आधुनिक युग में मनोवैज्ञानिकों द्वारा अनेकानेक प्रकार के मनोवैज्ञानिक परीक्षणों का निर्माण किया गया है। किसी भी परीक्षण को तभी अच्छा और उपयोगी कहा जा सकता है जब उसमें किन्हीं अपेक्षित विशेषताओं का समावेश हो। व्यक्ति में अन्तर्निहित शक्तियों, क्षमताओं तथा विशेषताओं का मापन करने से पूर्व उनसे सम्बन्धित परीक्षण का उपयुक्तता की जाँच करना परमावश्यक है। इस दृष्टि से विश्वसनीयता (Reliability) तथा वैधता (Validity) इन दोनों गुणों का यथोचित ज्ञान होना अपरिहार्य है। Show विश्वसनीयता मनोवैज्ञानिक परीक्षण में विश्वसनीयता का तात्पर्य किसी परीक्षण की उस विशेषता से है जिसके अनुसार यदि एक ही परीक्षण किसी व्यक्ति को समान परिस्थितियों में जितनी बार हल करने के लिए दिया जाता है तो उतनी ही बार उस व्यक्ति को उतने ही अंक प्राप्त होते हैं जितने कि उसे पहली बार प्राप्त हुए थे। फलांकों की यह समानता जितनी अधिक होती है, उतनी ही उस परीक्षण में विश्वसनीयता भी अधिक होगी और ऐसे मनोवैज्ञानिक परीक्षण को विश्वसनीय परीक्षण
(Reliable Test) कहा जाएगा। (1) फ्रेन्क फ्रीमैन के अनुसार, “विश्वसनीयता शब्द से तात्पर्य उस सीमा से है जिस तक कोई परीक्षण आन्तरिक रूप से समान होता है और उस सीमा से जिस तक वह परीक्षण और पुनर्परीक्षण के समान फल प्रदान करता है। (2) अनास्टेसी के शब्दों में, “विश्वसनीयता से तात्पर्य स्थायित्व अथवा स्थिरता से है।” (3) चार्ल्स ई० स्किनर के
मतानुसार, “यदि कोई परीक्षण समान रूप से मापन करे तो वह विश्वसनीय होता है।” (1) वस्तुनिष्ठता (Objectivity)- एक मनोवैज्ञानिक परीक्षण तभी विश्वसनीय कहा जाएगा जब उसमें ‘वस्तुनिष्ठता’ का गुण विद्यमान हो। वस्तुनिष्ठता के लिए यह आवश्यक है कि परीक्षण के प्रत्येक प्रश्न का उत्तर निश्चित एवं स्पष्ट हो और उसके उत्तरों के बारे में परीक्षकों में आपसी मतभेद न हो। मूलयांकन के समय परीक्षक के व्यक्तिगत विचारों का भी प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। दूसरे शब्दों में, यदि कई परीक्षक परीक्षार्थी के उत्तरों का मूल्यांकन करें तो सभी एकसमान अंक प्रदान करें। (2) व्यापकता (Comprehensiveness)- उत्तम परीक्षण की एक विशेषता व्यापकता भी है। व्यापकता का एक दूसरा नाम ‘समग्रता है। इस गुण के अनुसार परीक्षण को जिस तत्त्व की जाँच के लिए बनाया गया है वह उससे जुड़े सभी पहलुओं की जाँच करे। इसके लिए परीक्षण में तत्त्व से सम्बन्धित सभी प्रश्न सम्मिलित किये जाने चाहिए। विश्वसनीयता ज्ञात करने की विधियाँ किसी मनोवैज्ञानिक परीक्षण की विश्वसनीयता ज्ञात करने के लिए चार प्रमुख विधियों का प्रयोग किया जाता है — (1) परीक्षण-पुनर्परीक्षण विधि (Test-Retes Method)- इस विधि के माध्यम से परीक्षण की विश्वसनीयता ज्ञात करने के लिए परीक्षार्थियों के किसी समूह-विशेष को कोई परीक्षण हल करने हेतु दिया जाता है जिसके उत्तरों पर अंक प्रदान किये जाते हैं। इस प्रकार दोनों बार के प्राप्तांकों का सांख्यिकीय गणना द्वारा सहसम्बन्ध (Correlation) निकाला जाता है, जिसके फलस्वरूप ‘सह-सम्बन्ध गुणांक (Coefficient of Correlation) का मान प्राप्त होता है। यदि यह
सह-सम्बन्ध गुणांक + 100 आता है तो परीक्षण की विश्वसनीयता ‘पूर्ण’ मानी जाती है (हालांकि यह एक काल्पनिक स्थिति है)। इसका मान + 0.5 और + 1.00 के बीच प्राप्त होने पर भी अच्छी विश्वसनीयता का संकेत मिलता है, किन्तु यदि यह इसमें कम होता है तो परीक्षण को विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता। (2) समानान्तर-परीक्षण विधि (Parallel-Form Method)— समानान्तर-परीक्षण विधि द्वारा विश्वसनीयता ज्ञात करने के लिए एक प्रकार के दो परीक्षणों का निर्माण किया जाता है। इन परीक्षणों के पद या प्रश्न अलग-अलग होने के बावजूद भी रूप (Form), विषय-वस्तु (Content) तथा कठिनाई (Difficulty) में एकसमान होते हैं। परीक्षण दिया
जाता है। दोनों परीक्षणों के अंकों के बीच सह-सम्बन्ध गुणांक का मान ज्ञात करके व्याख्या प्रस्तुत की जाती है। विश्वसनीयता बताने के लिए उपर्युक्त सिद्धान्त का ही पालन किया जाता है। (3) अर्द्ध-विच्छेदित विधि (Split-Half Method)—इस विधि के अन्तर्गत केवल एक बार एक ही परीक्षण का उपयोग किया जाता है। परीक्षार्थियों को पहले एक परीक्षण हल करने के लिए दिया जाता है और उसके उत्तरों पर अंक प्रदान कर दिये जाते हैं। अब परीक्षण को अर्द्ध-विच्छेदित (अर्थात् दो बराबर भागों में बाँटना) कर दिया जाता है। इसके लिए ‘सम संख्या’ (Even Number) वाले प्रश्नों; यथा-दूसरा, चौथा, छठा, आठवाँ, दसवाँ ……. आदि; तथा ‘विषम संख्या’ (Odd Number) वाले प्रश्नों; यथा-तीसरा, पाँचवाँ, सातवाँ, नवाँ, ग्यारहवाँ ………. आदि; को अलग-अलग करके दो श्रेणियाँ तैयार कर ली जाती हैं। इस प्रकार निर्मित दोनों परीक्षणों के बारे में होती है, जिसे सांख्यिकीय विधियों द्वारा संशोधित कर लिया जाता है। परीक्षण निर्माण के समय यह सावधानी अवश्य रखी जाए कि सभी परीक्षण-पद कठिनाई के क्रम में ही व्यवस्थित हों। (4) अन्तरपदीय एकरूपता (Inter-Item Consistency)— इस विधि में भी एक परीक्षण सिर्फ एक बार ही प्रयुक्त होता है। सर्वप्रथम परीक्षार्थियों को परीक्षण हल करने के लिए देकर उसके उत्तरों पर अंक प्रदान कर दिये जाते है। इसके बाद प्रत्येक परीक्षण-पद में प्राप्त अंक का परस्पर तथा पूरे परीक्षण में प्राप्त अंकों में सह-सम्बन्ध ज्ञात किया जाता है, जिसकी गणना के लिए क्यूडर तथा रिचर्डसन (Cuder and Richardson) के विश्वसनीयता निकालने के सूत्रों का प्रयोग किया जाता है। वस्तुतः किसी मनोवैज्ञानिक परीक्षण की भिन्न-भिन्न विधियों द्वारा ज्ञात की गयी विश्वसनीयता का अर्थ भी भिन्न-भिन्न ही होता है; अतः इन विधियों को आवश्यकतानुसार ही प्रयोग में लाना चाहिए तथा परीक्षण की विश्वसनीयता का उल्लेख करते समय उस विधि का नाम भी बता देना चाहिए जिसके माध्यम से उसे ज्ञात किया गया है। वैधता (Validity) वैधता या प्रामाणिकता किसी भी मनोवैज्ञानिक परीक्षण की एक आवश्यक शर्त एवं विशेषता है। यदि कोई परीक्षण उस योग्यता अथवा विशेषताओं का यथार्थ मापन करे जिन्हें मापने के लिए उसे बनाया गया है, तो उस परीक्षण को वैध कहा जाएगा। उदाहरणार्थ-मान लीजिए, कोई परीक्षण बुद्धि मापन के लिए निर्मित किया गया है और प्रयोग करने पर वह बालक की बुद्धि का ही मापन करता है तो उसे वैध या ‘प्रामाणिक परीक्षण’ कहा जाएगा और उसका वह गुण वैधता या प्रामाणिकता कहलाएगा। कुछ विद्वज्जनों ने वैधता को निम्नलिखित रूप में परिभाषित किया है – (1) बोरिंग एवं अन्य विद्वानों के मतानुसार, “जिस वस्तु के मापन का प्रयत्न कोई परीक्षण करता है, उसकी जितनी सफलता से वह मापन कर लेता है यही उसकी वैधता कहलाती है।” (2) गेट्स एवं अन्य विद्वानों के अनुसार, “कोई भी परीक्षण प्रामाणिक होता है जब वह जिस गुण की हम परीक्षा करना चाहते हैं उसे वास्तविक रूप से और सही-सही मापता है।” (3) गुलिकसन के अनुसार, “किसी कसौटी के साथ परीक्षण का सहसम्बन्ध उसकी वैधता कहलाता है।” वैधता या प्रामाणिकता के प्रकार (Kinds of Validity) किसी मनोवैज्ञानिक परीक्षण में कई प्रकार की वैधता पायी जाती है। वैधता के मुख्य प्रकारों को उल्लेख नीचे किये जा रहा है – (1) रूप-वैधता (Face Validity)- रूप-वैधता के अनुसार परीक्षण देखने मात्र से वैध प्रतीत होता है। यहाँ परीक्षण के वास्तविक उद्देश्य से कोई सम्बन्ध नहीं होता अर्थात् यह नहीं देखा जाता कि उसे क्या मापने के लिए बनाया गया है, मात्र यह देखा जाता है कि परीक्षण बाह्य दृष्टि से क्या माप रहा है। अतः कोई भी परीक्षण बाहरी रूप से जो मापता हुआ प्रतीत होता है, वह उसकी रूप-वैधता कहलाती है। (2) विषय-वस्तु वैधता (Content Validity)— इसे पारिभाषिक वैधता या तार्किक वैधता के नाम से भी जाना जाता है। इस वैधता को सम्बन्ध व्यापकता के गुण से है। इसके अनुसार, परीक्षण जिस विशेषता या योग्यता का मापन कर रहा है, उसकी विषय-वस्तु के समस्त पक्षों से सम्बन्धित प्रश्न यदि उसमें मौजूद होंगे तो उसमें विषय-वस्तु वैधता कही जाएगी। (3) तात्त्विक या रचना सम्बन्धी वैधता (Construct of Factorial Validity)-तत्त्व या रचना से सम्बन्धित इस वैधता को ज्ञात करने के लिए तत्त्व विश्लेषण’ (Factor Analysis) नामक सांख्यिकी विधि प्रयोग की जाती है। यहाँ परीक्षण के उस तत्त्व से सहसम्बन्ध ज्ञात किया जाता है जो कि अनेकानेक परीक्षणों में उभयनिष्ठ होता है। (4) सामयिक या पद की वैधता (Concurrent of Status Validity)-सामायिक या पद। की वैधता में दिये गये परीक्षण का सह-सम्बन्ध किसी मानदण्ड (Criterion) से ज्ञात करना होता है। परीक्षण की सफलता का वर्तमान समय में ही मूल्यांकन किया जाता है। यदि इस प्रक्रिया में सफलता मिल जाती है तो कहा जा सकता है कि परीक्षण में सामयिक वैधता है। (5) पुर्वानुमान सम्बन्धी वैधता (Predictive validity)-इस प्रकार की वैधता के माध्यम से परीक्षण की भावी सफलता के बारे में पूर्वानुमान या भविष्यवाणी करने की सामर्थ्य ज्ञात की जाती है। इसके लिए प्रदत्त परीक्षण या किसी मानदण्ड से सहसम्बन्ध
ज्ञात किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त किसी प्रकार की शिक्षा या व्यवसाय की सफलता को भी मानदण्ड स्वीकार किया जा सकता है। परीक्षण से आप क्या समझते हैं बताइए?परीक्षण वह परीक्षण है जो किसी समूह से संबंधित व्यक्ति की बुद्धि व्यक्तित्व, अभिक्षमता एवं उपलब्धि को व्यक्त करती है। ''परीक्षण वह मानकीकृत परिस्थिति है, जिससे व्यक्ति का प्रतिदर्श व्यवहार निर्धारित होता है।''
परीक्षण क्या है इसके प्रकार?परीक्षण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं- अध्यापक निर्मित परीक्षण तथा मानकीकृत परीक्षण | अध्यापक निर्मित परीक्षणों की यही एक मुख्य सीमा होती है कि उनका प्रयोग क्षेत्र अत्यन्त सीमित होता है तथा इनका सफल प्रशासन कक्षा परिस्थितियों पर अत्यन्त निर्भर करता है।
परीक्षण का महत्व क्या है?किसी विषय के उपलब्धि परीक्षण में छात्र द्वारा अर्जित प्राप्तांक की कक्षा मानकों से तुलना करने पर अध्यापक को इस बात का संकेत मिलता है कि छात्र उक्त विषय में किस प्रकार प्रगति या उन्नति कर रहा है। इन मानकों से यह भी पता लगता है कि कक्षा का कोई छात्र किस सीमा तक एक निश्चित स्तर का कार्य कर सकता है।
परीक्षण से आप क्या समझते हैं परीक्षण निर्माण के समस्त पदों का वर्णन कीजिए?परीक्षण निर्माण का प्रथम चरण परीक्षण की योजना बनाना है। परीक्षण निर्माण के पूर्व परीक्षण निर्माता परीक्षण के उद्देश्य, विषय-वस्तु, माध्यम, प्रशासन एवं फलांकन विधि आदि का निर्धारण करता है। साथ ही इसको प्रभावित करने वाले कारकों जैसे आयु, लिंग, शिक्षा स्तर, ग्रामीण शहरी क्षेत्र आदि के सम्बन्ध में भी विचार कर लेता है।
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