रासुका में जमानत कैसे मिलती है - raasuka mein jamaanat kaise milatee hai

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कितने महीने
तक जेल

3 कानून सबसे अहम

अभी पूरा लीगल सिस्टम ही इमरजेंसी पर चल रहा है। संकट के समय तीन कानूनों के दायरे में काम किया जा रहा है। आपदा प्रबंधन कानून का सेक्शन-10, एपिडमिक डिसीज एक्ट, जो 1897 कानून है, तीसरा धारा-144 है।

-विराग गुप्ता, सुप्रीम कोर्ट वकील, संविधान विशेषज्ञ

Expert

एक व्यक्ति कोरोना से ग्रस्त है और अन्य व्यक्ति को अपनी लापरवाही या गलत नीयत से इस रोग से त्रस्त करता है। इसलिए आज की परिस्थिति में उस पर रासुका लग जाएगी। इसमें लोगों को जमानत नहीं मिलती। फाइनली एक रासुका बोर्ड होता है, जिसके द्वारा रासुका लगाना कन्फर्म की जाती है। वह नहीं लगाएगा तो रासुका लगाने के बाद भी व्यक्ति छूट जाता है।

बोर्ड कन्फर्म करता है रासुका लगाएं या नहीं

यह होती है प्रक्रिया

पहले 3 महीने के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है। तीन-तीन महीने के लिए गिरफ्तारी बढ़ाई जा सकती है। एकबार में तीन महीने से अधिक की अवधि नहीं बढ़ाई जा सकती है। अगर, किसी अधिकारी ने ये गिरफ्तारी की हो तो उसे राज्य सरकार को बताना होता है कि उसने किस आधार पर ये गिरफ्तारी की है। राज्य सरकार इस गिरफ्तारी का अनुमोदन नहीं कर दे, तब तक यह गिरफ्तारी 12 दिन से ज्यादा नहीं हो सकती। अगर अधिकारी 5 से 10 दिन में जवाब दाखिल करता है तो ये अवधि 12 की जगह 15 दिन की जा सकती है।

रासुका के तहत किसी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी आरोप के 12 महीने तक जेल में रखा जा सकता है। इसमें केवल राज्य सरकार को यह सूचित करने की आवश्यकता है कि NSA के तहत व्यक्ति को हिरासत में लिया गया है।

हिरासत में लिए गए व्यक्ति को उनके खिलाफ आरोप तय किए बिना 10 दिनों के लिए रखा जा सकता है। हिरासत में लिया गया व्यक्ति हाईकोर्ट के सलाहकार बोर्ड के समक्ष अपील कर सकता है लेकिन उसे मुकदमे के दौरान वकील की अनुमति नहीं है।

हा ल ही में रामपुर, मेरठ, मुजफ्फनगर तथा अलीगढ़ में मेडिकल टीम पर हमले की जानकरी मिलने के बाद से नाराज सीएम योगी आदित्यनाथ ने साफ कहा है कि पुलिस तथा मेडिकल टीम पर हमला करने वालों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई होगी। उन्होंने कहा कि इंदौर तथा कर्नाटक जैसी घटना यूपी में किसी कीमत पर नहीं होनी चाहिए। प्रदेश में

क्या है यह कानून

ये कानून राष्ट्रीय सुरक्षा में बाधा डालने वालों पर नकेल डालने के लिए है। अर्थात राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम-1980 देश की सुरक्षा के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित एक कानून है। सरकार को लगता कि कोई व्यक्ति कानून-व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में बाधा खड़ी कर रहा है तो वह उसे एनएसए के तहत गिरफ्तार करने का आदेश दे सकती है। अगर उसे लगे कि वह व्यक्ति आवश्यक सेवा की आपूर्ति में बाधा बन रहा है तो वह उसे भी इस कानून में गिरफ्तार करवा सकती है। राष्ट्रीय सुरक्षा कानून NSA 23 सितंबर, 1980 को इंदिरा गांधी की सरकार के कार्यकाल में अस्तित्व में आया था।

कोरोना वॉरियर्स पर हमलों से गुस्साए सीएम आदित्यनाथ ने स्पष्ट कर दिया कि पुलिस तथा मेडिकल टीम पर हमला करने वालों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA)के तहत कार्रवाई होगी। इंदौर में भी ऐसा ही हुआ। जानिए, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के बारे में?

कोरोना संकट के बीच यूपी के सीएम ने NSA लागू करने के दिए आदेश

1971

अस्तित्व में आया था मीसा कानून। हालांकि यह विवादास्पद रहा।

1973

सीसीपी के तहत व्यक्ति की गिरफ्तारी भारत में कहीं भी हो सकती है।

कब-कब हो सकती है गिरफ्तारी

1. अगर सरकार को लगता है कि कोई व्यक्ति उसे देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले कार्यों को करने से रोक रहा है, तो वह उसे एनएसए के तहत गिरफ्तार कर सकती है।

2. यदि सरकार को लगता है कि कोई व्यक्ति कानून व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में उसके सामने बाधा या अड़चनें खड़ी कर रहा है, तो वह उसे हिरासत में लेने का आदेश दे सकती है।

3. इस कानून का इस्तेमाल जिलाधिकारी, पुलिस आयुक्त, राज्य सरकार अपने सीमित दायरे में भी कर सकती हैं।

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जमानत देने के मापदंड क्या हैं और कैसे मिलती है

अदालतों में जमानत देने के मापदंड बेहद अलग हैं। कुछ अपराध की गंभीरता पर निर्भर करता है, तो कई कार्रवाई पर। मान लीजिए किसी गंभीर अपराध में 10 साल की सजा का प्रावधान है और यदि 90 दिन में आरोप-पत्र दाखिल नहीं हो तो जमानत हो सकती है। जमानत को लेकर जानिए क्या हैं अलग-अलग प्रावधान।

अक्सर सुनने में आता है कि अमुक व्यक्ति को कोर्ट ने जमानत दे दी और किसी और की जमानत नहीं हुई। एक लड़के को चोरी का षड्यंत्र करते हुए पकड़ा, उसके पास चाकू भी था। जेल भेजा, अदालत में पेश किया। अदालत में उसके वकील ने जमानत पर छोड़ने की याचिका लगाई और 21 वर्ष का वह युवक केवल इसलिए जमानत पर बाहर आ सका, क्योंकि उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था। दूसरी ओर हम अखबार में पढ़ते हैं कि पटेल आरक्षण आंदोलन के नेता हार्टिक पटेल, जिनके खिलाफ राजद्रोह के दो मामले हैं, को जमानत नहीं मिलती है। सूरत की अदालत में जमानत इसलिए खारिज हुई, क्योंकि इससे कानून एवं व्यवस्था की स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव की आशंका थी। अब मामला गुजरात हाईकोर्ट में है, जिसमें सरकारी वकील कह रहे हैं कि यदि उन्हें जमानत पर छोड़ा तो कानून एवं व्यवस्था की स्थिति खतरे में पड़ सकती है। बचाव पक्ष के वकील कह रहे हैं कि अगर जरूरी हुआ तो हार्दिक छह माह गुजरात के बाहर रहने के लिए तैयार हैं। हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है। एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा के सुब्रत राय को दस हजार करोड़ रुपए के भुगतान पर रिहा नहीं किया, लेकिन मां की मृत्यु पर उन्हें मानवीय आधार पर जमानत दी गई।

ऐसे में आम लोगों को जमानत के बारे में जिज्ञासा हो सकती है कि यह किस तरह से होती है और इसे देने के मापदंड क्या हैं। किसी भी अपराध के आरोपी व्यक्ति को जेल से छुड़ाने के लिए न्यायालय के सामने जो संपत्ति जमा की जाती है या देने की प्रतिज्ञा ली जाती है, जो बॉन्ड के रूप में भरा जाता है, उसे जमानत कहा जाता है। जमानत मिल जाने पर न्यायालय निश्चिंत हो जाता है कि अब आरोपी व्यक्ति सुनवाई (डेट) पर जरूर आएगा, वरना जमानत देने वाली की जमानत राशि जब्त कर ली जाएगी। अर्थात जमानत का अर्थ है किसी व्यक्ति पर जो दायित्व है, उस दायित्व की पूर्ति के लिए बॉन्ड देना। यदि उस व्यक्ति ने अपने दायित्व को पूरा नहीं किया तो बॉन्ड में जो राशि तय हुई है, उसकी वसूली जमानत देने वाले से की जाएगी।

न्यायालय किसी अभियुक्त के आवेदन पर उसे अपनी हिरासत से मुक्त करने का अादेश कुछ शर्तों के साथ देता है- जैसे वह अभियुक्त एक या दो व्यक्ति का तय राशि का बंधपत्र (बॉन्ड) जमा करेगा। बॉन्ड की न्यायालय जांच करता है और संतुष्ट होने पर ही अभियुक्त को रिहा किया जाता है। एक व्यक्ति एक मामले में सिर्फ एक व्यक्ति की ही जमानत दे सकता है।

जमानत के अनुसार अपराध दो प्रकार के होते हैं- जमानती। आईपीसी की धारा 2 के अनुसार जमानती अपराध वह है, जो पहली अनुसूची में जमानती अपराध के रूप में दिखाया हो। दूसरा गैर-जमानती। जो अपराध जमानती है, उसमें आरोपी की जमानत स्वीकार करना पुलिस अधिकारी एवं न्यायालय का कर्तव्य है। किसी व्यक्ति को जान-बूझकर साधारण चोट पहुंचाना, उसे अवरोधित करना अथवा किसी स्त्री की लज्जा भंग करना, मानहानि करना आदि जमानती अपराध कहे जाते हैं। गैर-जमानती अपराध की परिभाषा आईपीसी में नहीं है, लेकिन गंभीर प्रकार के अपराधों को गैर-जमानती बनाया है। ऐसे अपराधों में जमानत स्वीकार करना या न करना न्यायाधीश के विवेक पर होता है। आरोपी अधिकार के तौर पर इसमें जमानत नहीं मांग सकता। इसमें जमानत का आवेदन देना होता है, तब न्यायालय देखता है कि अपराध की गंभीरता कितनी है, दूसरा यह कि जमानत मिलने पर कहीं वह सबूतों के साथ छेड़छाड़ तो नहीं करेगा। एक स्थिति में यदि पुलिस समय पर आरोप-पत्र दाखिल न करे, तब भी आरोपी को जमानत दी जा सकती है, चाहे मामला गंभीर क्यों न हो। जिन अपराधों में दस साल की सजा है, यदि उसमें 90 दिन में आरोप-पत्र पेश नहीं किया तो जमानत देने का प्रावधान है।

- फैक्ट : धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत दिए जाने का प्रावधान है। यह जमानत पुलिस जांच होने तक रहती है। विधि आयोग ने इसे दंड प्रक्रिया संहिता में शामिल करने की सिफारिश की थी।

नंदिता झा
हाईकोर्ट एड्वोकेट, दिल्ली

जमानत कितने दिन में होती है?

कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक मामले में जांच के लिए अधिकतम अवधि 90 दिन की समाप्ति के बाद और आरोपपत्र दाखिल करने से पहले आरोपी अगर डिफॉल्ट (चूक) जमानत अर्जी दाखिल करता है तो उसे सुनवाई से इनकार नहीं किया जा सकता है. आरोपी को सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत एक अपरिहार्य अधिकार मिलता है.

जमानत के लिए क्या करना पड़ता है?

जब किसी आरोपी व्यक्ति के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में मामला पेंडिंग होता है। तो वह व्यक्ति इस दौरान रेगुलर बेल के लिए अर्जी लगा सकता है। और फिर ट्रायल कोर्ट या हाई कोर्ट केस की स्थिति और गंभीरता को देखते हुए अपना फैसला देती है। और इस धारा के अंतर्गत आरोपी पर रेगुलर बेल अथवा अंतरिम जमानत प्राप्त कर सकता है।

एनएसए लगाने से क्या होता है?

NSA को रासुका ( राष्ट्रीय सुरक्षा कानून ) भी कहते हैं, इसमें प्रदर्शनकारियों द्वारा किये गये अपराध तथा साथ ही राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में संलिप्त पाए जाने पर इस क़ानून की धारा का प्रयोग प्रशासन द्वारा किया जाता है | रासुका का मतलब राष्ट्रीय सुरक्षा कानून या अधिनियम (National security Act NSA) होता है | अगर इसके ...

एन एस ए का मतलब क्या होता है?

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम-1980, (अथवा एनएसए अथवा रासुका) देश की सुरक्षा के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित एक कानून है। यह कानून केंद्र और राज्य सरकार को गिरफ्तारी का आदेश देता है। An Act to provide for preventive detention in certain cases and for matters connected therewith.