- नियमों का उल्लंघन करने वालों के लिए सजा का प्रावधान किया गया है। - कानूनी जानकार बताते हैं कि राजधानी दिल्ली में पेड़ को बचाने के लिए 1994 में एक कानून बनाया गया था जिसे दिल्ली प्रिजर्वेशन ऑफ ट्रीज एक्ट 1994 का नाम दिया गया। - दिल्ली हाई कोर्ट के सरकारी वकील नवीन शर्मा के मुताबिक उक्त एक्ट के तहत एक कंपिटेंट अथॉरिटी का गठन किया गया है। - इसके लिए एक अधिकारी होता है जिसे ट्री ऑफिसर कहा जाता है।
फॉरेस्ट ऑफिसर ही यह ट्री ऑफिसर का काम देखता है। कानूनी पहलू - अगर आंधी तूफान या किसी अन्य प्राकृतिक कारणों से पेड़ की डाली टूट गई हो या फिर आधा पेड़ सड़क पर आ गया हो तो ऐसे पेड़ काटे जा सकते हैं लेकिन इसके लिए कानूनी प्रावधान यह है कि अगर समय है तो इस बारे में संबंधित अधिकारी यानी ट्री ऑफिसर को सूचित किया जाना चाहिए या इसके लिए भी समय नहीं है तो पेड़ काटने के बाद इसके बारे में तुरंत ट्री ऑफिसर को
सूचित किया जाए। - सामान्य तौर पर भी पेड़ काटने के पहले ट्री ऑफिसर को यह बताना होगा कि पेड़ काटना क्यों जरूरी है। कारण अगर जायज होगा तो ट्री ऑफिसर पेड़ काटने की इजाजत दे सकता है। - लेकिन किसी भी परिस्थिति में काटे गए पेड़ के बदले ट्री ऑफिसर पेड़ काटने वालों को यह आदेश दे सकता है कि एक पेड़ के बदले उन्हें इतने पेड़ लगाने होंगे। - ट्री ऑफिसर के विवेक पर निर्भर करता है कि वह कितने पेड़ और कहां पेड़ लगाने के लिए कहे। दिल्ली में ट्री ऑफिसर प्रत्येक पेड़ का हिसाब रखता है और पेड़
सुरक्षित कैसे रहे इसके लिए काम करता है। - अगर बिना इजाजत और तय नियम का उल्लंघन करते हुए कोई पेड़ काटता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई किए जाने का प्रावधान है। - कानूनी जानकार अजय दिग्पाल बताते हैं इस मामले में गिरफ्तारी भी हो सकती है। अगर किसी ने बिना इजाजत पेड़ काट दिए हों और इसकी शिकायत ट्री ऑफिसर को किए जाने पर ट्री ऑफिसर चाहे तो खुद या पुलिस की मदद से उस शख्स को गिरफ्तार करवा सकता है। - चूंकि यह मामला जमानती है ऐसे में इस मामले में जमानत मिल जाती है। - ट्री ऑफिसर की
शिकायत पर ही इस एक्ट के तहत केस चलता है और दोषी पाए जाने पर एक साल तक कैद और एक हजार रुपये तक जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान है। - इस मामले में ट्रायल मैजिस्ट्रेट की अदालत में चलता है।
कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि लोग सड़कों के किनारे लगे पेड़ जाने अनजाने में काट देते हैं या फिर अपने घर के कैंपस आदि से लगने वाले पेड़ मजबूरी में काटते हैं ताकि पेड़ से परेशानी न हो। लेकिन यह जानना जरूरी है कि राजधानी दिल्ली में पेड़ काटना अपराध की श्रेणी में रखा गया। आइए जानें कानून इस मामले में क्या कहता है:
काटने से पहले सोचें
- अगर पेड़ काटना
जरूरी है तो भी इसके लिए एक कानूनी प्रक्रिया है जिसका पालन करना अनिवार्य है।
- दो स्थिति में पेड़ काटा जाता है: एक तो विशेष परिस्थिति दूसरे, साधारण परिस्थिति।
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वृक्षों को काटने से मिट्टी पर क्या प्रभाव पड़ता
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लिखित उत्तर
Solution : वृक्ष मिट्टी के सबसे अच्छे संरक्षक हैं । वृक्षों की जड़ें मिट्टी को बाँध कर रखती हैं इसी में मिट्टी का अधिकांश पोषक तत्व उपस्थित होता है। वृक्षों को काटने पर इसके उपजाऊ परत का नुकसान होता है। इसे अपरदन कहते हैं। अपरदन से पानी का भूमि में नीचे जाने की प्रक्रिया कम हो जाती है।
उत्तर
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पेड़ों से केवल लाभ ही होता है जो वातावरण में फैली दूषित वायु को शुद्ध करता है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई होने से बारिश का अभाव बना हुआ है।
यह बातें अमलाहा टोल के पास भीलखेड़ी जोड़ पर जन अभियान परिषद के अध्यक्ष प्रदीप पांडे ने पौधरोपण करते हुए कहीं। उन्होंने कहा कि वृक्ष अपनी जड़ों में मिट्टी को बांधकर रखता है। जिससे मृदा अपरदन नहीं होता है। पेड़ अपने आसपास के वातावरण दूषित वायु की स्वच्छता के साथ-साथ भूमि को भी ठंडा रखता है। वर्तमान में सबसे बड़ी मुसीबत ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से कम से कम थोड़ी ही सही पर राहत जरूर दिलाएगा। पौधरोपण यदि एक क्रम में किया जाए तो सुंदरता की झलक प्रदर्शित होती है। एक ओर वायु को स्वच्छ बनाता है तो दूसरी ओर इन वृक्षों को देवताओं का निवास बताया गया है। जिन्हें भारतीय संस्कृति में बड़ा महत्व है। इस अवसर पर नगर परिषद कोठरी अध्यक्ष रूपेश पटेल ने कहा कि ऐसे पौधे लगाए जाएं जो हमारे वातावरण को स्वच्छ बनाए रखने के साथ साथ ही हमारे सेहत को बुरे प्रभावों धूल, गंदगी, प्रदूषण से बचाए। इसके लिए सबसे पहले इंसान को पौधरोपण के फायदों के बारे में जागरूक करना अति आवश्यक है। पौधरोपण कार्यक्रम में भीलखेड़ी सरपंच कैलाश पटेल भी उपस्थित थे।