लेखिका के व्यक्तित्व पर किन किन व्यक्तियों का प्रभाव पड़ा कैसे? - lekhika ke vyaktitv par kin kin vyaktiyon ka prabhaav pada kaise?

इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों संबोधित किया है?


लेखिका के पिता का मानना था, कि रसोई के काम में लग जाने के कारण लड़कियों की क्षमता और प्रतिभा नष्ट हो जाती है। वे पकाने – खाने तक ही सीमित रह जाती हैं और अपनी सही प्रतिभा का उपयोग नहीं कर पातीं। इस प्रकार प्रतिभा को भट्टी में झोंकने वाली जगह होने के कारण ही वे रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर संबोधित करते थे।

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लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा?


लेखिका के जीवन पर दो लोगों का विशेष प्रभाव पड़ा:
पिता का प्रभाव – लेखिका के जीवन पर पिताजी का ऐसा प्रभाव पड़ा कि वे हीन भावना से ग्रसित हो गई। इसी के परिणामस्वरुप उनमें आत्मविश्वास की भी कमी हो गई थी। पिता के द्वारा ही उनमें देश प्रेम की भावना का भी निर्माण हुआ था।
शिक्षिका शीला अग्रवाल का प्रभाव- शीला अग्रवाल की जोशीली बातों ने एक ओर लेखिका के खोए आत्मविश्वास को पुन: लौटाया तो दूसरी ओर देशप्रेम की अंकुरित भावना को उचित माहौल प्रदान किया। जिसके फलस्वरूप लेखिका खुलकर स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने लगी।

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इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए?


सन् 1946-47 ई. में समूचे देश में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ पूरे उफ़ान पर था। हर तरफ़ हड़तालें , प्रभात – फ़ेरियाँ, ज़ुलूस और नारेबाज़ी हो रही थी। घर में पिता और उनके साथियों के साथ होनेवाली गोष्ठियों और गतिविधियों ने लेखिका को भी जागरूक कर दिया था। प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने लेखिका को स्वतंत्रता – आंदोलन में सक्रिय रूप से जोड़ दिया। जब देश में नियम – कानून और मर्यादाएँ टूटने लगीं, तब पिता की नाराज़गी के बाद भी वे पूरे उत्साह के साथ आंदोलन में कूद पड़ीं। उनका उत्साह , संगठन-क्षमता और विरोध करने का तरीक़ा देखते ही बनता था। वे चौराहों पर बेझिझक भाषण, नारेबाज़ी और हड़तालें करने लगीं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भी सक्रिय भूमिका थी।

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लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए?


लेखिका के अपने पिता के साथ अक्सर वैचारिक टकराहट हुआ करती थी –
(1) लेखिका के पिता यद्यपि स्त्रियों की शिक्षा के विरोधी नहीं थे परन्तु वे स्त्रियों का दायरा चार दीवारी के अंदर ही सीमित रखना चाहते थे। परन्तु लेखिका खुले विचारों की महिला थी।
(2) लेखिका के पिता लड़की की शादी जल्दी करने के पक्ष में थे। लेकिन लेखिका जीवन की आकाँक्षाओं को पूर्ण करना चाहती थी।
(3) लेखिका का स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेकर भाषण देना उनके पिता को पसंद नहीं था।
(4) पिताजी का लेखिका की माँ के साथ अच्छा व्यवहार नहीं था। स्त्री के प्रति ऐसे व्यवहार को लेखिका अनुचित समझती थी।
(5) बचपन के दिनों में लेखिका के काले रंग रुप को लेकर उनके पिता का मन उनकी तरफ़ से उदासीन रहा करता था।

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 वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?


जब पहली बार लेखिका के कॉलेज से उनके पिता के पास शिकायत आई तो लेखिका बहुत डरी हुई थी। उनका अनुमान था कि उनके पिता गुस्से में उनका बुरा हाल करेंगे। लेकिन ठीक इसके उलट उनके पिता ने उन्हें शाबाशी दी। यह सुनकर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हुआ और न अपने कानों पर।

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लेखिका की माँ के व्यक्तित्व पर किसका प्रभाव पड़ा था?

उत्तर: लेखिका के व्यक्तित्व पर उनके माता पिता का प्रभाव पड़ामाँ से उन्होंने सहनशीलता सीखी और अपने पिता से जिद्द। अपने पिता से ही उन्हें इस बात के लिए प्रोत्साहन मिला था कि रसोई की चारदीवारी से निकल कर बाहर की दुनिया के बारे में पता किया जाए।

लेखिका की राजनीति समझ को बढ़ाने में किसका योगदान रहा इसका लेखिका पर क्या प्रभाव पड़ा?

लेखिका को देश के प्रति जागरूक बनाने में उनके पिता का ही योगदान है। <br> शीला अग्रवाल का प्रभाव-लेखिका को क्रियाशील, क्रांतिकारी और आंदोलनकारी बनाने में उनकी हिन्दी-प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का योगदान है । शीला अग्रवाल ने अपनी जोशीली बातों से लेखिका के मन में बैठे संस्कारों को कार्य-रूप दे दिया ।

3 वह कौन सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर?

जब पहली बार लेखिका के कॉलेज से उनके पिता के पास शिकायत आई तो लेखिका बहुत डरी हुई थी। उनका अनुमान था कि उनके पिता गुस्से में उनका बुरा हाल करेंगे। लेकिन ठीक इसके उलट उनके पिता ने उन्हें शाबाशी दी। यह सुनकर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हुआ और न अपने कानों पर

एक कहानी यह भी पाठ की लेखिका के पिता क्या नहीं चाहते थे?

लेखिका के पिता में विशिष्ट बनने और बनाने की चाह थी पर वे चाहते थे कि यह सब घर की चारदीवारी में रहकर हो, जो संभव नहीं था। वे नहीं चाहतेथे कि लेखिका सड़कों पर लड़कों के साथ हाथ उठा-उठाकर नारे लगाए, जुलूस निकालकर हड़ताल करे। दूसरी ओर लेखिका को अपनी घर की चारदीवारी तक सीमित आज़ादी पसंद नहीं थी।