आज जीत की रात पहरुए, सावधान रहना ! खुले देश के द्वार अचल दीपक समान रहना । प्रथम चरण है नये स्वर्ग का है मंजिल का छोर, इस जनमंथन से उठ आई पहली रतन हिलोर, अभी शेष है पूरी होना जीवन मुक्ता डोर, क्योंकि नहीं मिट पाई दुख की विगत साँवली कोर, ले युग की पतवार बने अंबुधि महान रहना, पहरुए, सावधान रहना ! विषम श्रृंखलाएँ टूटी हैं खुलीं समस्त दिशाएँ, आज प्रभंजन बनकर चलतीं युग बंदिनी हवाएँ, प्रश्नचिह्न बन खड़ी हो गईं ये सिमटी सीमाएँ, आज पुराने सिंहासन की टूट रहीं प्रतिमाएँ, उठता है तूफान इंदु, तुम दीप्तिमान रहना, पहरुए, सावधान रहना ! ऊँची हुई मशाल हमारी आगे कठिन डगर है, शत्रु हट गया लेकिन उसकी छायाओं का डर है, शोषण से मृत है समाज कमजोर हमारा घर है, किंतु आ रही नई जिंदगी यह विश्वास अमर है, जनगंगा में ज्वार लहर तुम प्रवहमान रहना, पहरुए, सावधान रहना! पंद्रह अगस्त कविता शब्दार्थ पहरुए = पहरेदार, प्रहरी प्रभंजन = आँधी, तूफान पतवार = नाव खेने का साधन इंदु = चंद्रमा अंबुधि = सागर, समुद्र दीप्तिमान = प्रकाशमान, कांतिमान, प्रभायुक्त पंद्रह अगस्त कविता 11वी हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ ]कवि परिचय
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पंद्रह अगस्त कविता 11वी हिंदी [ स्वाध्याय भावार्थ ]
पंद्रह अगस्त कविता के कवि का नाम क्या है?पंद्रह अगस्त: 1947 – गिरिजा कुमार माथुर
पंद्रह अगस्त कविता कौन से काव्य प्रकार में आती हैं?गीत विधा में लिखित इस कविता में परंपरागत भावबोध तथा शिल्प प्रस्तुत किया गया है।
पंद्रह अगस्त कविता में कवि गिरिजाकुमार माथुर ने लहर को क्या रहने के लिए कहा है *?प्रस्तुत पद्यांश गिरिजाकुमार माथुर जी की कविता 'पंद्रह अगस्त' से लिया गया है। प्रस्तुत पद्यांश में तत्काल मिली हुई स्वतंत्रता की कवि चिंता करता है इसलिए देशवासियों को सतर्क रहने का आह्वान किया है।
गिरिजा कुमार माथुर जी के काव्यसंग्रह कौन से हैं?गिरिजाकुमार माथुर की प्रमुख रचनाएँ हैं-नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, भीतरी नदी की यात्रा ( काव्य-संग्रह); जन्म कैद (नाटक); नयी कविता : सीमाएँ और संभावनाएँ ( आलोचना) । नयी कविता के कवि गिरिजाकुमार माथुर रोमानी मिज़ाज के कवि माने जाते हैं।
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