भारत के Fundamental Rights या मौलिक अधिकार हिंदी में- प्रकार, कौन-कौन से हैं, विशेषता, महत्व, निबंध, किस देश से लिया है, संविधान भाग 3. Show
Fundamental Rights या मौलिक अधिकार क्या है?मौलिक अधिकार का अर्थ होता है वे अधिकार जो व्यक्ति के जीवन के मौलिक रूप से आवश्यक है, जिसे संविधान देश के नागरिकों को प्रदान करती है. ये अधिकार किसी भी देश के संविधान के द्वारा वहां के नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं, जो नागरिकों के जीवन-यापन व सुरक्षा के दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण है, Fundamental Rights या मौलिक अधिकार की रक्षा देश की सर्वोच्च न्यायलय करता है। भारतीय संविधान के अंतर्गत मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) एक महत्वपूर्ण भाग है ! इस भाग से लगभग सभी Exam में एक न एक Question आता ही है, तो आज हम आपको मौलिक अधिकारों के वारे में संपूर्ण जानकारी देंगे… मौलिक अधिकार का परिचयFundamental Rights भारत के प्रत्येक नागरिक को प्राप्त होता है।जिसने भारत की Citizenship ली है वह इसका हकदार होता है और भारत सरकार इसे सामान्य condition में सीमित नहीं कर सकती।संविधान सभी नागरिकों के लिए Individual और सामूहिक रूप से कुछ बुनियादी स्वतंत्रता देता है। जिन देशों के संविधान में मौलिक अधिकार का वर्णन नहीं होता है अथवा मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) को संविधान में जगह नहीं मिलती है तो वह देश जल्द ही तानाशाही देश के रूप में Change हो जाता है ।राज्य शक्ति को यदि संवैधानिक रूप से Control में रखना है और राज्य की जनता को उनके Fundamental Rights देना है तो संविधान में मौलिक अधिकार Important होता है।यह व्यक्ति की मूलभूत स्वतंत्रता कोSecure करता है। मौलिक अधिकार को संविधान के भाग-3 में Article 12 से 35 तक Describe किया गया है। मौलिक अधिकार वे मूलभूत अधिकार हैं जो किसी व्यक्ति के जीवनयापन हेतु मौलिक एवं अनिवार्य होने के कारण संविधान के द्वारा Citizens को Provide किया जाताहैं । संविधान के भाग III को ‘भारत का मैग्नाकार्टा’ की संज्ञा दी गई है। ये अधिकार कई कारणों से मौलिक हैं- Why Fundamental Rights are Fundamental1. इन अधिकारों को मौलिक इसलिये कहा जाता है क्योंकि इन्हें देश के संविधान में स्थान दिया गया है तथा संविधान में संशोधन की प्रक्रिया (TheProcess of constitutional amendment) के अतिरिक्त उनमें किसी प्रकार का संशोधन नहीं किया जा सकता। 2. ये अधिकार व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष के विकास हेतु मूल रूप में आवश्यक हैं, इनके अभाव में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास अवरुद्ध (Block) हो जायेगा। 3. इन अधिकारों का उल्लंघन (violation) नहीं किया जा सकता (Fundamental rights cannot be violated)। 4. मौलिक अधिकार न्याय योग्य (justifiable) हैं तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त होते है। मौलिक अधिकार का निर्माणभारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है ।भारतीय संविधान में सभी उपबन्धों (provisions) को विस्तृत और व्यापक रूप में अधिकारों को mentionकिया गया है। यह संघात्मक संविधान (Constitutional Constitution) का सबसे बड़ा रूप है ।सभी आधुनिक संविधानों में मूल अधिकारों (Fundamental rights) का उल्लेख है। इसलिए संविधान के अध्याय 3 को भारत का अधिकार – पत्र (Magna carta) कहा जाता है। ‘मैग्नाकार्टा’ अधिकारों का वह प्रपत्र है, जिसे इंग्लैंड के किंग जॉन द्वारा 1215 में सामंतों के दबाव में जारी किया गया था। यह नागरिकों के fundamental rights से related पहला लिखित प्रपत्र था।इस दस्तावेज को मूल अधिकारों का जन्मदाता कहा जाता है। इसके पश्चात् समय-समय पर सम्राट् ने अनेक अधिकारों को स्वीकृति प्रदान की। फ्रांस में सन् 1789 में जनता के मूल अधिकारों की एक Separate Record के रूप में announce की गयी, जिसे मानव एवं नागरिकों के अधिकार घोषणा-पत्र के नाम से जाना जाता है। इसमें उन अधिकारों को प्राकृतिक अप्रतिदेय (inalienable) और मनुष्य के पवित्र अधिकारों (Holy rights) के रूप में उल्लिखित किया गया है; यह Document एक लम्बे और Hard Work का result था। जब भारत का संविधान निर्माण हो रहा था तो ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तैयार थी जिसमें इंग्लैंड और फ्रांस के मूल अधिकारों के बारे में भारतीय विद्वानों ने अध्ययन (Study & Research) किया और उसके फलस्वरुप भारतीय संविधान में मूल अधिकारों को शामिल किया।भारतीय संविधान में मूल अधिकारों की कोई परिभाषा नहीं की गई है। मौलिक अधिकार किस देश से लिया गया है:-संविधान के भाग 3 में उल्लेखित Article12 से 35 मौलिक अधिकारों के संबंध में है जिसे सऺयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है । मौलिक अधिकार सरकार को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हालतउपयोग करने से रोकने के साथ नागरिकों के अधिकारों की समाज द्वारा अतिक्रमण से रक्षा करने का दायित्व भी राज्य पर डालते हैं। Fundamental Rights के प्रकारमूल संविधान में सात मौलिक अधिकार थे परन्तु वर्तमान में छः ही मौलिक अधिकार हैं | संविधान द्वारा मूल रूप से सात मूल अधिकार प्रदान किए गए थे- i) समानता का अधिकार, ii) स्वतंत्रता का अधिकार, iii) शोषण के विरुद्ध अधिकार, iv) धर्म स्वतंत्रता का अधिकार, v) संस्कृतिएवंशिक्षाकीअधिकारvi) संपत्ति का अधिकार तथा vii) संवैधानिक उपचारों का अधिकार। हालांकि, संपत्ति के अधिकार को 1978 में 44वें संशोधन द्वारा संविधान के तृतीय भाग से हटा दिया गया था। भारत के नागरिकों को प्राप्त 6 मौलिक अधिकार कौन-कौन से हैं:
साधारण कानूनी अधिकारों को राज्य द्वारा लागू किया जाता है तथा उनकी रक्षा की जाती है जबकि मौलिक अधिकारों को देश के संविधान द्वारा लागू किया जाता हैतथा संविधान द्वारा ही सुरक्षित किया जाता है। भारतीय संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का वर्णन या हमारे संविधान में नागरिकों को कितने मौलिक अधिकार प्रदान किए गए हैं। 1. समानता काअधिकार (Right to equality)समता का अधिकार Article 14 से 18 तक वर्णित है जिसमें बताया गया है:-
2. स्वतंत्रता का अधिकार (Right to freedom)अनुच्छेद 19 से22 तक सभी नागरिकों को स्वतंत्रता के छह अधिकारों की गारंटी देता है: अनुच्छेद 19: संविधान में 6 तरह की स्वतंत्रता का उल्लेख है।
अनुच्छेद 20: अपराध के लिए दोषसिद्धि के संबंध में 3 तरह की स्वतंत्रता का उल्लेख है।
अनुच्छेद 21: प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का सरंक्षण- किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रकिया के अतिरिक्त उसके जीवन और वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। अनुच्छेद 21(क): राज्य 6 से 14 वर्ष के आयु के समस्त बच्चों के लिए निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा। अनुच्छेद 22: कुछ दशाओं में गिरफ़्तारी और निरोध में संरक्षण– अगर किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से हिरासत में ले लिया गया हो, तो 3 प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (right against exploitation)अनुच्छेद (23-24) के अंतर्गत निम्न अधिकार वर्णित हैं-
नोट:-जरूरत पड़ने पर राष्ट्रीय सेवा करने के लिए Force किया जा सकता है। 4. धार्मिक स्वतंत्रता काअधिकार (Right to religious freedom)Article (25-28) के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार वर्णित हैं:
5. सांस्कृतिक तथा शैक्षिकअधिकार (Cultural and education related rights)अनुच्छेद(29-30) के अंतर्गत प्राप्त अधिकार-
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to constitutional remedies)डॉ॰ भीमराव अंबेडकर जी ने संवैधानिक उपचारों के अधिकार (Article 32-35) को संविधान का हृदय और आत्मा (Heart and soul of constitution) की संज्ञा दी थी। सांवैधानिक उपचार के अधिकार के अन्दर 5 प्रकार के प्रावधान हैं।
अनुच्छेद 34:– जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर निर्बन्धन अनुच्छेद 35:- उपबंधों को प्रभावी करने के लिए विधान संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार की विशेषताएं: :
उक्त पाँचों के अतिरिक्त भारत में निवास करने वाले व्यक्तियों को जो भारत के नागरिक न हो, संविधान में अन्तर्विष्ट सभी मूलाधिकार प्राप्त हैं। 2. मूल अधिकारों पर युक्तियुक्त निर्बन्धन लगाये जा सकते हैं, ताकि व्यक्तिगत अधिकारों को जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए सीमित किया जा सके। निर्बन्धन युक्तियुक्त है या नही, इसका निर्णय न्यायालय करता है। 3. अनुच्छेद 20 तथा 21 में अन्तर्विष्ट मूलाधिकारों (अपराधों के लिए दोषसिद्धि के सम्बंध में संरक्षण तथा प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण) को छोड़कर सभी मूलाधिकार राष्ट्रीय आपातकाल में निलंबित हो जाते हैं। राष्ट्रीय आपातकाल में अनुच्छेद 19 में अन्तर्विष्ट मूलाधिकार (वाक् स्वातन्त्र्य आदि विषयक कुछ अधिकार) स्वतः निलंबित हो जाते है, जबकि अन्य मूलाधिकार राष्ट्रपति के आदेश से निलंबित होते हैं। 4. मूल अधिकारों का निलंबन किया जा सकता है लेकिन संविधान से इन्हे निकाला नहीं जा सकता। 5. संविधान में अंतर्विष्ट मूलाधिकारों में से कुछ नकारात्मक है क्योंकि वे राज्य की शक्ति को सीमित करते है, जैसे अनुच्छेद 15 में वर्णित मूलाधिकार जबकि कुछ अधिकार सकारात्मक है, जो नागरिको को स्वतंत्रताएं प्रदान करते हैं, जैसे अनुच्छेद 19 में उल्लिखित मूलाधिकार। 6. मूल अधिकारों का अल्पीकरण नहीं किया जा सकता। मूल अधिकारों का अल्पीकरण करने वाली विधियां अल्पीकरण करने की सीमा तक शून्य होती है। (अनुच्छेद 13) (2) 7. मूल अधिकारों की उलंघन की स्थिति में उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर अनुतोष प्राप्त किया जा सकता है। 8. जिन व्यक्तियों को मूलाधिकार प्रदान किया गया है, वे उनका अधित्याग नहीं कर सकते। Fundamental Rights FAQ: हमारे मौलिक अधिकार कौन कौन से हैं?भारतीय संविधान द्वारा भारत के प्रत्येक नागरिक को 6 तरह की मौलिक अधिकार प्रदान किय गए हैं। 1. समानता का अधिकार, 2. स्वतंत्रता का अधिकार , 3. शोषण के विरूद्ध अधिकार, 4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, 5.शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार, 6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार। फंडामेंटल राइट्स कहाँ से लिया गया?फंडामेंटल राइट्स कहाँ अमेरिका से लिया गया है। मौलिक अधिकार क्यों आवश्यक है?मौलिक अधिकार वे अधिकार होते हैं जो संविद्धान द्वारा देश के नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं, ये अधिकार व्यक्ति सर्वांगीण विकास के लिए बहुत आवश्यक हैं, ये अधिकार तानाशाही शासन से रक्षा करता है, शोषण होने बचाता है, न्याय दिलाता है। सर्वाधिक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार कौन सा है?संविधान द्वारा भारत के प्रत्येक नागरिकों को छः तरह के मौलिक अधिकार प्रदान किये गए हैं, ये सभी अधिकार लोगों के सर्वांगीण लिए अति महत्वपूर्ण हैं, डॉ. भीमराव आंबेडकर ने संवैधानिक उपचारों के अधिकार को ांविधान का आत्मा कहा है। मौलिक कर्तव्य कितने है?संविधान में 11 तरह के मौलिक कर्तव्य निहित हैं। नागरिकों के मूल अधिकारों का संरक्षक कौन है?नागरिकों के मूल अधिकारों का संरक्षक उच्चतम न्यायलय है, जो की दिल्ली में स्थित है। अब तक भारतीय संविधान में कितने संशोधन हो चुके हैं?भारतीय संविधान में अब तक 103 संसोधन हो चुके हैं। भारतीय संविधान में मूल अधिकार कहाँ से लिए गए हैं?भारतीय संविधान में मूल अधिकार अमेरिका के संविधान से लिया गया है। भारतीय संविधान में प्रथम मौलिक अधिकार कौन सा है?समानता का अधिकार भारतीय संविधान में प्रथम मौलिक अधिकार है। मौलिक अधिकारों में संशोधन कौन कर सकता है?मौलिक अधिकारों में किसी भी प्रकार का परिवर्तन या संशोधन संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत से किया जा सकता है। मौलिक अधिकारों का निलंबन कौन कर सकता है?अनुच्छेद 359 के तहत, राष्ट्रपति को राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए किसी भी न्यायालय को स्थानांतरित करने का अधिकार, निलंबित करने के लिए अधिकृत है। मौलिक अधिकार कब लागू हुआ?26 जनवरी 1950, को जब भारत में संविधान लागु किया गया था, तब संविधान के लागु होते ही मालिक अधिकार स्वतः लागु हो गए थे। कौन सा अधिकार नागरिकों को अदालत में जाने की अनुमति देता है?अनुच्छेद 32 के तहत सभी भारतीय नागरिकों को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में सर्वोच्च न्यायालय में जाने की अनुमति देता है। मूल अधिकारों पर प्रतिबंध कौन लगा सकता है?आपातकाल की स्थिति में संसद मूल अधिकारों पर प्रतिबंध लगा सकता है? मौलिक अधिकार क्यों आवश्यक है?देश के नागरिकों के सर्वांगीण विकास के लिए मौलिक अधिकार आवश्यक है? संपत्ति के मौलिक अधिकार को कब समाप्त किया गया?1978 में 44वे संविधान संसोधन में संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से हटा दिया। गया अनुच्छेद ३०० क्या है?भारतीय संविधान का अनुच्छेद 300 a संपत्ति के अधिकार से संबंधित है। संपत्ति अधिकार की वर्तमान स्थिति क्या है?अनुच्छेद 31 में संपत्ति के अधिकार का वर्णन था, किन्तु 44वें संविधान संशोधन के द्वारा 1978 में संपत्ति के अधिकार
को मौलिक अधिकार से विधिक अधिकार में परिवर्तित कर दिया गया। 6 मौलिक अधिकार कौन से हैं?मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण
स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 19 से 22 तक। शोषण के विरुध अधिकार : अनुच्छेद 23 से 24 तक। धार्मिक स्वतंत्रता क अधिकार : अनुच्छेद 25 से 28 तक। सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बंधित अधिकार : अनुच्छेद 29 से 30 तक।
मौलिक अधिकार कितने हैं और कौन कौन है?मौलिक अधिकार पहले 7 थे, अब 6 है।
मूल संविधान में 7 प्रकार मौलिक अधिकार थे, लेकिन 44 वें संविधान संशोधन, 1978 के द्वारा संपत्ति का अधिकार (अनु. 31) को हटाया गया और इसे संविधान के अनु. 300(a) में कानूनी अधिकार के रूप में रखा गया। इस प्रकार आज भारतीय संविधान में 6 मौलिक अधिकार का वर्णन हैं।
हमारे मौलिक अधिकार क्या है?मौलिक अधिकारों का अर्थ
इन अधिकारों को मौलिक इसलिये कहा जाता है क्योंकि इन्हे देश के संविधान में स्थान दिया गया है तथा संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के अतिरिक्त उनमें किसी प्रकार का संशोधन नही किया जा सकता।
अधिकार कितने प्रकार के होते हैं?अधिकार के प्रकार. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18). स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22). शोषण के विरूद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24). धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28). सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30). संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32). |