सिर पर चोट लगने से कौन सी धारा लगती है? - sir par chot lagane se kaun see dhaara lagatee hai?

सिर पर चोट के कारण हत्या के प्रयास का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाते हुए एक याचिका की सुनवाई करते हुए निचली अदालत द्वारा एक मामले में लगाए गए आरोपों को चुनौती दी जिसमें कुरुक्षेत्र के एक व्यक्ति को मारा गया था उसके सिर पर कुदाल लग गई, जिससे वह गंभीर रूप से घायल हो गया।

न्यायमूर्ति मनोज बजाज ने फैसले में कहा कि धारा 307 (हत्या का प्रयास) को पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रावधान के तहत अपराध करने के लिए इरादे या ज्ञान का अस्तित्व आवश्यक है।

“इरादा पूर्ण और विशिष्ट होना चाहिए और अपराधी की लापरवाही से भ्रमित नहीं किया जा सकता है। यह देखने की आवश्यकता नहीं है कि जब तक और जब तक यह आवश्यक घटक मौजूद नहीं होता है, तब तक धारा 307 आईपीसी के तहत चार्ज आउट नहीं किया जाएगा, ”आदेश पढ़ा।

अदालत ने आगे कहा कि ऐसे मामले हो सकते हैं जहां पीड़ित को कोई चोट नहीं लगी हो, लेकिन अभियुक्त द्वारा किया गया कृत्य अभी भी धारा 307 के दायरे में आता है क्योंकि अधिनियम अकेले इरादे या ज्ञान के साथ युग्मित है।

फैसले में लिखा गया है, "अदालत को खुद को संतुष्ट करना होगा कि कम से कम, प्रथम दृष्टया, इसके परिणाम के बावजूद, इस तरह के इरादे या ज्ञान के साथ और परिस्थितियों में परिस्थितियों के अनुसार किया गया।"

पीड़िता के भतीजों - मामले में जनवरी 2017 में निचली अदालत द्वारा धारा 325 के तहत आरोप लगाया गया था (पीड़िता ने अपने सिर पर कुदाल के साथ मारने के लिए स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुंचाई)। यह लड़ाई परिवार के सदस्यों के बीच भूमि विवाद के कारण हुई थी। पीड़ित ने एचसी से संपर्क किया और तर्क दिया कि धारा 307 के तहत आरोप लगाया गया है, यह कहते हुए कि चोट शरीर के एक महत्वपूर्ण हिस्से पर लगी थी और वह 18 दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहे।

हालांकि, HC ने फैसला सुनाया कि कथित चोट एक कुदाल या कस्सी के साथ हुई थी और ऐसा हथियार मौत का कारण भी बन सकता है। "इस प्रकार, शस्त्रों की प्रकृति को देखते हुए, जो गंभीर चोट पहुँचाते हैं, धारा 326 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध के लिए एक प्रथम दृष्टया मामला [स्वेच्छा से खतरनाक शस्त्रों या साधनों से दुःख पहुँचाने वाला] और प्रतिसाद दिया जाएगा। Nos.2 और धारा 325 IPC के बजाय, उक्त अपराध के लिए आरोपित होने के लायक है, ”यह आदेश को संशोधित करते हुए आदेश दिया।

अदालत का फैसला पढ़ें:-

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सिर की चोट में कौन सी धारा लगती है?

इसे सुनेंरोकेंजैसे अगर किसी के सिर में चोट है तो मामला 307 हत्या के प्रयास का बनता है। चोट इतनी गंभीर है कि जान जाने का खतरा है तो धारा 308 गैरइरादतन हत्या के प्रयास का मामला भी लगाया जा सकता है।

चोट लगने पर कौन सी ट्यूब लगानी चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंएलोवेरा में साइटोकेमिकल्स होते हैं जो दर्द को कम करता है और घाव को तेजी से भरता है। अगर आपको घर में नारियल का प्योर तेल मौजूद है तो वो भी आप चोट पर लगा सकते हैं। इसमें भी एंटी बैक्टीरियल और एंटी इंफ्लेमेट्री गुण होते हैं। नारियल का तेल लगाने से घाव पर एक पर्त बन जाती है।

चोट लगने पर कौन सी दवा लगाना चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंशहद और खाने वाले चूना का इस्तेमाल कर आप चोट और दर्द से राहत पा सकते। इन दोनों ही चीजों में ऐसे गुण पाए जाते हैं जो, चोट के कारण उत्पन्न हुए दर्द को खींच लेते है। इसके लिए आपको पीड़ा वाले स्थान पर थोड़ा से शहद में उसका पच्चीस फीसदी हिस्सा चूना मिलाकर लगाएं। शरीर के ग्रस्त अंग पर लगने के बाद यह आपको थोड़ा गर्म लगेगा।

माथे पर चोट लगने पर क्या करें?

किसी छोटी सिर की चोट का उपचार कैसे करें

  1. सूजन न आये और यदि आई है तो उसे कम करने के लिए एक बर्फ का पैक (अथवा चाय के तौलिये में ठंडे मटरों का बैग) लगाएं
  2. विश्राम करें और तनाव से दूर रहें – यदि आप थके हुये हैं तो आप अथवा आपका बच्चे को जागे रहने की आवश्यकता नहीं है

सिर के पीछे चोट लगने पर क्या करना चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंअगर आपको आपके सिर या खोपड़ी पर गंभीर चोट लगी है तो आपको तुरंत मेडिकल सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि इससे खून बहने और खून के थक्के जमने का खतरा होता है जिससे कारण मस्तिष्क की स्थायी हानि हो सकती है। सिर की चोट के कारण मौत और अक्षमता हो सकती है और चोट की गंभीरता को जानकर आप जल्दी से सहायता प्राप्त कर सकते हैं।

सर पर चोट लगने पर क्या होता है?

इसे सुनेंरोकेंसिर में चोट से दिमाग में सूजन, बेहोशी, सांस लेने में तकलीफ हो सकती है। कुछ मामलों में दिमाग की झिल्ली के बाहर और भीतर खून जम जाता है जिससे दिमाग की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। सिर की चोट में बीपी गड़बड़ होने के साथ चक्कर आने के साथ उल्टी होने की शिकायत होती है।

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‘पुलिस पर हो सकता है हत्या के प्रयास का केस’

अमित कसाना|नई दिल्ली

ओल्ड डबल स्टोरी लाजपत नगर-4 में गुरुवार को सीलिंग की कार्रवाई के दौरान हुए लाठीचार्ज में जहां छह कारोबारी घायल हो गए, वहीं इसके एक दिन बाद डीसीपी साउथ ईस्ट ने लाठीचार्ज के आदेश देने से इनकार कर दिया। उनका कहना है न तो लाठीचार्ज के आर्डर दिए गए और न ही लाठीचार्ज किया गया। पुलिस ने भीड़ को हटाने के लिए सिर्फ हलका बल प्रयोग किया था।

भास्कर ने जब इस मामले में कानून विशेषज्ञों से बात की तो उन्होंने कहा- इस पूरी कार्रवाई पर पुलिस पर कार्रवाई हो सकती है। उनका कहना है कि लाजपत नगर में निहत्थे लोगों के सिर पर लाठियां भांजने की शिकायत पर पुलिसकर्मियों पर हत्या के प्रयास (आईपीसी की धारा 307) तक में एफआईआर दर्ज हो सकती है। कार्रवाई के घेरे में आर्डर जारी करने वाले से लेकर मौके पर लाठी चलाने वाले सिपाही तक आ सकते हैं।

सिर में चोट= धारा 307 का मामला, गंभीर चोट पर बनता है गैरइरादतन हत्या का मामला

भास्कर नॉलेज
लाठीचार्ज यानी क्या?
सीलिंग के दौरान मौजूद ऑफिसर को लाठीचार्ज से पहले आला-अधिकारियों से अनुमति लेनी होती है। इसमें कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए पैर में लाठी मारने की अनुमति होती है। कमर से ऊपर और सिर पर लाठी मारने की अनुमति नहीं होती।

किया क्या
यहां पुलिस ने भीड़ पर सीधे सिर, कमर में लाठी दे मारी। लोगों के हाथ तोड़ डाले।

कहां कर सकते हैं शिकायत
घायल लोगों को संबंधित थाने, डिस्ट्रिक्ट डीसीपी को लिखित शिकायत करनी चाहिए। फिर एलजी व पुलिस आयुक्त के पास भी जा सकते हैं। अगर यहां कार्रवाई न हो तो पीड़ित को जिला अदालत में सीआरपीसी 156(3) में अर्जी दायर करने का अधिकार है। अर्जी पर कोर्ट ये तय करेगी की एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए या नहीं।

घायलों की चोट के मुताबिक लगेगी धारा
वकील अभिषेक चौधरी व मनीष भदौरिया ने बताया कि अगर पुलिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज होगी तो उसमें घायलों की एमएलसी में आई चोटों के हिसाब से ही धाराएं लगेंगी। कमर के ऊपर चोट लगने पर संगीन धाराओं में केस दर्ज होता है। जैसे अगर किसी के सिर में चोट है तो मामला 307 हत्या के प्रयास का बनता है। चोट इतनी गंभीर है कि जान जाने का खतरा है तो धारा 308 गैरइरादतन हत्या के प्रयास का मामला भी लगाया जा सकता है।

- कानून विशेषज्ञों की राय
लाठीचार्ज नहीं हुआ
हमने लाठीचार्ज नहीं किया। मैंने सिर्फ उग्र लोगों को कंट्रोल करने के लिए हल्का बल प्रयोग करने का कहा था। -चिन्मय बिश्वाल, डीसीपी, साउथ ईस्ट

पुलिस कब, कितनी बड़ी कार्रवाई सकती है
(लेकिन केवल आपात स्थिति में जब दंगा व जान-माल के नुकसान का खतरा हो)

पुलिस हल्का बल प्रयोग कर सकती है, लेकिन इसके लिए भी उसे यह जस्टिफाई करना होगा कि अगर ऐसा नहीं किया तो लोगों की जानमाल का खतरा है और तोड़फोड़ हो जाएगी।

पहले लाउड स्पीकर से चेतावनी फिर पैर में लाठी मारी जानी चाहिए।

फिर हवा में गोली चलाई जा सकती है।

हवा में गोली चलाने के बाद भी स्थिति न सुधरे तो पहले पैर व फिर कमर में नीचे गोली मारी जा सकती है, लेकिन किसी की जान न जाए।

कहां कर सकते हैं शिकायत
घायल लोगों को संबंधित थाने, डिस्ट्रिक्ट डीसीपी को लिखित शिकायत करनी चाहिए। फिर एलजी व पुलिस आयुक्त के पास भी जा सकते हैं। अगर यहां कार्रवाई न हो तो पीड़ित को जिला अदालत में सीआरपीसी 156(3) में अर्जी दायर करने का अधिकार है। अर्जी पर कोर्ट ये तय करेगी की एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए या नहीं।

घायलों की चोट के मुताबिक लगेगी धारा
वकील अभिषेक चौधरी व मनीष भदौरिया ने बताया कि अगर पुलिस के खिलाफ एफआईआर दर्ज होगी तो उसमें घायलों की एमएलसी में आई चोटों के हिसाब से ही धाराएं लगेंगी। कमर के ऊपर चोट लगने पर संगीन धाराओं में केस दर्ज होता है। जैसे अगर किसी के सिर में चोट है तो मामला 307 हत्या के प्रयास का बनता है। चोट इतनी गंभीर है कि जान जाने का खतरा है तो धारा 308 गैरइरादतन हत्या के प्रयास का मामला भी लगाया जा सकता है।

सिर की चोट पर कौन सी धारा लगती है?

जैसे अगर किसी के सिर में चोट है तो मामला 307 हत्या के प्रयास का बनता है। चोट इतनी गंभीर है कि जान जाने का खतरा है तो धारा 308 गैरइरादतन हत्या के प्रयास का मामला भी लगाया जा सकता है।

सबसे खतरनाक धारा कौन सा है?

भारतीय दंड संहिता की धारा 506 जान से मारने की धमकी देने से संबंधित है। जान से मारने की धमकी देना एक साधारण अपराध समझा जाता है लेकिन यह साधारण अपराध नहीं है।

हेड इंजरी में कौन सी धारा लगती है?

क्लोज्ड हेड इंजरी में कपाल में टूट या छेद नहीं होता। दिमागी चोट गंभीर हो सकता है और उसका शारीरिक एवं मानसिक क्रियाओं पर जीवन भर के लिए असर पड़ सकता है। इसमें चेतना खत्म होना, याददाश्त और/या व्यक्तित्व उलटना, आंशिक या पूर्ण लकवा शामिल है।

धारा 307 और 308 में क्या अंतर है?

अनजाने विवाद में जख्मी होना या यह जानते हुए भी दुर्घटना करना कि इसमें व्यक्ति की जान भी जा सकती थी, एेसे कुछ मामलों में राजधानी पुलिस ने आईपीसी धारा 279, 337, 338 (सड़क हादसे में घायल) आैर आईपीसी की 307 (प्राण घातक हमला) के स्थान पर आईपीसी की धारा 308 के तहत मामले दर्ज करना शुरू किया है।