुए यह सही नहीं लगता है।
मृत्यु– पंचतंत्र के मित्र संप्राप्ति प्रकरण सें  “सिंहो व्याकरणस्य कर्तुरहरत् प्राणान् प्रियान् पाणिनेः” वचन प्राप्त होता है। इस श्लोक के आधार पर यह कल्पना की जाती है कि उनकी मृत्यु सिंह के द्वारा हुई थी। परम्परा के आधार पर यह भी माना जाता है कि उनकी मृत्यु त्रयोदशी को हुई थी।
पाणिनि की प्रतिभा अनूठी थी। वे संस्कृतभाषा के अद्वितीय विद्वान् थे। इनके द्वारा उस समय संस्कृत भाषा का सूक्ष्म अध्ययन किया गया इसके आधार पर उन्होंने जिस व्याकरण शास्त्र को लिखा वह न केवल तात्कालिक संस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ था अपितु उसने आगामी संस्कृत रचनाओं को भी प्रभावित किया। पाणिनि का वैदिक तथा लौकिक संस्कृतभाषा पर अनुपम अधिकार था।

पाणिनि की प्रमुख रचनाएं – इनके द्वारा निम्नलिखित रचनाएं लिखी गई :-

  • अष्टाध्यायी :- यह एक व्याकरण ग्रंथ है जो आठ अध्यायों में लिखा हुआ है।
  • धातुपाठ :- इसमें लगभग 2000 धातुवें हैं।
  • गणपाठ :- पाणिनि के द्वारा एक दूसरे से मेल खाने वाले शब्दों का एक वर्ग बनाया गया जिसे गण कहा गया गण पाठ में 261 गण है।
  • उणादिसूत्र :- इनके पाणिनिकृत होने में सन्देह हैं।
  • लिंगानुशासन :-इसमें संस्कृत के शब्दों के लिंग का ज्ञान कराया गया हैं।
  • जंबवती विजय :- यह एक महाकाव्य हैं।
  • पाताल विजय :- यह एक महाकाव्य हैं।

अष्टाध्यायी :-

यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा का अनुपम रत्न है। विश्व की किसी भाषा में इसके जैसा व्याकरण नहीं बना। इसको अष्टाध्यायी, पाणिनीयाष्टक  व शब्दानुशासन नाम से जाना जाता है। इसमें आठ अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय का विभाजन चार-चार पादों में किया गया है अत: कुल 32 पाद है। तथा समस्त ग्रन्थ में 14 माहेश्वर सूत्र व 3978 सूत्र है। पाणिनि ने इस  ग्रन्थ में संस्कृत जैसी विस्तृत भाषा का पूर्णतया विश्लेषण करने का प्रयास किया है। उनकी विवेचना वैज्ञानिक है, शैली संक्षिप्त, सांकेतिक तथा संयत है। अष्टाध्यायी केवल व्याकरण ग्रंथ नहीं है इसमें तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्रण मिलता है उस समय के भूगोल सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक जीवन व शिक्षा आदि का प्रसंग यथा स्थान अंकित है।

संस्कृत व्याकरण के त्रिमुनि कौन है ?

संस्कृत व्याकरण कि वह तीन विद्वान जिसे त्रिमुनि नाम से जाना जाता है वह है पाणिनि, कात्यायन और पतंजलि अर्थात् तीन महान विद्वानों पाणिनि, कात्यायन और पतंजलि को संस्कृत व्याकरण के त्रीमुनि कहा जाता है। इन तीनों का संस्कृत व्याकरण मैं बहुत बड़ा योगदान है। पाणिनि ने अष्टाध्यायी, कात्यायन ने वार्तिक तथा पतंजलि ने महाभाष्य की रचना की हैं।

  • पाणिनि – अष्टाध्यायी
  • कात्यायन – वार्तिक
  • पतंजलि – महाभाष्य

पाणिनि :-

पाणिनि संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण माने जाते हैं। इनका जन्म 500 ईसा पूर्व शालातुर ग्राम ( वर्तमान पाकिस्तान के लाहौर) में हुआ था। इनके पिता का नाम पाणिन तथा माता का नाम दाक्षी था। इनको पाणिनि, दाक्षिपुत्र व शालंकी आदि नामों से जाना जाता है। पाणिनि की शिक्षा तक्षशिला विश्वविद्यालय में हुई थी तथा इनके गुरु का नाम उपवर्ष बताया जाता है। कुछ विद्वान इनकी शिक्षा नालंदा विश्वविद्यालय से मानते हैं, किंतु इनके जन्म वर्ष व स्थान को देखते हुए यह सही नहीं लगता है।

मृत्यु– पंचतंत्र के मित्र संप्राप्ति प्रकरण सें “सिंहो व्याकरणस्य कर्तुरहरत् प्राणान् प्रियान् पाणिनेः” वचन प्राप्त होता है। इस श्लोक के आधार पर यह कल्पना की जाती है कि उनकी मृत्यु सिंह के द्वारा हुई थी। परम्परा के आधार पर यह भी माना जाता है कि उनकी मृत्यु त्रयोदशी को हुई थी।
पाणिनि की प्रतिभा अनूठी थी। वे संस्कृतभाषा के अद्वितीय विद्वान् थे। वैदिक तथा लौकिक संस्कृतभाषा पर उनका अनुपम अधिकार था।

पाणिनि की प्रमुख रचनाएं- अष्टाध्यायी,धातुपाठ, गणपाठ उणादिसूत्र, लिंगानुशासन, जंबवती विजय और पाताल विजय

अष्टाध्यायी के लेखक कौन है …

अष्टाध्यायी में कितने सूत्र है …

यह ग्रन्थ संस्कृत भाषा का अनुपम रत्न है। विश्व की किसी भाषा में इसके जैसा व्याकरण नहीं बना।इसको अष्टाध्यायी, पाणिनीयाष्टक व शब्दानुशासन नाम से जाना जाता है। इसमें आठ अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय का विभाजन चार-चार पादों में किया गया है अत: कुल 32 पाद है। तथा समस्त ग्रन्थ में 14 माहेश्वर सूत्र व 3978 सूत्र है। पाणिनि ने इस ग्रन्थ में संस्कृत जैसी विस्तृत भाषा का पूर्णतया विश्लेषण करने का प्रयास किया है। उनकी विवेचना वैज्ञानिक है, शैली संक्षिप्त, सांकेतिक तथा संयत है।

कात्यायन :-

कत्यायन व्याकरण शास्त्र में वार्तिककार के नाम से प्रसिद्घ है। इनको वररुचि के नाम से भी जाना जाता है। इनका समय 400 ईसा पूर्व में माना जाता है। वे दक्षिण भारत के रहने वाले थे। कात्यायन का भाषा विषयक ज्ञान अगाध था। इनके द्वारा अष्टाध्यायी के लगभग 1500 सूत्रों पर 4000 वार्तिक लिखे गये हैं।
कात्यायन मुनि के द्वारा स्वर्गारोहण नामक काव्य भी लिखा गया था।

पतंजलि :-

त्रिमुनि में पतंजलि ही तीसरे मुनि है तथा सर्वाधिक प्रमाणिक वैयाकरण माने जाते हैं। पतंजलि का समय 200 ई. पू. माना जाता है। पतंजलि ने महाभाष्य ग्रंथ की रचना की हैं इस कारण इनको महाभाष्यकार के नाम से जाना जाता है।पतंजलि को शेषनाग का अवतार माना जाता है इनके द्वारा लिखे गए ग्रंथ में इनके दो नाम मिलते हैं- गोनर्दीय तथा गोणिका पुत्र |

पतंजलि  की उत्पत्ति के विषय में एक कथा प्रचलित है कि महासती गोणिका ने पुत्र की प्राप्ति के लिए भगवान् शंकर की आराधाना की थी। जब वह नदी के जल में खड़ी होकर सूर्य को अर्घ्य दे रही थी उस समय उनकी अञ्जलि में छोटा सा सर्प का बच्चा प्रकट हुआ। उसको देखकर गोणिका बोली- “को भवान्” शेष बोला- “सप्पाऽहम्।” गोणिका ने कहा- ‘रेफः क्व गतः?’ शेष ने कहा- ‘त्वयाऽपहृतः।’ इसके बाद उस शेष को बालक के रूप में गोणिका ने पाला। वही बालक शेषावतार माना गया।

महर्षि पतंजलि द्वारा रचित ग्रंथ पातञ्जल योग सूत्र व महाभाष्य हैं।

महाभाष्य : –  यह ग्रंथ महर्षि पतंजलि के द्वारा लिखा गया हैं। यह ग्रंथ 85 आह्निक में बंटा हुआ हैं। एक दिन में लिखे गए भाग को आह्निक कहा गया हैं। अत: महाभाष्य को 85 दिनों में निर्मित ग्रंथ माना जाता है।

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संस्कृत व्याकरण का जनक कौन है?

पाणिनि को संस्कृत के जनक कहते है, जिन्होंने संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में अपना अतुलनीय योगदान दिया है. इनके द्वारा लिखे गए व्याकरण का नाम “अष्टाध्यायी” है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं. पाणिनि कि इसी अतुलनीय योगदान के कारण उन्हें “संस्कृत के पिता” के रूप में जानते हैं.

संस्कृत के प्रथम व्याकरण कौन थे?

संस्कृत व्याकरण का जनक महर्षि पाणिनि को माना जाता है । यह संस्कृत व्याकरण का सबसे प्रामाणिक ग्रंथ है । महर्षि पाणिनि ने अष्टाध्यायी की रचना की । मुनि कात्यायन ने वार्तिक ग्रंथ की रचना की ।

संस्कृत भाषा का जन्म कब हुआ?

3500 ई. पूर्व से 500 ई. पूर्व का समय तो वैदिक संस्कृत काल के लिए और बाद का लौकिक संस्कृत काल के लिए निर्धारित करते हैं।

हिंदी व्याकरण का जनक कौन है?

हिन्दी व्याकरण के जनक श्री दामोदर पंडित जी को कहा जाता है। इन्होंने १२ वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में एक ग्रंथ की रचना की थी जिसे ” उक्ति-व्यक्ति-प्रकरण ” के नाम से जाना जाता है । हिन्दी भाषा के पाणिनि ” आचार्य किशोरीदास वाजपेयी ” को कहा जाता है।