पंचायत में महिलाओं को 50 आरक्षण कब दिया गया? - panchaayat mein mahilaon ko 50 aarakshan kab diya gaya?

समाज के वंचित वर्गों के सशक्तिकरण और समावेशी लोकतंत्र की मजबुती के लिए उनकी भागीदारी हेतु सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं। उदाहरणस्वरूपः

o 2006 में बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 के गठन एक ऐतिहासिक कदम था। इस नये अधिनियम से सभी कोटियों में एकल पदों सहित सभी पदों पर महिलाओं के लिए यथाशक्य 50 प्रतिशत पद आरक्षित किया गया है, जो पूरे देश में पहला ऐसा कदम था और उसके बाद कई राज्यों ने इसका अनुकरण किया है। फलतः वर्ष 2006 और पुनः वर्ष 2011 में करीब 50 प्रतिशत महिलाओं का चुनाव पंचायतों और ग्राम कचहरी के तमाम पदों पर हुआ। आज राज्य में कुल करीब ढ़ाई लाख निर्वाचित पंचायत एवं ग्राम कचहरी के प्रतिनिधि में करीब सवा लाख महिलाएं अपने-अपने क्षेत्र में नेतृत्वकारी भूमिका निभाने के लिए अपने घरों से निकल पड़ी हैं।

o इसके अतिरिक्त समाज के पिछड़े वर्गों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए पंचायत के पदों में पिछड़े वर्गों के लिए 20 प्रतिशत के यथाशक्य निकटतम आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

o आगे निर्वाचित प्रतिनिधियों एवं पदधारकों को आम जनों के प्रति जवाबदेह बनाने हेतु बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006 की धारा- 13, 15, 38, 40, 65, 67, 91 एवं 93 में संशोधन कर दो क्रमिक आम निर्वाचन के पश्चात् विहित रीति से चक्रानुक्रम में आरक्षण संबंधी प्रावधान किए गए है।

o साथ ही बिहार पंचायत राज अधिनियम , 2006 की धारा- 27, 55 एवं 82 में संशोधन करते हुए त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्थाओं को सम्पत्ति कर लगाने का प्रावधान किया गया है।

इंदौर, जेएनएन। सरकार ने पंचायतीराज संस्थाओं में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया है, लेकिन खुड़ैल खुर्द पंचायत के लोगों ने तो ग्राम पंचायत में शत-प्रतिशत पद महिलाओं को सौंपकर उनकी ही सरकार बना डाली, वह भी बिना चुनाव के। इस तरह 25 जून को मतदान से पहले ही खुड़ैल खुर्द पंचायत में स्थिति साफ हो चुकी है।प्रत्याशियों के आवेदन जमा होने के अंतिम दिन 6 जून को सरपंच और 13 वार्ड के पंच पदों के लिए केवल एक-एक आवेदन ही जमा किया गया।

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दरअसल, चुनावी प्रक्रिया शुरू होने पर सरपंच पद के लिए चार-पांच दावेदार सामने आए, लेकिन बाद में तय हुआ कि रामूखेड़ी की पढ़ी-लिखी आदिवासी महिला किरण रावत को सरपंच बनाया जाए। इसमें उनके पति धर्मेंद्र रावत की भी सहमति थी। खुड़ैल खुर्द पंचायत में खुड़ैल खुर्द, रामूखेड़ी और मुंडला जैतकरण गांव शामिल हैं। यहां सरपंच का पद अनुसूचित जनजाति महिला वर्ग के लिए आरक्षित किया गया है।

ग्रामीणों ने तय किया कि जब सरपंच को निर्विरोध चुन लिया तो क्यों न सभी 13 पंच पदों पर भी महिलाओं को ही आगे किया जाए? यह सुझाव सबको जंच गया और फिर सभी पंच पदों पर महिला प्रत्याशियों की तलाश शुरू हुई।

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लोकतंत्र में यह महिला सशक्तिकरण का भी उत्कृष्ट उदाहरण बनकर सामने आया है। मालूम हो कि जब बारी पंचायत के 13 पंच पदों की थी। इसमें सात पद तो महिलाओं के लिए पहले ही आरक्षित थे और छह पद मुक्त थे। गांव के जागरूक लोगों ने तीनों गांवों से 13 महिलाओं के नाम तय किए और उनके नाम निर्देशन-पत्र जमा कराए। इनमें दुर्गाबाई इंदरसिंह, सीमा गोपालसिंह सुनेर, धापूबाई सरदारसिंह, आरती श्याम प्रधान, रेखाबाई हरिसिंह, कुसुम रमेश कुशवाह, उर्मिला विनोद, अरुणा राजेश, सपना रमेश, पूजा दीपक, रीना राकेश, संतोषबाई सुनील और रामकन्या बाई लाखन शामिल हैं। इस पूरी प्रक्रिया में सहायक रिटर्निंग अधिकारी और नायब तहसीलदार प्रीति भिसे का भी काफी सहयोग रहा।  

ममता देवी साल 2006 और 2011 में नवादा ब्लॉक के कादिरगंज पंचायत से मुखिया रहीं। उसके बाद 2016 और 2021 में उन्होंने पौरा पंचायत से चुनाव लड़ा। ममता देवी के प्रधानी के कार्यकाल के दौरान उनके कादिरगंज स्थित आवास के निचले तले पर एक कार्यालय बनाया गया था जहां पंचायत के लोग अपनी मुखिया से मिलने आते थे। हालाँकि इस कार्यालय के अंदर नज़र डालने पर पता नहीं चलता है कि यह ममता देवी के लिए बना है।

इस कार्यालय में उनके पति श्रवण कुमार की एक तस्वीर टंगी दिखती है। अंदर के दो कमरों में श्रवण कुमार को मिले कुछ सम्मान सजा कर रखे गए हैं। लेकिन ममता देवी की एक तस्वीर तकनजर नहीं आती है।

साल 2006 में, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य की पंचायतों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण की शुरुआत की थी ताकि अधिक से अधिक महिलाएं मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हो सकें। बिहार, देश का पहला राज्य था जहां सबसे पहले महिलाओं के लिए पंचायतों में आधी सीटें आरक्षित की गई।

लेकिन इस आरक्षण के लागु होने के 15 साल बाद भी एक महिला मुखिया के लिए निर्णायक की भूमिका में काम कर पाने के रास्ते में कई समस्याएं हैं।

बिहार में 2021 के पंचायत चुनाव में 8,072 मुखिया पदों के लिए 11 चरण में चुनाव हुए जिनमें 3,585 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित थीं। जिसमें अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए 90 सीट और पिछड़ा वर्ग के लिए 1,357 सीट थीं।

काम सीखने में परिवार है पहली रुकावट

ममता देवी से मिलने के लिए उनके आवास के पहले तले पर जाना पड़ा, वे नीचे बैठकी में नहीं आईं।

उन्होंने बहुत ही धीमे स्वर बताया कि किसी अन्य ग्रामीण महिला की ही तरह उनकी शादी भी 16-17 साल की उम्र में हो गयी थी। इस बार के चुनाव प्रचार के बारे में बताते हुए वह कहती हैं, "प्रचार के समय 'मुखिया जी' (श्रवण कुमार) देर देर से घर लौटते थे। मैं तो इस बार केवल एक दिन बाहर निकली प्रचार में।"

"मुखिया जब थी तब कुछ कागज़ साइन करवाने कोई आता था तो नीचे से कोई आदमी पेपर ऊपर ले आता था और मैं साइन करके दे देती थी," वह आगे बताती हैं।

ममता देवी के घर में बना कार्यालय जहाँ उनके पति की तस्वीर लगी है।

पंद्रह साल तक मुखिया रहीं ममता देवी मानती हैं कि सरकारी स्कीमों की जानकारी उनके पति को ज़्यादा है। वह आगे कहती हैं, "मायके में कभी बाहर नहीं घूमे। मन करता है जाने का बाहर लेकिन कैसे जाएं।" उनकी बातों से पता चलता है कि उन्हें अपने पद और काम को समझने और वोटरों के साथ एक रिश्ता क़ायम करने में उनके पति से किसी प्रकार का बढ़ावा नहीं मिला।

ममता देवी के पति श्रवण कुमार साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में नवादा विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार थे और आजकल एमएलसी के चुनाव की तैयारियां कर रहे हैं।

श्रवण कुमार कहते हैं, "देहात की औरत क्षेत्र में घूमना नहीं चाहती है। माइक पर बोल भी नहीं सकती है। हम लोग को भी कोई शौक़ नहीं है परिवार की महिला को सड़क पर घुमाने का। दस बार बोलेंगे तो एक बार किसी के साथ कहीं जाएगी।" कुमार के अनुसार राजनीति एक 'गंदी चीज़' है जिसमें वे आ गए हैं लेकिन परिवार को इससे दूर रखना चाहते हैं।

महिलाओं के पंचायत स्तर की राजनीति में आरक्षण के बावजूद भी आगे न बढ़ पाने के पीछे की कुछ मुख्य वजहों में अशिक्षा, कम उम्र में विवाह और वित्तीय असुरक्षा शामिल हैं। इन कारणों के चलते निर्वाचित होने के बावजूद भी महिलाएं सार्वजनिक जीवन में काम करने का आत्मविश्वास नहीं जुटा पाती हैं।

साल 2019 के जेंडर कार्ड के अनुसार बिहार में महिलाओं की साक्षरता दर राष्ट्रीय स्तर के 64.6% के मुकाबले 51.5% है। शिक्षा की ख़राब स्थिति के कारण कम उम्र में विवाह हो जाने की सम्भवना ज्यादा रहती है। केवल 11.3% महिलाओं के नाम पर घर है और 58% के घर पति के नाम के साथ जोड़ कर लिखे गए हैं। तीन में से 1 महिला पारिवारिक स्तर पर लिए गए फैसलों में निर्णायक भूमिका निभाती है।

किशनगंज, मधुबनी, वैशाली, पूर्वी चंपारण में इक्विटी फाउंडेशन द्वारा की गई स्टडी के मुताबिक 15-19 साल की 46% महिलाएं विवाहित हैं। करीब 59% महिलाएं जो स्टडी के समय 45-49 वर्ष की थीं की शादी 15 साल की उम्र से पहले कर दी गयी थी। केवल 20% महिलाओं को घर से बाहर बाज़ार या किसी रिश्तेदार के यहां जाने के लिए किसी अनुमति की जरूरत नहीं पड़ती।

"अब जनिया (महिला) जात मुखिया बन गयी लेकिन जरा देर से घर आई तो अगले दिन मर्द कहेगा तुम मत जाओ लाओ हम ही करवा देते हैं काम," पौरा पंचायत की वोटर अवगिलली देवी (बदला हुआ नाम) कहती हैं।

ट्रेनिंग की कमी

दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के समाजशास्त्र विभाग से पंचायतों में महिलाओं के आरक्षण और महिला सशक्तिकरण पर शोध कर रही शिवांगी पटेल कहती हैं, "आप प्रधान से मिलने जाएंगे तो पहले उनके पति या ससुर या भाई से मिलना होगा। बहुत कहने पर महिला जो जनप्रतिनिधि है उनसे आपको मिलवाया जाएगा।"

शिवांगी की स्टडी के अनुसार मुखिया का काम जहां लोगों के साथ घर के बाहर काम करना है, लोगों की जरूरत और सरकार की स्कीम के बीच तालमेल क़ायम करना है, बिना ट्रेनिंग होना असंभव है। बिहार में महिलाओं की राजनीति में भागीदारी जितनी न्यूनतम है उसे देखते हुए सरकार को उचित ट्रेनिंग की व्यवस्था करनी चाहिए थी।

"इसलिए कई बार जो महिलाएं ठीक-ठाक आर्थिक बैकग्राउंड से आती हैं, परिवार का पॉलिटिकल बैक-अप है, जो ठीक-ठाक पढ़ीं लिखीं हैं वे अच्छा काम कर लेती हैं। उनके पास चुनाव में लगने वाली पूंजी होती है," शिवांगी कहती हैं।

हरला गाँव की जीविका परियोजना की कम्युनिटी मोबिलाइज़र सुनीता कुमारी कभी उनके गाँव की मुखिया, जो कि एक महिला है, से नहीं मिली हैं। "प्रचार के समय खाली मर्द लोग आता है दीदी। औरतीयन नहीं निकलती है। सब जात देख कर वोट देता है। ये नहीं समझता कि उसको जितवाएँ जो काम करे," सुनीता कहती हैं।

'जीविका' बिहार सरकार द्वारा पॉलिसी के जरिये महिला सशक्तिकरण के लिए चलाई गई एक परियोजना है।

"यहां मुखिया से मिलने जाएगा तो मिलने नहीं देगा। सब जेन्स (आदमी) लोग बैठे रहता है। उसको जितवा के मूर्ति जैसा रख दिया है खाली। लेकिन कल को कोई ऊंच नीच हुआ तो भोगना औरत को पड़ेगा, जांच उसका नाम से आएगा," वह आगे बताती हैं।

सेंटर फॉर केटेलाइज़िंग चेंज की एक स्टडी का हिस्सा रहीं महिला पंचायत प्रतिनिधियों में से 77% को लगता था कि उनके मतदान क्षेत्र में कुछ ख़ास बदलाव करने में वे सक्षम नहीं हैं। वहीं अधिकतर प्रतिभागियों का मानना था कि घरेलू हिंसा की पुलिस से शिकायत करने पर घर की 'शांति' भंग होती है।

एक सफल उदाहरण

ममता देवी के केस से एकदम अलग केस है सीतामढ़ी की सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया रहीं ऋतू जायसवाल का। ऋतू 2016 में सिंहवाहिनी पंचायत की मुखिया बनी थीं। गाँव आने से पहले वे दिल्ली में रहती थीं, वे एक शिक्षिका रह चुकी हैं। उनके पति अरुण कुमार सिविल सर्वेंट रह चुके हैं। वे जिस सीट पर चुनाव जीतीं थीं वह महिला आरक्षित सीट नहीं थीं।

ऋतू जायसवाल अपनी पंचायत की महिलाओं के साथ।

पंचायत में किये काम के दम पर देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने ऋतू को साल 2019 में चैंपियंस ऑफ चेंज अवार्ड से सम्मानित किया है। इस बार उसी पंचायत से उनके पति अरुण कुमार मुखिया बने हैं। ऋतू बताती हैं कि अब वे पूरे बिहार के लिए काम करना चाहती हैं इसलिए इस बार मुखिया चुनाव नहीं लड़ीं। ऋतू ने राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा था। वे कहती हैं, "इसमें कोई दो राय नहीं है कि अरुण जी को मेरे काम के बदौलत भी वोट मिला है, क्योंकि जब मैं मुखिया थी मैंने लोगों के लिये काम किया। उनका मुझ पर विश्वास है।"

महिला वोटरों और महिला मुखिया के बीच के सम्बंध पर वे अपने निजी अनुभव बताती हैं, "औरत जब सत्ता में आती है तो अन्य औरतों के किचन से बेडरूम तक की समस्या के लिए काम कर सकती है। क्योंकि वो खुद इन समस्याओं को समझती है।" रितु जायसवाल के पंचायत में उन्हें देखकर कई महिलाओं का मनोबल बढ़ता है जब वे एक महिला को क्षेत्र में घूमते और अपना सारा काम खुद करते देखती हैं।

अनुसूचित जाति की मुखिया और दोहरा भेदभाव

नवादा जिले के बहेरा गाँव की मुखिया सीट साल 2016 से अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित है। साल 2021 के चुनावों में इस सीट पर मुसहर समुदाय से आने वाली निर्मला देवी ने जीत हासिल की।

निर्मला देवी ने 2016 के चुनाव में जीतने वाली अमीरका देवी को हराकर जीत हासिल तो की लेकिन इन दोनों उम्मीदवारों में एक समानता यह है कि इन दोनों को ही 'डमी' कैंडिडेट के रूप में खड़ा किया गया था।

निर्मला देवी की जीत के पीछे अहम व्यक्ति रहे अरुण कुमार बताते हैं, "अमरीका देवी को कुछ आता जाता नहीं है। राजेन्द्र यादव के खेत में काम करती थीं। सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुई तो उनको खड़ा कर दिया गया। इस बार सोनू महतो ने उनके विरोध में निर्मला को खड़ा किया।"

"राजेन्द्र यादव पंचायत में दो टर्म से अपने केंडिडेट खड़े कर रहे हैं। पिछली मुखिया क्यों हारी, क्योंकि राजेंद्र यादव दूर रहते थे और लोगों को उनसे मिलने में दिक्कत होती थी," अरुण आगे बताते हैं।

अरुण बताते हैं, "निर्मला को चुना गया क्योंकि ये सीधी है। जो बोलेंगे सुनेगी। बदले में इसको भी कमीशन मिलेगा ही। सोनू जी पंचायत का विकास करेंगे। अनुसूचित महिला का सीट था तो लड़वाना पड़ा।"

हालाँकि, निर्मला देवी के चुनाव जीतने के बाद उनके जीवन में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखाई देता है। वह पहले गाँव के बाहर रहती थीं लेकिन अब जीतने के बाद गांव के अंदर रहने लगी हैं। यहां उनके समुदाय के लगभग 150 घर हैं।

बाकी गांव की तुलना में इस तरफ़ पतली संकरी गली हैं, घर की छतें नीची हैं, बिजली के तार उलझे और एकदम नीचे से गए हैं।

गांव का वह इलाका जहां निर्मला देवी रहती हैं।

अनुसूचित जाति की महिला मुखियाओं के बारे में बात करते हुए शिवांगी पटेल कहती हैं, "रिजर्वेशन से बिहार में पंचायत स्तर पर महिलाओं के सोशल कंडीशन में सुधार बहुत कम है। अगर महिला अनुसूचित जाति से है, ग़रीब है तो उन्हें जीत जाने के बाद भी अगले टर्म में लड़ने की न मोटिवेशन होती है, न आर्थिक क्षमता, और न ही अकेले उस तरह का सामाजिक सपोर्ट। कई बार बड़ी जातियों के लोग गाँव में न उनका सम्मान करते हैं, न उनके पद का। बिना सोशल एक्सेप्टेंस मिले काम करना मुश्किल है।"

भारत में पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50% आरक्षण देने वाला कौन सा राज्य है?

वर्तमान में बिहार, हिमाचल प्रदेष, उत्तराखण्ड, राजस्थान और केरल ने पंचायत में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाकर 50% कर दिया है।

राजस्थान में महिलाओं को 50 आरक्षण कब दिया गया?

महिलाओं का आरक्षण वर्ष 2010 के आम चुनाव के अनुसार 50 प्रतिशत रखा जावेगा । की धारा-15 व 16 तथा पंचायती राज (निर्वाचन) नियम, 1994 के नियम 5 से 9 के प्रावधानों के अनुसार किया जावेगा ।

भारत में महिलाओं के लिए शासन के कौन से स्तर पर सीटो को आरक्षित किया गया है?

सही उत्‍तर पंचायती राज निकाय है। भारत में, पंचायत राज निकायों में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित हैं जो स्थानीय स्वशासी निकाय हैं। 73वें संशोधन अधिनियम के अनुसार, कुल सीटों के अलावा 1/3 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं।

भारत में महिलाओं को कितने प्रतिशत स्थान आरक्षित हैं?

अभी भारत के संसद में महिलाओं को 33% का आरक्षण भले ही नहीं प्राप्त हो पाया हो लेकिन पंचायतों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित हैं। अधिकांश राज्यों में इस आरक्षण को 33% से बढ़ाकर 50% कर दिया है। इन राज्यों में पंचायतों के प्रत्येक दूसरा पद महिलाओं के लिए आरक्षित है।