Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Exercise Questions and Answers. Show
RBSE Class 10 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवादRBSE Class 10 Hindi राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Textbook Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2.
प्रश्न 3. परशुराम - हे राजपुत्र ! लगता है तेरी मृत्यु आ गई है। इसीलिए तू सँभलकर बोल नहीं पा रहा है। तू शिव-धनुष को धनुही के समान बता रहा है जबकि इस धनुष के बारे में संसार भर को पता है। लक्ष्मण - (व्यंग्य से) हे देव! हमने तो यही जाना था कि सारे धनुष एक जैसे ही होते हैं। फिर राम ने इसे नए के धोखे में देखा था। यह तो छते ही टूट गया। इसमें उनका क्या दोष है? परशुराम - अरे शठ! लगता है तू मेरे स्वभाव को अभी नहीं जानता है। मैं तुझे बालक समझकर छोड़ रहा हूँ। तू मुझे निरा मुनि समझ रहा है। मैं बाल-ब्रह्मचारी हूँ। मैंने कई बार इस पृथ्वी के सारे राजाओं का संहार किया है । मैंने सहस्रबाहु की भुजाएँ काट डाली हैं। इतना ही नहीं, मेरे फरसे की कठोरता के भय से गर्भ के बच्चे भी गिर जाते हैं। लक्ष्मण - (व्यंग्य से) वाह मुनिजी! आप तो बहुत बड़े योद्धा हैं। आप बार-बार मुझे अपना कुठार दिखाकर डराना चाहते हैं। आपका बस चले तो फूंक मार कर पहाड़ को उड़ा दें। मैं कोई छुई-मुई का फूल नहीं हूँ जो तर्जनी देखकर मुरझा जाऊँगा। मैं आपको ब्राह्मण समझ कर चुप रह गया हूँ। हमारे कुल में गाय, ब्राह्मण, देवता और भक्तों पर वीरता नहीं दिखाई जाती है। फिर आपके वचन ही करोड़ों वज्रों के समान घातक हैं। आपने शस्त्र तो व्यर्थ में ही धारण कर रखे हैं। प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. (ख) भाव-लक्ष्मण अपने साहस और वीरत्व का परिचय देते हुए कहते हैं कि हम कोई कुम्हड़बतिया नहीं हैं जो आपकी तर्जनी को देखते ही मुरझा जाएँ। हम भी कोई कम नहीं हैं। मैंने फरसे और धनुष-बाण को भली प्रकार देख-परख कर ही कोई बात कही है। मैं आपसे किसी बात में कम नहीं हूँ। इसलिए मुझे कम आँकने की भूल मत करना। (ग) भाव-विश्वामित्र परशुराम की बुद्धि और समझ पर तरस खाते हुए सोचने लगे कि परशुराम को हरा-हरा ही दिखाई देता है अर्थात् स्वयं के बारे में बड़ी भ्रान्ति है । वे लक्ष्मण को गन्ने से बनी खाँड के समान समझ रहे हैं कि उसे एक ही बार में नष्ट कर डालेंगे। वे अज्ञानतावश यह नहीं समझ पा रहे हैं कि लक्ष्मण लोहे से बना खाँडा है जिससे संघर्ष मोल लेना आसान नहीं है। प्रश्न 8. प्रश्न 9. जब परशुराम कहते हैं कि शिव-धनुष की तुलना धनुही से नहीं की जा सकती, तब लक्ष्मण कहते हैं कि हमारे लिए सब धनुष एकसे ही होते हैं। इसी प्रकार जब परशुराम क्रोध में आकर विश्वामित्र को कहते हैं कि मैं अभी इसे मारकर गुरु के ऋण से उऋण होता हूँ, तब लक्ष्मण व्यंग्य प्रहार करते हुए कहते हैं- माता-पिता का तो ऋण आप उतार ही चुके हैं। अब आपको गुरु-ऋण भारी पड़ रहा है। लम्बे समय से न चुका पाने के कारण ब्याज भी बढ़ गया होगा, किसी हिसाबी को बुला लो। मैं अभी अपनी थैली खोल कर हिसाब चुकाता हूँ। इस प्रकार यह पठितांश व्यंग्य से भरपूर है। प्रश्न 10. (ख) 'कोटि कुलिस' में 'क' वर्ण की आवृत्ति से अनुप्रास तथा 'कोटि कुलिस सम' में उपमा अलंकार है। (ग) 'तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा' में सम्भावनात्मक वर्णन होने से उत्प्रेक्षा अलंकार है। (घ) 'लखन उतर आहुति सरिस' और 'जल सम बचन' में उपमा अलंकार है। प्रश्न 11. उस पर क्रोध करने पर ही वह उस समय शान्त होगा। इसी प्रकार परशुराम बढ़-चढ़कर बकझक करते हुए लक्ष्मण को मारने को तैयार हो जाते तो उन्हें कौन रोक पाता? इसलिए लक्ष्मण का भी व्यंग्यात्मक क्रोध करना आवश्यक था, क्योंकि ऐसे समय में क्रोध रक्षक की भूमिका निभाता है। क्रोध के विपक्ष में मत-क्रोध एक अवगुण है, मनुष्य का शत्रु है, क्योंकि वह उसे घमंडी और बड़बोला बनाता है। क्रोध विनाश का कार्य करता है, वह निर्माण नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए, लक्ष्मण ने अपनी व्यंग्योक्तियों से परशुराम के क्रोध की आग को इतना भड़का दिया था कि राम यदि संकेत से लक्ष्मण को नहीं रोकते तो कुछ भी हो सकता था। अतः क्रोध से बचना चाहिए। प्रश्न 12. प्रश्न 13.
प्रश्न 14. खरगोश दौड़कर आधी दूर तक जल्दी पहुँच गया। उसने सोचा कि अभी तो कछुआ को यहाँ तक आने में बहुत समय लगेगा। इसलिए वह पेड़ के नीचे विश्राम करने लगा। खरगोश को नींद आ गयी। कछुआ धीरे-धीरे चलते हुए निर्धारित स्थान पर पहुँच गया, वह कहीं पर रुका नहीं चलता ही रहा। जब खरगोश की नींद खुली और उसने फिर से दौड़ लगाई तो उसने देखा कि कछुआ तो पहले ही वहाँ पहुँच चुका था। इस प्रकार कछुआ दौड़ में जीत गया। खरगोश को पछतावा हुआ, क्योंकि उसने कछुए की क्षमता को कम करके आँका था। इसलिए शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए। प्रश्न 15. एक बार जब मैं बस में यात्रा कर रहा था तब एक यात्री बस में चढ़ा और मेरे पास वाली खाली सीट पर आकर बैठ गया। पैसे माँगने पर उस यात्री ने बस कन्डक्टर को पैसे दे दिए लेकिन बस कन्डक्टर ने उसे बदले में टिकट नहीं दी। बस चलने के बाद जब उसने टिकट माँगी तब उसने कहा कि टिकट का क्या करोगे। मैं भी आपके साथ ही चल रहा हूँ। दुबारा तुमसे कोई किराया नहीं माँगूंगा। यह देखकर मैंने उस अन्याय का प्रतिकार किया। अन्ततः कंडक्टर ने उस यात्री को टिकट दे दी। प्रश्न 16. तुलसी की अन्य रचनाएँ पुस्तकालय से लेकर पढ़ें। दोहा और चौपाई के वाचन का एक
पारम्परिक ढंग है। लय सहित इनके वाचन का अभ्यास कीजिए। कभी आपको पारम्परिक रामलीला अथवा रामकथा की नाट्य प्रस्तुति देखने का अवसर मिला होगा, उस अनुभव को अपने शब्दों में लिखिए। इस प्रसंग की
नाट्य-प्रस्तुति करें। कोही; कुलिस, उरिन, नेवारे-इन शब्दों के बारे में शब्दकोश में दी गई विभिन्न जानकारियाँ प्राप्त कीजिए। RBSE Class 10 Hindi राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Important Questions and Answersअतिलघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. गया है। निबन्धात्मक प्रश्न प्रश्न 1. परशुराम ने सेवक और शत्रु के विषय में कहा कि सेवक वह होता है जो सेवा-कार्य करता है शत्रु के समान कार्य करने वाले से तो लड़ाई ही करनी चाहिए। इसलिए जिसने शिव-धनुष तोड़ने का कार्य किया वह उनके लिए शत्रु के समान है। चूंकि किसी के द्वारा विनय-याचना करने पर उनका क्रोध भी शांत हो जाता है। विश्वामित्र द्वारा शील-वचन कहने पर वे लक्ष्मण को क्षमा भी करते हैं। प्रश्न 2. लक्ष्मण परशुराम की गर्वभरी बातों का उपहास उड़ाते हुए कहते हैं कि हम कोई कुम्बड़बतिया अर्थात् छुई-मुई का फूल नहीं हैं जो आपकी अंगुली दिखाने मात्र से डर जाएँगे। अंत में लक्ष्मण कहते हैं कि गुरु-ऋण का भार अर्थात् उसका ब्याज आप पर बहुत बढ़ गया है इसलिए किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लो और गुरु-ऋण से मुक्त हो जाओ। इस प्रकार लक्ष्मण निडरता और निर्भीकता से परशुराम पर व्यंग्य वचनों की बौछार कर रहे थे। प्रश्न 3. लक्ष्मण की कटु-व्यंग्योक्तियों से परशुराम की क्रोधाग्नि बढ़ती ही जा रही थी तो श्रीराम ने शीतल जल के समान अपने मधुर वचनों द्वारा उस अग्नि को शांत करने का ही प्रयत्न किया। इससे यही पता चलता है कि राम शांत एवं विनम्र स्वभाव के थे। अपने से बड़ों, गुरुजनों का, मुनियों का, ब्राह्मणों का तथा समस्त सभाजनों का आदर सम्मान करने वाले थे। उनकी वाणी में सदैव मधुरता का गुण विद्यमान रहता था। रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न प्रश्न 1. राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद Summary in Hindiकवि-परिचय : रामभक्ति परम्परा के अग्रणी कवि गोस्वामी तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजापुर गाँव में सन् 1532 में हुआ था। उनकी माता का नाम हुलसी तथा पिता का नाम आत्माराम दुबे था। जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में ही उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था। एक महात्मा की कृपा से इनका बचपन व्यतीत हुआ। उनके गुरु का नाम नरहरि था। उनका विवाह रत्नावली से हुआ था। उसी के उपदेश से वे भगवान् की भक्ति की ओर उन्मुख हुए। सन् 1623 में उनका स्वर्गवास हुआ। उन्होंने 'रामचरितमानस' के अलावा अनेक ग्रन्थों की रचना की। उनके रचित ग्रन्थों में 'कवितावली', 'गीतावली', 'दोहावली', 'कृष्ण-गीतावली' तथा 'विनयपत्रिका' आदि प्रसिद्ध हैं। पाठ-परिचय : पठित अंश 'रामचरितमानस' के बालकाण्ड के 'राम-लक्ष्मण-परशराम-संवाद' से लिया गया है। सीता स्वयंवर में राम द्वारा शिव-धनुष भंग करने के बाद परशुराम क्रोधित होकर आते हैं। वे शिव-धनुष को खंडित देखकर आपे से बाहर हो जाते हैं। राम के विनय और विश्वामित्र के समझाने पर वे शान्त हो जाते हैं। इसी बीच राम, लक्ष्मण और परशुराम के बीच जो संवाद हुआ, उसी प्रसंग का यहाँ वर्णन किया गया है। सप्रसंग व्याख्याएँ : राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद : 1. नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥ कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश तुलसीदास द्वारा रचित 'राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' से लिया गया है। सीता स्वयंवर में शिव-धनुष का टूटना और क्रोधित अवस्था में परशुराम का सभा में प्रवेश करने का वर्णन किया गया है जहाँ जाकर वे धनुष तोड़ने वाले के बारे में पूछते हैं व्याख्या - राम परशुराम से कहते हैं- हे नाथ! शिव के धनुष को तोड़ने वाला कोई आपका सेवक ही होगा। क्या आज्ञा है, मुझसे आप क्यों नहीं कहते? इसे सुनकर क्रोधित मुनि परशुराम नाराज होकर बोले-सेवक वही है, जो सेवा करे, शत्रु कर्म करके जो युद्ध करे, वह सेवक नहीं है। हे राम! सुनो, जिसने शिव-धनुष तोड़ा है, वह सहस्रबाहु की तरह मेरा शत्रु है इसलिए वह उपस्थित राजाओं के समूह से स्वयं अलग हो जाए, नहीं तो सभी राजा मारे जायेंगे। मुनि के वचनों को सुनकर लक्ष्मण मुस्कराए और परशुराम का अपमान करते हुए बोले-हे स्वामी ! बाल्यावस्था में अनेक धनुष तोड़ डाले किन्तु कभी आपने इस तरह क्रोध नहीं किया। इस धनुष पर ममता किस कारण है। उसे सुनकर भृगुवंश की ध्वजा परशुराम क्रोध करके बोले। हे राजपुत्र! कालवश होने के कारण बोलने में तुझे समझ नहीं है कि तू क्या कह रहा है? यह संसार भर को ज्ञात है कि यह शिव-धनुष क्या सामान्य छोटे धनुष के समान है? विशेष :
2. लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥ कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग - प्रस्तुत पद्यांश तुलसीदास द्वारा रचित 'राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' से लिया गया है। यहाँ लक्ष्मण व परशुराम के मध्य संवाद होता है। जिसमें लक्ष्मण द्वारा किया गया उपहास परशुराम की क्रोधाग्नि में घी डालने का कार्य करता है। .. व्याख्या - लक्ष्मण हँसकर- परशुराम से बोले-हे देव! मेरी समझ से सारे धनुष एक समान हैं। पुराने धनुष को तोड़ने से क्या लाभ-हानि, श्रीराम ने इसे नए के धोखे में देखा था। लेकिन यह तो छूते ही टूट गया, इसमें श्रीराम का क्या दोष है? इसलिए हे मुनि! आप बिना कारण ही क्रोध क्यों कर रहे हैं? अपने फरसे की ओर देखकर परशुराम बोले-रे मूर्ख! तूने मेरे स्वभाव को अभी नहीं सुना है। बालक समझकर मैं तुम्हारा वध नहीं कर रहा हूँ। रे बुद्धिहीन! क्या तू मुझे केवल मुनि ही समझ रहा है। मैं बाल-ब्रह्मचारी तथा अत्यधिक क्रोधी हूँ तथा सारे संसार को पता है कि मैं क्षत्रियों के कुल का घोर शत्रु हूँ। मैंने अपनी भुजाओं के बल पर ही इस पृथ्वी को अनेक बार भूप-विहीन किया है अर्थात् भूमि को राजाओं से रिक्त किया है और अनेक बार उनके राज्यों की भूमि को जीतकर. ब्राह्मणों को दान कर चुका हूँ। हे राजपुत्र! मेरे फरसे को देखो, यह सहस्रबाहु की भुजाओं को काटने वाला है। हे राजपुत्र! अपने माता-पिता को शोक-ग्रस्त मत करो। क्षत्राणियों के गर्भो में शिशुओं को मारने वाला मेरा यह फरसा अत्यधिक भयंकर है। विशेष :
3. बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी॥ कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश तुलसीदास द्वारा रचित 'राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' से लिया गया है। इसमें लक्ष्मण द्वारा। परशुराम को बताया गया है कि रघुकुल में देवता, ब्राह्मण, भक्तजन और गाय पर शौर्य प्रदर्शित नहीं किया जाता है। व्याख्या : परशुराम के कठोर वचन सुनकर लक्ष्मण कोमल वाणी में बोले- अहो, मुनिश्रेष्ठ! तुम अपने आपको महान् योद्धा मानते हो। इसीलिए आप मुझे बार-बार अपना कुल्हाड़ा दिखा रहे हो। मानो फंक से ही पहाड़ उड़ा डालना चाहते हो। लेकिन मनिवर! हम भी कोई कम्हडे की बतिया या छईमई का पौधा नहीं हैं जो अँगली देखकर ही कम्हला जायंगे। हे मुनिवर ! मैंने आपके हाथ में कुठार और कंधे पर धनुष-बाण देखकर ही कुछ अभिमानपूर्वक कहा है। सोचा कि सामने कोई सचमुच योद्धा है। आपको भृगुपुत्र समझकर और यज्ञोपवीत देखकर अर्थात् ब्राह्मण जानकर आपके द्वारा कही गई उचित-अनुचित बातों को मैं अपना क्रोध रोक कर सुन रहा हूँ। क्योंकि देवता, ब्राह्मण, भक्तजन तथा गाय, हमारे कुल में इन पर शौर्य प्रदर्शित नहीं किया जाता है। आप ब्राह्मण हैं, यदि मुझसे आपका वध हो जाए तो मुझे ही पाप लगेगा और यदि आपसे हार जाऊँगा तो अपयश मिलेगा। इसलिए यदि आप मुझे मार भी दें तो भी मुझे आपके पैरों में ही पड़ना पड़ेगा। हे परशुरामजी ! आपके तो वचन ही करोड़ों वज्र के समान कठोर हैं फिर आपने यह धनुष-बाण व्यर्थ में ही धारण कर लिया है। इसलिए इन्हें देखकर यदि मैंने आपको अनुचित कह दिया हो तो हे धैर्यवान महामुनि! मुझे क्षमा कर देना। लक्ष्मण के ये व्यंग्य वचन सुनकर भृगुवंशमणि परशुराम क्रोध सहित गंभीर वाणी में बोले। विशेष :
4. कौसिक
सुनहुमंद येहुबालकु।कुटिलु कालबस निज कुल घालकु॥ कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश तुलसीदास द्वारा रचित 'राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' से लिया गया है। परशुराम लक्ष्मण को उदंड, मूर्ख बता रहे हैं, इस पर लक्ष्मण भी शूरवीरों की प्रवृत्ति को स्पष्ट करते हुए परशुराम का उपहास बना रहे हैं। व्याख्या : परशुराम ने विश्वामित्र से कहा कि यह बालक (लक्ष्मण) बड़ा कुबुद्धि और कुटिल है। यह काल के वश होकर अपने कुल का घातक बन रहा है। यह सूर्यवंशी होते हुए भी चन्द्रमा के कलंक के समान है। यह सभी तरह से उदंड, मूर्ख और निडर है। यह अभी क्षणभर में काल का ग्रास हो जायेगा। मैं पुकार कर कहे देता हूँ फिर मुझे कोई दोष मत देना। यदि तुम इसकी रक्षा करना चाहते हो तो उसे हमारा प्रताप, बल और क्रोध बतलाकर रोक लो। तब लक्ष्मण ने कहा कि हे मुनि! आपका सुयश आपके अलावा और कौन वर्णन कर सकता है। आपने अपने मुख से अपनी करनी अनेक बार बहुत प्रकार से कही है। इतने पर भी यदि आपको सन्तोष नहीं हुआ हो तो फिर कुछ कह डालिए। आप क्रोध रोककर असह दु:ख सहन न कीजिए। आप वीरता का व्रत धारण करने वाले धैर्यवान और क्षोभरहित हैं। आप गाली देते हुए शोभा नहीं पाते हैं। शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का कार्य करते हैं और अपने मुँह से अपनी प्रशंसा नहीं करते हैं। शत्रु को युद्ध में उपस्थित पाकर कायर ही व्यर्थ में अपने प्रताप की अर्थात् अपने यश की, कीर्ति की डींग हाँका करते हैं। विशेष :
5. तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा॥ कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश तुलसीदास द्वारा रचित 'राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' से लिया गया है। लक्ष्मण द्वारा कठोर वचनों के प्रयोग पर परशुराम विश्वामित्र को उन्हें समझाने को कहते हैं का प्रसंग उपस्थित है। व्याख्या : लक्ष्मण परशुराम से कहने लगे कि आप तो मानो मृत्यु को हाँक लगा-लगाकर अर्थात् आवाज दे-देकर मेरे लिए बुला रहे हैं। लक्ष्मण की कठोर बातें सुनकर परशुराम ने अपने फरसे को सँभाल कर हाथ में ले लिया और कहने लगे कि आप लोग अब मुझे इस बालक के वध के लिए दोष मत देना, क्योंकि यह बालक कटुवचन कहने के कारण वध के योग्य है। मैं तो इसे बालक समझकर अब तक बहुत बचाता रहा, परन्तु अब यह वास्तव में ही मारने योग्य हो चुका है। यह सुनकर विश्वामित्र ने परशुराम से कहा--हे परशुरामजी! आप तो साधु हैं। साधुजन बालकों के गुण अधिक ध्यान नहीं देते, इसलिए आप इसे क्षमा कर दीजिए। तब परशराम बोले कि हे विश्वामित्रजी! आप जानते हैं कि मैं बहुत निर्दय और क्रोधी स्वभाव का हूँ। मेरे हाथों में यह तेज कुल्हाड़ा भी है। मेरे सामने मेरे गुरु का अपमान करने वाला अपराधी भी खड़ा है। वह बार-बार जवाब पर जवाब दिए जा रहा है। इतना होने पर भी यदि मैं इसे बिना मारे छोड़ रहा हूँ तो केवल आपके (विश्वामित्र) प्रेम और सद्भाव के कारण, नहीं तो अब तक मैं इसे इस कठोर कुल्हाड़ी से काटकर थोड़े से ही श्रम से गुरु-ऋण से उऋण हो गया होता। परशुराम की बात सुनकर विश्वामित्र अपने मन में हँसे और सोचने लगे कि देखो मुनि परशुराम को कैसा हरा ही हरा सूझ रहा है। अर्थात् वे सभी क्षत्रियों को हराने के कारण राम-लक्ष्मण को भी सामान्य क्षत्रिय ही मान रहे हैं और उन्हें भी आसानी से मार डालने के सपने देख रहे हैं। वे इस बात से अभी तक अनभिज्ञ हैं कि उनके सामने गन्ने के रस से बनी खांड नहीं, बल्कि लोहे से बना हुआ तेज खांडा (तलवार) है। अर्थात् राम-लक्ष्मण सामान्य योद्धा नहीं हैं, इसलिए मुनिवर अज्ञानियों की तरह अभी इनके प्रभाव को समझ नहीं पा रहे हैं। विशेष :
6. कहेउ लखन मुनि सीलु तुम्हारा। को नहि जान बिदित संसारा॥ कठिन-शब्दार्थ :
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश तुलसीदास द्वारा रचित राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद' से लिया गया है। लक्ष्मण की उग्रता से भड़के परशुराम के क्रोध पर राम अपनी शीतल वाणी का प्रयोग करते हैं तथा उनका क्रोध शांत करते हैं। व्याख्या : लक्ष्मण परशुराम से कहने लगे कि हे मुनि! आपके शील-स्वभाव के बारे में कौन नहीं जानता। यह सारा संसार आप से परिचित है। आप अपने माता-पिता के ऋण से तो अच्छी तरह से उऋण हो चुके हैं। इसलिए अब आप पर गुरु का ऋण ही शेष बचा है। उसे उतारने की ही चिन्ता आपके मन में है। अब आप मुझे मारकर शायद गुरु के ऋण से मुक्त होना चाहते हैं। यह आपके लिए ठीक भी है। दिन भी बहुत हो गये हैं। अब तक तो आप पर गुरु ऋण का ब्याज बहुत बढ़ गया होगा। इसलिए अब किसी हिसाब-किताब करने वाले को बुला लीजिए। मैं तुरन्त अपनी थैली खोल कर चुका दूंगा। लक्ष्मण के द्वारा कहे गये कटु वचनों को सुनकर परशुराम ने अपना फरसा साध लिया। सारी सभा में हाय-हाय की पुकार मच गयी। लक्ष्मण ने फिर से कहा--भृगुवर! परशुरामजी! आप मुझे अपना फरसा दिखा रहे हो और मैं आपको ब्राह्मण समझकर बार-बार लड़ने से बच रहा हूँ। हे क्षत्रियों के शत्रु! लगता है कि आपका युद्ध-भूमि में कभी पराक्रमी वीरों से पाला नहीं पड़ा, इसलिए हे ब्राह्मण देवता! आप अपने घर में ही अपनी वीरता के कारण फूले-फूले फिर रहे हो। लक्ष्मण के ऐसे वचन सुनकर सभा में उपस्थित लोग 'अनुचित है', 'अनुचित है' कहने लगे। राम ने भी आँखों के संकेत से लक्ष्मण को बोलने के लिए मना किया। इस प्रकार लक्ष्मण के उत्तर आहुति में घी के समान भड़काने वाले थे। परशुराम का क्रोध आग के समान था जो लक्ष्मण के वचनों से भड़क उठा था। अतः आग को बढ़ता देखकर श्रीराम जल के समान शीतल वचन बोले। विशेष :
लक्ष्मण परशुराम संवाद में श्री राम की क्या भूमिका रही है?Parshuram Samvad By Ramswaroopacharya Ji.
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद में राम और लक्ष्मण के चरित्र में मुख्य अंतर क्या है?लक्ष्मण का चरित्र श्रीराम के चरित्र के बिलकुल विपरीत था। उनका स्वभाव उग्र एवं उद्दंड था। वे परशुराम को उत्तेजित एवं क्रोधित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ते थे। उनकी व्यंग्यात्मकता से परशुराम आहत हो उठते हैं और उन्हें मारने के लिए उद्यत हो जाते हैं जो सभा में उपस्थित लोगों को भी अनुचित लगता है।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद की प्रमुख विशेषता क्या है?शिव धनुष को खंडित देखकर वे आपे से बाहर हो जाते हैं। राम के विनय और विश्वामित्र के समझाने पर तथा राम की शक्ति की परीक्षा लेकर अंततः उनका गुस्सा शांत होता है। इस बीच राम, लक्ष्मण और परशुराम के बीच जो संवाद हुआ उस प्रसंग को यहाँ प्रस्तुत किया गया है। परशुराम के क्रोध भरे वाक्यों का उत्तर लक्ष्मण व्यंग्य वचनों से देते हैं।
राम लक्ष्मण परशुराम संवाद में कौन से रस की प्रधानता है?वीर रस का प्रयोग है।
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