ऋतु परिवर्तन का प्रमुख कारण कौन है? - rtu parivartan ka pramukh kaaran kaun hai?

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ऋतु परिवर्तन पृथ्वी की परिक्रमण गति के कारण होता है पृथ्वी सूर्य के चारों ओर 365 दिन में जब तो एक चक्कर पूरा करती है तो यह शेर तुम्हें बनाती है जिसमें क्रिश्चियन तहसील हेमंत और वर्षा ऋतु के कुछ प्रमुख ऋतु है तो पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक फिर क्यों सोचा कर कक्षा में चक्कर लगाती है और यह कभी कभी सूर्य से बहुत पास में होती और कभी कभी सूर्य से काफी दूर होती है तो इस वजह से सूरी का जो कभी-कभी तो थी पर कम पड़ता है और कभी बहुत ज्यादा पड़ता है तो इस हिसाब से पृथ्वी पर अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग रेट में बनती रहती है

ritu parivartan prithvi ki parikraman gati ke karan hota hai prithvi surya ke charo aur 365 din mein jab toh ek chakkar pura karti hai toh yah sher tumhe banati hai jisme Christian tehsil hemant aur varsha ritu ke kuch pramukh ritu hai toh prithvi surya ke charo aur ek phir kyon socha kar kaksha mein chakkar lagati hai aur yah kabhi kabhi surya se bahut paas mein hoti aur kabhi kabhi surya se kaafi dur hoti hai toh is wajah se suri ka jo kabhi kabhi toh thi par kam padta hai aur kabhi bahut zyada padta hai toh is hisab se prithvi par alag alag sthano par alag alag rate mein banti rehti hai

ऋतु एक वर्ष से छोटा कालखंड है जिसमें मौसम की दशाएँ एक खास प्रकार की होती हैं। यह कालखण्ड एक वर्ष को कई भागों में विभाजित करता है जिनके दौरान पृथ्वी के सूर्य की परिक्रमा के परिणामस्वरूप दिन की अवधि, तापमान, वर्षा, आर्द्रता इत्यादि मौसमी दशाएँ एक चक्रीय रूप में बदलती हैं। मौसम की दशाओं में वर्ष के दौरान इस चक्रीय बदलाव का प्रभाव पारितंत्र पर पड़ता है और इस प्रकार पारितंत्रीय ऋतुएँ निर्मित होती हैं

मौसम का अर्थ है किसी स्थान विशेष पर, किसी खास समय, वायुमंडल की स्थिति। यहाँ “स्थिति” की परिभाषा कुछ व्यापक परिप्रेक्ष्य में की जाती है। उसमें अनेक कारकों यथा हवा का ताप, दाब, उसके बहने की गति और दिशा तथा बादल, कोहरा, वर्षा, हिमपात आदि की उपस्थिति और उनकी परस्पर अंतः क्रियाएं शामिल होती हैं। ये अंतक्रियाएं ही मुख्यतः किसी स्थान के मौसम का निर्धारण करती हैं। यदि किसी स्थान पर होने वाली इन अंतःक्रियाओं के लंबे समय तक उदाहरणार्थ एक पूरे वर्ष तक, अवलोकन करके जो निष्कर्ष निकाला जाता हैं तब वह उस स्थान की “जलवायु” कहलाती है। मौसम हर दिन बल्कि दिन में कई बार बदल सकता है। पर जलवायु आसानी से नहीं बदलती। किसी स्थान की जलवायु बदलने में कई हजार ही नहीं वरन् लाखों वर्ष भी लग सकते हैं। इसीलिए हम ‘बदलते मौसम’ की बात करते हैं, ‘बदलती हुई जलवायु’ की नहीं। हम मौसम के बारे में ही समाचार-पत्रों में पढ़ते हैं, रेडियों पर सुनते हैं और टेलीविजन पर देखते हैं।

पृथ्वी के अधिकतर स्थानों पर साल चार ऋतुओं में बंटा होता है। ये हैं वसन्त , ग्रीष्म , शरद और शीत(शिशिर)

मिथक : पृथ्वी की कक्षा

ऋतु परिवर्तन का प्रमुख कारण कौन है? - rtu parivartan ka pramukh kaaran kaun hai?
पृथ्वी की सूर्य से निकटतम स्तिथि(3 जनवरी के आसपास) मे दूरी 14.71 करोड़ किमी होती है जबकी दूरस्थ स्तिथि (4 जुलाई के आसपास) मे दूरी 15.21 करोड़ किमी होती है। दोनो स्तिथि मे दूरी मे अंतर लगभग 60 लाख किमी का आता है जो इस पैमाने पर नगण्य है और इतना नही है कि वह पृथ्वी पर मौसम पर कोई प्रभाव डाल सके।

बहुत से लोग मानते है कि ग्रीष्म ऋतु मे पृथ्वी सूर्य के समीप होती है जिससे मौसम उष्ण हो जाता है। इसके विपरीत शीत ऋतु मे पृथ्वी सूर्य से दूर होती है जिससे मौसम शीतल हो जाता है। सतही तौर पर यह सच भी लगता है लेकिन यह गलत है।

यह सच है कि पृथ्वी की कक्षा पूर्ण वृत्त ना होकर दिर्घवृत्ताकार है। वर्ष के कुछ समय पृथ्वी सूर्य के समीप होती है और कुछ समय सूर्य से दूर। लेकिन जब उत्तरी गोलार्ध मे शीत ऋतु होती है पृथ्वी सूर्य के निकट होती है और सूर्य से दूर वाली स्तिथि मे उत्तरी गोलार्ध मे ग्रीष्म ऋतु होती है।

पृथ्वी की सूर्य से निकटतम स्तिथि(3 जनवरी के आसपास) मे दूरी 14.71 करोड़ किमी होती है जबकी दूरस्थ स्तिथि (4 जुलाई के आसपास) मे दूरी 15.21 करोड़ किमी होती है। दोनो स्तिथि मे दूरी मे अंतर लगभग 60 लाख किमी का आता है जो इस पैमाने पर नगण्य है और इतना नही है कि वह पृथ्वी पर मौसम पर कोई प्रभाव डाल सके।

बदलती ऋतुएं

ऋतुओं के हिसाब से मौसम बदलता रहता है। शीत(शिशिर) में वह सबसे ठण्डा होता है और ग्रीष्म में सबसे गर्म। बहुत-से पेड़-पौधे भी ऋतुओं के अनुसार बदलते रहते हैं। कुछ पेड़ों को देख कर ही तुम बता सकते हो कि इस समय कौन-सी ऋतु है।

  • वसन्त में, जैसे-जैसे मौसम गर्म होना शुरू होता है, पेड़ों पर नयी पत्तियां उगने लगती हैं।
  • गर्मियों में, इस तरह के पेड़ हरी पत्तियों से ढके होते हैं।
  • शरद ऋतु में, पेड़ों की पत्तियां लाल या भूरी पड़ कर मरने लगती है।
  • शीत(शिशिर) या सर्दियों तक सारी पत्तियां पीली पड़ कर झर जाती हैं।

पारंपरिक पश्चिमी मौसम विज्ञान से थोड़ा हट कर भारत में मौसम को छह: ऋतुओं में बांटा गया है। यह हैं: ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शीत(शिशिर), वसंत। अगर यह कुछ ज्यादा लग रहे हैं तो जरा चीन की तरफ देखो वहां तो महीनों से दोगुने मतलब 24 मौसम माने जाते हैं!

ऋतुओं का कारण क्या है?

ऋतु परिवर्तन का प्रमुख कारण कौन है? - rtu parivartan ka pramukh kaaran kaun hai?
जुन माह की स्थिति : उत्तरी गोलार्ध मे ग्रीष्म तथा दक्षिणी गोलार्ध मे शीत

मौसम का निर्माण करने वाले या उसे प्रभावित करने वाले कारक के रूप में पृथ्वी की स्थिति पूर्णतः सूर्य पर निर्भर नहीं है। इस बारे में स्वयं उसका भी महत्त्वपूर्ण योग है। सौर परिवार के एक सदस्य के रूप में उसमें भी स्वयं के ऐसे गुण मौजूद हैं जो उस पर मौसम का निर्माण करते हैं। सूर्य के चारों ओर 96.6 करोड़ किमी. की दीर्घवृत्तीय कक्षा में परिक्रमा करने के अतिरिक्त वह स्वयं भी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर, लगभग 1690 किमी. प्रतिघंटे की दर से घूमती है। पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना ही बहती हुई पवन और जलधाराओं की दिशाओं का निर्धारण करता है। ये दोनों कारक भी मौसम को प्रभावित करते हैं।

मौसम को प्रभावित करने वाला पृथ्वी का एक अन्य गुण है उसकी विशेष आकृति। वह एक ऐसी गेंद के समान है जो ध्रुवों पर थोड़ी चपटी है। इस प्रकार पृथ्वी की आकृति नासपाती के सदृश्य हो गयी है और यह भी उसके विभिन्न क्षेत्रों के तापों में अंतर के लिए उत्तरदायी है।

पृथ्वी की विशिष्ट आकृति के कारण सौर किरणें उसके हर क्षेत्र पर एक समान तीव्रता से नहीं पड़ती। उसके मध्य भाग में, भूमध्यरेखा के आस-पास के क्षेत्र में, उनकी तीव्रता सबसे अधिक होती है। जैसे-जैसे मध्य भाग से ऊपर (उत्तर) और नीचे (दक्षिण) की ओर बढ़ते हैं उनकी तीव्रता कम होती जाती है। ध्रुवों तक पहुंचते-पहुंचते वह अत्यंत क्षीण हो जाती है। साथ ही उत्तर और दक्षिण की ओर जाते समय सौर किरणों द्वारा तय की जाने वाली दूरियां भी बढ़ती जाती हैं। इन कारणों से भूमध्य रेखा के आस-पास वाले क्षेत्रों में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है। उत्तर अथवा दक्षिण की ओर जाते समय वह कम होती जाती है और ध्रुवों तक पहुंचते-पहुंचते लगभग नगण्य हो जाती है। इसलिए ध्रुवीय प्रदेश सदैव बर्फ से आच्छादित रहते हैं।

पृथ्वी की एक और विशेषता है उसकी धुरी का झुकाव। उसकी धुरी उसके परिक्रमा पथ के तल से 23½0 के कोण पर झुकी हुई है। यह झुकाव पृथ्वी पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों को भी प्रभावित करता है। इस झुकाव की वजह से ही पृथ्वी का एक गोलार्द्ध छह माह तक सूर्य की ओर झुका रहता है और अगले छह मास तक दूसरा गोलार्द्ध। यह क्रम निरंतर चलता रहता है। इसके फलस्वरूप ही ऋतुएं-वसंत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत और शीत(शिशिर)- उत्पन्न होती हैं।

पृथ्वी की धुरी के झुकाव के कारण ही उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्धों में वर्ष के एक ही समय अलग-अलग ऋतुएं होती हैं। जब उत्तरी गोलार्द्ध में भीषण गर्मी पड़ रही होती है तब दक्षिणी गोलार्द्ध में लोग ठंड से ठिठुर रहे होते हैं और जब उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दी की ऋतु आ जाती है तब दक्षिणी गोलार्द्ध में गर्मी पड़ती है।

ऋतु परिवर्तन का प्रमुख कारण कौन है? - rtu parivartan ka pramukh kaaran kaun hai?
अयनांत और विषुव

21 मार्च (बसंत विषुव) को सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत चमकता है और सम्पूर्ण विश्व में रात-दिन बराबर होते हैं। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में बसंत ऋतु होती है। इसके पश्चात् सूर्य उत्तरायण हो जाता है और 21 जून (ग्रीष्म संक्रांति) को कर्क रेखा पर लम्बवत होता है। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में अधिकतम सूर्यातप मिलता है और ग्रीष्म ऋतु होती है। इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में अल्पतम सूर्यातप प्राप्त होने के कारण शीत ऋतु होती है। इसके पश्चात् सूर्य की स्थिति पुनः दक्षिण की ओर होने लगती है और 23 सितम्बर (शरद विषुव) को पुनः सूर्य भूमध्य रेखा पर लम्बवत् होता है और सर्वत्र दिन-रात बराबर होते हैं। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में पतझड़ ऋतु होती है। सितम्बर से सूर्य दक्षिणायन होने लगता है और 22 दिसम्बर (शीत संक्रांति) को मकर रेखा पर लम्बवत् होता है। इस समय उत्तरी गोलार्द्ध में अल्पतम सूर्यातप प्राप्त होता है और यहाँ शीत ऋतु होती है जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में अधिकतम सूर्यातप की प्राप्ति के कारण ग्रीष्म ऋतु होती है। इस प्रकार उत्तरी गोलार्द्ध और दक्षिणी गोलार्द्ध में विपरीत ऋतुएं पायी जाती हैं।

ऋतु परिवर्तन के कौन कौन से कारण है?

ऋतु परिवर्तन का कारण पृथ्वीद्वारा सूर्य के चारों ओर परिक्रमण और पृथ्वी का अक्षीय झुकाव है। पृथ्वी का डी घूर्णन अक्ष इसके परिक्रमा पथ से बनने वाले समतल पर लगभग 66.5 अंश का कोण बनता है जिसके कारण उत्तरी या दक्षिणी गोलार्धों में से कोई एक गोलार्द्ध सूर्य की ओर झुका होता है

ऋतु चक्र के होने के पीछे क्या कारण है?

ऋतुओं का चक्र पृथ्वी के सूर्य की ओर झुकाव के कारण होता है। ग्रह एक (अदृश्य) अक्ष के चारों ओर घूमता है। वर्ष के दौरान अलग-अलग समय पर, उत्तरी या दक्षिणी अक्ष सूर्य के करीब होता है। ऋतु का चक्र पृथ्वी के परिक्रमण के कारण होता है।

ऋतु परिवर्तन कब होता है?

पृथ्वी की धुरी के झुकाव के कारण ही उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्धों में वर्ष के एक ही समय अलग-अलग ऋतुएं होती हैं। जब उत्तरी गोलार्द्ध में भीषण गर्मी पड़ रही होती है तब दक्षिणी गोलार्द्ध में लोग ठंड से ठिठुर रहे होते हैं और जब उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दी की ऋतु आ जाती है तब दक्षिणी गोलार्द्ध में गर्मी पड़ती है।

पृथ्वी पर विभिन्न ऋतुओं का कारण बनने वाले दो मुख्य कारक कौन से हैं?

ये कारक हैं दिन के प्रकाश और अंधेरे की अवधि, औसत तापमान, वर्धन काल का समय, वर्षण, पवन प्रवाह, मृदा प्रकार, ढाल, अपवाह आदि। जीवोम के वर्गीकरण के दो प्रमुख आधार हैं- जलवायु का आधार जिसमें नमी या आर्द्रता की उपलब्धता पर विशेष बल दिया जाता है और जलवायु तथा वनस्पति का आधार ।