नवाब साहब के खीरा खाने के ढंग और नई कहानी के कहानीकारों में लेखक ने क्या समानता बताई है *? - navaab saahab ke kheera khaane ke dhang aur naee kahaanee ke kahaaneekaaron mein lekhak ne kya samaanata bataee hai *?

नवाब साहब खीरा खाने के अपने ढंग के माध्यम से क्या बताना चाहते थे?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: (ख) नवाब खीरा खाने के अपने ढंग से यह दिखाना चाहते थे कि खीरा गरीबों का फल है और उसे खाना नवाबों की शान के खिलाफ है। इसलिये उन्होंने खीरे को काटकर भी नही खाया। (ग) नवाब ने खीरा काटने के बाद उसे फेंक कर अपनी खीज मिटाने के लिए बहाना बना दिया कि खीरा उनके पेट के लिए ठीक नहीं होता इसके लिए उन्होंने खीरा नही खाया।

नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह क्यों नहीं दिखाया होगा?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर: लेखक के अचानक डिब्बे में कूद पड़ने से नवाब-साहब की आँखों में एकांत चिंतन में विघ्न पड़ जाने का असंतोष दिखाई दिया तथा लेखक के प्रति नवाब साहब ने संगति के लिए कोई विशेष उत्साह नहीं दिखाया। इससे लेखक को स्वयं के प्रति नवाब साहब की उदासीनता का आभास हुआ।

नवाब साहब क्यों थक गए थे?

इसे सुनेंरोकेंउत्तरः नवाब साहब ने अपनी नवाबी का परिचय देने के लिए खीरा खाने के स्थान पर उसकी फाँकों को सूँघ-सूँघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया और वे इस क्रियाकलाप से थक गए ऐसा दिखाने के लिए लेट गए और लेखक को दिखाने के लिए डकार भी ली। प्रश्न 12.

नवाब साहब ने खीरे खाने के लिए क्या तैयारी की?

इसे सुनेंरोकेंनवाब साहब ने खीरा खाने की तैयारी कैसे की? नवाब साहब ने खीरों के नीचे रखा तौलिया झाड़कर अपने सामने बिछा लिया। सीट के नीचे से पानी का लोटा निकाल कर खीरों को खिड़की से बाहर धोया और तौलिए से पोंछ लिया। जेब से चाकू निकाल कर दोनों खीरों के सिर काटकर उन्हें गोदकर उनका झाग निकाला।

नवाब साहब के खीरा खाने के ढंग और नई कहानी के कहानीकारों में लेखक ने क्या समानता बताई है *?

इसे सुनेंरोकेंनवाब बड़े सलीके से खीरे को खाने की तैयारी करता है लेकिन उसे लेखक के सामने खीरा खाने में संकोच होता है इसलिए अपने नवाबी अंदाज में लजीज रूप से तैयार खीरे को केवल सूँघकर खिड़की के बाहर फेंक देता है।

नवाब साहब का मुंह पल्लवित क्यों हो रहा था?

इसे सुनेंरोकेंनवाब साहब ने बहुत करीने से खीरे की फाँकों पर जीरा-मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्खी बुरक दी। उनकी प्रत्येक भाव-भंगिमा और जबड़ों के स्फुरण से स्पष्ट था कि उस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रसास्वादन की कल्पना से प्लावित हो रहा था।

नवाब साहब के खीरा खाने के ढंग और नई कहानी के कहानीकारों में लेखक ने क्या समानता बताई है?

नवाब साहब के खीरा खाने के ढंग और नई कहानी के कहानीकारों में लेखक ने क्या समानता बताई है *? इसे सुनेंरोकेंनवाब बड़े सलीके से खीरे को खाने की तैयारी करता है लेकिन उसे लेखक के सामने खीरा खाने में संकोच होता है इसलिए अपने नवाबी अंदाज में लजीज रूप से तैयार खीरे को केवल सूँघकर खिड़की के बाहर फेंक देता है

लेखक ने नई कहानी के लेखक किसे और क्यों कहा है?

लेखक ने नवाब साहब को नई कहानी का लेखक कहते हुए व्यंग किया है। नवाब साहब की कहानी में ना तो कोई भाव है और ना ही कोई शिक्षा है। उनकी कहानी में ना ही कोई मनोरंजन है और न ही उसमें कोई विषय या कोई उद्देश्य है। अपनी झूठी शान के लिए नवाब साहब कभी भी कुछ भी कर सकते थे।

नवाब साहब ने लेखक के सामने खीर खाने का कौन सा तरीका अपनाया?

नवाब साहब दूसरों के सामने साधारण-सा खाद्‌य पदार्थ खीरा खाना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने खीरे को किसी कीमती वस्तु की तरह तैयार किया। उस लजीज खीरे को देखकर लेखक के मुँह में पानी आ गया था। अब नवाब साहब की इज्जत का सवाल था इसलिए उन्होंने खीरे की फाँक को उठाया नाक तक ले जाकर सूंघा।

लेखक ने खीरा खाने से मना क्यों कर दिया?

खीरा खाने की इच्छा होते हुए भी लेखक ने उसे खाने से इंकार क्यों कर दिया? नवाब साहब की भाव-भंगिमा देखकर लेखक के मन में यह विचार आया कि नवाब साहब का मुँह खीरे के स्वाद की कल्पना से ही भर गया है। पूर्व में इनकार कर चुकने के कारण आत्मसम्मान की रक्षा के लिए लेखक ने खीरा खाने से इंकार कर दिया